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– गोपाल शुक्ल:
करीब 30 साल पहले राम मंदिर आंदोलन के वक्त एक नारा अक्सर सुनाई पड़ता था। ‘अयोध्या तो झांकी है, काशी-मथुरा बाक़ी है’। ऐसा लगता है कि वो झांकी अब पूरी तरह से दिखने लगी है। कहने का मतलब ये है कि काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद पर मंदिर के दावों के आगे आने के बाद अब तो बात धीरे धीरे सूबे दर सूबे आगे बढ़ती ही जा रही है। ऐसा लगता है कि ऐसे दावों की आंधी चलने वाली है। हालात ऐसे हो गए हैं कि कम से कम एक दर्जन जगह पर इस मंदिर मस्जिद विवाद ने अदालतों का काम बढ़ा दिया है। जगह जगह पर अदालत की देख रेख में सर्वे का काम हो रहा है और मामला सुनवाई के एडवांस स्टेज पर जा पहुंचा है।
संभल के बाद अजमेर शरीफ का नंबर आ चुका
कुछ रोज़ पहले उत्तर प्रदेश के संभल में मौजूद शाही जामा मस्जिद को लेकर इसी तरह का दावा किया गया और ज़िला अदालत ने दावा होते ही मामले में सर्वे का आदेश दिया था। इसके बाद अजमेर की अजमेर शरीफ मजार को लेकर भी मामला अदालत की चौखट पर दस्तक दे चुका है। अजमेर की एक स्थानीय अदालत ने अजमेर शरीफ़ दरगाह के नीचे ‘मंदिर’ का दावा करने वाली याचिका को हाल ही में स्वीकार कर लिया था। जैसे ही दरगाह का मामला अदालत की चौखट में दाखिल हुआ, उस दरगाह से बस चंद कदमों की दूरी पर ही मौजूद है ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’। अब अजमेर के डिप्टी मेयर ने दावा किया है कि इसकी जगह पहले ‘मंदिर और कॉलेज’ था।
अढ़ाई दिन का झोपड़ा पर जाकर टिकी नज़र
‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ असल में यह कोई झोपड़ा नहीं बल्कि एक मस्जिद है, जो सैकड़ों साल पुरानी है। यह भारत की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक और अजमेर का सबसे पुराना स्मारक है। अजमेर की ऐतिहासिक मस्जिद और देश की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ को लेकर मंदिर और संस्कृत पाठशाला होने के दावे किए जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेता और अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन का दावा है कि ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ की जगह पहले मंदिर और संस्कृत कॉलेज मौजूद था।
800 साल पुरानी मस्जिद के नीचे दबा संस्कृत स्कूल!
अब अढ़ाई दिन का झोपड़ा को लेकर सर्वेक्षण की मांग उठी है। अढ़ाई दिन का झोपड़ा अजमेर का सबसे पुराना जीवित स्मारक है। कहते हैं कि इसे बनाने के लिए पहले से बने संस्कृत विद्यालय को तोड़ा गया था। 800 साल से ज्यादा पुरानी मस्जिद अजमेर शरीफ दरगाह से महज 5 मिनट की पैदल दूरी पर है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित कर रखा है।
मस्जिद में संस्कृत कॉलेज और मंदिर के हैं सबूत
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अब अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन ने ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ को लेकर बयान जारी किया है। उन्होंने दावा किया है कि इस मस्जिद में संस्कृत कॉलेज और मंदिर होने के सबूत मिले हैं।
दीवारों पर स्वास्तिक, घंटियां और संस्कृत के श्लोक
जैन का कहना है कि इसे आक्रमणकारियों ने उसी तरह ध्वस्त किया, जिस तरह उन्होंने नालंदा और तक्षशिला जैसे ऐतिहासिक शिक्षा स्थलों को ध्वस्त किया था। जैन के अनुसार, मस्जिद पर हमला कर के संस्कृति, सभ्यता और शिक्षा पर हमला हुआ। जैन ने दावा किया कि एएसआई के पास इस जगह से मिली 250 से ज्यादा मूर्तियां हैं। दावा है कि इस जगह पर स्वास्तिक, घंटियां और संस्कृत के श्लोक लिखे हैं। नीरज जैन का कहना है कि मूल रूप से ये मंदिर 1,000 साल से ज्यादा पुराना है। इस मंदिर का जिक्र ऐतिहासिक किताबों में भी मिलता है। एएसआई के मुताबिक, ऐसा माना जाता है कि यहां ढाई दिनों का मेला यानी उर्स लगता था। इसी कारण से इसका नाम ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ पड़ा। इसका जिक्र हरविलास सारदा की किताब Ajmer: Historic and Descriptive में भी मिलता है। 1911 में हर बिलास सारदा ने अपनी किताब में लिखा था, “ये नाम 18वीं शताब्दी के अंतिम सालों में आया। जब फकीर अपने धार्मिक नेता पंजाब शाह की मृत्यु की ढाई दिनों का उर्स मनाने के लिए यहां इकट्ठा होने लगे। शाह पंजाब से अजमेर आए थे।”
कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’
‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ 1192 में अफगान सेनापति मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था। असल में इस जगह पर एक बहुत बड़ा संस्कृत विद्यालय और मंदिर थे, जिन्हें तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया था। अढ़ाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बायीं ओर संगमरमर का बना एक शिलालेख भी है, जिसपर संस्कृत में उस विद्यालय का जिक्र किया गया है। सारदा के अनुसार, सेठ वीरमदेव काला ने 660 में जैन त्योहार ‘पंच कल्याण महोत्सव’ के उपलक्ष्य में एक जैन मंदिर बनवाया था। एएसआई का इस मस्जिद के बारे कहना है कि इसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने लगभग 1200 में शुरू किया था, जिसमें स्तंभों में नक्काशीदार खंभे इस्तेमाल किए गए थे। स्तंभों वाला प्रार्थना कक्ष नौ अष्टकोणीय (8 कोणों वाले डिब्बों में विभाजित) है और मध्य की मेहराब के ऊपर पर दो छोटी मीनारें हैं।

मस्जिद के भीतर 70 स्तंभ और नक्काशी
इस मस्जिद में कुल 70 खम्भे हैं। असल में ये स्तंभ उन मंदिरों के हैं, जिन्हें धवस्त कर दिया गया था, लेकिन स्तंभों को वैसे ही रहने दिया गया था। इन स्तंभों की ऊंचाई करीब 25 फीट है और हर स्तंभ पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। कुफिक और तुगरा शिलालेखों से उकेरी गई तीन केंद्रीय मेहराबें इसे एक शानदार वास्तुशिल्प देती हैं। 90 के दशक में यहां कई प्राचीन मूर्तियां ऐसे ही बिखरी पड़ी थीं, जिन्हें बाद में संरक्षित किया गया।
अंदर से मंदिर दिखता है अढ़ाई दिन का झोपड़ा
अढ़ाई दिन के झोंपड़े का आधे से ज्यादा हिस्सा मंदिर का होने के कारण यह अंदर से मस्जिद न लगकर किसी मंदिर की तरह ही दिखाई देता है। हालांकि जो नई दीवारें बनवाई गईं, उनपर कुरान की आयतें जरूर लिखी गई हैं, जिससे ये पता चलता है कि यह एक मस्जिद है।
इसलिए पड़ा नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा
माना जाता है कि इस मस्जिद को बनने में ढाई दिन यानी मात्र 60 घंटे का समय लगा था, इसलिए इसे ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ कहा जाने लगा। हालांकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यहां चलने वाले ढाई दिन के उर्स (मेला) के कारण इसका नाम ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ पड़ा था। गौरतलब है कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल में मुगलकालीन जामा मस्जिद के को लेकर इसी तरह का दावा हुआ था। जिसके बाद हुए विवादास्पद सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा में चार लोगों की गोली लगने से मौत हो गई थी। इसके बाद देशभर में एक बार फिर मंदिर-मस्जिद विवाद ने तूल पकड़ लिया है।
कितनी मस्जिदों के नीचे दफन हैं मंदिर?
2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले में फ़ैसला सुनाया था। मौजूदा वक़्त में कम से कम एक दर्जन धार्मिक स्थलों और स्मारकों के ख़िलाफ़ ऐसे मामले चल रहे हैं।
1- जामा मस्जिद और शेख़ सलीम चिश्ती की दरगाह- फ़तेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश
ये दरगाह फ़तेहपुर सीकरी आगरा से 40 किलोमीटर दूर है। यहाँ सोलहवीं सदी में बनी हुई जामा मस्जिद, जिसके अंदर सूफी फकीर सलीम चिश्ती की दरगाह भी है। 2024 में अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने आगरा की एक अदालत में मुक़दमा दायर किया था। उनका दावा था कि सलीम चिश्ती की दरगाह कामाख्या देवी के मंदिर पर बनाई गई थी। उनका कहना था कि सोलहवीं सदी में ये दरगाह बनी थी लेकिन उसके पहले वहां एक मंदिर था। इससे पहले भी अजय प्रताप सिंह ने एक और मुक़दमा आगरा की अदालत में दर्ज कराया था कि आगरा की जामा मस्जिद के नीचे कटरा केशव देव की मूर्तियां हैं।
2- अटाला मस्जिद- जौनपुर, उत्तर प्रदेश
ये भी उत्तर प्रदेश के जौनपुर का मामला है. यहाँ याचिकाकर्ताओं का दावा है कि अटाला माता के मंदिर को तोड़कर अटाला मस्जिद बनाई गई थी। अटाला मस्जिद 1408 में बनी थी। 2024 में हिंदू संगठन स्वराज वाहिनी ने जौनपुर में एक याचिका में कहा कि फिरोज़ शाह तुगलक ने एक हिंदू मंदिर को तोड़कर ये मस्जिद बनवाई थी। इस याचिका का विरोध उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने किया है। अक्टूबर 2024 में जौनपुर के एक सिविल कोर्ट ने आदेश दिया कि मथुरा और ज्ञानवापी में मंदिर-मस्जिद मामलों जैसे ये अटाला मस्जिद का मामला भी सुना जा सकता है।
3- शम्सी जामा मस्जिद, बदायूं, उत्तर प्रदेश
ये मस्जिद तेरहवीं सदी में दिल्ली सल्तनत के शम्सुद्दीन इल्ततमिश ने बनवाई थी। 2022 में बदायूं ज़िला कोर्ट में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के संयोजक मुकेश पटेल ने ये याचिका में कहा कि ये मस्जिद की जगह नीलकंठ महादेव का मंदिर हुआ करता था, जिसे हटाकर ये मस्जिद बनाई गई। याचिकाकर्ता की ये मांग है कि उन्हें इस पर पूजा करने की अनुमति दी जाए। इस याचिका में मस्जिद की इंतजामिया कमिटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड भी पक्ष हैं, जिनका कहना था कि ये मामला अदालत में सुना नहीं जा सकता। मुस्लिम पक्ष का दावा है कि ये मुक़दमा उपासना स्थल क़ानून 1991 के ख़िलाफ़ जाता है।
4- टीले वाली मस्जिद- लखनऊ , उत्तर प्रदेश
ये एक पुराना मामला है जो 2013 से चलता आ रहा है। भगवान शेषनागेश टीलेश्वर महादेव विराजमान के नाम पर तब एक याचिका दायर की गई थी कि मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने एक हिंदू धर्मस्थल को तोड़कर ये मस्जिद बनाई थी। 2017 में एक लखनऊ के सिविल जज ने अपने फ़ैसले में कहा कि ये मामला सुना जा सकता है और ये उपासना स्थल क़ानून 1991 के ख़िलाफ़ नहीं जाता है। इस बात पर अपील अभी इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित है।

5- कमल मौला मस्जिद भोजशाला – धर, मध्य प्रदेश
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस नाम की एक संस्था ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें ये कहा गया है कि मस्जिद का निर्माण तेरहवीं से चौदहवी सदी में अल्लाउद्दीन खिलजी के शासन में शुरू हुआ था। उनका कहना है कि उस समय वहाँ भोजशाला वागदेवी का मंदिर हुआ करता था, जिसे तोड़कर ये मस्जिद बनाई गई। 2022 की याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से भोजशाला के सर्वे की माँग की गई थी। मार्च 2024 में हाई कोर्ट ने इस सर्वे की अनुमति दे दी। फिर, आदेश दिया कि सर्वे के बाद मस्जिद में सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बिना कोई भी छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। ये मामला अभी भी लंबित है और यहाँ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का सर्वे पूरा हो चुका है।
6- बाबा बुदनगिरी दरगाह- चिकमंगलूर, कर्नाटक
चिकमंगलूर के बाबा बुदनगिरि में सूफ़ी संत दादा हयात यानी बाबा बुदन की एक दरगाह है। साथ ही वहाँ हिंदुओं का दत्तात्रेय मंदिर भी है। इस जगह को आम तौर पर दक्षिण की अयोध्या भी कहा जाता है। 1970 के दशक में इस जगह को कर्नाटक सरकार ने वक़्फ़ बोर्ड को दे दी थी। फिर इस पर बहुत विवाद हुआ और मामला कोर्ट में भी पहुँचा। 1980 में कोर्ट ने कहा कि ये वक़्फ़ की संपत्ति नहीं है और यहाँ हिंदू और मुसलमान दोनों प्रार्थना करते हैं। ये मामला अब भी कर्नाटक हाई कोर्ट में लंबित है। 2021 में भारतीय जनता पार्टी के विधायक सीटी रवि ने कहा था कि इस उपासना स्थल पर केवल हिंदुओं का हक़ है।
7- क़ुतुबमीनार, दिल्ली
दिल्ली के मशहूर और दिल्ली की पहचान क़ुतुबमीनार में मौजूद कुव्वत-उल इस्लाम मस्जिद पर भी बवाल है। वकील विष्णु शंकर जैन की दायर याचिका में ये दावा किया गया है कि कई हिंदू मंदिर तोड़कर अंदर मस्जिद बनाई गई थी। याचिका में कहा गया है कि इसे हिंदुओं को वापस करके वहां पूजा करने की अनुमति दी जानी चाहिए। 2021 में एक सिविल कोर्ट ने ये कहते हुए इस याचिका को ख़ारिज कर दिया था कि अतीत में की गई ग़लतियों से वर्तमान और भविष्य की शांति भंग नहीं की जा सकती। लेकिन इस फ़ैसले को चुनौती देते हुए फिर से अपील की गई जो अभी लंबित है।

8- जुम्मा मस्जिद, मेंगलुरु, कर्नाटक
ये विवाद सिर्फ उत्तर भारत में ही नहीं, दक्षिण भारत में भी इसकी छाया पड़ने लगी है। पिछले कई सालों से मेंगलुरु की जुम्मा मस्जिद भी विवाद में है। 2022 में कर्नाटक की एक अदालत ने विश्व हिंदू परिषद के एक सदस्य की तरफ़ से दायर की गई याचिका पर कहा था कि वो उपासना स्थल क़ानून के ख़िलाफ़ नहीं जा सकती। विश्व हिंदू परिषद का ये कहना था कि मस्जिद के नीचे एक मंदिर है और उन्होंने एक सर्वे की मांग की थी। केस अभी मेंगलुरु की ज़िला अदालत में लंबित है।
9- शाही ईदगाह मस्जिद- मथुरा, उत्तर प्रदेश
दावा है कि मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद, भगवान कृष्ण की जन्मस्थली पर बनाई गई है। 2020 में छह भक्तों ने अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री की तरफ़ से एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने मस्जिद को हटाने की माँग की। अब इस मामले में 18 याचिकाएं हैं। अगस्त 2024 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि ये याचिकाएँ भी उपासना स्थल क़ानून 1991 के ख़िलाफ़ नहीं जाती हैं। 2023 में हाई कोर्ट ने एक कोर्ट कमिश्नर को नियुक्त किया था जो मस्जिद का सर्वे कर सके पर जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अंतरिम रोक लगा दी थी, जो अब तक लागू है।
अभी तो ये अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है
बीबीसी हिंदी के साथ बातचीत करते हुए विष्णु शंकर जैन ने दावा किया है कि उनका मक़सद यह है कि जितने मंदिर अतीत में तोड़े गए, उन सभी के पुनर्निर्माण के लिए मुक़दमे दायर करेंगे। पश्चिम बंगाल के मालदा में स्थित अदीना मस्जिद पर भी दावा किया जा रहा है कि वह मंदिर तोड़कर बनाई गई थी। मध्य प्रदेश के बीजामंडल मस्जिद पर भी कुछ समय से विवाद चल रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने जब यह कहा कि वह एक मस्जिद है, तब अगस्त 2024 में वहां के एक अधिवक्ता ने उन्हें एक क़ानूनी नोटिस भेजा। उनका यह दावा था कि यह एक मंदिर है।