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– श्यामदत्त चतुर्वेदी:
‘पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे होगे खराब’, एक समय में ये कहावत काफी प्रचलित थी। हालांकि, ये कई मायनों में गलत थी। क्योंकि खेलकूद करके लोगों ने कितना नाम बनाया है ये किसी से छिपा नहीं है। अब दौर बदला और 21वीं सदी में हम डिजिटल युग में आ गए। इस दौर में अब बच्चे खेलकूद से भी किनारे होते चले गए और मोबाइल की दुनिया में घुस गए हैं। इससे भी कई फायदे हैं लेकिन इसके नुकसान भी बड़े घातक हैं। आजकल बच्चे सोशल मीडिया के चंगुल में फंसते जा रहे हैं। इसी से प्रभावित होकर वो अपनी पढ़ाई-लिखाई के साथ खेलकूद के समय को तो बर्बाद कर ही रहे हैं कई बार घातक कदम भी उठा लेते हैं। इसके कई उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं। पर अब और नहीं…दुनिया में इसे लेकर चिंतन होने लगा है और इसके लिए गाइडलाइन भी बनने लगी हैं। सबसे बड़ा कदम उठाया गया है ऑस्ट्रेलिया में जिससे उम्मीद जताई जा रही है कि बच्चे अब इस डिजिटल में जानें से बच जाएंगे।
ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने हाल ही में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए संसद में ऐसा बिल पेश किया है, जिसका उद्देश्य 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना है। यह कानून सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सख्त नियम और भारी जुर्माने का प्रावधान करता है। अगर यह बिल पास होता है, तो यह ऑस्ट्रेलिया को ऐसा कानून बनाने वाला दुनिया का पहला देश बना देगा।
क्या हैं बिल का उद्देश्य?
इस प्रस्ताव के तहत, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उम्र सत्यापन प्रणाली लागू की जाएगी। यह प्रणाली बायोमेट्रिक डेटा या सरकारी पहचान पत्र का उपयोग करेगी। इस प्रक्रिया में किसी भी तरह की छूट नहीं दी जाएगी, चाहे वह माता-पिता की अनुमति हो या पहले से अकाउंट्स बने हुए हों। बिल का मुख्य उद्देश्य है बच्चों को सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों से बचाना। सरकार का मानना है कि यह कदम बच्चों की मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए बेहद जरूरी है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भारी जुर्माना
यदि कोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस कानून का उल्लंघन करता है, तो उसे 4.95 करोड़ डॉलर (लगभग 270 करोड़ रुपये) तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। यह नियम फेसबुक और इंस्टाग्राम की मूल कंपनी मेटा, टिकटॉक की बाइटडांस, एलन मस्क की X (पूर्व में ट्विटर) और स्नैपचैट जैसे तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लागू होगा। हालांकि, बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी।
बच्चों पर सोशल मीडिया के प्रभाव
ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने यह तर्क दिया है कि सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव डालता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 14 से 17 वर्ष के लगभग दो-तिहाई बच्चे हानिकारक ऑनलाइन सामग्री देखते हैं। इनमें ड्रग्स, आत्महत्या और खुद को नुकसान पहुंचाने जैसी सामग्री शामिल है।
इस बिल को प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज ने ऐतिहासिक सुधार बताया है। उन्होंने कहा कि इस बिल के जरिए सरकार सोशल मीडिया कंपनियों को उनकी जिम्मेदारी निभाने के लिए बाध्य करेगी। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि बच्चे इस नियम को तोड़ने के तरीके ढूंढ़ सकते हैं, लेकिन सरकार और कड़े कदम उठाने के लिए तैयार है।
आलोचना और समर्थन
इस बिल का कुछ समूहों ने समर्थन किया है, इसे बच्चों के भविष्य की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम बताया। वहीं, कुछ विशेषज्ञ इसे अभिभावकों के अधिकारों में दखल मानते हैं। हालांकि, सरकार का कहना है कि इसके पीछे इसका उद्देश्य बच्चों अलग-थलग करना नहीं बल्कि बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करना है। इस बिल के लिए उसे सभी राजनीतिक दलों का साथ हासिल है। अब इसे लेकर सोशल मीडिया कंपनियों और उपयोगकर्ता की प्रतिक्रिया का इंतजार है।
क्रांतिकारी कदम
केवल ऑस्ट्रेलिया ही नहीं दुनिया भर के सभी देश बच्चों की मोबाइल और सोशल मीडिया की इस हैबिट को लेकर चिंतित हैं। BBC की रिपोर्ट के अनुसार इस समस्या को लेकर जल्द ही ब्रिटेन में भी कोई कदम उठाए जा सकते हैं। कुल मिलाकर ऑस्ट्रेलिया का यह प्रस्ताव एक क्रांतिकारी कदम है, जो अन्य देशों को भी प्रेरित कर सकता है। सोशल मीडिया पर बच्चों की सुरक्षा और उनकी मानसिक सेहत का ख्याल रखना एक वैश्विक जिम्मेदारी बन चुकी है।