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‘छलिया’ केजरीवाल, तोड़ी कसमें, भूले वादे, भाड़ में गए सिद्धांत, 10 साल में क्या मिला दिल्ली की जनता को..? क्या होगा 2025 में?

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– विकास मिश्र:

  • अरविंद केजरीवाल की प्रतिज्ञा नंबर-1- मैं अपने बच्चों की कसम खाता हूं कि दिल्ली का ही होकर रहूंगा, दिल्ली से बाहर मेरी पार्टी कहीं चुनाव नहीं लड़ेगी।
  • सच्चाई- पंजाब, राजस्थान, यूपी, एमपी, गोवा, गुजरात समेत 15 राज्यों में आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनावों में शिरकत की।
  • अरविंद केजरीवाल की प्रतिज्ञा नंबर-2 हम भ्रष्टाचार का अंत करेंगे और ईमानदारी से शासन करेंगे।
  • सच्चाई- शराब नीति घोटाला, दिल्ली जल बोर्ड घोटाला, मोहल्ला क्लीनिक घोटाले में नाम। पैसे लेकर टिकट देने के आरोप लगे।
  • अरविंद केजरीवाल की प्रतिज्ञा नंबर-3- हम सादगी से सरकार चलाएंगे, सरकारी बंगले और बड़े दफ्तर का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
  • सच्चाई- अरविंद केजरीवाल के सरकारी आवास पर करीब 45 करोड़ रुपये खर्च हुए, उनका यह आवास “शीशमहल” नाम से कुख्यात हुआ।
  • अरविंद केजरीवाल की प्रतिज्ञा नंबर-4- हम VIP कल्चर खत्म करेंगे, हम लाल बत्ती, बड़े काफिले और विशेषाधिकारों को समाप्त करेंगे।
  • सच्चाई- केजरीवाल के पास खुद Z+ सुरक्षा है, उनके नेता बड़ी सरकारी गाड़ियों में चलते हैं।
  • अरविंद केजरीवाल की प्रतिज्ञा नंबर-5 -हम अपनी पार्टी फंडिंग पूरी तरह पारदर्शी रखेंगे और हर दान को सार्वजनिक करेंगे।
  • सच्चाई- आम आदमी पार्टी ने विदेशी फंडिंग और चंदे को लेकर पारदर्शिता नहीं बरती।
  • अरविंद केजरीवाल की प्रतिज्ञा नंबर-6- हम राजनीति में अन्ना हजारे के आदर्शों का पालन करेंगे।
  • सच्चाई- अन्ना हजारे स्वयं कहते हैं कि आम आदमी पार्टी ने उनके आदर्शों का पालन नहीं किया और भ्रष्टाचार विरोधी एजेंडे से भटक गई।

यह आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के चाल चरित्र और चेहरे की महज एक बानगी है। कसम खाना और अगले ही पल तोड़ देना यह उनकी फितरत ही रही है। ऊपर की फेहरिस्त से अलग बात करते हैं। अरविंद केजरीवाल अन्ना हजारे के आंदोलन की उपज हैं। 5 अप्रैल 2011 को दिल्ली के जंतर मंतर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल विधेयक को लागू करने की मांग को लेकर अन्ना हजारे ने अनशन शुरू किया था। तब पूरा देश उनके समर्थन में उमड़ पड़ा था। अरविंद केजरीवाल अन्ना हजारे आंदोलन के प्रमुख नेता और प्रमुख रणनीतिकार थे। अन्ना हजारे ने कहा था कि राजनीति कीचड़ है। वह राजनीतिक पार्टी बनाने के सख्त खिलाफ थे, लेकिन डेढ़ साल बाद ही केजरीवाल ने अन्ना हजारे की प्रतिज्ञा को धता बताते हुए डेढ़ साल के भीतर ही 2 अक्टूबर 2012 को नई राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा कर दी। अन्ना इस फैसले पर बहुत दुखी हुए थे। अपने गुरु को दुखी करके राजनीति में आए केजरीवाल दिल्ली की जनता को सुखी बनाने का वादा कर रहे थे, लेकिन क्या वाकई दिल्ली की जनता को केजरीवाल की तथाकथित बदलाव की राजनीति का कोई फायदा मिला..?

दिल्ली को छल लिया केजरीवाल ने..?

बदलाव का शंखनाद करते हुए अरविंद केजरीवाल राजनीति के मैदान में उतरे थे। भ्रष्टाचार को खत्म करने के वादे के साथ उन्होंने दिल्ली में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी। दिल्ली ने उन पर अपरंपार प्यार और भरोसा लुटाया, लेकिन दिल्ली की जनता छली गई। मुफ्त बिजली-पानी तो दिल्ली की जनता को मिला, लेकिन वो नहीं मिला, जिसकी उन्हें उम्मीद थी और केजरीवाल ने जिसका उन्हें सपना दिखाया था। सादगी की बात करने वाले, सरकारी बंगला न लेने की कसम खाने वाले केजरीवाल आलीशान महल में रहने लगे, राजनीति में शुचिता, भ्रष्टाचार मिटाने का वादा करके सत्ता में आए केजरीवाल के मंत्री खुद भ्रष्टाचार और व्याभिचार में डूब गए। हम आपको इनकी कहानियां भी तफसील से बताएंगे, लेकिन पहले आपको ये बताते हैं कि केजरीवाल ने दिल्ली से कौन कौन से ऐसे वादे किए थे, जो अब तक पूरे नहीं हो पाए। दस वादे जो पूरे नहीं हुए, इनकी फेहरिस्त जरा आप भी देख लीजिए।

केजरीवाल के वादे तो वादे ही रह गए

जनहित की जगह अपने हित में जुटे केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल ने 2 अक्टूबर 2012 को राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान किया। उसके बाद वह दिल्ली की राजनीति में कूद पड़े थे। उनके बदलाव के वादे पर दिल्ली की जनता लट्टू हो गई थी। यही नहीं, केजरीवाल ने दिलेरी दिखाते हुए नई दिल्ली विधानसभा सीट से तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ पर्चा भर दिया। केजरीवाल ने शीला दीक्षित को 25,864 वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को अप्रत्याशित रूप से 28 सीटें मिलीं, बीजेपी ने 31 सीटें जीतीं, जबकि सत्ताधारी कांग्रेस को सिर्फ 8 सीटों पर संतोष करना पड़ा। जिस कांग्रेस को कोसते हुए केजरीवाल राजनीति में आए थे, उसी के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई और 28 दिसंबर 2013 को उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

अरविंद केजरीवाल सत्ता में यह कहकर आए थे कि वह एक मजबूत और स्थिर सरकार देंगे, लेकिन 49 दिन में ही वह दिल्ली की सत्ता से भाग खड़े हुए। इस्तीफा दे दिए। इसके पीछे कुछ और नहीं, बल्कि उनकी महत्वाकांक्षा थी। दरअसल अरविंद केजरीवाल यह जीत पचा नहीं पाए, दिल्ली के मुख्यमंत्री तो वह बन गए थे। 2014 में लोकसभा चुनाव होने थे और उन्हें प्रधानमंत्री पद के सपने आने लगे। इसी फिराक में उन्होंने 2014 लोकसभा चुनाव में वाराणसी से वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतर गए। यहां बताना जरूरी है कि तब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को आधिकारिक रूप से प्रधानमंत्री का दावेदार घोषित कर दिया था। इस चुनाव में उन्हें मुंह की खानी पड़ी।

अरविंद केजरीवाल को अपनी हैसियत समझ में आई तो दिल्ली की जनता से कान पकड़कर माफी मांगी और कसम खाई कि वह अब दिल्ली के बाहर नहीं जाएंगे। दिल्ली ने उन्हें एक मौका और दिया। 2015 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता ने केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें जिताकर अनमोल तोहफा दे दिया। हालांकि केजरीवाल ने अपनी कसम तोड़ दी, दूसरे राज्यों में पांव फैलाने लगे। 2019 में एक बार फिर दिल्ली में केजरीवाल की सरकार बनी, लेकिन केजरीवाल की प्रतिष्ठा दिल्ली वालों की नजरों में लगातार गिरती रही। उनकी सरकार आरोपों में घिरती रही, यही नहीं केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ा। उनकी जगह आतिशी अब दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं। आरोप है कि अरविंद केजरीवाल इस सरकार के सुपर मुख्यमंत्री हैं। वह इंतजार कर रहे हैं आने वाले विधानसभा चुनावों का। सपने देख रहे हैं कि उनकी पार्टी चुनाव जीते और एक बार फिर वह मुख्यमंत्री बनें।

खुद को कहते थे फकीर और बन गए ‘शीशमहल’ के ‘राजा’

अरविंद केजरीवाल जब सियासत में आए थे तो कसम खाई थी कि मुख्यमंत्री बने तो सरकारी बंगला नहीं लेंगे, लेकिन समय बीता तो राज खुला कि वह सरकारी बंगले में नहीं, बल्कि शीशमहल में रहते हैं। आरोपों के मुताबिक यह शीशमहल भी छोटे-मोटे खर्चे में नहीं, बल्कि 45 करोड़ रुपये में सजकर तैयार हुआ। यह कोई नया भवन नहीं था, बल्कि पुराने भवन की सजावट पर केजरीवाल ने आलीशान और भव्य जीवन जीने के लिए 45 करोड़ रुपये खर्च कर दिए। इस सरकारी भवन का पता है- 6, फ्लैगस्टाफ रोड, सिविल लाइंस, दिल्ली। बीजेपी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के इस शीशमहल पर जो आरोप लगाए हैं, उसमें किस मद में कितना खर्च किया गया है, एक नजर इस पर डाल लीजिए।

इसके अलावा भी केजरीवाल के इस शीशमहल में बने मॉडर्न किचन और वॉशरूम पर भी करोड़ों रुपये खर्च किए गए। इसके बाहरी क्षेत्र में हरियाली और सुंदरता के लिए विशेष व्यवस्था की गई। बीजेपी ने आरोप लगाया कि यह आम आदमी पार्टी के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। वहीं आम आदमी पार्टी ने बचाव करते हुए कहा कि यह मुख्यमंत्री के सरकारी आवास का नियमित नवीनीकरण था, जिसे पहले की सरकारों ने भी किया है। कुछ भी हो, लेकिन इन शीशमहल ने ये बात साबित कर दी कि अरविंद केजरीवाल सिर्फ दिखावे के आम आदमी वाली राजनीति करते हैं। सुविधाओं के भोग में वह किसी से पीछे नहीं हैं।

भ्रष्टाचार मिटाने आए थे, बन गए भ्रष्टाचारी!

आपको क्या लोकपाल शब्द याद है..। जी हां लोकपाल विधेयक को लेकर ही अन्ना हजारे ने आंदोलन किया था और अरविंद केजरीवाल उस आंदोलन के संयोजक थे। लोकपाल विधेयक भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐलाने जंग था, लेकिन जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सत्ता मिली तो वो लोकपालको भूल गई, खुद भ्रष्टाचार के कीचड़ में गर्दन तक धंस गई। इन घोटालों की भी जरा फेहरिस्त देख लीजिए-

1. शराब नीति घोटाला
2021-2022 में नई आबकारी नीति के तहत दिल्ली सरकार ने शराब बिक्री का निजीकरण किया। आरोप है कि इसमें नियमों को ताक पर रखकर ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया। आरोपों के मुताबिक इस घोटाले में 2,873 करोड़ रुपये की हेराफेरी की गई। इस घोटाले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जेल भी जाना पड़ा। फिलहाल ये दोनों जमानत पर रिहा हैं। दोनों को अपने पदों से इस्तीफा देना पड़ा है। हालांकि आम आदमी पार्टी इसे राजनीतिक रंजिश का परिणाम मानती है।

2. स्वास्थ्य विभाग का घोटाला
मोहल्ला क्लीनिक परियोजना में ठेकेदारों को अनुचित भुगतान और घोटाले के आरोप लगे। यह आरोप है कि फर्जी बिल बनाकर सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया।

3. बस खरीद घोटाला
2020 में DTC ने लो फ्लोर बसों की खरीद की, इस खरीद में भी घोटाले के आरोप लगे।

4. डिजिटल शिक्षा सामग्री घोटाला
आम आदमी पार्टी सरकार पर दिल्ली के स्कूलों में डिजिटल शिक्षा सामग्री खरीदने में अनियमितताओं के आरोप लगे। कहा गया कि अत्यधिक कीमत पर सामग्री खरीदी गई। इस मामले में जांच चल रही है।

5. सिग्नेचर ब्रिज घोटाला
2019 में दिल्ली में दिल्ली में सिग्नेचर ब्रिज के निर्माण में लागत बढ़ने और ठेके देने में अनियमितताओं के आरोप लगे।

6. दिल्ली जल बोर्ड घोटाला
2021 में दिल्ली जल बोर्ड में फर्जी बिलिंग और ठेके में अनियमितताओं के आरोप लगे। इस मामले की भी जांच चल रही है।
इसके अलावा आम आदमी पार्टी पर राजनीतिक फंडिंग को लेकर अनियमितताओं और विदेशों से चंदा लेने के आरोप लगे। आरोप ये भी लगे कि सरकार ने शिक्षा के विज्ञापनों पर जरूरत से ज्यादा खर्च किया, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ खास काम नहीं हुआ। केजरीवाल ने राजनीति में परिवारवाद और व्यक्तिगत लाभ लेने को का विरोध किया था, लेकिन केजरीवाल परखुद परिवार के सदस्यों और करीबियों को विशेष लाभ देने का आरोप लगे।

दिल्ली सरकार के मंत्रियों की जेल यात्रा

दिल्ली में करीब 10 वर्षों से आम आदमी पार्टी का राज है और इन 10 सालों में एक ऐसा रिकॉर्ड भी उनके नाम है, जिसे कोई पार्टी भी अपने नाम के आगे दर्ज नहीं कराना चाहेगी। वह रिकॉर्ड है सरकार के मंत्रियों और पार्टियों के विधायकों की जेल यात्रा का। ऐसी सरकार जिसके मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक जेल यात्रा कर चुके हैं।

केजरीवाल की नीति-करो कम और दिखाओ ज्यादा

अरविंद केजरीवाल मीडिया के दम पर सियासत में आए थे, उन्हें प्रजातंत्र और प्रचारतंत्र की ताकत का अच्छे से अंदाजा था। इसी नाते उन्होंने काम पर कम और दिखावे पर ज्यादा ध्यान दिया। सरकार की तारीफ में विज्ञापनों के लिए खजाना खोल दिया। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने 2021 से 2023 तक 1 हजार 106 करोड़ रुपये सरकारी विज्ञापनों पर खर्च कर दिया। उनके सरकार के कई दावे और वादे महज कागजी साबित हुए। दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने आम आदमी पार्टी सरकार के सरकारी विज्ञापनों पर 97 करोड़ खर्च की वसूली का आदेश दिया था। यह आदेश 2016 में बनी सरकारी विज्ञापन नियमन समिति की रिपोर्ट के आधार पर जारी किया गया था। समिति ने पाया था कि कई विज्ञापन सरकारी नियमों का उल्लंघन करते हुए राजनीतिक उद्देश्यों के लिए बनाए गए थे। इसमें से करीब 42.26 करोड़ रुपये का भुगतान पहले ही किया जा चुका था।

2025 में क्या फैसला करेगी दिल्ली की जनता?

दिल्ली की जनता की एक खास बात है, वह भरोसा करती है तो कायदे से करती है। भरोसा टूटता है तो दिल्ली की जनता दंड भी देती है। कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार को 15 साल का वक्त दिया था। इसके बाद केजरीवाल को 10 साल से ज्यादा का राजपाट दिया, उन पर भरोसा जताया, लेकिन सवाल ये है कि केजरीवाल और उनकी टीम जनता के भरोसे पर कितनी खरी उतरी..? केजरीवाल हर बार जनता के बीच जाकर अपने अधूरे वादों को पूरा करने की कसमें खाते रहे और जनता भरोसा करती रही, लेकिन जनता को आखिर मिला क्या..? अब बारी जनता की है। जनता ही तय करेगी कि वो 2025 में एक बार फिर केजरीवाल पर भरोसा जताएगी या फिर दिल्ली की सल्तनत पर किसी और पार्टी की सरकार को काबिज करेगी।

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