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-श्यामदत्त चतुर्वेदी:
वक्फ और वक्फ की संपत्तियां…उफ्फ ये मामला है कि शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा है। कुछ दिनों से ये मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया था। अब संसद का सत्र शुरू हुआ तो वक्फ एक बार फिर से ट्रेंडिंग कीवर्ड में शुमार हो गया। इसे लेकर सियासी बयानों का बाजार भी उफान पर आ गया है। धार्मिक नेताओं के साथ ही सियासी दल भी अपने-अपने वोट बैंक के हिसाब से बयान दे रहे हैं। इसके पीछे का कारण ये है कि संभवतः इस शीतकालीन सत्र में वक्फ संशोधन बिल दोबारा से संसद में पेश किया जा सकता है। पिछले सत्र में भी इसे सरकार ने संसद में 40 संशोधन के लिए पेश किया था। हालांकि, बवाल के बाद मामला JPC के हवाले कर दिया गया।
कुछ दिनों पहले वक्फ को लेकर बनाई गई JPC के चेयरमैन जगदंबिका पाल का एक बयान आया है कि वो पूरी तैयारी में हैं। विपक्ष के सांसद साथ दें तो हम इसी सत्र में अपनी रिपोर्ट स्पीकर को सौंप दें। इस बयान से साफ है कि इस शीतकाल में सदन के भीतर वक्फ को लेकर ग्रीष्मकाल रहने वाला है। ऐसे में एक बार फिर से लोग वक्फ, वक्फ की संपत्तियां, उसका इतिहास, भुगोल और उससे जुड़े विवादों को खंगाल रहे हैं। तो आइये हम आज चर्चा करते हैं वक्फ के दावों से जुड़े 5 बड़े विवादों के बारे में जिसे जानकर अच्छे अच्छों का दिमाग हिल जाता है।
वक्फ का इतिहास, भूगोल
सबसे पहले हम वक्फ और उसके इतिहास, भूगोल के बारे में थोड़ा जान लेते हैं। जिस कारण भारत में इसे लेकर इतना विवाद छाया हुआ है। ..तो वक्फ मूल रूप से अरबी भाषा के वकुफा शब्द से बना है। इसका मतलब ठहरना होता है। ये इस्लाम में दान का एक तरीका है। इसकी संपत्ति का उपयोग जन-कल्याण के लिए किया जाता है। वक्फ करने वाले को ‘वाकिफ’ कहा जाता है और वो ये तय करने का अधिकारी होता है कि उसे दाय या दान की संपत्ति से होने वाली आमदनी का उपयोग कैसे होगा। जानकार दावा करते हैं कि कुरान में सीधे तौर पर वक्फ का कोई जिक्र नहीं है। हालांकि, कुछ स्थानों पर समाज और अल्लाह के लिए दान की बात की जाती है।
दुनिया का पहला वक्फ
कहानियों में इस बात का जिक्र मिलता है कि पैगंबर मोहम्मद के समय में 600 खजूर का बाग बनाया गया था, जिससे मदीना के गरीबों की मदद की जाती थी। यही वक्फ के सबसे पहले उदाहरणों में से एक माना जाता है। दुनिया के इतिहास पर नजर डाला जाए तो इस दान से शिक्षा और समाज के लिए किए गए कई कामों का जिक्र मिलता है। हालांकि, जब इस्लाम ने विस्तार करना शुरू किया तो इसका प्रारूप भी काफी हद तक बदलने लगा।
भारत का पहला वक्फ
भारत में वक्फ का के पहले उदाहरण के तौर पर 12वीं शताब्दी की एक घटना मिलती है। जब पृथ्वीराज चौहान से जीतने के बाद मोहम्मद गौरी ने इस्लामी शिक्षा और इबादत के लिए मुल्तान की जामा मस्जिद के लिए दो गांव समर्पित कर दिए थे। इन गांवों से होने वाले आमदनी का उपयोग मस्जिद के रखरखाव, धार्मिक और परोपकारी कामों के लिए किया जाता है। मोहम्मद गौरी ने इसके प्रबंधन के लिए शैखुल इस्लाम को नियुक्त किया गया था। इल्तुतमिश और अलाउद्दीन खिलजी जैसे तमाम शासकों ने वक्फ का काम जारी रखा।
मुगल काल में बना संस्थागत ढांचा
हालांकि, भारत में वक्फ को एक संस्थागत ढांचा मुगल काल में मिलता है। इसी कारण इस दौर में वक्फ की गई संपत्तियों पर ज्यादातर विवाद होते हैं। आज का वक्फ बोर्ड भी ज्यादातर दावे मुगल काल के बाद के समय में करता है। भारत में शासन के दौरान बाबर ने भी कई संपत्तियों को वक्फ के नाम किया। उसके राज में हिंदू धार्मिक स्थलों पर कब्जे और वक्फ करने की परंपरा ने जोर पकड़ा। हालांकि अकबर ने इसके लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए और सुन्नी-शिया दोनों के लिए कुछ प्रावधान किए। इस दौर में ज्यादातर संपत्ति बादशाहों के पास थी और वो इनमें से वक्फ कायम करते जाते।
विवाद तो हमारी देन है
17वीं शताब्दी तक वक्फ, मुगल और इस्लाम के ताने बाने का अंग बन चुका था। इसके बाद जब देश में अंग्रेजों की ताकत बढ़ी तो उन्होंने वक्फ की संपत्तियों पर हस्तक्षेप शुरू कर दिया। 1947 में देश आजाद होता है और वक्फ संपत्तियों के लिए एक स्ट्रक्चर बनाने की बात होती है। 1954 में संसद में एक बिल आता है और 1955 में ये कानून बन जाता है। यहां से देश में वक़्फ बोर्ड का जन्म होता है। इसके बाद इसमें 1995 में संशोधन होता है और यहीं से बोर्ड को संपत्तियों में दावा करने का अधिकार मिल जाता है।
1995 के संशोधन में क्या था?
वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995 के तहत, सेक्शन 40 में यह प्रावधान है कि यदि वक्फ बोर्ड को किसी संपत्ति पर उसका अधिकार लगता है तो वह स्वतः संज्ञान लेते हुए उस संपत्ति से जुड़ी जानकारी जुटा सकता है और उसके संबंध में जांच कर फैसला ले सकता है। अगर किसी को इससे आपत्ति है तो उसका वक्फ ट्रिब्यूनल में अपील करना होगा। ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम होगा। उसके खिलाफ कोर्ट जाया जा सकता है। हालांकि, उसके लिए प्रक्रिया काफी जटिल हैं। सबसे बड़ी समस्या इसी सेक्शन को लेकर है। क्योंकि, वक्फ ने कहीं पूरे गांव, कहीं हाउसिंग सोसाइटी तो कहीं कृष्ण नगरी के द्वीप पर दावा कर दिया है। आइये जानते हैं इसके दावे से जुड़े 5 बड़े विवाद।
वक्फ संपत्तियों के 5 बड़े विवाद
- तमिलनाडु के तिरुचेंतुरई गांव की पूरी जमीन पर वक्फ बोर्ड ने 1956 में नवाब अनवरदीन खान से मिले दान के आधार पर दावा किया है। इस कारण गांव में जमीन की खरीद-फरोख्त पर रोक है। वक्फ बोर्ड ने गांव को ‘जीरो वैल्यू’ पर रजिस्टर करने की मांग की है।
- बेंगलुरु के ईदगाह ग्राउंड पर बोर्ड ने 1850 से दावा किया है। हालांकि, बेंगलुरु महानगर पालिका ने इसे राजस्व की संपत्ति घोषित कर दी है। सरकार का दावा है कि यहां की जमीन कभी भी किसी मुस्लिम संगठन या वक्फ को नहीं दी गई थी।
- गुजरात वक्फ बोर्ड ने कुछ समय पहले सूरत नगर निगम की बिल्डिंग पर दावा किया था। बोर्ड ने कहा कि ये मुगल काल में एक सराय थी। इसका उपयोग हज यात्रा के दौरान होता था। बाद में ये अंग्रेजों के पास चली गई और आजादी के बाद ये भारत सरकार के पास चली गई।
- गुजरात वक्फ बोर्ड ने द्वारका में बेट द्वारका में दो द्वीपों पर भी दावा ठोंका था। हालांकि, हाईकोर्ट ने याचिका सुनने से मना कर दिया और कहा कि भला कृष्ण नगरी द्वारका की जमीन पर दावा कैसे किया जा सकता है।
- सूरत की शिव सोसायटी में रहने वाले एक आदमी ने अपना प्लॉट ही वक्फ बोर्ड को दे दिया। इसके बाद वहां नमाज होने लगी। विवाद इस बात पर बना कि क्या सोसायटी में कोई व्यक्ति किसी अपार्टमेंट या जमीन को बिना किसी की मंजूरी लिए दान दे सकते हैं। अब यहां इस पर विवाद बना रहता है।
भारत में वक्फ की संपत्ति
वक्फ असेट मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया (WAMSI) के मुताबिक, देश के 30 राज्यों में वक्फ के पास 8.72 लाख से ज्यादा संपत्तियां हैं। इसमें मस्जिद, कब्रिस्तान और खेती की जमीन शामिल हैं। करीब 73 हजार संपत्तियां पर विवाद है। 8 हजार मामले अदालतों में पेंडिंग हैं। इसमें से सबसे ज्यादा केस पंजाब, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश के हैं। सरकार के मुताबिक, सबसे ज्यादा वक्फ संपत्तियां भारत में हैं। इसकी अनुमानित लागत 1.2 लाख करोड़ रुपये है। ये रेलवे और रक्षा विभाग के बाद तीसरे नंबर पर है।
वक्फ को उफ्फ क्यों?
मोदी सरकार वक्फ एक्ट में फिर से संशोधन करना चाह रही है। प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक, जमीन का सर्वे करने का अधिकार बोर्ड के एडिशनल कमिश्नर से हटाकर कलेक्टर के पास कर दिया जाएगा। प्रशासनिक ढांचे वक्फ बोर्ड के सभी सदस्यों को सरकार नामित करेगी. सबसे बड़ी बात की इसमें दो सदस्य गैर-मुस्लिम भी होंगे। ट्रिब्यूनल के फैसले को 90 दिनों के भीतर कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। अगर प्रस्तावित बिल कानून बनता है तो जिन संपत्तियों पर बोर्ड ने 12 साल पहले अतिक्रमण किया था उसे वापस करना होगा। इस कानून के आ जाने से वक्फ के बेजा दावे नहीं हो पाएंगे। इस कारण इस कानून पर आपत्ति जताई जा रही है।