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-श्यामदत्त चतुर्वेदी
झारखंड में विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं। 23 नवंबर को जनता का फैसला सबके सामने आएगा। इस बीच आजसू यानी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन और इसके नेता सुदेश महतो काफी चर्चा में हैं। महतो हमेशा से ही झारखंड की सियासत के केंद्र में रहे और 2 बार उप मुख्यमंत्री भी बने। एक दौर था जब उन्होंने लालू यादव के खास ऑफर को ठुकरा दिया था।
झारखंड चुनाव में JMM, BJP, कांग्रेस से ज्यादा प्रदेश के छोटे सियासी दलों की हो रही है जो यहां हमेशा से सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। इसमें से एक पार्टी है आजसू यानी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन। इसके नेता हैं सुदेश महतो, जो महज 25 साल की उम्र में विधायक बन गए थे। आजसू मूल रूप से छात्रों का एक संगठन था, लेकिन झारखंड की मांग को इन्होंने इतनी बुलंदी से उठाया कि प्रदेश में एक सियासी पार्टी के रूप में स्थान बना लिया। पार्टी को झारखंड के अल्पमतों वाली सरकारों में अच्छा मौका मिला और इसके नेता दो बार प्रदेश के उपमुख्यमंत्री तक बन गए। आइये जानें आजसू और सुदेश महतो का सियासी सफर और झारखंड की सियासत में इनका स्थान।
अहम कड़ी हैं सुदेश महतो
ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन यानी आजसू को अभी से ही चुनाव में अहम कड़ी माना जा रहा है। अलग झारखंड आंदोलन से निकली पार्टी प्रदेश के सियासी केंद्र में है। यही कारण है कि आजसू के सर्वेसर्वा सुदेश महतो चर्चा में हैं। महज 25 साल की उम्र में विधायक बनने वाले किंगमेकर सुदेश महतो एक बार फिर से अपनी पारंपरिक सीट सिल्ली से मैदान में हैं। इन्हें अपने करियर में केवल एक हार मिली है। हालांकि प्रदेश के 24 साल के इतिहास में ये हमेशा से सियासी केंद्र में रहे हैं।
कैसे बनी आजसू?
साल 1980 का था। उन्हीं दिनों अलग झारखंड की मांग को राष्ट्रीय स्तर पर मंच मिला। तब JMM के नेता रहे सुदेश महतो को अलग राज्य के लिए छात्रों की ताकत का अंदाजा हुआ और उन्होंने 1986 में JMM के स्टूडेंट विंग के रूप में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन की तर्ज पर झारखंड मुक्ति मोर्चा खड़ा कर दिया। AJSU की मांग इतनी बुलंद थी कि उन्होंने गठन के 3 साल बाद हुए 1989 के लोकसभा तक का बहिष्कार कर दिया और बिहार में हड़ताल और बंद बुला लिया।
सुदेश महतो का ये आंदोलन JMM के नेता शिबू सोरेन को रास नहीं आया और उन्होंने पार्टी समेत खुद को इससे अलग कर लिया। ये बात न तो सुदेश महतो को भायी और न ही JMM के कद्दावर नेता निर्मल महतो को ये पसंद आया। इसके बाद उन्होंने खुद को JMM से अलग होने का फैसला किया। उनके पास पहले से ही छात्रों का अच्छा खासा समर्थन था। इसी के बूते दोनों नेताओं ने 22 जून 1986 को आजसू की स्थापना एक पार्टी के रूप में कर डाली।
राज्य बनने से पहले बने विधायक
JMM से अलग होने के बाद AJSU को और अधिक समर्थन मिला और झारखंड गठन की मांग बुलंद होती गई। इसी का परिणाम रहा कि साल 1995 में बिहार सरकार ने झारखंड एरिया ऑटोनोमस काउंसिल का गठन कर दिया। हालांकि इसमें JMM के 41, जनता दल के 31 मेंबर होने के कारण आजसू ने इसका भी बहिष्कार कर दिया और आंदोलन की रफ्तार को बढ़ा दिया। इसी कारण सुदेश महतो को राज्य के एक बड़े नेता के रूप में पहचान मिलने लगी।
साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी ने केंद्र में सत्ता संभाली और नया राज्य बनाने के लिए कवायद शुरू कर दी। इस बीच साल 2000 की शुरुआत में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए और आजसू के युवा नेता 25 साल के सुदेश महतो सिल्ली से विधायक बनकर पटना पहुंचे। इन्हीं चुनावों को प्रदेश की नई सरकार का आधार बनाया गया। आखिरकार 15 नवंबर 2000 को झारखंड भारत के 28वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आ गया।
1 बार हारे 2 बार उपमुख्यमंत्री बने
राज्य गठन से पहले ही नई सरकार के लिए कवायद शुरू हो गई. लालू यादव ने आजसू पर डोरे डालने की शुरुआत की। हालांकि सुदेश महतो ने उनके बड़े मंत्रालय का ऑफर ठुकरा दिया और भाजपा के साथ जाने का मन बनाया। प्रदेश की पहली सरकार बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी और इसमें सुदेश महतो ने सड़क निर्माण मंत्री का पद संभाला। इसके बाद से हुए तमाम चुनावों में किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और आजसू का कद लगातार बढ़ता गया।
पहला चुनाव ट्रायल, दूसरे में डिप्टी CM बने
राज्य के गठन के बाद साल 2005 में पहले विधानसभा चुनाव कराए गए। हालांकि अलग प्रदेश की मांग वाली आजसू को इसमें 2.81 फीसदी वोटों के साथ महज 2 सीटें ही मिलीं। ये चुनाव उनके लिए ट्रायल के तौर पर रहा। इसके बाद अगले चुनाव 2009 में हुए और सुदेश महतो की आजसू 5.12% मत के साथ 5 सीटों पर कब्जा जमा लिया। जब किसी को बहुमत नहीं मिला तो शिबू सोरेन ने बीजेपी और AJSU के साथ मिलकर सरकार बना ली।
दिसंबर 2009 में शिबू सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसमें सुदेश महतो को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। 5 महीने में ही भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया और सोरेन की सरकार मई 2010 में गिर गई। कुछ दिनों तक प्रदेश में राष्ट्रपति शासन रहा। इस दौरान BJP ने बहुमत का जुगाड़ किया और अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में सरकार का गठन किया। इसमें सुदेश महतो को फिर से उपमुख्यमंत्री का पद मिला। हालांकि मुंडा सरकार भी जनवरी 2013 में गिर गई।
तीसरे चुनाव में हार और वोट में कटौती
मुंडा सरकार गिरने के बाद साल 2014 में तीसरी चुनाव कराया गया। इसमें सुदेश महतो का कद कमजोर हुआ। उनकी पार्टी को महज 3.68% वोट हासिल हुए। खुद महतो भी 29740 मतों से चुनाव हार गए। हालांकि इस बार भी उनके खाते में 5 विधायक आए। 2019 के विधानसभा चुनाव में महतो की पार्टी ने 8.1% वोट हासिल किए, लेकिन इस बार उनके सिर्फ 2 प्रत्याशी ही जीत पाए। इसमें से एक वह खुद थे और दूसरे लंबोदर महतो विजयी हुए थे।
2024 में क्या हो सकता है?
साल 2024 के विधानसभा चुनाव में आजसू ने एक बार फिर भाजपा से गठबंधन किया है। सीट बंटवारे में उनके पास 81 में से 10 सीटें आई हैं। अब उनकी बारगेन पावर इसपर निर्भर करती है कि वह 10 में से कितनी सीटों पर जीत हासिल करते हैं। अगर भाजपा बहुमत से दूर रही और आजसू के पास 5 सीटें भी आ जाती हैं तो कोई दो राय नहीं कि सुदेश महतो एक बार फिर किसी बड़े पद पर नजर आ सकते हैं। आपको बता दें कि इस बार के चुनाव में उनके सामने मुकाबले में JMM के अमित कुमार हैं। अमित कुमार ने ही उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में हराया था।