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– श्यामदत्त चतुर्वेदी:
जिंदगी…कितना आनंद और मौज है इसमें। हां, कुछ जिम्मेदारियां भी हैं जो जीने के लिए भी आपको कारण देते हैं। हर किसी के पास कोई अपना तो होता है जो उसे सहारा देता है। इसके बाद क्या हो जाता है जब कोई इंसान अपनी जिंदगी को ही खत्म कर देता है। कोई तो बात होगी? जो वो सुनाना, बताना या उस बात की समाधान किसी के साथ करना चाह रहा होगा। शायद उस समय उसको कोई नहीं मिला होगा। उसकी नजर में कोई चारा भी नजर नहीं आया होगा। इसलिए उसने अलविदा कहा।
एक AI इंजीनियर अतुल सुभाष ने बेगलूरू में मौत को गले लगा लिया। फंदे को गले लगाने से पहले अतुल लंबा-चौड़ा सुसाइड नोट और रिकॉर्डेड वीडियो छोड़ गए। इसमें उन्होंने जो कहा उसे लेकर देश में चर्चा शुरू हो गई है। उनके इर्द गिर्द और कई विषयों पर चर्चा हो रही है। साथ ही चर्चा हो रही है ऐसे कदम उठाए जाने के पीछे मौजूद कारणों के बारे में। बात ये भी है कि ऐसे कदम उठाने वालों को कैसे रोका जा सकता है। क्या-क्या कदम हैं जो उठाए जा सकते हैं।
क्या है अतुल सुभाष का मामला?
मूल रूप से बिहार के रहने वाले अतुल सुभाष बेंगलुरु में एक प्राइवेट कंपनी में AI सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे। अतुल के अलावा उनके परिवार में माता-पिता और एक छोटा भाई है। 2019 में उनकी शादी जौनपुर की निकिता सिंघानिया से हुई थी। 2020 में दोनों को बच्चा हुआ और दोनों बेंगलुरु में रहने लगे। 2022 में निकिता अतुल और उनके परिवार के खिलाफ एक-एक करके 9 मामले दर्ज करा देती है। मामलों में 120 बार सुनवाई हुई। इसमें अतुल 40 बार जौनपुर पहुंचे। इसके बाद उन्होंने 9 दिसंबर 2024 को अपनी जीवन लीला ही खत्म कर ली।
अतुल ने एक वीडियो जारी किया इसमें वो कह रहे हैं ‘मुझे लगता है कि मेरे लिए मर जाना ही बेहतर होगा, क्योंकि जो पैसे मैं कमा रहा हूं उससे मैं अपने ही दुश्मन को बलवान बना रहा हूं। मेरे ही टैक्स के पैसे से ये अदालत, ये पुलिस और पूरा सिस्टम मुझे और मेरे परिवार और मेरे जैसे और भी लोगों को परेशान करेगा।’ 120 मिनट के वीडियो में अतुल ने पत्नी से प्रताड़ित, जज पर घूस मांगने का आरोप, ससुराल वालों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने एक लंबा चौड़ा पत्र भी लिखा है जिसका टाइट ‘जस्टिस इज ड्यू’ नाम दिया है। अब इसे लेकर देश में चर्चा होने लगी है।
अतुल की उम्मीद…
अतुल सुभाष का मामला कोई अकेला नहीं है। भारत में आंकड़े बताते हैं कि हर आयु वर्ग के पुरुषों में आत्महत्या के ज्यादा मामले आते हैं। आंकड़े कोई ताजा नहीं है। ये NCRB के रिपोर्ट में है। हालांकि, इनपर कभी चर्चा नहीं होती थी। अतुल ने जाते-जाते इस गंभीर मामले को लेकर किताब का पन्ना पलटा दिया है और जाते जाते उम्मीद जताई है कि एक दिन न्याय होगा।
भारत में आत्महत्या बड़ा मुद्दा
2022 में 171,000 मामले दर्ज किए गए। ये 2021 की तुलना में 4.2% ज्यादा थे। वहीं 2018 की तुलना में ये 27% ज्यादा थे। साल 2022 के आंकड़े बताते हैं कि प्रति 10 लाख लोगों में से 12 व्यक्ति आत्महत्या कर रहे हैं। इन्हीं आंकड़ों के कारण भारत दुनिया में दर्ज किए जाने वाले ऐसे मामलों में करीब 30 फीसदी का योगदान रखता है। इसमें 36 फीसदी महिलाएं और 24 फीसदी पुरुष हैं।

जिम्मेदारी की उम्र काटना सबसे कठिन
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि भारत में आत्महत्या के मामलों में 30 से 45 वर्ष की आयु के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। ये वही उम्र है जब इंसान के ऊपर कई जिम्मेदारियां होती हैं। आंकड़े ये जाहिर करते हैं की भारत में महिलाओं की तुलना में पुरुषों पर अधिक तनाव है। एक और गंभीर आंकड़ो ये भी है कि साल 2021 में कुल 1,09,749 विवाहित लोगों ने आत्महत्या की थी। इसमें से 74 प्रतिशत पुरुष थे।

NCRB की रिपोर्ट बताती है कि 2021 में लगभग 33.2% पुरुषों ने पारिवारिक समस्याओं और 4.8% ने वैवाहिक समस्याओं की वजह से आत्महत्या की। 2021 में देशभर में 1.64 लाख से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की। इसमें 81 हजार से ज्यादा लोग विवाहित पुरुष थे और लगभग 28 हजार विवाहित महिलाएं थीं।
आत्महत्या के कारण
NCRB के रिपोर्ट की माने तो सबसे ज्यादा आत्महत्या पारिवारिक समस्याओं के कारण होती है। वहीं बीमारी जीवन खत्म करने की दूसरी मजबूरी है। जबकि, नशे की लत आत्महत्या के लिए मजबूर करने के मामले में तीसरे नंबर पर आती है। शादी से जुड़ी समस्याओं को लेकर भारत में 4.8 फीसदी और लव अफेयर के कारण 4.5 फीसदी लोग आत्महत्या करते हैं। जबकि, 0.5 फीसदी आत्महत्याओं के पीछे अवैध संबंध होते हैं।

अंग्रेजी की एक लेखिका करेन हॉवर्ड एक कविता है ‘इफ ओनली’। जिसमें वो उस शख्स के दर्द को बता रही हैं जो अपने किसी खास को खो देता है और मामला होता है कि काश वो वहां होता।

खैर करेन ने अपने किसी सगे या अपने आसपास के अनुभवों पर लिखा होगा। पर उनकी पंक्तियों से जाहिर है कि काश उस समय कोई वहां होता तो वो शख्स दुनिया में होता। उसके इस कमद उठाने की कोशिश का असल कारण भी पता चल पाता। समझा जा सकता की उसकी मनः स्थिति क्या है और उसका हल क्या हो सकता है?
शादी, अफेयर, अवैध संबंध तीनों ही मामले कही न कही परिवारिक समस्याओं से जुड़े हैं। इस हिसाब दे देखें तो देश में 41.5 फीसदी आत्महत्या परिवार यानी आपनों के कारण ही होती हैं। ऐसे में सवाल सबसे बड़ा ये है कि जब सहारे देने वाले ही कारण हैं तो मामले रुकेंगे कैसे।
10 में से 7 पुरुष कर रहे हैं आत्महत्या
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में आत्महत्या करने वाले हर 100 लोगों में से 70 पुरुष होते हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 में भारत में 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 1,18,989 यानी 73% पुरुष थे। जबकि 4,50,26 सिर्फ़ महिलाएं थीं। इन आंकड़ों के अनुसार, हर 5 मिनट में एक पुरुष ने आत्महत्या की है।
दहेज कानून पर होने लगी चर्चा
अतुल सुभाष की खुदकुशी ने देश को झकझोर दिया है। उनके इस कदम ने न सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा किया है। बल्कि, दहेज कानून के गलत इस्तेमाल पर भी चर्चा शुरू कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी दहेज उत्पीड़न जैसे मामलों पर सावधानी बरतने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि पति और रिश्तेदारों को ऐसे मामलों में झूठे तरीके से भी फंसाया जाता है। उनको अनावश्यक परेशानी से बचाना चाहिए।
सबसे ज्यादा दहेज के मामले
NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, दहेज मांगने के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और राजस्थान से आते हैं। साल 2020 में दहेज निषेध कानून के तहत देश में कुल 13,479 मामले दर्ज किए गए थे। वहीं इसमें से दहेज उत्पीड़न के 297 मामले फर्जी थे। संसद में दी गई जानकारी के अनुसार, साल 2022 में 365, साल 2021 में 418, साल 2020 में 297, साल 2019 में 462 दहेज प्रताड़ना के झूठे मामले दर्ज किए गए थे।

झूठे मामलों के आंकड़े
दहेज में आत्महत्या के मामले में महिलाओं के आंकड़े ज्यादा हैं। NCRB के आंकड़े बताते हैं कि हर साल दहेज को लेकर हजारों महिलाओं की मौत हो जाती होती है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में दहेज हत्या के 6,450 मामले दर्ज किए गए थे। इस हिसाब से दहेज की वजह से हर दिन औसतन 18 महिलाओं की मौत हो जाती है।
दबाव में अदालतें
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 15 दिसंबर 2023 में लोकसभा में जानकारी देते हुए बताया था कि 1 दिसंबर 2023 तक देशभर की अदालतों में 5 करोड़ 8 लाख 85 हजार 856 केस सुनवाई के लिए बाकी हैं। इनमें से 61 लाख से ज्यादा केस 25 हाईकोर्ट्स में पेंडिंग हैं। जिला अदालतों में तो 4.4 करोड़ लंबित मामले हैं। इनमें से 70% मामले 5 साल से ज्यादा समय से पेंडिंग हैं।
सवालों के घेरे में कानून क्यों?
भारत में दहेज लेना और देना दोनों को IPC की धारा 498A वर्तमान में BNS की धारा 85 और 86 में कवर किया जाता है। हालांकि, परिवार में सारे विवाद केवल दहेज के कारण नहीं होते हैं। इसके पीछे और भी बहुत से कारण होते हैं। उनके लिए इस कानून में कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में सबक सिखाने के इरादे से दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज करा दिया जाता है। इसके प्रावधान इतने सख्त हैं कि इसमें प्रूफ ऑफ बर्डेन पुरुषों पर होता है। महिला केस दर्ज कराकर फुरसत हो जाती है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी 10 दिसंबर को कहा है कि किसी ठोस सबूत के घरेलू उत्पीड़न के आरोप किसी क्रिमिनल केस का आधार नहीं बन सकते है।
बचाया जा सकता है जीवन
आत्महत्या के विचारों और व्यवहारों को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। आत्महत्या, अवसाद, और चिंता जैसे मुद्दों पर खुलकर बात करना चाहिए। पेशेवरों, शिक्षकों या से मदद लेने में झिझक नहीं करना चाहिए। लोगों को सामाजिक अलगाव को कम करने की कोशिश करना चाहिए। परिवार में हमेशा कोशिश करना चाहिए की एक दूसरे से बात हो और एक दूसरे से समस्याओं का आदान प्रदान हो।
किसी संकट की स्थिति में तुरंत पेशेवर मदद लें। जब तक सहायता न मिले, संबंधित व्यक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करें और सतर्क रहें। जागरूकता और सही कार्रवाई जीवन बचा सकती है। अगर आपके आसपास कोई ऐसा व्यक्ति है तो आप टाटा समूह के iCall- 9152987821 और किसी भी तरह की काउंसलिंग के लिए इसके साथ आप तत्कालिक सहायता के लिए डायल 100 और 181 पर कॉल कर सकते हैं।