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हिन्दी चीनी भाई-भाई का जुमला फिर से होगा बुलंद? भारत और चीन के बीच विवादों की पूरी तस्वीर

INDO CHINA - Dayitva Media
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– गोपाल शुक्ल:

जमाने पहले एक पिक्चर आई थी। नाम था हकीकत। भारत और चीन के बीच हुए युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में एक नारा बार बार दोहराया जाता था- हिन्दी चीनी भाई-भाई, लेकिन इस नारे को दोहराने के बाद एक चीनी सैनिक एक बात और दोहराता था- ये जमीन हमारा है, तुम यहां से जाओ, हमने यहां पर घेरा लगाया है, हिन्दी चीनी भाई-भाई। सच कहा जाए तो फिल्म के इस नारे और इस जुमले में भारत और चीन के बीच के झगड़े की असली वजह छिपी हुई है। और वह वजह है जमीन। 1964 में बनी उसी फिल्म को अगर गौर से देखें तो 60 साल के बाद एक बार फिर वही सारी बातें हम अपने आस पास होते देख रहे हैं। तभी तो संसद में खड़े होकर हमारे विदेश मंत्री सियासी कुनबे को इस बात के लिए समझाने में लगे हैं कि हिन्दुस्तान की तरफ से की गई कोशिश से चीन ने कदम वापस खींच लिए और अब एक बार फिर दोनों मुल्कों के बीच रिश्ते कुछ ठीक ठाक होने के हालात बन रहे हैं।

जयशंकर ने टाइमलाइन के साथ दी दलील

मंगलवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में बयान दिया। ये बयान चीन के मुद्दे पर था। विदेशमंत्री ने संसद में पूरी टाइमलाइन के साथ चीन के साथ जारी तनातनी पर बताया कि सीमा पर हालात अब सामान्य हैं।

सामान्य होते हालात, कई दौर की बातचीत का नतीजा

इसके बाद विदेश मंत्री एस. जशंकर ने बुधवार को राज्यसभा में जाकर चीन के साथ सीमा समझौते के मामले में हुई तरक्की की जानकारी उच्च सदन को भी दी। जयशंकर ने इस बात पर खासतौर पर जोर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनफिंग की मुलाकात से पहले इस मसले को हल करने के लिए चीन के मंत्रियों के साथ कई दौर की बातचीत भी हुई।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पूर्वी लद्दाख में सैनिकों की वापसी और सीमा पर मौजूदा हालात के बारे में कहा कि 21 अक्टूबर को बनी सहमति के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने मुलाकात की थी। यह मुलाकात 23 अक्टूबर को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान रूस के शहर कजान में हुई थी। विदेश मंत्री ने ये भी बताया कि इसी विवाद के सिलसिले में उनकी 18 नवंबर को ब्राजील के रियो डी जेनेरो में G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ बात चीत हुई थी।

विदेश मंत्रियों की बातचीत का लंबा सिलसिला

विदेश मंत्री ने पहले तो विवाद के मामले में चीनी मंत्री के साथ अपनी बातचीत के सिलसिले की पूरी टाइमलाइन बताई, यानी कब कब और कहां कहां उनकी बातचीत का सिलसिला बना रहा जिससे ये मामला सुलझने की मंजिल तक पहुँच सका। विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने जानकारी दी कि 21 अक्टूबर को हुए समझौते से पहले 4 जुलाई को अस्ताना में और 25 जुलाई को वियनतियाने में चीनी समकक्ष के साथ बातचीत में खुलकर बातें हुईं। इसके बाद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चीन के राष्ट्रीय सुलक्षा सलाहकार ने 12 सितंबर को सेंट पीटर्सबर्ग में भी मुलाकात की थी।

गश्त के लिए रास्ता साफ!

इन मुलाकातों में भारत ने जिन मुद्दों को जोर शोर से उठाया वो था सीमा पर आ रही गश्त में रुकावट और देप्सांग में खानाबदोश आबादी के पारंपरिक चरागाहों के साथ-साथ स्थानीय लोगों के लिए महत्वपूर्ण स्थलों तक पहुंच का मामला। इस बातचीत का असर ये हुआ कि हाल ही में इन मामलों में दोनों देशों के बीच सहमति बन सकी। जिससे पारंपरिक इलाकों में दोबारा गश्त शुरू हो सकी।

विदेश मंत्री ने बताई प्राथमिकता

विदेश मंत्री ने साफ किया कि जून 2020 के बाद दोनों देशों की सेनाओं के बीच टकराव के बाद उन्हीं जगहों पर सैनिकों की वापसी सुनिश्चित करना भारत की प्राथमिकता थी, लेकिन शर्त ये भी थी कि वहां अब कोई झड़प न हो। ये टास्क हाल ही में हुए समझौते में हासिल कर लिया गया। जयशंकर ने कहा कि अगली प्राथमिकता दोनों देशों के बीच तनाव कम करने को लेकर है।

इन सिद्धांतों का चीन को करना होगा पालन

जयशंकर ने कहा कि हम बहुत स्पष्ट थे और हम अब भी बहुत स्पष्ट हैं कि हर परिस्थितियों में 3 प्रमुख सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए।

1-दोनों पक्षों को एलएसी का सख्ती से सम्मान और पालन करना।
2-किसी भी पक्ष को यथास्थिति को एकतरफा बदलने का प्रयास नहीं करना।
3-अतीत में किए गए समझौतों का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए।

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद लंबे समय से चल रहा है। लेकिन इस विवाद के साथ साथ कई और मुद्दे इसमें शामिल हो गए। जैसे कि

1. सीमांकन

भारत और चीन के बीच सीमांकन पूरी तरह से नहीं हुआ है। चीन, अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा मानता है। तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को चीन नहीं मानता। जबकि भारत, अक्साई चिन पर अपना दावा करता है, जो कि इस वक्त चीन के कबजे में है।

2. गलवान घाटी में झड़प

जून 2020 में, भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में झड़प हुई थी। इस झड़प में दोनों पक्षों के सैनिक हताहत हुए थे।

3. तवांग

चीन, तवांग को तिब्बत का हिस्सा मानता है। चीन का कहना है कि तवांग और तिब्बत में काफ़ी ज़्यादा सांस्कृतिक समानता है।

4. सीमा पार आतंकवाद

चीन, पाकिस्तान का समर्थन करता है और सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर अक्सर उसका बचाव करने लगता है।

5. हिंद-प्रशांत महसागरीय क्षेत्र

चीन, हिंद-प्रशांत महसागरीय क्षेत्र में भारत की भूमिका को लेकर अक्सर असंतोष जाहिर करता है।

भारत और चीन के बीच विवादित दो इलाके

असल में गलवान घाटी, लद्दाख और अक्साई चिन के बीच भारत-चीन सीमा के नज़दीक स्थित है। यहां पर वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC अक्साई चिन को भारत से अलग करती है। ये घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख तक फैली है। 1962 से ही गलवान घाटी भारत-चीन के बीच झगड़े की एक बड़ी वजह बनी हुई है। 20 अक्टूबर से 20 नवम्बर, 1962 तक भारत-चीन युद्ध करीब एक महीने तक चले भारत चीन युद्ध के बीच जो असली जड़ है वो देशों की सीमा पर विवादित अक्साई चिन इलाका ही है।

60 सालों से LAC पर उलझे दोमों देश

लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी LAC मूल रूप से अभी भी वास्तविक नियंत्रण की रेखा है जो 7 नवंबर 1959 को चीनी और भारतीय पक्षों के बीच खींची गई थी। हालांकि एक सच ये भी है कि चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध काफी पुराने हैं। दोनों देश एक दूसरे के साथ आर्थिक सहयोग बनाए रखना चाहते भी हैं, लेकिन पिछले 60 सालों से दोनों देश एक दूसरे के साथ सीमा विवाद में ही उलझे हुए हैं।

पहला कामयाब समझौता था पंचशील

पंचशील को पहली बार भारत और चीन के तिब्बत क्षेत्र के बीच 29 अप्रैल, 1954 को हस्ताक्षरित किया गया था। भारत के पूर्व प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के पहले प्रधानमंत्री चाऊ एन-लाई ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। आर्थिक और सुरक्षा सहयोग में सुधार के लिए भारत और चीन के बीच सबसे सफल समझौतों में से एक पंचशील समझौता माना जाता है।

तिब्बत ऐसे आया बीच में

दरअसल 1958 में तिब्बत में चीन के कब्जे के खिलाफ़ सशस्त्र विद्रोह हुआ था। भारत ने तिब्बतियों के मुद्दे का समर्थन किया था, जिसका चीन ने कड़ा विरोध किया था। यहाँ तक कि भारत ने दलाई लामा और बड़ी संख्या में तिब्बतियों को शरण दी।

5180 वर्ग किलोमीटर पर चीन का अवैध कब्जा

जानकर हैरान होंगे कि चीन ने भारत को एक नाम भी दे रखा है। मौजूदा वक्त में चीन में भारत को यिन-तू के नाम से जाना जाता है। भारत के लद्दाख के 38 हजार वर्ग किमी क्षेत्र पर चीन का अवैध कब्जा है। पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के 78000 वर्ग किमी इलाके पर अवैध कब्जा कर रखा था। पाकिस्तान ने उस इलाके के 5180 वर्ग किमी के हिस्से को अवैध रूप से चीन को सौंप दिया था। भारत आज तक चीन पाकिस्तान के इस कब्जे को अवैध ठहराता आया है। 2 मार्च 1963 को चीन और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था। इसके अलावा, चीन अरुणाचल प्रदेश की 90 हजार वर्ग किमी जमीन पर दावा करता है।

चीन ने बहुत पहले चल दी थी चाल

कई विशेषज्ञ मानते हैं कि देप्सांग इलाके में 600-800 वर्ग किलोमीटर जमीन चीन के कब्जे में है। चीन के कब्जे में भारत की जो 37244 वर्ग किलोमीटर जमीन है वह अक्साई चिन का इलाका कहलाता है। यह इलाका लद्दाख का है। चीन ने इस पर कब्जे की पहली चाल 1962 के भारत-चीन युद्ध से बहुत पहले ही चल दी थी।

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  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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