#राजनीति/चुनाव

JMM जीती पर BJP को तसल्ली क्यों? पाया भले कुछ नहीं लेकिन कुछ खोया भी नहीं, क्या है आंकड़ों की जुबानी

jharkhand election result analysis
Getting your Trinity Audio player ready...

– श्याम दत्त चतुर्वेदी:

विधान सभा चुनावों में महाराष्ट्र में तो भारतीय जनता पार्टी ने इतिहास रचते हुए कमाल कर दिया लेकिन झारखंड में पताका फहराने से BJP चूक गई। देश की सबसे बड़ी सियासी पार्टी को झारखंड न जीत पाने का मलाल तो हो सकता है, मगर एक तसल्ली भी है। बीजेपी के लिए राहत की बात यही है कि झारखंड में अगर उसके खाते में कुछ खास आया नहीं तो उसकी जेब से कुछ गया भी नहीं।

विधानसभा चुनावों के बाद 23 नवंबर को मतगणना हुई। देश शाम तक महाराष्ट्र के साथ झारखंड के नतीजे की तस्वीर साफ हो गई। नतीजों की गवाही है कि महाराष्ट्र की जनता ने सरकार की लगाम महायुति को दे दी। लेकिन झारखंड का नतीजा उल्टी तस्वीर दिखा रहा। झारखंड की जनता ने NDA को नकार दिया। बीजेपी को सीटों का वो गणित हासिल नहीं हुआ जिससे वो सरकार बना पाती। लेकिन इसके बाद भी पार्टी के नेता मायूस भले हैं लेकिन उदास नहीं। ऐसे में ये समझना जरूरी है कि बीजेपी नेता आखिर क्यों इस राज्य में राहत की सांस ले रहे हैं।

झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और उसके ‘इंडिया’ गठबंधन को सफलता मिली। झामुमो ने 34 सीटों पर जीत हासिल की, जो अब तक का उसका सबसे अच्छा प्रदर्शन है। कांग्रेस और राजद ने क्रमशः 15.56% और 3.44% वोट शेयर प्राप्त किए। इसी के साथ उनको सरकार बनाने मौका मिल गया।

‘पाया भले नहीं पर कुछ खोया भी नहीं’

चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रदर्शन की बात करें तो पार्टी वोट शेयर इस बार 33.18% रहा, जो 2014 और 2019 के मुकाबले मामूली गिरावट वाला है। हालांकि, ये प्रदेश में सबसे ज्यादा है। खास बात ये की सीटों के मामले में सबसे बड़ी पार्टी कहलाने वाली JMM से करीब 10 फीसदी ज्यादा है। बीजेपी को 33.18% वोट शेयर के बावजूद 21 सीटों से संतोष करना पड़ा। उसको पिछले चुनाव की तुलना में 4 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा। NDA गठबंधन के दलों को वोट शेयर के मामले में नुकसान हुआ है।

JMM का ऑल टाइम बेस्ट

झामुमो ने इस बार 79% से अधिक स्ट्राइक रेट हासिल कर अपने इतिहास का सबसे शानदार प्रदर्शन किया। पार्टी ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 सीटों में से 23 पर जीत दर्ज की। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भ्रष्टाचार के आरोपों और गिरफ्तारी के बाद जनता में उनसे हमदर्दी दिखाई। हालांकि, इन सबके बाद भी उनकी पार्टी प्रदेश की जनता के बीच में पापुलर पार्टी नहीं बन पाई।

क्षेत्रवार प्रदर्शन?

संथाल परगना: झामुमो का गढ़ साबित हुआ, जहां उसने बड़ी जीत हासिल की।
कोल्हान: भाजपा को चंपई सोरेन जैसे बड़े नेताओं के बावजूद झटका लगा।
उत्तर और दक्षिण छोटानागपुर: भाजपा ने उत्तर में एक सीट की बढ़त बनाई, जबकि दक्षिण में झामुमो और कांग्रेस ने अपनी सीटें बढ़ा लीं।
पलामू: यहां भाजपा ने सबसे ज्यादा 4 सीटें जीतीं, लेकिन पिछली बार से 1 सीट कम रही।

‘इंडिया’ गठबंधन बनाम एनडीए

इंडिया गठबंधन ने अपने वोट शेयर और सीटों में इजाफा करते हुए मजबूत संदेश दिया। हालांकि भाजपा और एनडीए ने अपने प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी थी। जनसांख्यिकी परिवर्तन और जमीन विवाद जैसे मुद्दे उसके आक्रामक अभियान का हिस्सा बने। लेकिन आदिवासी समुदाय ने झामुमो के ने नेता हेमंत सोरेन की बात सुनी।

भविष्य की तस्वीर

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 ने स्पष्ट कर दिया है कि आदिवासी बहुल राज्य में क्षेत्रीय दल की पकड़ मजबूत है। झामुमो और कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव ने भाजपा को चुनौती दी है। जाहिर है अब बात लोकसभा चुनावों तक टल गई। देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले वक्त में भाजपा अब कौन सी चाल चलती है, और हेमंत सोरेन सरकार को कैसे चलाते हैं?

Author

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *