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टेस्ट क्रिकेट का वो ‘मंकीगेट कांड’, जिसने क्रिकेट के भगवान सचिन को झूठा बना दिया 

Monkeygate scandal
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– गोपाल शुक्ल

क्रिकेट में एक जमाना था, जब ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच खेले जाने वाली ऐशेज सीरीज के लिए दीवाने हुआ करते थे। या फिर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध सरीखे मैच को देखने की बेताबी और रोमांच देखने को मिलता था। लेकिन गुजरते वक्त के साथ साथ क्रिकेट के मैदान पर भी बड़ी तब्दीलियां आ चुकी हैं। विरोधी और उनके बीच के मुकाबले का रोमांच भी अब बदलने लगा है। अब क्रिकेट के दीवाने भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच होने वाले किसी मुकाबले पर नजरें गड़ाए बैठे रहते हैं, क्योंकि उसमें जो रोमांच मिलता है वो अब किसी और टीमों के बीच के मुकाबले में नज़र नहीं आता।

आंकड़ों से परे भारत ऑस्ट्रेलिया के मैच का रोमांच

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 27 टेस्ट सीरीज़ हो चुकी हैं। इनमें ऑस्ट्रेलिया ने 12 सीरीज़ और भारत ने 10 सीरीज़ में ही जीत दर्ज की, जबकि पांच सिरीज़ ड्रॉ पर ख़त्म हुईं। लेकिन ये आंकड़े उस रोमांच की गवाही नहीं देते जिस रोमांच के गवाह क्रिकेट के प्रेमी पिछले 28 सालों से होते आ रहे हैं। खासतौर पर 1998 में शारजाह में सचिन तेंदुलकर की उन दो तूफानी पारियों के बाद से, जब मास्टर ब्लास्टर के बल्ले ने कंगारू टीम की बखिया उधेड़कर रख दी थी।

ऑस्ट्रेलिया दौरा अक्सर रहता है सुर्खियों में

टीम इंडिया यानी भारतीय क्रिकेट टीम 5 मैचों की टेस्ट सीरीज के लिए ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर है। भारतीय टीम का ऑस्ट्रेलिया दौरा केवल अच्छे या बुरे प्रदर्शन की वजह से नहीं बल्कि खिलाड़ियों के आपसी रवैये और उनके बीच की तनातनी की खबरों की वजह से भी सुर्खियों में बना रहता है।

16 साल पुराना ‘मंकीगेट’ कांड

आज भी 16 साल पुराने भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 2008 के न्यू ईयर टेस्ट को ‘मंकीगेट’ कांड के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। जनवरी 2008 में खेला गया सिडनी टेस्ट जैसे हालात भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए टेस्ट मैचों के इतिहास में कभी नहीं रहे हैं। सिडनी क्रिकेट ग्राउंड यानी SCG पर भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 2008 का न्यू ईयर टेस्ट को ‘मंकीगेट’ कांड के लिए याद किया जाता है।

हरभजन और एंड्यू साइमंड्स भिड़ गए थे

ये झगड़ा भारत के स्पिनर हरभजन सिंह और ऑस्ट्रेलियाई ऑल राउंडर एंड्रयू साइमंड्स के बीच निजी झगड़े के तौर पर सामने आया जो एक हद के बाद नस्लीय विवाद में बदल गया। दोनों के बीच लड़ाई नहीं हुई होती तो यह मैच कई अजीबोगरीब अंपायरिंग फैसलों के लिए याद किया जाता। क्योंकि तब अंपायर स्टीव बकनर और मार्क बेंसन अपने विवादित फैसलों की वजह से खासी सुर्खियां बटोर चुके थे। लेकिन जब ऑस्ट्रेलिया के कप्तान रिकी पोंटिंग ने टेस्ट के आखिरी दिन शिकायत की कि हरभजन ने साइमंड्स को “मंकी” कहकर नस्लीय टिप्पणी की है, बस उसके बाद तो हंगामा मच गया। सारा ऑस्ट्रेलिया का मीडिया भारतीय टीम के पीछे पड़ गया। क्रिकेट के सारे धुरंधर दो पालों में बंट गए।

कब लड़े हरभजन और साइमंड्स

वाकया टेस्ट मैच में भारत की पहली पारी का है। भारतीय टीम के लिए सचिन तेंदुलकर ने तब 154 रन की पारी खेली थी। लेकिन बैटिंग करते हुए हरभजन सिंह ने 63 रन बनाए थे। इस 129 रन की साझेदारी के दौरान हरभजन सिंह और एंड्रयू साइमंड्स के बीच कहा सुनी हुई। असल में ब्रेट ली की गेंदबाजी के दौरान मिडऑफ पर फील्डिंग कर रहे एंड्रयू साइमंड्स ने नॉन-स्ट्राइकर छोर पर खड़े हरभजन सिंह के साथ गाली गलौच शुरू कर दी। ऑस्ट्रेलिया की टीम ने आरोप लगाया कि भज्जी ने साइमंड्स को मंकी कहा। जबकि सचिन तेंदुलकर और भारतीय टीम का कहना था कि ‘भज्जी’ ने साइमंड्स को गाली दी और मां की…. कहा था।

बखेड़े में घसीटा गया सचिन को

सचिन के इस बयान से भी अच्छा खासा बखेड़ा खड़ा हो गया। क्योंकि जेंटलमैन खेल कहलाने वाले क्रिकेट में अपशब्दों का इस्तेमाल वाजिब नहीं माना जाता। लिहाजा इस बात का फैसला करने के लिए सचिन तेंदुलकर को बीच में घसीटा गया क्योंकि उस वक्त सचिन दूसरे छोर पर बल्लेबाजी कर रहे थे। साथ ही क्रिकेट के मैदान में सचिन की बात से इनकार करने की हिम्मत दुनिया का कोई भी खिलाड़ी नहीं जुटा पाता था। अंपायर की मौजूदगी में सचिन की गवाही हुई। जिसमें सचिन तेंदुलकर ये इस बात को साफ करने की कोशिश की कि हरभजन ने साइमंड्स के साथ बहस के दौरान मंकी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया बल्कि पंजाबी लहजे में उसे अपशब्द कहें हैं क्योंकि ये उसकी आदत भी है और उसकी बोली से जुड़ा हुआ भी है जो बात बात पर या गुस्से की हालत में मुंह से निकल जाती है। जबकि मंकी शब्द एकदम उसकी भाषा और बोली के साथ साथ उसकी फितरत से भी मेल नहीं खाती है।

सचिन को झूठा बताते रहे पोंटिंग और गिलक्रिस्ट

हालांकि उस वक्त ये बात तो टल गई और अंपायर की मौजूदगी में बात को वहीं खत्म मानकर खेल को आगे बढ़ाया गया, लेकिन इस बयान की वजह से सचिन तेंदुलकर को रिकी पोंटिंग और एडम गिलक्रिस्ट जैसे खिलाड़ी झूठा बताते रहे।

आत्मकथा में सचिन पर उठाए सवाल

एडम गिलक्रिस्ट अपनी आत्मकथा में सचिन तेंदुलकर की इमानदारी पर सवाल उठाते नज़र आए। गिलक्रिस्ट ने हरभजन सिंह की अपील के दौरान सचिन तेंदुलकर की गवाही को “एक मजाक” करार दिया। गिलक्रिस्ट ने लिखा, “भारत के सीनियर खिलाड़ियों ने हरभजन को उस समय बचा लिया था। जबकि नस्लीय अपमान के मामले को दुनिया भर में बेहद गंभीरता से लिया जाता है। तेंदुलकर की गवाही और रवैये के बारे में गिलक्रिस्ट का कहना था कि वो निराश हुए। गिरक्रिस्ट के मुताबिक सचिन तेंदुलकर ने सुनवाई में शुरु में यही कहा था कि वे कुछ नहीं सुन पाए थे, कि दोनों ने एक दूसरे को क्या कहा। गिलक्रिस्ट को लगता है कि सचिन तेंदुलकर वाकई सच बोल रहे थे, क्योंकि वे उस वक्त “काफी दूर भी थे”।

रिकी पोंटिंग ने भी सचिन तेंदुलकर की आलोचना की

ऑस्ट्रेलिया के उस वक्त के कप्तान रिकी पोंटिंग ने भी सचिन तेंदुलकर को जमकर कोसा है। ‘द क्लोज ऑफ प्ले’ शीर्षक से अपने संस्मरण में रिकी पोंटिंग ने कहा कि उन्हें समझ में नहीं आया कि तेंदुलकर ने अपील की सुनवाई के दौरान हरभजन सिंह का साथ क्यों दिया? जबकि मैच रेफरी माइक प्रॉक्टर ने साइमंड्स पर नस्लीय टिप्पणी करने के लिए स्पिनर को निलंबित किया, तब उन्होंने कुछ नहीं कहा।

असली लड़ाई कोर्ट में लड़ी गई

ऑस्ट्रेलिया ने भारत को उस टेस्ट में 122 रनों से हराया था। लेकिन मंकी का मुद्दा एक बार फिर उठ खड़ा हुआ क्योंकि इस बवाल को लेकर ऑस्ट्रेलिया की टीम ने कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। असली लड़ाई अभी बाकी थी। अगले कुछ दिनों तक यह लड़ाई कोर्ट में लड़ी गई। इसके बाद हरभजन को तीन टेस्ट मैचों के लिए निलंबित कर दिया गया। हरभजन के साथ सचिन तेंदुलकर थे। वह बहुत गुस्से में थे। बीसीसीआई ने दौरे से हटने की धमकी दे दी थी। ‘प्लेइंग इट माई वे’ में तेंदुलकर ने लिखते हैं,”उस वक्त टीम की कप्तानी कर रहे अनिल कुंबले और मैंने मिलकर फैसला किया कि अगर भज्जी पर प्रतिबंध बरकरार रखा गया तो हम दौरे का बहिष्कार करेंगे।”

भारत के सीनियर खिलाड़ियों ने हरभजन का समर्थन किया

इसके बाद टीम इंडिया के कप्तान अनिल कुंबले ने मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत का और अपनी बात साफ साफ जाहिर कर दी। उन्होंने कहा, “केवल एक टीम खेल भावना से खेल रही है। इस वाकये के बारे में दोनों तरफ से कहा सुनी हुई है। तब मैच रेफरी माइक प्रॉक्टर ने देखा कि उनकी तस्वीर भारतीय अखबारों के पहले पन्ने पर छपी है। माइकल क्लार्क उन ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों में से एक थे, जिन्होंने जोर देकर कहा कि उन्होंने हरभजन की बात सुनी है, जबकि भारत के सीनियर खिलाड़ी पूरी तरह से हरभजन के समर्थन में बने रहे।

हरभजन की सजा घटाकर 50% मैच फीस का जुर्माना कर दिया गया

आखिरकार, मैच रेफरी ने एक फैसला किया और हरभजन की सजा घटाकर 50% मैच फीस का जुर्माना लगाकर मामला रफा दफा कर दिया गया। लेकिन इसका एक और असर हुआ कि आईसीसी ने पर्थ में तीसरे टेस्ट से अंपायर बकनर को हटा दिया। और इत्तेफाक देखिये कि भारत ने पर्थ में वह टेस्ट जीत लिया। लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने एडिलेड में अंतिम टेस्ट ड्रॉ करके बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी जीत ली।

स्लेजिंग के पीछे ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की मंशा

इसी के साथ ही इस बात की भी बहस चलती रहती है कि आखिर ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम इतनी स्लेजिंग क्यों करती है। वैसे भारत और ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों के बीच कहा सुनी के अनगिनत किस्से हैं लेकिन बहस इस बात को लेकर हमेशा ही होती है कि ऑस्ट्रेलिया टीम अपनी इस आदत से छुटकारा क्यों नहीं ले लेती। जिसकी वजह से उसे अक्सर बदनामी का सामना करना पड़ता है। कुछ लोगों का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया की टीम असल में विरोधी टीम के खिलाड़ियों के दिमाग पर हावी हो जाना चाहती है, मैच और खेल पर अपना पलड़ा हावी रखने के लिए वो अक्सर विरोधी खिलाड़ियों को उकसाने की हरकतें करने से बाज नहीं आते। ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी अपनी बातों और हरकतों से विपक्षी टीम के खिलाड़ी को जज्बाती तौर पर भड़काते हैं। क्योंकि वो ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि भावनात्क तौर पर लिए जाने वाले फैसले टीम पर अक्सर भारी पड़ जाते हैं। जिससे उन्हें मुकाबले में अपना पलड़ा भारी करने का मौका मिल जाता है।

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  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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