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– श्यामदत्त चतुर्वेदी:
एक बार की बात है…, एक छोटे से गांव में हिंदू और मुस्लिम एक-दूसरे के साथ मिलजुलकर रहते थे। गांव के बीचोबीच मंदिर और मस्जिद थी। दोनों धर्मों के लोग आपस में मिलकर त्यौहार मनाते थे और खुशियों में शामिल होते थे। एक दिन, गांव में एक विवाद खड़ा हो गया। गांव के मंदिर को कुछ लोगों ने वक्फ संपत्ति बता दी और बोले की इसे हिंदुओं के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इस बात को लेकर गांव में विवाद पैदा हो गया। लोग दो गुटों में बंट गए और अदालत का दरवाजा खटखटाया।
अदालत में दोनों पक्षों ने अपने-अपने दावे पेश किए। मुस्लिम यानी मंदिर को वक्फ की संपत्ति मानने वाले लोगों ने कहा कि उनको ये जमीन फला-फला बादशाह या व्यापारी ने दी थी। इस तरह से ये संपत्ति वक्फ एक्ट-1995 के तहत हमारी हुई। जब जज साहब ने दूसरे पक्ष से पूछा की आपका क्या कहना है तो उन्होंने बस यही कहा की साहब मंदिर बड़ा पुराना है। दादा पुरखों के जमाने से पूजा कर रहे हैं।
मामले की सुनवाई आगे बढ़ी तो मंदिर के पक्ष वालों ने काफी खोज बीन की। गांव के बुजुर्गों से मिले और दस्तावेज खंगाले तो उनके सामने ये आया कि पुरखों के समय में मंदिर की जमीन पर ही मस्जिद बना दी गई थी। भाई चारे को बचाए रखने के लिए और बादशाह के डर से किसी न आवाज नहीं उठाई। धीरे-धीरे मस्जिद को गांव के लोगों ने स्वीकार कर लिया। इस आधार पर उन्होंने कोर्ट से कहा कि इस तरह से ये मस्जिद तो हमारी हुई। मंदिर को उसकी जमीन वापस मिलना चाहिए।
यहां से आता है कहानी में मोड
जैसे हिंदू पक्ष ने ये दावा किया उतने में वक्फ बोर्ड वाले बोल पड़े ऐसे कैसे? प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 के हिसाब से आप तो इसपर दावा ही नहीं कर सकते हैं। मस्जिद 1947 से पहले बन गई थी। यानी इसपर किसी और का अधिकार नहीं हो सकता है। मंदिर को उसकी जमीन वापस देना कानून का उल्लंघन है। जबकि, हम इसे वक्फ एक्ट-1995 के तहत हासिल कर सकते हैं।
अब मामला फंस गया। हिंदुओं ने तो डर और भाईचारे के लिए अंग्रेजी अदालतों में कभी अपील की नहीं थी। इस आधार पर उनकी याचिका आधार में अटक गई कि आप के दावे को प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 रोकता है। वहीं मुस्लिम पक्ष वक्फ एक्ट-1995 की धारा-3 के तहत बिना किसी सबूत के अपने दावे पर अड़ा रहा और उस पर कब्जे की मांग करता रहा।
काल्पनिक कहानी और आज का दौर
खैर ये तो एक काल्पनिक कहानी है… पर आज के दौर से काफी मिलती जुलती है। देश में लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं कि वक्फ बोर्ड, 1995 के कानून को आधार बनाकर कई संपत्तियों का अधिकारी खुद को घोषित करता जा रहा है। वहीं इस्लामी और मुगल काल में अत्याचार कर तोड़ी गई मंदिरों के ऊपर बने मस्जिद, मजार और किसी अन्य निर्माण पर हिंदू दावा नहीं कर पाता। उसे प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 का हवाला देकर रोका जाता है।
इस तरह से भारत के ही दो कानून आपस में कहीं न कहीं एक दूसरे से विरोधाभासी प्रतीत होने लगे हैं। एक कानून के जरिए एक पक्ष जबरन किसी संपत्ति पर दावे का अधिकार दे देता है। उसी पक्ष को दूसरा कानून उसकी संपत्ति पर आए दावे को खारिज करने का अधिकारी बना देता है। इसी कारण अब देश में प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 बनाम वक्फ एक्ट-1995 को लेकर चर्चा होने लगी है।
क्या कहते हैं दोनों कानून?
1. प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 या उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 भारत की संसद में 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था। इस कानून के मुताबिक, 15 अगस्त, 1947 से पहले बने किसी भी धार्मिक स्थल को दूसरे धर्म के स्थल में नहीं बदला जा सकता। इस कानून के तहत, किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति बदलना गैरकानूनी है। अगर ऐसा किया जाता है तो जेल और जुर्माना भुगतना पड़ेगा।
यह कानून धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 की स्थिति पर स्थिर रखने के लिए बनाया गया था। इसके तहत किसी भी धार्मिक स्थल के चरित्र (जैसे मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि) में परिवर्तन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। केवल अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद को इससे बाहर रखा गया।
2. वक्फ एक्ट- 1995
वक्फ एक्ट, 1995, वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को सुधारने और भ्रष्टाचार को कम करने के लिए लाया गया था। इस पुराने कानून को ही संशोधित कर लाया गया था। इसके तहत वक्फ बोर्डों को ज्यादा अधिकार और जिम्मेदारियां दी गईं। वक्फ एक्ट, 1995 की धारा-40 में कहा गया है कि वक्फ बोर्ड को लगता है कि जमीन वक्फ की है तो वह उस पर अपना दावा ठोक सकता है। किसी को आपत्ति है तो वो वक्फ ट्रिब्यूनल में जा सकता है। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि भारत न्यास अधिनियम-1882 और सोसाइटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम-1860 के तहत भी रजिस्टर्ड संपत्ति पर भी बोर्ड को अपना अधिकार लगता है तो वो इस पर जांच कर सकता है।
यह कानून विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और परोपकारी संपत्तियों (वक्फ संपत्तियों) के प्रबंधन के लिए बनाया गया। वक्फ बोर्ड इस कानून के तहत इन संपत्तियों की देखरेख और उनके उपयोग को सुनिश्चित करना है।
क्यों हो जाते हैं विवाद?
- वर्शिप एक्ट धार्मिक स्थलों के चरित्र को स्थिर रखने की बात करता है, जबकि वक्फ एक्ट के तहत वक्फ बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में आने वाले स्थलों के मालिकाना हक को चुनौती दी जा सकती है।
- वक्फ एक्ट के तहत वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति को अपनी घोषित कर सकता है, भले ही वह संपत्ति किसी भी प्रकार की हो। हालांकि, यहां भी धार्मिक स्थल होने पर वर्शिप एक्ट रोकता है लेकिन इसके उदाहरण नहीं मिलते। वर्शिप एक्ट के तहत हिंदू पक्ष को रोकने के ही तमाम उदाहरण हैं।
- वक्फ बोर्ड को दिए गए व्यापक अधिकार कई बार विवादों को जन्म देते हैं, जहां यह दावा किया जाता है कि अन्य धार्मिक समुदायों की संपत्तियों पर अधिकार जताने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।
कानूनों के बीच संतुलन जरूरी
भारत की धर्मनिरपेक्षता की भावना के साथ इन दोनों कानूनों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है। यह जरूरी है कि दोनों कानूनों के प्रावधान स्पष्ट हों ताकि एक कानून दूसरे की भावना का उल्लंघन न करे। विवादों को सुलझाने के लिए न्यायिक प्रक्रिया और आपसी सहमति पर जोर देना चाहिए। कुल मिलाकर वर्शिप एक्ट और वक्फ एक्ट अपने-अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनके बीच तालमेल की आवश्यकता है। संभवतः इसी कारण इस पर संशोधन लेकर आई है।