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– गोपाल शुक्ल:
अफीम सिर्फ एक पौधा नहीं है बल्कि उसे नशे की मां भी कहा जाता है। दुनिया में जितने तरह के नशे इस्तेमाल किए जाते हैं, फिर चाहें वो हेरोइन का नशा हो या फिर स्मैक, ये सभी अफीम से निकलते हैं। लेकिन ये अफीम एक और नशा पैदा करती है…वो नशा है बेहिसाब दौलत का। ये दौलत इस अफीम के काले कारोबार से इकट्ठा की जाती है।
काले सोने का काला कारोबार
दुनिया भर में अफीम को काला सोना कह कर पुकारा जाता है। इस काले सोने इतनी ज्यादा चमक है कि दुनिया के न जाने कितने देशों की आंखें इससे चौंधिया चुकी हैं। तभी तो इस काले सोने के काले कारोबार की गिरफ्त में दुनिया की सियासत भी पूरी तरह से आ चुकी है।
अफीम की पिनक से गरम होती सियासत
आमतौर पर अफीम का इस्तेमाल ड्रग्स के साथ साथ दर्द निवारक दवाओं के लिए सबसे ज्यादा होता है। मेडिकल साइंस से जुड़े लोगों की मानें तो अफीम से बनी दर्द निवारक दवा का असर सबसे ज्यादा और सबसे देर तक रहता है। अफीम एक ऐसा मुद्दा है, जो न केवल सामाजिक समस्याएं तो पैदा करता ही है, बल्कि इसे लेकर देश-विदेश की राजनीति भी गरम रहती है। आतंकवाद, ड्रग्स, और दुनिया की राजनीति का ये ऐसा त्रिकोण है जिसने पूरी दुनिया को एक समस्या में उलझा कर रख दिया है।
ड्रग्स के कारोबार में पाकिस्तान का दखल
अफीम की खेती, उसकी तस्करी, और ड्रग्स के कारोबार ने न केवल अफगानिस्तान, बल्कि दक्षिण अमेरिकी देशों और पाकिस्तान के साथ एक गहराई से जुड़े हुए जियोपॉलिटिक्स के खेल का हिस्सा बना दिया है। हैरानी की बात ये है कि इस दलदल में दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका भी गले तक धंसा हुआ नज़र आता है। इस काले सोने का काला कारोबार न केवल संगठित अपराध का सिरदर्द बढ़ाता है, बल्कि बहुत बड़े इलाके में सियासी खींचतान की बड़ी वजह बन जाता है।
1)- ड्रग का धंधा और आतंकवाद- अफीम से बनी हेरोइन जैसे ड्रग्स का कारोबार आतंकवादी संगठनों के लिए कमाई का सबसे बड़ा जरिया बन जाता है।
2)- सत्ता और शक्ति का खेल- अफीम पैदा करने वाले इलाके कई बार स्थानीय शक्तियों या सरकारों के नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं, जिसकी वजह से माफिया को अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका मिलता है।
3)- अंतरराष्ट्रीय राजनीति- अमेरिका, रूस जैसे बड़े देश अफगानिस्तान जैसे छोटे मुल्कों के लिए ऐसी नीतियां बनाने लगते हैं जिससे आपसी खींचतान और झगड़ा इस कदर बढ़ जाता है कि जंग जैसे हालात पैदा हो जाते हैं।

ड्रग्स और अफीम का कॉकटेल
अफगानिस्तान और दक्षिण अमेरिकी देश खासकर कोलंबिया और मैक्सिको, ड्रग्स के धंधे में अहम भूमिका निभाते हैं। अफीम का ये काला कारोबार असल में एक ऐसा सिंडीकेट बनाता है, जिसकी जड़ें एशिया से लेकर अमेरिका तक फैली हुई हैं। अफगानिस्तान और दक्षिण अमेरिका, दोनों ही जगह ड्रग लॉर्ड्स का जोर बहुत ज्यादा है। जिसकी वजह से इन इलाकों की राजनीति के साथ साथ यहां की सुरक्षा पर इसका गहरा असर पड़ता है।
पाकिस्तान है अफीम के धंधे का ट्रॉजिट प्वाइंट
अफीम के इस गैरकानूनी धंधे में पाकिस्तान की भूमिका सबसे अहम है। क्योंकि अफगानिस्तान का पड़ोसी होने के साथ साथ इस धंधे का सबसे बड़ा ट्रांजिट पॉइंट भी पाकिस्तान है। अफगानिस्तान की अफीम पाकिस्तान के रास्ते ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहुंचती है। पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाके, खासकर बलूचिस्तान, अफीम की स्मगलिंग का खास अड्डा हैं। हैरानी की बात ये है कि अफीम का सबसे ज्यादा फायदा स्मगलरों के साथ साथ पाकिस्तानी प्रशासन और तालिबान जैसे संगठन उठाते हैं। अफगानिस्तान में अफीम के कारोबार से तालिबान को जो धन मिलता है, उसमें सीधे तौर पर पाकिस्तान का भला ज्यादा होता है।
अमेरिका का रोल कम नहीं
लेकिन इस खतरनाक खेल में अमेरिका का रोल भी कम नहीं हैं। क्योंकि अमेरिका में खुद ही ड्रग्स की मांग सबसे ज्यादा है। मगर दिखावे के तौर पर अमेरिका ड्रग्स के धंधे का नेटवर्क को तोड़ने के लिए कई बार सख्त कदम उठाता दिखता है, लेकिन ड्रग्स का धंधा दिन दूना और रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ता जा रहा है।
कोकीन के कारोबारियों का नेटवर्क
अफगानिस्तान में दुनिया की सबसे ज्यादा अफीम उगाई जाती है और उसे काले कारोबार का हिस्सा बनाई जाती है। बताया जाता है कि अफगानिस्तान दुनिया में करीब 80 से 90% हेरोइन सप्लाई करता है। जबकि दक्षिण अमेरिका के ड्रग्स लॉर्ड मुख्य रूप से कोकीन के कारोबार से जुड़े हुए हैं। बावजूद इसके इन दोनों के बीच गहरी साठगांठ है। ये दोनों ही इलाके स्मगलिंग के नेटवर्क को साझा करते हैं। ड्रग लॉर्ड्स अफगान हेरोइन को दक्षिण अमेरिकी बाजारों में भेजने के लिए अपने चैनल का इस्तेमाल करते हैं। बदले में कोकीन की खेप एशियाई बाजारों तक पहुंचाने के लिए अफगानिस्तान और पाकिस्तान रास्ता मुहैया करवाते हैं।

क्या कहते हैं आंकड़े?-
- दुनिया में 85% से ज्यादा अवैध अफीम अफगानिस्तान में उगाई जाती है।
- 2022 में हेरोइन के अवैध कारोबार से करीब 400 बिलियन डॉलर की कमाई हुई।
- पाकिस्तान के रास्ते अफीम का 40% हिस्सा एशिया और यूरोप तक पहुंचाया जाता है।
दर्द निवारक दवाओं की मांग
अब यहां एक सवाल पैदा होता है कि दक्षिण अमेरिकी देशों के साथ-साथ अफगानिस्तान और पाकिस्तान का रोल ते समझ में आ गया, अफीम की पॉलिटिक्स में अमेरिका कैसे लपेटे में आ जाता है। असल में अफीम से न केवल हेरोइन और स्मैक तैयार होती है, बल्कि इसका इस्तेमाल दवाइयों में भी होता है। खासकर युद्ध क्षेत्रों में दर्द निवारक दवाओं की भारी मांग रहती है।
फार्मास्यूटिकल कंपनियों का जोर
दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा फार्मास्युटिकल कंपनियां अमेरिका की हैं। वो कंपनियां चाहती हैं कि अफीम का उत्पादन उनके कंट्रोल में रहे, ताकि अफीम का बेजा इस्तेमाल रोका जा सके।
दवाओं की कीमत और पेटेंट का खेल
अफीम से बनने वाली दवाओं की कीमतों और पेटेंट के विवादों को लेकर फार्मास्यूटिकल कंपनियां और सरकारें अक्सर आमने-सामने आ जाती हैं। पेटेंट के कारण कई देशों में ये दवाएं नहीं पहुंच पातीं। खासकर विकासशील देशों में।
ड्रग्स मार्केट और नेटवर्क
अफगानिस्तान की अफीम और दक्षिण अमेरिकी ड्रग लॉर्ड्स के बीच मजबूत होता नेटवर्क दुनिया के ड्रग्स मार्केट के लिए एक खतरनाक संकेत है।
पाकिस्तान की भूमिका से दहशत में दुनिया
यहां पाकिस्तान की भूमिका ने भी दुनिया को बुरी तरह से दहशत में डाल रखा है। क्योंकि इस मुल्क को आतंकियों की पनाहगार के तौर पर भी देखा जाता है। ऐसे में अफीम पर उसकी रणनीतिक भूमिका, तस्करी मार्ग और तालिबान का फंडिंग मॉडल इस समस्या को और जटिल बना देता है।
अफीम के असर की गहरी परतें
लेकिन सबसे हैरानी की बात ये है कि अमेरिका का हस्तक्षेप अक्सर समस्या का समाधान निकालने की बजाय इसे और अधिक राजनीतिक रंग दे देता है। यह मसला केवल तस्करी और ड्रग्स से नहीं जुड़ा है, बल्कि इसमें अर्थव्यवस्था, सैन्य रणनीति, और राजनीतिक प्रभाव की गहरी परतें छुपी हुई हैं।