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– श्यामदत्त चतुर्वेदी:
‘बंगबंधु’ शेख मुजीबुर रहमान का देश जिसे कभी दुनिया में गंगा जमुनी तहजीब के लिए उदाहरण के तौर पर पेश किया जाता था, पाकिस्तान से आजादी के बाद जिस देश ने दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी और अपनी संस्कृति का आधार बनाकर विकास की रेस में दौड़ रहा था। अब ‘बंगबंधु’ का वो बांग्लादेश आतंक, कट्टरपंथ की राह पर आगे बढ़ता जा रहा है। वहां आए दिन अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं। अब तो वहां के चरमपंथी ही नहीं सरकार और अदालतें भी कहीं न कहीं हिंदुओं के खिलाफ खड़ी हो गई हैं। इस्कॉन के धर्मगुरु चिन्मय कृष्ण दास प्रभु की गिरफ्तारी इसी बात का उदाहरण है।
25 अक्टूबर को चटगांव के लालदिघी मैदान में हिंदुओं ने अपनी 8 मांगों को लेकर प्रदर्शन किया था। दावा किया जा रहा है कि इस दौरान कुछ लोगों ने आजादी स्तंभ पर भगवा ध्वज फहराया हुआ था। इसपर सनातनी लिखा था। इसके बाद BNP पार्टी के नेता फिरोज खान ने चिन्मय कृष्ण दास समेत 19 लोगों लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज कर दिया और आरोप लगाए गए की उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया है। इसके बाद 25 नवंबर को उन्हें ढाका से गिरफ्तार कर लिया।
कोर्ट और पुलिस की नीयत पर सवाल
चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं। प्रदर्शनकारियों पर पुलिस और स्थानीय लोग हमले कर रहे हैं। इस बीच चिन्मय कृष्ण दास को कोर्ट में पेश किया गया तो उन्होंने जमानत की मांग की, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। सबसे बड़ी बात कि देशद्रोह का आरोप लगाने वाली पुलिस ने कस्टडी लेने से मना कर दिया। इसके बाद अदालत ने चिन्मय कृष्ण दास को न्यायिक हिरासत में भेज दिया। अब ये मामला बांग्लादेश से बाहर निकल आया है और भारत सरकार ने भी इस पर बयान दिया है।
इस्कॉन और भारत सरकार का कड़ा रुख
इस्कॉन ने इस मामले में बांग्लादेश सरकार से अपील की है कि वह सभी धर्म-वर्ग के लोगों के लिए देश में उचित माहौल बनाएं। वहीं संस्था ने भारत सरकार से भी मामले में दखल देने की मांग की है। इसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ा रुख अपनाया है। मंत्रालय की ओर से कहा गया कि चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी से हम चिंतित हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं, लेकिन शांतिपूर्ण सभाओं के जरिए मांगें करने वाले धार्मिक नेता के खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं।’
बांग्लादेश का भारत को जवाब
मामले में भारत सरकार की ओर से आए बयान के बाद बांग्लादेश के कान खड़े हो गए हैं। बांग्लादेश विदेश मंत्रालय ने कहा कि ये दुख की बात है कि चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी को कुछ लोगों ने गलत तरीके से पेश किया है। इस तरह के बयान न केवल तथ्यों को गलत तरीके से पेश करते हैं, बल्कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच दोस्ती और आपसी समझ की भावना के भी उलट हैं। बांग्लादेश सरकार फिर से ये दोहराना चाहेगी कि देश की न्यायपालिका स्वतंत्र है और सरकार उनके कामकाज में दखल नहीं देती।
सदगुरू और तस्लीमा नसरीन ने भी जताई आपत्ति
इसे लेकर सदगुरु ने सोशल मीडिया पर बयान दिया है। उन्होंने कहा कि यह शर्मनाक है कि कैसे एक लोकतांत्रिक देश धर्मतंत्रीय और निरंकुश बन रहा है। धर्म या जनसांख्यिकी की कमजोरी के आधार पर उत्पीड़न लोकतांत्रिक राष्ट्रों का तरीका नहीं है। दुर्भाग्य से, हमारा पड़ोस लोकतांत्रिक सिद्धांतों से दूर हो गया है। वहीं लेखिका तसलीमा नसरीन ने इसे अन्याय पूर्ण बताते हुए लिखा कि निर्दोष शांतिप्रिय चिन्मय कृष्ण दास को अन्यायपूर्ण तरीके से गिरफ्तार किया गया है। इस अन्याय के खिलाफ विरोध करना सिर्फ हिंदू समुदाय की जिम्मेदारी नहीं है। यह सभी की जिम्मेदारी है। चाह वो हिंदू हो या मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई, आस्तिक और नास्तिक कोई भी।
इस्लामिक राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहा बांग्लादेश
1971 में स्वतंत्रता संग्राम के बाद बांग्लादेश ने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को अपनाया। हालांकि, अब बंगाली में देश बढ़ती कट्टरता और धार्मिक उग्रवाद के कारण सुर्खियों में है। यह देश एक ऐसे मोड़ पर है जहां धार्मिक संगठनों और चरमपंथी विचारधारा ने मजबूत पकड़ बनानी शुरू कर दी है। कुछ दिनों पहले अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने कहा था कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता बांग्लादेश की असली तस्वीर नहीं है। उन्होंने समाजवाद, बंगाली राष्ट्रवाद, राष्ट्रपिता के रूप मुजीबुर रहमान की उपाधि हटाने की सिफारिश की थी। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या बांग्लादेश एक इस्लामिक देश बनने की ओर आगे बढ़ रहा है?