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– गोपाल शुक्ल:
सियासी पंडित अक्सर यह कहते मिल जाएंगे कि शरद पवार जो भी बोलते हैं बहुत नाप तौल कर। शब्दों की फिजूलखर्ची बिल्कुल नहीं करते हैं। मगर ऐसा हमेशा से नहीं था। महाराष्ट्र के साथ साथ पूरे मुल्क ने वो जमाना भी देखा है जब इन्हीं शरद पवार के एक झूठ से अफरा तफरी फैल गई थी। धमाकों के दर्द से तड़पती मुंबई के जख्मों पर भी शरद पवार के शब्दों ने नमक ही छिड़का था।
सियासत को नज़दीक से देखने और परखने वाले जानते हैं कि शरद पवार यूं तो अपने निजी ताल्लुकात के लिए जान तक देने को तैयार हो सकते हैं, मगर सवाल तो तब खड़ा होता है कि जब शरद पवार अंडरवर्ल्ड के साथ अपने रिश्तों को लेकर खामोशी का लबादा ओढ़ लेते हैं। अक्सर अंडरवर्ल्ड के साथ उनके रिश्तों के किस्से की चौपाल गली मोहल्लों में बैठी मिल जाती है।
महाराष्ट्र के दिग्गज नेता और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (NCP)के मुखिया शरद पवार, हिन्दुस्तान की सियासत की उन हस्तियों में से एक हैं जिनकी राजनीति में समझ बेहद गहरी है, उनकी पैठ का कोई सानी नहीं और उनके कहे का बड़ा और गहरा असर भी होता है। कहा तो यही जाता है कि शरद पवार की छवि एक कुशल रणनीतिकार, बेहद तजुर्बेकार समझदार नेता और महाराष्ट्र की राजनीति के मजबूत स्तंभ के रूप में है, लेकिन उनके लंबे सियासी जीवन की इस साफ सुथरी, चमकदार तस्वीर के पीछे कई इल्जामों की फेहरिस्त भी है। शरद पवार के व्यक्तित्व में उनके विरोधी अंडरवर्ल्ड से जुड़े उनके रिश्ते, क्रिकेट में गड़बड़ियों, मुंबई धमाकों के बाद के झूठ और उनकी सियासी तिकड़मबाजियों के दांव पेच देखथे हैं। यहां हम शरद पवार के जीवन के उन पहलुओं पर बात करेंगे, जो उनकी इस सियासी यात्रा को विवादों की बदली से ढकते दिखाई देते हैं।
मुंबई धमाकों के बाद झूठ का धमाका
12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों ने पूरे देश को हिला दिया था। इन धमाकों में 250 से अधिक लोगों की जान चली गई और कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए। ये धमाके दाऊद इब्राहिम और उसकी डी कंपनी ने करवाए थे, लेकिन इन धमाकों के बाद सियासी धमाकों का एक सिलसिला तब चला, जब पवार के खिलाफ कई इल्जाम सिर उठाते दिखाई पड़ने लगे। शरद पवार उस वक्त महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। मुंबई धमाकों के बाद शरद पवार के बयान विवादों में रहे। उन्होंने कई बार इस हमले के सिलसिले में ऐसी बातें कहीं जो बाद में गलत साबित हुईं। पवार ने कहा था कि इस धमाके के पीछे पाकिस्तान का हाथ था और भारत को इसका जवाब देना चाहिए, लेकिन कुछ समय बाद ही शरद पवार अपनी ही कही बात से मुकर गए और खुद को तटस्थ दिखाने की कवायद में जुट गए। मुंबई धमाके के बाद मुंबई में दंगे के हालात बन गए थे। तभी शरद पवार ने एक ऐसा झूठ बोला, जिससे पूरे महाराष्ट्र में खलबली मच गई थी। दरअसल मुंबई में 12 जगहों पर बम धमाके हुए थे। शरद पवार मुंबई के वर्ली स्थित दूरदर्शन के कार्यालय पहुंचे और उन्होंने कहा कि मुंबई में 13 जगह धमाके हुए हैं। उन्होंने बताया कि तेरहवां धमाका गैर हिंदू इलाके में हुआ है। इसके बाद पवार दूरदर्शन कार्यालय से निकलकर मुस्लिम बहुल क्षेत्र में चले गए, लेकिन उनके इस बयान से मुंबई में खलबली मच गई। लोगों में डर फैल गया कि धमाके कहीं भी हो सकते हैं।
सवालों में शरद पवार के ताल्लुकात
शरद पवार की छवि एक मजबूत और प्रभावशाली नेता की बेशक रही है। उन्हें अपनी राजनीतिक शैली और प्रभावशाली कूटनीति के लिए भी जाना जाता है, लेकिन उनकी कार्यशैली और उनके निजी संबंधों को लेकर विवादों की भी कभी कोई कमी नहीं रही।
अंडरवर्ल्ड से नाता
शरद पवार पर अंडरवर्ल्ड और खासकर दाऊद इब्राहीम के साथ संबंधों के आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं। दाऊद इब्राहिम के बारे में बताने की जरूरत नहीं कि भारत का मोस्ट वांटेड और दुश्मन नंबर वन है। 1993 के मुंबई धमाकों का मास्टरमाइंड तो है ही. उसे तो अब अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी तक घोषित किया जा चुका है। दाऊद इब्राहिम कासकर के बारे में ये बात खुलेआम कही जाती है कि बम धमाकों को लिए उसने मुंबई में अपनी डी कंपनी के गुर्गों का इस्तेमाल किया और अपने नेटवर्क का इस्तेमाल किया जो भारत और पाकिस्तान में फैला हुआ था।
फायदे के लिए माफिया से मेलमिलाप
शरद पवार पर कई बार यह आरोप लगे कि वे दाऊद इब्राहिम से रिश्तों में थे या उन्हें शह देते थे। खास तौर पर 1990 के दशक में, जब मुंबई में अंडरवर्ल्ड अपनी जड़ें गहरी कर कर था। तब पवार के अंडरवर्ल्ड से संबंधों को लेकर कई तरह की अटकलें थीं। हालांकि, शरद पवार ने इन आरोपों को हमेशा नकारा है, लेकिन उन पर यह आरोप लगते रहे कि जब मुंबई में अंडरवर्ल्ड का कारोबार चरम पर था तो पवार ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए उस वक्त अंडरवर्ल्ड माफिया को शह दी थी।
हालांकि एक सच ये भी है कि शरद पवार और दाऊद इब्राहिम के कथित रिश्तों को लेकर कोई ठोस सबूत कभी सामने नहीं आ सका, लेकिन यह आरोप अक्सर विपक्षी दल और मीडिया के जरिए शरद पवार के दामन को दागदार करते रहे। कुछ आरोपों के अनुसार, पवार के सहयोगियों ने अंडरवर्ल्ड से आर्थिक मदद तक ली थी। शरद पवार के करीबी और NCP के कुछ नेताओं के नाम भी अंडरवर्ल्ड से जुड़े मामलों में आए, लेकिन पवार ने कभी भी सार्वजनिक रूप से इन आरोपों की पुष्टि नहीं की।
क्रिकेट में भ्रष्टाचार और मैच फिक्सिंग
भारतीय क्रिकेट प्रशासन में भी शरद पवार का गहरा प्रभाव रहा है। 2005 से 2008 तक शरद पवार भारतीय क्रिकेट बोर्ड यानी BCCI के अध्यक्ष रहे। बीसीसीआई के अध्यक्ष के रूप में उनकी कार्यशैली और क्रिकेट प्रशासन को लेकर भी कई विवाद सामने आए, जिनमें से सबसे बड़ा विवाद क्रिकेट में धोखाधड़ी, मैच फिक्सिंग और भ्रष्टाचार से जुड़ा था। भारत में क्रिकेट का सबसे बड़ा प्रशासनिक संगठन होने के नाते, बीसीसीआई की जिम्मेदारी थी कि वह क्रिकेट को साफ-सुथरा रखे. लेकिन पवार के अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान बीसीसीआई पर मैच फिक्सिंग और भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे। इन आरोपों के तहत, मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी की घटनाओं को लेकर कुछ क्रिकेट खिलाड़ियों के नाम सामने आए, लेकिन बीसीसीआई ने इन मामलों में ढीला रवैया अपनाया और विवादों को हल करने के बजाय उन्हें टालते रहे। बीसीसीआई के अध्यक्ष रहते हुए पवार ने खुद को भारतीय क्रिकेट के सबसे ताकतवर व्यक्ति के रूप में स्थापित किया। इस दौरान क्रिकेट में गड़बड़ियों का कोई ठोस समाधान नहीं निकला। यह आरोप लगाया गया कि पवार ने इन विवादों से निपटने की बजाय उनका फायदा उठाया। इसके अलावा, क्रिकेट की सट्टेबाजी और फिक्सिंग के मामलों को नजरअंदाज किए जाने के कारण कई लोग पवार की नीतियों पर सवाल उठाने लगे।
शरद पवार की सियासी तिकड़मबाजी
शरद पवार की राजनीति में उनकी सियासी चालों की कोई कमी नहीं रही है। उन्होंने हमेशा परिस्थितियों के अनुसार अपना रुख बदला और सत्ता की राजनीति में टिके रहने के लिए कई बार सिद्धांतों को ताक पर रखा। पवार की यह तिकड़मबाजी विशेष रूप से उनकी पार्टी, NCP के अस्तित्व और कांग्रेस के साथ गठबंधन में देखी गई।
कांग्रेस से गठबंधन और उसके बाद का खेल
1999 में पवार ने कांग्रेस पार्टी से अलग होकर NCP बनाई, और इस कदम ने राजनीति में हलचल मचा दी। हालांकि, उन्होंने हमेशा कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाए रखा, जब भी राजनीति में उनकी स्थिति कमजोर पड़ी। पवार ने सियासी लाभ के लिए कई बार कांग्रेस से गठबंधन किया और समय-समय पर गठबंधन से अलग भी हुए। उनकी यह राजनीति पूरी तरह से अवसरवाद पर आधारित रही और उनका यह सियासी खेल उनके विरोधियों के लिए हमेशा एक चुनौती बना रहा। पवार की सियासी चालों में उनकी समझदारी और राजनीतिक बल का उदाहरण देखा जा सकता है, जब उन्होंने महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना के बीच शक्ति संघर्ष के बीच अपनी पार्टी की स्थिति मजबूत की। उनका यह तरीका उन्हें समय-समय पर सत्ता के गलियारे में मजबूती से खड़ा रखता था, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन के दौरान कई बार झूठ बोलने, दोहरे मापदंड अपनाने और कभी-कभी अपनी छवि को बनाए रखने के लिए गलत सूचनाओं का सहारा भी लिया।
शरद पवार का सियासी सफर
भारतीय राजनीति का एक ऐसा नाम, जो न केवल महाराष्ट्र की सीमाओं में कैद है, बल्कि देश की सियासत का एक बेहद खास और सबसे जाना पहचाना चेहरा भी है।12 दिसंबर 1940 को महाराष्ट्र के बारामती जिले में जन्में शरद पवार का ताल्लुक असल में एक छोटे से सियासी परिवार से भी है। शरद पवार ने भारतीय राजनीति में अपनी पहचान बनाने के लिए जो मेहनत की वो बेमिसाल है। 1978 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने पवार ने न केवल महाराष्ट्र, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी अलग पहचान बनाई है। 1999 में कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने अपनी पार्टी NCP बनाई थी। यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि शरद पवार की पार्टी ने समय-समय पर महाराष्ट्र और केंद्र की राजनीति में बहुत अहम भूमिका निभाई।