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नक्सलवाद पर हावी हुआ राष्ट्रवाद: गढ़ चिरौली ने रच दिया इतिहास, बुलेट को छोड़कर बैलेट से मनाया लोकतंत्र का जश्न,

Dayitva Media Gadchiroli Voter Turnout
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– श्यामदत्त चतुर्वेदी:

साल- 1967, गांव- नक्सलबाड़ी, पश्चिम बंगाल। किसान यहां के लोगों की सामंती सोच से परेशान थे। नतीजा ये हुआ कि इस परेशानी से निजात पाने के लिए किसानों ने हल और बैल को छोड़कर धनुष बाण उठा लिए। देखते ही देखते किसानों की ये मुहिम एक आग में तब्दील हो गई और एक बड़ा इलाका इस आंदोलन की चपेट में आ गया। यही था कम्युनिस्ट आंदोलन, जिसे नक्सलवाड़ी के आंदोलन के नाम से भी पहचाना गया। चारू मजूमदार और कानू सान्याल इस मुहिम के अगुवा बने और धीरे-धीरे ये मुहिम सत्ता के खिलाफ एक हथियारबंद आंदोलन बन गया। गरीब किसानों के लिए शुरू हुई ये लड़ाई लगातार सरकार और सुरक्षा बलों के खिलाफ होती चली गई। आखिरकार इनके नाम में नक्सली होने का दाग लग गया और फिर इसे लाला आतंकी भी कहा जाने लगा।

इस आंदोलन की चिंगारी ने सिर्फ लोगों की सोच पर ही असर नहीं किया बल्कि इस मुहिम में शामिल संगठन भी उसकी तपिश से बच नहीं सके और उनमें फूट पड़ गई। धीरे धीरे ये आग आगे बढ़ती गई और देखते ही देखते आजके मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, तेलंगाना, झारखंड और महाराष्ट्र तक फैल गई।

नक्लियों ने अब हक की लड़ाई को सियासी हथियार बना लिया था। उनके पास नई तकनीक के हथियार आने लगे थे। जिसके जरिए वो न सिर्फ खून खराबा करने लगे बल्कि तरक्की के रास्तों पर रुकावटें भी पैदा करने लगे। नक्सलियों के वार ने सरकारों को गहरी चोट पहुँचानी शुरू की तो इस मुहिम को रोकने की कोशिशें भी सरकारी तौर पर तेज होने लगी। नतीजा ये हुआ कि संघर्ष और तेज हो गया।

अब आप सोच रहे होंगे कि हम इस समय नक्सलियों के आंदोलन की बात अचानक क्यों करने लगे। तो इसकी भी खास वजह है। महाराष्ट्र में नक्सलियों के गढ़ के तौर पर मशहूर या यूं कहें बदनाम हो चुके गढ़चिरौली में इस बार विधानसभा के चुनावों में जो मतदान हुआ वो इस हालात और सूरते हाल की जो बदली हुई तस्वीर दिखा रहा है वो असल में देश में नक्सलवाद पर राष्ट्रवाद के हावी होने की गवाही भी दे रहा है।

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हो गए। लेकिन इस बार राज्य में पिछले 30 सालों का रिकॉर्ड टूट गया। महाराष्ट्र की जनता ने जो वोट डाले सो डाले ही। लेकिन चर्चा तो देश में इस बात की हो रही है कि आखिर गढ़चिरौली को क्या हो गया जहां लोगों ने मतदान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। यहां, इस बार मतदाताओं ने बंपर मतदान किया है।

18 साल में पहली बार

महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों पर लोगों में अच्छा उत्साह दिखाया। चुनाव आयोग के मुताबिक, महाराष्ट्र में 66.05 प्रतिशत वोटिंग हुई, जिसे एक अच्छा प्रतिशत माना जा सकता है। लेकिन इन चुनावों में गढ़चिरौली की जनता ने 74.92 फीसदी मतदान किया। इस इलाके में इतनी बोटिंग के साथ साथ जिस बात ने सबसे ज्यादा हैरान किया वो ये है कि माओवाद से प्रभावित गढ़चिरौली वोटिंग वाले पूरे दिन न तो कोई गोली चली और न ही कोई झगड़ा हुआ।

सियासत का सबसे बड़ा हासिल

18 सालों में सियासत का ये शायद सबसे बड़ा हासिल है। जब नक्सल से प्रभावित इलाके मुख्यधारा के चुनावों में इस तरह बढ़ चढ़कर अपनी भूमिका निभाने आगे आए। दंडकारण्य जंगल के कभी माओवादी के असर वाले इलाकों में मतदाताओं का बढ़ता जोश और हथियारों का घटता खौफ साफ नजर आया।

एक मिसाल बन गया मेंद्रि गांव

एटापल्ली तालुका में है मेंद्रि गांव। छत्तीसगढ़ की सीमा से महज एक किलोमीटर दूर इस इलाके में कभी पीपुल्स लिबरेशन गोरिल्ला आर्मी (PLGA) के लड़ाकों का दबदबा हुआ करता था। ये असल में उनके आने जाने का रास्ता हुआ करता था। अब यहां लोकतंत्र की बयार बहती दिखाई पड़ रही है। मेंद्रि में इस बार 74% मतदान हुआ, जो जिले के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है। इस बूथ पर आसपास के गांवों के आदिवासी कई किलोमीटर दूर से वोट देने पहुंचे। लोकसभा चुनाव में इस बूथ ने 62% मतदान दर्ज किया था।

माओवादी ठिकाने बने शांतिपूर्ण मतदान केंद्र

गढ़चिरौली के पुश्कोटी इलाके में बसे गढ़ेवाड़ा गांव के मतदान केंद्र में 55% मतदान हुआ। इसी के साथ यहां के वोटरों ने भी अपनी कहानी बदल दी। एक समय माओवादी गतिविधियों के लिए कुख्यात इस गांव में पुलिस चौकी बनने के बाद पहली बार शांतिपूर्ण मतदान किया। इसी तरह, वांगेटुरी गांव में भी पिछले ही साल एक पुलिस स्टेशन खोला गया था। वहां भी 64.22% मतदान हुआ।

आदिवासियों का जोश और प्रशासन की तैयारी

कठिन हालात और सालों की उपेक्षा के बावजूद, गढ़चिरौली के आदिवासियों ने लंबी दूरी तय कर मतदान किया। इससे महाराष्ट्र का गढ़चिरौली सबसे अधिक मतदान प्रतिशत वाला इलाका बन गया। इसके पीछे सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम भी हैं। गढ़चिरौली में 17,000 सुरक्षाकर्मियों की तैनाती ने मतदान को हिंसा-मुक्त बनाया। चुनौतीपूर्ण हालात के बावजूद, गढ़चिरौली में सबसे अधिक मतदान लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है। अब ये माना जा सकता है कि देश में नक्सलवाद पर राष्ट्रवाद हावी होने लगा है।

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  • श्यामदत्त चतुर्वेदी - दायित्व मीडिया

    श्यामदत्त चतुर्वेदी, दायित्व मीडिया (Dayitva Media) में अपने 5 साल से ज्यादा के अनुभव के साथ बतौर सीनियर सब एडीटर जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इससे पहले इन्होंने सफायर मीडिया (Sapphire Media) के इंडिया डेली लाइव (India Daily Live) और जनभावना टाइम्स (JBT) के लिए बतौर सब एडिटर जिम्मेदारी निभाई है। इससे पहले इन्होंने ETV Bharat, (हैदराबाद), way2news (शॉर्ट न्यूज एप), इंडिया डॉटकॉम (Zee News) के लिए काम किया है। इन्हें लिखना, पढ़ना और घूमने के साथ खाना बनाना और खाना पसंद है। श्याम राजनीतिक खबरों के साथ, क्राइम और हेल्थ-लाइफस्टाइल में अच्छी पकड़ रखते हैं। जनसरोकार की खबरों को लिखने में इन्हें विशेष रुचि है।

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