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-श्यामदत्त चतुर्वेदी
अभी तक तो बुलडोजर एक्शन को लेकर जुबानी जंग जोरों पर थी, लेकिन देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने इसी बुलडोजर एक्शन पर अब अपना हथौड़ा चला दिया है। अपना फैसला देते समय जो बात सुप्रीम कोर्ट ने कही, वो ज्यादा अहम है।
‘घर केवल एक मकान नहीं होता यह हर परिवार का एक सपना होता है। कोई भी इंसान सालों की मेहनत और अरमानों से अपना आशियाना बनाता है। घर से उसे और उसके परिवार को सुरक्षा मिलती है और उसके भविष्य की उम्मीद जागती है। कवि प्रदीप ने भी लिखा है ‘अपना घर हो, अपना आंगन हो, इस ख्वाब में हर कोई जीता है। इंसान के दिल की यह चाहत है कि उसका एक घर का सपना कभी ना छूटे।’
इन्हीं पंक्तियों को सुप्रीम कोर्ट ने देश में त्वरित न्याय के नाम पर हो रहे बुलडोजर एक्शन पर अपने आदेश में कोट (Quote) किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया है कि अगर घर में रहने वाला एक ही व्यक्ति आरोपी है तो क्या प्रशासन को यह इजाजत होनी चाहिए कि वह उस घर में मौजूद सभी लोगों के सिर से छत छीन ले ?
सबसे बड़ी अदालत ने सूबे की सरकारों की इस नई नवेली फितरत के खिलाफ एक सख्त गाइडलाइन दी है। 13 नवंबर 2024 को आए इस सख्त आदेश के बाद सियासी बाजारों से लेकर गांवों गली तक इसकी चर्चा होने लगी है। अदालत ने अपने आदेश में काफी कुछ कहा है। जाहिर है सरकारों के साथ साथ नगर प्रशासन और आम आदमी भी इस सुप्रीम फैसलों को जानना और समझना बेहद जरूरी है।
कोर्ट ने देश की विभिन्न सरकारों की अघोषित बुलडोजर पॉलिसी को संविधान का आईना दिखाया है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने राज्यों की तरफ से किए जा रहे बुलडोजर एक्शन पर सख्त टिप्पणियां की है। फैसला सुनाने वाली बेंच में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन थे। कोर्ट ने कुछ नियमावलियों का भी उल्लेख किया है। साफ तौर पर कहा है कि अगर इसका उल्लंघन करके घर गिराए तो अवमानना का केस तो होगा ही, साथ ही अपनी जेब से खर्च करके गिराए गए घर को दोबारा बनवाना होगा। ऐसी कार्रवाई को लेकर आमतौर पर बीजेपी या उसके समर्थन वाली सरकारों पर आरोप लगाए लगाए जाते हैं। हालांकि, ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के नेताओं ने कभी ऐसा नहीं किया है। कोर्ट के इस आदेश के बाद ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर देश में किन-किन सरकारों ने कब-कब ऐसी कार्रवाई की है?
योगी बाबा और भाजपा के अलावा और भी..
आम समझदारी यही है कि बुलडोजर जस्टिस जैसी उपमाएं तब प्रकाश में आई जब साल 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। हालांकि, यहां से पॉपुलर हुआ बुलडोजर एक्शन उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रहा। मध्य प्रदेश, असम, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली में भी बुलडोजर का चलना दिखा। इतना ही नहीं भाजपा शासित राज्यों के अलावा भी प्रदेश में बुल्डोजर एक्शन हुए हैं।
जनवरी 2023 में राजस्थान में अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार ने सेकंड ग्रेड टीचर भर्ती का पर्चा लीक करवाने वाले कोचिंग संस्थान पर बुलडोजर चलाया था। इससे पहले 2019 से ही गहलोत सरकार इस तरह की कार्रवाई कर रही थी। साल 2023 में तेलंगाना में कांग्रेस के रेवंत रेड्डी की सरकार ने फिल्म अभिनेता नागार्जुन के मालिकाना हक वाले कन्वेंशन सेंटर के कुछ हिस्सों को जमींदोज कर दिया था। मध्य प्रदेश में 2018 में आई कमलनाथ सरकार ने 15 महीने के कार्यकाल में माफियाओं और गुंडों के खिलाफ बुलडोजर का जमकर इस्तेमाल किया, लेकिन कमलनाथ के बाद फिर से मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान ने इस बुलडोजर को दोगुनी रफ्तार से चलाया जिससे उनका नाम ही ‘मामा’ से ‘बुलडोजर मामा’ पड़ गया।
कोर्ट ने जारी की गाइडलाइन
सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 142 का हवाला दिया। इस अनुच्छेद के मुताबिक कोर्ट के पास किसी भी केस में पूर्ण न्याय की नीयत से आदेश देने का अधिकार है। जबकि अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के अधिकार को संरक्षित करने के लिए गाइडलाइन जारी की। कोर्ट ने कहा कि घर छीनना ही है तो प्रशासन को यह तय करना होगा कि ध्वस्त करना ही आखिरी विकल्प है।
- बिना कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना कोई ध्वस्तीकरण अब नहीं किया जाएगा
- नोटिस में जवाब देने के लिए 15 दिन या म्युनिसिपल के कानून के तहत समयावधि देनी होगी
- संपत्ति के मालिक तक रजिस्टर्ड पोस्ट से नोटिस भेजना होगा और प्रॉपर्टी के बाहर भी चिपकाना होगा
- नोटिस में अवैध निर्माण नियम तोड़ने की जानकारी और ध्वस्त करने का आधार साफ-साफ बताना होगा
- नोटिस को मकान मालिक को सौंपने के साथ ही कलेक्टर ऑफिस और जिलाधिकारी को भी भेजना होगा
- जिम्मेदार अधिकारी को संपत्ति के मालिक को सुनना होगा, मुलाकात के मिनट्स के ब्योरे लिखे जाएंगे
- फाइनल आदेश में भी मालिक और प्रशासन की आपत्तियों का जिक्र होना चाहिए
- कार्रवाई की वीडियोग्राफी करवानी होगी और इसकी रिपोर्ट पोर्टल पर अपलोड करनी होगी
- अदालत के किसी भी आदेश के उल्लंघन की सूरत में अवमानना का केस होगा
- नियमों का उल्लंघन हुआ तो जिम्मेदार अधिकारी निजी रूप से गिराई गई संपत्ति का पुनर्निर्माण करे
- पूरे निर्माण का कुछ ही हिस्सा अतिक्रमण है तो यह भी बताना होगा कि थोड़े से हिस्से के बजाय पूरे निर्माण को ध्वस्त करना क्यों जरूरी है
- नगर निकायों को एक डिजिटल पोर्टल बनाना होगा। पोर्टल पर सारे नोटिस, नोटिस का जवाब और आदेश के ब्योरे लगाए जाएं
- डेमोलिशन के आदेश के खिलाफ मकान मालिक के पास अपील करने का मौका होना चाहिए
- संपत्ति के मालिक को खुद ही अवैध निर्माण हटाने का मौका भी मिलना चाहिए
2022 में पड़ी थी इस फैसले की बुनियाद
असल में अप्रैल 2022 में दिल्ली के दंगों से इस फैसले का रास्ता निकला। दिल्ली के जहांगीरपुरी में हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए थे। इसके बाद नॉर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन यानी NDMC ने जहांगीरपुरी में ध्वस्तीकरण का काम शुरू किया। NDMC की उसी कार्रवाई के बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने फौरी तौर पर इन कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। इसके बाद कई संगठनों ने कोर्ट के सामने ये मांग रखी कि देश में अब ऐसा फैसला आम हो गया है। इस कारण इस विषय पर विस्तार से कोई आदेश दिया जाए। इसी बीच करीब 1 साल के भीतर अदालत के पास मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, असम समेत कुछ और राज्यों में हुए बुलडोजर एक्शन को लेकर याचिकाएं पहुंच गईं।
देश में कहीं नहीं होगा बुलडोजर एक्शन
एक ही तरह की कई याचिकाओं के आने के बाद कोर्ट ने सभी पर एक साथ सुनवाई का फैसला लिया और इसे दो जजों वाली पीठ के पास भेज दिया गया। सुनवाई के लिए 1 अक्टूबर 2024 का दिन तय हुआ। हालांकि, कोर्ट ने इसके पहले ही 17 सितंबर को ही इस तरह की कार्रवाई के खिलाफ एक आदेश देकर रोक लगा दी थी। उस आदेश में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश या अनुमति के बिना देश में कही भी ऐसी कार्रवाई नहीं हो सकती। इस आदेश में कोर्ट ने ये छूट जरूर दी कि अनधिकृत संपत्ति किसी सार्वजनिक जगहों पर अगर अतिक्रमण कर रही हैं तो उन स्थितियों में ये आदेश लागू नहीं होगा।
इंग्लैंड के जज की टिप्पणी
17 सितंबर को आए कोर्ट के आदेश के बाद दोनों पक्षों ने पीठ के सामने अपना-अपना पक्ष रखा। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इसके बाद कोर्ट ने 13 नवंबर को विस्तृत आदेश दिया। खास बात ये की इसमें इंग्लैंड के जज लॉर्ड डेनिंग की एक टिप्पणी को भी कोट किया गया। उन्होंने कहा था कि अपनी कुटिया में सबसे गरीब इंसान भी राजा की हर शक्तियों के खिलाफ खड़ा हो सकता है। उसकी कुटिया कमजोर हो सकती है, उसकी छत हिल सकती है, हवा उसकी कुटिया के आरपार हो सकती है, उसकी कुटिया में तूफान घुस सकता है, बारिश घुस सकती है लेकिन इंग्लैंड का राजा उसमें नहीं घुस सकता है. उसकी सारी शक्तियां भी उसकी रिहाइश में तब तक दाखिल नहीं हो सकती जब तक उनके पास कानूनी तर्क न हो। इसी से जाहिर हो गया था कि कोर्ट का आदेश कैसा होने वाला है।