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-श्याम दत्त चतुर्वेदी
क्या किसी जिंदा इंसान को इस बात की चिंता भी सताती है कि मरने के बाद उसके पार्थिव शरीर का क्या होगा? बड़ा अजीब सा सवाल है ना! लेकिन इन दिनों उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारे से लेकर सारे हिन्दुस्तान की हिन्दू गलियों में ये बात गश्त कर रही है कि एक मुसलमान से हिन्दू बने शख्स की आत्मा को क्या मरने के बाद शांति मिल जाएगी? इस अजीबोगरीब सवाल का जवाब तो भले ही किसी के पास न हो, मगर इस बात को लेकर चर्चाओं का बाजार जरूर गरम हो गया है।
असल में ये बात शुरू होती है जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी से जो अब जितेंद्र नारायण सिंह सेंगर बन चुके हैं, लेकिन उससे भी पहले यही जितेंद्र नारायण वसीम रिजवी के नाम से जाने और पहचाने जाते थे। मगर 2021 में वसीम रिजवी ने इस्लाम की टोपी उतारकर सनातन का अंगौछा ओढ़ लिया। एक मजहब से दूसरे मजहब में छलांग लगाने वाले रिजवी साहब उर्फ जितेंद्र नारायण ने पिछले दिनों जो एक हलफनामा यानी शपथपत्र दिया वह अचानक पहले मुंह जुबानी और फिर तस्वीरों के जरिए लोगों के जुबान पर तैरने लगा।
इस मामले में चौंकाने वाला पहलू ये है कि अपनी कही सियासी बातों की वजह से सुर्खियों में रहने वाले वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण का जिक्र सिर्फ शपथ पत्र की वजह से नहीं बल्कि उनकी वसीयत को लेकर हो रहा है।
किसी की भी वसीयत का जिक्र तब होता है जब कोई व्यक्ति या तो मरणासन्न हो या वो दूसरी दुनिया में जा चुका हो और उसके उत्तराधिकार का कोई मसला बवाल बन गया हो। लेकिन यहां ऐसी कोई बात नहीं बल्कि वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण ने अपने वसीयतनामा में एक ऐसी मांग कर दी है कि बात अब बातों की हद को लांघती हुई कायदे और कानून के दायरे तक पहुँचने लगी है।
समाजवादी पार्टी के साथ सियासी सफर शुरू करने वाले वसीम रिजवी ने कुछ वक्त बीएसपी के साथ गुजारा। लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सत्ता आने के बाद वसीम रिजवी भाजपा की ओर झुकने लगे और फिर इस्लाम से किनारा कर सनातन की शरण में आ गए। धर्म परिवर्तन किया और वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी बन गए। हालांकि फिर उन्होंने नाम बदला और जितेंद्र नारायण सिंह सेंगर बन गए। रिजवी अपने कई बयानों को लेकर चर्चा में रहे हैं। अब एक बार फिर से उनकी चर्चा उनके वसीयत के कारण हो रही है. इसके लिए उन्होंने बाकायदा शपथपत्र दिया है और एक अनोखी मांग कर दी है। आइये जानें कि क्या सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जितेंद्र नारायण की वसीयत को मान्यता मिल पाएगी?
क्या है जितेंद्र नारायण की वसीयत में?
जितेंद्र नारायण सिंह सेंगर उर्फ वसीम रिजवी ने अपने अंतिम संस्कार को लेकर वसीयत लिखी है। इसमें उन्होंने कहा है कि, मृत्यु के बाद हिंदू धर्म के रीति रिवाजों के तहत उनकी अंत्येष्टि की जाए। जितेंद्र नारायण सिंह ने अपने वसीयतनामे में अपनी अंत्येष्टि के लिए तीन लोगों को अधिकृत किया है। उन्होंने इच्छा जताई है कि अगर स्वास्थ्य इजाजत दे तो तुलसीपीठ के गुरु रामभद्राचार्य के हाथों या फिर उनकी मौजूदगी में उनकी अस्थियों को विसर्जित किया जाए।
कौन हैं वो तीन लोग?
– संघ के प्रचारक रहे महिरजध्वज सिंह
– उत्तराखंड के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रभात कुमार सेंगर
– लखनऊ के पत्रकार हेमेंद्र प्रताप सिंह तोमर
वसीयत में विकल्प भी सुझाया
जितेंद्र नारायण सिंह सेंगर (वसीम रिजवी) ने रामभद्राचार्य के हाथों अस्थि विसर्जन न हो पाने की सूरत में कुछ विकल्प भी सुझाए हैं। उन्होंने लिखा कि जगतगुरु रामभद्राचार्य जी ने मुझे तुलसी पीठ में दीक्षा दी है। इस कारण मैंने अपने इच्छापत्र यानी वसीयत नामे में यह लिखा है कि उनका स्वास्थ्य अनुमति दे तो मेरी अस्थियों का विसर्जन उनके हाथों हो। अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो मेरे अधिकृत किए गए लोग ही मेरी अस्थियों का विसर्जन करें।
परिवार के अलावा किसी और का सुझाव क्यों?
जितेंद्र नारायण सिंह ने अंत्येष्टि के लिए तीन लोगों को अधिकृत करने और रामभद्राचार्य के हाथों अस्थियों को विसर्जित कराने की इच्छा का कारण भी बताया है। उन्होंने लिखा है- ‘मेरे परिवार में सभी लोग इस्लामी परंपरा के हिसाब से अपने मजहब को मानते हैं। हालांकि, वह कट्टरपंथी नहीं हैं। इसी कारण मुझे उनके इस्लाम मानने और उनके मेरे सनातन को मामने में कोई आपत्ति नहीं है। पर एक आशंका है कि मेरी मौत के बाद मेरा परिवार शव पर अधिकार जताकर मुझे कब्रिस्तान में दफ्न करने की कोशिश करेगा। मगर अब मैं सनातनी हूं इसलिए मेरी अंतिम क्रिया हिंदू रीति-रिवाज से होनी चाहिए।’
सनातन का मत
जितेंद्र नारायण सिंह पूर्व में वसीम रिजवी सनातन को स्वीकार कर हिंदू बन गए हैं। हालांकि, उनके सभी बच्चे शादी शुदा हैं और उन्होंने इस्लाम में ही रहना स्वीकार किया है। गरुण पुराण के अनुसार किसी व्यक्ति के दाह संस्कार का अधिकार उसके परिवारजन का होता है। जितेंद्र नारायण के परिवार के सभी लोग इस्लाम को मानने वाले हैं। इस कारण उनका संस्कार वो हिंदू रिवाज से मुश्किल से ही करेंगे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार परिवार के न होने पर पड़ोसियों, मित्रों के द्वारा या फिर संतों के हाथों से भी संस्कार और अस्थि विसर्जन किया जा सकता है। इससे प्राणी को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मतलब साफ है कि सनातन के जितेंद्र नारायण सिंह की वसीयत को स्वीकार किया जा सकता है।