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– गोपाल शुक्ल:
आज की तारीख में दिल्ली की डीटीसी बस की हालत पर बात करना ठीक वैसा ही है जैसे सांप के मुँह में छछूंदर फँस गई हो। न तो निगलते बन रही और न उगलते। एक दशक पहले दिल्ली की गद्दी पर जब अरविंद केजरीवाल सरकार बैठी तो उसने अपने वादों से दिल्ली वालों के सामने हद ही कर दी थी। ऐसा लग रहा था जैसे मानों वो आसमान से तारे तोड़ कर ला देंगे, लेकिन आज की सच्चाई क्या है किसी से छुपी नहीं है। हालात जैसे थे 2024 आते-आते स्थिति जस की तस बनी हुई है।
डीटीसी के सपने बदले और सूरत भी बदली
अक्सर हिन्दी फिल्मों में दो ही शहरों की बसों को दिखाने का जोर रहा है। मुंबई की बेस्ट सर्विस या फिर दिल्ली की डीटीसी यानी दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन। एक जमाना था जब डीटीसी की बसों पर सफर करने का सपना देश में हरेक छोटे शहरों के लोगों की आंखों में बसता था। डीटीसी बस से दिल्ली को देखने की तमन्ना लेकर लोग अक्सर दिल्ली आते थे। लेकिन बदलते वक्त के साथ अब सपने और डीटीसी की सूरत दोनों बदल गए है।
डीटीसी की रफ्तार में लगा ब्रेक
आलम ये है कि अब तो दिल्ली के लोग भी डीटीसी की बस से तौबा करते दिखाई दे रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली की शक्ल सूरत तो बदली ही है। तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या, दिल्ली मेट्रो का विस्तार, सड़कों पर बढ़ता ट्रैफिक और दिल्ली की बिगड़ती हवा ने डीटीसी की रफ्तार पर ब्रेक लगाया है। खासकर पिछले दस सालों में इस डीटीसी में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं।

दिल्ली की बेलगाम होती व्यवस्था
कभी दिल्ली की रगों में दौड़ने वाले लहू की तरह थी डीटीसी की बसें, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। दिल्ली की परिवहन व्यवस्था में बीते दस सालों के दौरान कई बदलाव हुए हैं। जिसमें, दिल्ली की बस सेवा, स्मार्ट ट्रैफिक मैनेजमेंट, इलेक्ट्रिक वाहनों की पहल, और शहर की बेलगाम होती यातायात समस्याएं शामिल हैं। 2013 में डीटीसी के बेड़े में लगभग 6,000 बसें थीं। आज, कुल 7,000 बसों के साथ मामूली सुधार तो हुआ है, पर ये तो ऐसा है जैसे ऊँट के मुँह में जीरा।
दिल्ली की डीटीसी सर्विस जिस तरह से बदली है उसमें एक सबसे बड़ी वजह है-
दिल्ली मेट्रो का विस्तार
दिल्ली मेट्रो को अगर हम दिल्ली के परिवहन के विकास की सबसे बड़ी सफलता मानें तो यह गलत नहीं होगा। 2002 में जब दिल्ली मेट्रो की शुरुआत हुई थी, तो यह शहर के परिवहन नेटवर्क का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर उभरी। शुरुआत में दिल्ली मेट्रो की लंबाई 65 किलोमीटर थी, लेकिन बीते दस सालों में इसका नेटवर्क तेजी से बढ़ा है। 2014 में मेट्रो नेटवर्क लगभग 190 किलोमीटर था और आज जब हम बात 2024 में कर रहे हैं तब यह लगभग 390 किलोमीटर तक पहुँच चुका है। दिल्ली मेट्रो की वजह से दिल्लीवासियों को एक सुरक्षित, सस्ता, और समयबद्ध यात्रा का विकल्प मिल गया है। मेट्रो के विस्तार से न केवल ट्रैफिक की समस्या हल हुई, बल्कि शहर के प्रदूषण में भी काफी कमी आई है। मेट्रो के आने से लोगों को लंबी-लंबी ट्रैफिक जाम से बचने का मौका मिला।
तरक्की के ट्रैक पर दौड़ती दिख रही दिल्ली मेट्रो
अब तो दिल्ली मेट्रो की हर रंग की एक लाइन है, जिसने दिल्ली और पूरे एनसीआर को एक धागे से जोड़ रखा है। मेट्रो के नेटवर्क का विस्तार नोएडा, गुड़गांव, और फरीदाबाद तक हो चुका है। इतना ही नहीं तरक्की के ट्रैक पर दौड़ती मेट्रो ने डिजिटल सुविधाओं और स्मार्ट कार्ड की बदौलत यात्रा को और भी सुविधाजनक बना दिया है।
डीटीसी में लग गया ‘रिवर्स गियर’
ये बात सच है कि दिल्ली की बसों को कभी शहर की जीवनरेखा भी माना जाता था। पहले दिल्ली की सड़कों पर DTC की बसें हर जगह दौड़ती थीं। हालाँकि, पिछले दस सालों में दिल्ली बहुत बदली भी गई है। यहां की सड़कें बदल गईं, यहां की आबादी बदल गई। दिल्ली के लोगों की आदतें बदल गईं और सबसे बड़ी बात दिल्ली के लोगों की जरूरतें भी बदली हैं। लिहाजा ये कहा जा सकता है कि बहुत बदलाव हो चुका है। लेकिन बस सर्विस के मामले में दिल्ली आगे जाने की बजाए चार कदम पीछे ही खिसकी है। यानी अचानक डीटीसी में रिवर्स गियर लग गया।
डीटीसी बसों की खटारा हालत
आजकल DTC की बसों की हालत ज़्यादा अच्छी नहीं मानी जा सकती। जो बसें सड़कों पर हैं, उनमें से कई बसें बहुत पुरानी हो चुकी हैं, जिन्हें खटारा कहा जा सकता है। उनका रखरखाव भी सही तरीके से नहीं किया जाता। इसके अलावा, बसों की संख्या में बेतहाशा कमी आई है, जो दिल्ली की तेजी से बढ़ती आबादी और मुसाफिरों की बढ़ती संख्या के लिहाज से एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। हालांकि दिल्ली सरकार ने बीते 10 सालों के दौरान कुछ जरूरी कदम उठाए खासतौर पर नई इलेक्ट्रिक बसें चलानी शुरू की। नई नई बसें बेडे़ में शामिल की, लेकिन यह गिनती अब भी बहुत कम है।
आबादी बढ़ी, बसें घटीं
दिल्ली की बस सेवा पर रोजाना करीब 35 लाख यात्री निर्भर हैं। इसमें दिल्ली परिवहन निगम यानी डीटीसी और क्लस्टर बसें शामिल हैं। हालांकि, यह आंकड़ा दिल्ली की आबादी के अनुपात में बेहद कम है। दिल्ली की आबादी दो करोड़ की गिनती पार कर चुकी है, लेकिन बसों की संख्या देखें तो ऐसा लगता है कि कि दिया तले अंधेरा है।
2014: डीटीसी बसों में रोजाना 45 लाख लोग सफर करते थे।
2024: यह संख्या गिरकर 35 लाख रह गई है। लगता है, सफर भी आसान नहीं और मंज़िल भी दूर।
पिछले 10 सालों में दिल्ली सरकार ने बार-बार नई बसों की खरीदारी का वादा किया, लेकिन नतीजे वही ढाक के तीन पात रहे। वादा तो बड़ा था।
सरकार के वादे पर मार खाती जनता
सरकार ने वादा किया था कि दिल्ली की सड़कों पर मधुमक्खी के छत्ते जैसी बसें होंगी। लेकिन हकीकत में खोदा पहाड़, निकली चुहिया। इलेक्ट्रिक बसें तो आईं, मगर उनकी संख्या जरूरत के आगे ऊँट के सिर पर खजूर के पेड़ जैसी है।
- 2017 में 1,000 बसों का वादा किया गया, जिनमें से केवल 350 ही सड़कों पर उतारी गईं।
- 2021 में 300 इलेक्ट्रिक बसें शामिल की गईं, लेकिन यह संख्या जरूरत का एक छोटा हिस्सा भर है।
- 2023 के बजट में मोहल्ला बस सेवा की घोषणा हुई, लेकिन यह योजना अभी घूँघट में छुपा चेहरा है।
100 बसों से शुरुआत करना और तीन साल में 2,180 बसें जोड़ने का वादा ऐसा लगता है जैसे लंबे बाँस के सहारे चढ़ाई करना। शहर में मौजूद बसों की गिनती 3,900 के आंकड़े के आस पास है। जानकारों का मानना है कि दिल्ली को सुचारु परिवहन सेवा के लिए कम से कम इस वक्त 11,000 बसों की जरूरत है।
डीटीसी का दम तोड़ता बंदोबस्त
डीटीसी की पुरानी बसों की हालत भी घर का जोगी जोगड़ा जैसी है। समय पर न तो मेंटेनेंस होता है न यात्रियों को सुविधा। आलम ये है कि कई बसें रास्ते में दम तोड़ देती हैं और यात्रियों को सड़क पर जमीन नापनी पड़ती है।
इलेक्ट्रिक बसों से जागी उम्मीद
नई इलेक्ट्रिक बसें एक उम्मीद की किरण दिखाती तो हैं पर उनकी लागत और रखरखाव भी सिर मुंडाते ही ओले पड़ने जैसा ही साबित हो रहा है। दिल्ली सरकार ने प्रदूषण के मुद्दे को हल करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों की दिशा में कई कदम उठाए हैं। खासकर इलेक्ट्रिक बसों का प्रयोग बढ़ाने की योजना को प्राथमिकता दी गई है। दिल्ली में इलेक्ट्रिक बसों की संख्या में इजाफा हुआ है, और इस दिशा में नई योजनाएं बनाई गई हैं। सरकार ने EV (Electric Vehicle) पॉलिसी भी लागू की है, जिसके तहत सस्ती और सुविधाजनक इलेक्ट्रिक बसों का प्रयोग बढ़ाने की योजना बनाई गई है। इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग स्टेशन की संख्या में भी इजाफा हुआ है। असल में दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण की वजह से इन पहलुओं पर दिल्ली सरकार गौर कर रही है। लेकिन एक सच ये भी है कि इलेक्ट्रिक वाहनों का नेटवर्क अभी बिलकुल शुरुआती दौर में है। जाहिर है ये सफर अभी बहुत लंबा है।

दिल्ली में दौड़ रहा है कागजी घोड़ा
2013 में डीटीसी का वार्षिक बजट करीब 1,800 करोड़ रुपये था। 2023 में यह बढ़कर 4,000 करोड़ रुपये हो गया है, लेकिन इसका आधा हिस्सा कागजी घोड़ा चलाने में खर्च हो जाता है।
डीटीसी के बहीखाते में दिखती सच की तस्वीर
दिल्ली परिवहन निगम यानी DTC के बजट और खर्च के बही खाते पर अगर नजर डालें तो ऐसा लगता ही नहीं कि ये एक सिक्के के दो पहलुओं को देखा जा रहा है। 2014 से 2024 तक डीटीसी की बदली हुई तस्वीर दिखाती है कि यह संस्था समय-समय पर अलग अलग आर्थिक और प्रशासनिक चुनौतियों का सामना कर रही है। इस दौरान, DTC ने बढ़ती जनसंख्या और ट्रांसपोर्ट की मांग को पूरा करने के लिए कई पहल तो कीं लेकिन इसकी बेलगाम हालत वित्तीय स्थिति ने कई सवाल एक साथ खड़े कर दिए हैं।
डीटीसी का बही खाता-

साल 2014–2015
बजट- ₹1,800 करोड़
वास्तविक खर्च: ₹1,650 करोड़
DTC का मुख्य फोकस: पुरानी बसों का मेंटेनेंस और कर्मचारियों का वेतन।
जमीनी सच- DTC का बेड़ा 6,000 बसों का था, लेकिन इनमें से लगभग 1,200 बसें मेंटेनेंस के अभाव में खड़ी रहीं।
2015–2016
बजट: ₹2,000 करोड़
वास्तविक खर्च: ₹1,800 करोड़
DTC का मुख्य फोकस: नई बसों की खरीद और महिला सुरक्षा के लिए मार्शलों की तैनाती।
जमीनी सच: 1,000 नई बसों की घोषणा हुई, लेकिन वास्तविक संख्या 500 बसों तक सीमित रही।
2016–2017
बजट आवंटन: ₹2,200 करोड़
वास्तविक खर्च: ₹2,100 करोड़
DTC का मुख्य फोकस: डीटीसी बसों में सीसीटीवी कैमरों की स्थापना।
स्थिति: 500 बसों में कैमरे लगे, लेकिन खराब रखरखाव के चलते 30% कैमरे एक साल में खराब हो गए।
2017–2018
बजट आवंटन: ₹2,500 करोड़
वास्तविक खर्च: ₹2,200 करोड़
DTC का मुख्य फोकस: बस रूटों का विस्तार और स्मार्ट टिकटिंग सिस्टम।
स्थिति: स्मार्ट कार्ड सिस्टम लागू हुआ, लेकिन तकनीकी खामियों के कारण प्रभावी रूप से नहीं चल पाया।
2018–2019
बजट आवंटन: ₹3,000 करोड़
वास्तविक खर्च: ₹2,700 करोड़
DTC का मुख्य फोकस: नई इलेक्ट्रिक बसों की खरीद।
स्थिति: 1,000 इलेक्ट्रिक बसों की घोषणा हुई, लेकिन सिर्फ 300 बसें ही सेवा में आईं।
2019–2020
बजट आवंटन: ₹3,500 करोड़
वास्तविक खर्च: ₹3,200 करोड़
DTC का मुख्य फोकस: महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा।
स्थिति: योजना सफल रही, लेकिन DTC के वित्तीय घाटे में 20% की वृद्धि हुई।
2020–2021 (COVID-19 Impact)
बजट आवंटन: ₹3,800 करोड़
वास्तविक खर्च: ₹2,500 करोड़
DTC का मुख्य फोकस: COVID-19 के दौरान बस सेवाओं को सीमित करना।
स्थिति: बस सेवाओं का संचालन सीमित होने के कारण खर्च कम हुआ, लेकिन राजस्व लगभग आधा हो गया।
2021–2022
बजट आवंटन: ₹4,000 करोड़
वास्तविक खर्च: ₹3,700 करोड़
DTC का मुख्य फोकस: बसों का नवीनीकरण और महिला सुरक्षा।
स्थिति: 200 नई इलेक्ट्रिक बसें जोड़ी गईं, लेकिन खराब रखरखाव और भ्रष्टाचार की शिकायतें बढ़ीं।
2022–2023
बजट आवंटन: ₹4,200 करोड़
वास्तविक खर्च: ₹4,000 करोड़
DTC का मुख्य फोकस: मोहल्ला बस सेवा की शुरुआत।
स्थिति: नई योजनाएँ धीमी रफ्तार से लागू हुईं। 2,000 बसों की जरूरत के मुकाबले सिर्फ 500 बसें खरीदी गईं।
2023–2024
बजट आवंटन: ₹4,500 करोड़
वास्तविक खर्च: अनुमानित ₹4,200 करोड़
DTC का मुख्य फोकस: इलेक्ट्रिक बसों के बेड़े का विस्तार और स्मार्ट बस स्टॉप।
स्थिति: स्मार्ट बस स्टॉप का काम शुरू हुआ, लेकिन अधिकांश परियोजनाएँ कागजों पर ही रहीं।
सच्चाई से डर गई है दिल्ली सरकार
दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है। ऐसा लगता है कि दिल्ली सरकार फिलहाल इसी डर से कई नई योजनाएँ अमल में नहीं ला पा रही । ऐसा नहीं है कि दिल्ली की सरकार में बैठे लोगों को दिल्ली की इस जमीनी सच्चाई का अंदाजा नहीं है। मिनिस्ट्री ऑफ अर्बन डिवेलपमेंट के मुताबिक, दिल्ली जैसे महानगर में कम से कम 15,000 बसों की जरूरत है। लेकिन, आज दिल्ली के पास जरूरत का केवल 35% है। इसके अलावा मुख्य समस्याएँ भी पहचान ली गई हैं। जैसे
वित्तीय घाटा: DTC हर साल ₹1,000-₹1,500 करोड़ के घाटे में चल रही है।
मेंटेनेंस का अभाव: 20% बसें हर समय मेंटेनेंस के लिए खड़ी रहती हैं।
भ्रष्टाचार: बस खरीद और रखरखाव में भ्रष्टाचार की शिकायतें आम हैं।
मुफ्त यात्रा योजना: महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा योजना ने यात्रियों की संख्या तो बढ़ाई, लेकिन इसकी वजह से डीटीसी का राजस्व और घट गया।
ऑपरेशनल लागत: डीटीसी बसों का मेंटेनेंस और डीजल/सीएनजी की लागत लगातार बढ़ रही है, लेकिन राजस्व में वृद्धि नहीं हो रही।
ठेकेदारी मॉडल: क्लस्टर बसों का संचालन निजी कंपनियों के हवाले है, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।
दिल्ली सरकार के लिए आगे का रास्ता
अब सवाल यही है कि इस तरक्की के रास्ते पर लगी जाम की हालत से निपटने का क्या तरीका हो सकता है। अगर सरकार सचमुच दिल्ली की बस सेवा को पटरी पर लाना चाहती है, तो आवश्यकता ही अविष्कार की जननी को ध्यान में रखना होगा।
आगे का रास्ता: क्या होना चाहिए?
नई बसों की तत्काल खरीद: दिल्ली सरकार को हर साल कम से कम 2,000 नई बसें शामिल करनी चाहिए।
डिजिटल ट्रैकिंग: बसों के संचालन को बेहतर बनाने के लिए GPS ट्रैकिंग और रीयल-टाइम मॉनिटरिंग जरूरी है।
पारदर्शिता: खर्च और बजट की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र समिति होनी चाहिए। बजट का सही इस्तेमाल और योजनाओं का सख्ती से पालन करना होगा।
अपने ही नारे से बहुत दूर खड़ी है डीटीसी की बस
दिल्ली की बस सेवा का मौजूदा हाल अब भी न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी जैसा ही दिखाई पड़ता है। खोखले वादों की गठरी से जनता का सफर आसान नहीं होगा। सरकार को समझना होगा कि अँधेरे में तीर चलाने के बजाय जमीनी हकीकत को समझना और ठोस कदम उठाना ही दिल्ली की बस सेवा को सड़क पर सही ढंग से चला सकती है। 2014 से 2024 तक दिल्ली परिवहन निगम के बजट और खर्च का विश्लेषण दिखाता है कि यह संस्था समय-समय पर विभिन्न आर्थिक और प्रशासनिक चुनौतियों का सामना करती रही है। DTC का बजट साल-दर-साल बढ़ता गया, लेकिन खर्च और प्रदर्शन के बीच भारी अंतर रहा। 2013 के मुकाबले 2024 में सेवा में नाममात्र का सुधार हुआ है। सरकार को दूध का दूध और पानी का पानी करते हुए भ्रष्टाचार को हर हाल में रोकना ही होगा। इसको लेकर किसी भी तरह की दलील इसलिए और भी नहीं चल सकती क्योंकि ये अरविंद केजरीवाल की सरकार इसी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही जनता के दिल में भरोसा जगाकर आई थी। लिहाजा भ्रष्टाचार रोकना ही इस सरकार की पहली जरूरत है। इसके अलावा बजट का सही इस्तेमाल करना, और बसों की संख्या बढ़ाना अगला कदम होना चाहिए। तभी तो दिल्ली परिवहन निगम (DTC) का नारा है: “दिल्ली की सवारी, सुरक्षित सवारी”। यह नारा DTC के मिशन को सरल और प्रभावशाली तरीके से जनता तक पहुंचाने का प्रयास करता है, जिससे यात्रीगण DTC की बस पर भरोसा कर सकें, लेकिन लगता है कि अभी DTC के लिए दिल्ली दूर है।