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बुंदेलखंड का ‘वाटर हीरो’, खून को पसीने की तरह बहाकर पानी की हर बूंद बचाने के ‘मिशन’ पर निकला ‘रिसर्च स्कॉलर’

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गोपाल शुक्ल:

साल था 1971 राजस्थान की पृष्ठभूमि पर एक फिल्म बनी थी। नाम था ‘दो बूंद पानी’। यह फिल्म पानी की कमी और आखिर में एक बांध के निर्माण की कहानी पर आधारित थी। गांव के एक नौजवान बांध पर काम करने जाता है, लेकिन वहां उसकी जान चली जाती है। वह अपने पीछे अपनी विधवा और एक छोटे बेटे को गांव में छोड़ जाता है। उसके इस त्याग और बलिदान से रेगिस्तानी की बंजर होती जमीन को उपजाऊ जमीन में बदलने में मदद मिलती है जिसे नाम दिया जाता है गंगा सागर।

50 साल पुरानी फिल्म में दिखा आज का दर्द

इस फिल्मी को बने 50 साल हो चुके हैं, लेकिन बीते 50 सालों के दौरान गंगा में बहुत सारा पानी बह गया। मगर एक कड़वा सच ये भी है कि जिस पानी की कमी की समस्या से उस वक्त देश का एक हिस्सा जूझ रहा था, आज वही समस्या पूरे देश के लिए मुसीबत का सबब बनी हुई है। शायद इसी लिए एक बार फिर जमाने के सामने दो बूंद पानी फिल्म वाला गंगा सिंह सूरत और सीरत बदलकर जमाने के सामने आकर खड़ा हुआ है। इस मसीहा का नाम राम बाबू तिवारी है। बुंदेलखंड के एक छोटे से गांव अधांव में जन्मे राम बाबू तिवारी को पूरे देश में वाटर हीरो की पहचान मिल चुकी है।

एक मटकी पानी की तुलना पत्नी करती है सुहाग से

राम बाबू बुंदेलखंड के जिस इलाके से आते हैं वहां पानी की जबरदस्त किल्लत रहती है। उस इलाके में पानी की इतनी कमी है कि वहां की औरतें एक मटकी पानी की तुलना सीधे-सीधे अपने सुहाग तक से कर डालती हैं। राम बाबू तिवारी का पूरा बचपन पानी की एक एक बूंद के लिए जूझते हुए बीता है।

बचपन में ही हुआ पानी की अहमियत का अंदाजा

राम बाबू तिवारी को बचपन से ही पानी की अहमियत का अंदाजा हो गया था। लेकिन राम बाबू को ये अहमियत कैसे समझ में आई इसकी एक बेहद जज्बाती कहानी है। असल में राम बाबू के किसी पहचान वाले का निधन हुआ, तो मान्यता के अनुसार सभी लोगों को श्मशान से लौटकर नहाना जरूरी था, लेकिन पूरे गांव में पानी नहीं था। तब नहाने के लिए राम बाबू के पूरे परिवार को तपती धूप में पसीना बहाते हुए तीन किलोमीटर दूर दूसरे गांव जाना पड़ा। वहां से जब राम बाबू और उसके परिवार के लोग पानी लाए तब घरवालों ने रिवाज के मुताबिक स्नान किया। उस दोपहर का वो संघर्ष रामबाबू अब तक नहीं भूल सके।

जिंदगी में पहली बार शॉवर से नहाया

सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के एक छोटे से गांव अधांव से निकलकर राम बाबू तिवारी दसवीं के बाद जब पढ़ने के लिए शहर गए और वहां हॉस्टल में रहने लगे तब उन्होंने अपनी जिंदगी में पहली बार शॉवर से नहाया। लेकिन शहर में शॉवर से बर्बाद होते पानी को देखकर राम बाबू बेचैन हो गए। क्योंकि रामबाबू शहर आने के बाद भी ये कभी नहीं भूल सके कि उनके गांव के लोग किस तरह एक एक बूंद पानी के लिए तरसते हैं। अपने दिल की इस तकलीफ को लेकर जब राम बाबू ने अपने दोस्तों से बात की तो दोस्तों ने कहा पानी बचाना है तो गांव में जाकर बचाओ।

‘पानी चौपाल’ की शुरुआत

बस इस एक जुमले ने राम बाबू तिवारी की मंजिल और मकसद सब बदल दिया। राम बाबू ने छुट्टी वाले दिनों में गांव जाकर पानी बचाने का काम करना शुरू किया। उन्होंने इलाके के कुछ दोस्तों के साथ मिलकर सबसे पहले एक पानी चौपाल बनाई। इस चौपाल का एक ही मकसद था, जैसे भी हो गांव और उसके आस पास के लोगों को पानी के प्रति जागरूक करना। इसके बाद राम बाबू अपने दोस्तों के साथ गांव-गांव जाकर पानी की चौपाल लगाने लगे। पानी चौपाल के जरिए राम बाबू लोगों को जोड़ने की कोशिश में लग गए। वक्त बीतता रहा, और राम बाबू पानी बचाने की धुन में लगे रहे। देखते ही देखते रामबाबू ने गांव और उसके आस पास एक ऐसा माहौल खड़ा कर दिया कि लोग आपने आस-पास की झीलों तालाबों के बारे में बात करने लगे। गांव के लोग इस कदर प्रेरित हुए कि खुद अपने हाथों से ही गांव के गढ़ी और तालाबों को साफ और सुरक्षित बनाने की कोशिश में लग गए।

5000 से ज्यादा जल मित्र बनाए

वक्त लगा, मगर रामबाबू रुके नहीं। बिना थके और बिना रुके वो बुंदेलखंड में घूमघूमकर लोगों को पानी की बर्बादी से बचाने के मिशन को आगे बढ़ाते रहे। अपने चंद दोस्तों के साथ इस अभियान में लगे राम बाबू तिवारी ने कुछ ही दिनों में पूरे बुंदेलखंड के इलाके में 5000 से ज्यादा जल मित्र बना डाले।

धार्मिक कार्यक्रमों से मिली मदद

सवाल उठता है कि आखिर राम बाबू तिवारी ने इस असंभव से लगने वाले काम को किया तो कैसे किया? असल में राम बाबू के इस मिशन को सबसे ज़्यादा ताकत मिली धार्मिक कार्यक्रमों से। जागरूकता लाने के लिए उन्होंने धार्मिक कार्यक्रम से लेकर नुक्क्ड़ नाटक तक सब कुछ किया। लोगों को भंडारा खिलाकर श्रम दान से जोड़ा और इस तरह 10 साल की मेहनत के बाद बुंदेलखंड के 75 तालाबों का पुनः निर्माण करने में कामयाब हो गए। राम बाबू की मेहनत अब बरसात में दिखाई पड़ती है जब तालाबों में बारिश का पानी जमा हो जाता है। उस पानी का इस्तेमाल गांव के लोग पूरा साल करते हैं।

सवाल यहां ये जरूर खड़ा होता है कि आखिर बुंदेलखंड के इलाके में पानी का इतना संकट है क्यों? क्या इसके बारे में सरकार को कुछ पता है या नहीं?

हर गुजरते दिन के साथ गहरा होता संकट

सवाल जरूर आपके जेहन को मथ रहा होगा कि आखिर राम बाबू की ये कोशिश क्यों हम सबके लिए जरूरी हो जाती है? आखिर राम बाबू ने जो कुछ किया उसका क्या फायदा हो सकता है? उसको समझने के लिए हमें हिन्दुस्तान की हर गुजरते दिन के साथ गहरी होती जा रही इस समस्य़ा को गहराई से समझने की जरूरत है।

दो तिहाई पानी तो ग्लेशियल में कैद है

पूरी दुनिया में पानी का केवल 3% ही मीठा पानी है। इस मौजूद मीठे पानी का दो-तिहाई हिस्सा जमे हुए ग्लेशियरों के तौर पर मौजूद है, जाहिर है वो हम सबके लिए मौजूद नहीं है। आज की जमीनी सच्चाई ये है कि पूरी दुनिया में करीब 1.1 अरब लोगों को पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। ये बात और आंकड़ा चौंका भी सकता है कि दुनिया में कुल 2.7 अरब ऐसे लोग हैं जिन्हें साल में कम से कम एक महीने पानी की कमी का सामना करना पड़ता है।

49 अरब लीटर पानी रोज होता है बर्बाद

जहां तक सवाल भारत का है तो देश में पानी की कमी से करोड़ों लोग प्रभावित हैं। भारत में हर दिन 49 अरब लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। आबादी के एक बड़े हिस्से के पास अपनी दैनिक जरूरतों के लिए भी पानी नहीं है। हिन्दुस्तान का चेन्नई दुनिया के उन चंद शहरों में से एक है जो गर्मियों के दिनों में पूरी तरह से सूखा शहर घोषित हो चुका है। जून 2019 में, भारत के 65% जलाशयों में सामान्य से कम जल स्तर की सूचना मिली थी और जिसमें से 12% पूरी तरह से सूख चुके थे।

यूं तो भारत को नदियों का देश भी कहा जाता है। लेकिन किताबी इबारतों से निकलकर अगर हकीकत की जमीन पर नज़र डालें तो यही नदियों का देश आज गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, और बेलगाम औद्योगिक विकास ने इस संकट को और भी ज्यादा गहरा कर दिया है। पानी की कमी केवल पीने योग्य जल की समस्या नहीं है बल्कि यह कृषि, उद्योग और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को भी जन्म दे रहा है।

भारत में पानी की कमी

हिन्दुस्तान के ज्यादातर इलाके इस वक्त पानी की बेतहाशा कमी की वजह से जूझ रहे हैं। अक्सर देखा जाता है कि गरमी के मौसम में शहर भर को पानी पिलाने वाले जलाशय पूरी तरह से सूख जाते हैं। जबकि बाढ़ का पानी भी हिन्दुस्तान के लोगों को तबाह और बर्बाद करने के लिए ही आता है, उस पानी का भी कहीं कोई इस्तेमाल नहीं हो पाता। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उड़ीसा भारत का सबसे बड़ा जल संसाधन वाला राज्य है।

1. पानी की उपलब्धता के आंकड़े

विश्व स्तर पर: भारत दुनिया की 18% जनसंख्या का घर है, लेकिन यहां केवल 4% ताजे पानी का संसाधन उपलब्ध है। पिछले 70 सालों में प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता 1951 में 5,177 घन मीटर थी, जो 2019 में घटकर 1,545 घन मीटर रह गई थी। इसकी वजह से जल तनाव का संकेत और संकट खड़ा हो गया था। एक अनुमान के मुताबिक साल 2030 तक भारत में जल मांग उपलब्ध जल संसाधनों की तुलना में दोगुनी हो सकती है। जल शक्ति मंत्रालय के मुताबिक, साल 2021 में भारत में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल उपलब्धता 1,486 क्यूबिक मीटर थी. साल 2031 तक यह घटकर 1,367 क्यूबिक मीटर हो सकती है।

2. सूखा और जल संकटग्रस्त क्षेत्र

भारत के लगभग 21 शहर, जिनमें दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, और चेन्नई प्रमुख हैं, 2025 तक भूजल के पूरी तरह सूख जाने की आशंका जताई जा चुकी है। नीति आयोग की रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, इस समय देश में 60 करोड़ लोग अत्यधिक जल तनाव का सामना कर रहे हैं। जबकि 12% आबादी पहले से ही शुद्ध पानी की पहुंच से दूर है।

3. भूजल दोहन

नदियों का देश होने के बावजूद भारत दुनिया में सबसे ज्यादा भूजल का उपयोग करता है, जिसमें 90% भूजल सिंचाई के लिए और 10% घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए किया जाता है।

केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट (2020) के मुताबिक, भारत के 64% जिलों में भूजल स्तर खतरनाक रूप से गिर चुका है।

पानी की कमी का असर

1. कृषि पर प्रभाव

भारत की 60% कृषि मानसून पर निर्भर है। जल संकट के कारण फसल उत्पादन घट रहा है। 2019 में, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में सूखे के कारण लाखों किसानों ने फसल बर्बादी का सामना किया।

2. स्वास्थ्य समस्याएं

प्रदूषित पानी के इस्तेमाल से डायरिया, हैजा और दूसरी पानी से जुड़ी बीमारियां फैल जाती हैं। भारत में हर साल 2 लाख से ज्यादा मौतें असुरक्षित पानी और खराब स्वच्छता की वजह से होती हैं।

3. आर्थिक प्रभाव

जल संकट के कारण उद्योगों का उत्पादन घट रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था को जल संकट से हर साल लगभग 6% जीडीपी का नुकसान होता है।

4. पर्यावरणीय प्रभाव

जल स्रोतों का सूखना और नदियों में पानी की कमी से जलीय जीवन संकट में है। गंगा, यमुना जैसी प्रमुख नदियों का प्रवाह घट रहा है।

सवाल यही उठताा है कि इस हर रोज गहरी होती समस्या से निपटने के लिए क्या क्या किया जा सकता है। यह समय है कि हम सभी जल को बचाने और सतत विकास के लिए सामूहिक प्रयास करें। यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियां इस प्राकृतिक संसाधन के लिए संघर्ष करेंगी।

पानी की कमी से निपटने के उपाय

1. वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting)

  • वर्षा जल का संग्रहण और भंडारण जल संकट का स्थायी समाधान हो सकता है।
  • तमिलनाडु इसका प्रमुख उदाहरण है, जहां वर्षा जल संचयन को अनिवार्य किया गया है।

2. सिंचाई में जल दक्षता

  • ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसे जल-संवेदनशील तरीकों को अपनाना।
  • जल की बचत के लिए “पर ड्रॉप मोर क्रॉप” जैसी योजनाओं को बढ़ावा देना।

3. भूजल पुनर्भरण (Groundwater Recharge)

  • जलस्तर बढ़ाने के लिए जल पुनर्भरण प्रणाली का विकास।
  • सूखे तालाबों और झीलों को पुनर्जीवित करना।

4. नदी पुनर्जीवन परियोजनाएं

  • गंगा पुनर्जीवन परियोजना और यमुना क्लीनअप जैसे कदम।
  • नदियों को जोड़ने की योजनाओं पर काम करना।

5. जन जागरूकता और शिक्षा

  • जल बचाने के लिए सामुदायिक जागरूकता अभियान।
  • स्कूलों और कॉलेजों में जल संरक्षण पर पाठ्यक्रम।

भारत में पानी की कमी एक गंभीर चुनौती है, लेकिन सामुदायिक भागीदारी, प्रभावी जल प्रबंधन, और आधुनिक तकनीकों के उपयोग से इसे दूर किया जा सकता है। ये सभी का दायित्व भी है कि जल को जीवन मान कर उसे बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करें। ऐसे में आज देश को राम बाबू जैसे Water Hero की ही बेहद जरूरत है।

Author

  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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