Getting your Trinity Audio player ready...
|
– गोपाल शुक्ल:
रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई
यह शेर जाने माने शायर कैफ़ी आज़मी साहब का है, लेकिन आज ये शेर तब याद आ गया जब सुना कि हिन्दुस्तान की शान, भारतीय संगीत की बेमिसाल पहचान उस्ताद ज़ाकिर हुसैन अब हमारे बीच नहीं रहे।
चाय के ब्रांड को अमर कर दिया
आज की पीढ़ी टीवी के पर्दे पर आने वाले उस विज्ञापन से शायद कम परिचित हो, जब दुनिया भर में अपने तबले की थाप से दिल जीतने वाले उस्ताद जाकिर हुसैन स्क्रीन पर नज़र आते थे। तबले पर कुछ मुश्किल से बोल निकालते थे, और फिर चाय की एक चुस्की लेते हुए कहते थे, वाह ताज कहिए उस्ताद! अपने संगीत की विरासत के साथ-साथ ताजमहल चाय के ‘वाह ताज’ अभियान में एक अहम भूमिका निभाने वाले उस्ताद जाकिर हुसैन ने चाय के उस ब्रांड को अमर बना दिया। अपनी उंगलियों की थिरकन से पूरी दुनिया की हर पीढ़ी की रगों में तबले के बोलों को उतारने वाले सुपर उस्ताद जाकिर हुसैन का 73 साल की उम्र में निधन हो गया।
अमेरिका के अस्पताल में ली आखिरी सांस
73 साल की उम्र में जाकिर हुसैन ने अमेरिकी शहर सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। पिछले काफी अरसे से जाकिर हुसैन ब्लड प्रेशर की बीमारी से जूझ रहे थे। परिवार के मुताबिक, ‘इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस’ के कारण होने वाली मुश्किलों और तकलीफ की वजह से जाकिर हुसैन का सोमवार तड़के निधन हो गया।
महज तीन साल की उम्र में दिखा दिया था जलवा
सच कहा जाए तो संगीत की दुनिया में जाकिर हुसैन को वंडर बॉय के नाम से जाना जाता था। पिछले साढ़े छह दशक से जाकिर हुसैन अपना तबले का हुनर घूम घूमकर पूरी दुनिया को दिखा भी रहे थे और सुना भी रहे थे। कहते हैं न पूत के पांव पालने में ही नज़र आ जाते हैं, जाकिर हुसैन की उंगलियों ने बचपन से ही तबले पर अपना जादू दिखाना शुरू कर दिया था। जिस उम्र में लोग ढंग से कपड़े तक पहनना नहीं सीख पाते जाकिर हुसैन ने महज तीन साल की उम्र में दुनिया को अपने हुनर से रुबरू करवा दिया था।
तबले की जीती जागती आत्मा बने जाकिर हुसैन
जाकिर हुसैन सिर्फ एक कलाकार नहीं थे, बल्कि तबले की जीती जागती आत्मा थे। उनके हाथों में यह तबला ऐसा लगता जैसे वह कोई जिंदा इंसान हो, जिसे वो बजा नहीं रहे बल्कि सहला सहलाकर उससे बात कर रहे हों। हर थाप किसी एहसास की तरह सुनाई देती। चाहे वह राग की संगत हो या कोई मुश्किल बंदिश, जाकिर हुसैन ने हर बार यह साबित कर दिखाया कि संगीत सिर्फ साधना नहीं, बल्कि डूब जाने वाली भक्ति है।

तबले के बोल बन गए श्लोक
उनके तबले से झरते धा तिरकिट धिन और कटा धिन तिरकिट धा के बोल, जैसे किसी प्राचीन संस्कृत श्लोक की तरह गूंजते। उनके वादन में कभी तेज हवाओं की गूंज होती तो कभी धीमी बारिश की फुहार। उनके तबले ने संगत में गायकों और वादकों को सिर्फ सहारा नहीं दिया, बल्कि उन्हें और अधिक ऊंचाई पर पहुंचाया।
वो कला जिसने उस्ताद की उंगलियों से पायी संजीवनी
हर थाप में बसी थी दास्तान उनकी,
उनके सुरों में खुदा का इम्तिहान था।
सुरों की धरती पर जब पहली बार किसी ने तबले को बोलने का हुनर दिया, तो वह कला उस्ताद जाकिर हुसैन की उंगलियों ने संजीवनी पा ली। एक ऐसा तबलावादक, जिसने सिर्फ वादन नहीं किया, बल्कि तबले को आत्मा के संवाद में तब्दील कर दिया। आज उनकी रूह का संगीत अनंत आकाश में गूंज रहा है, लेकिन उनके थापों की अनुगूंज इस धरती पर सदियों तक सुनाई देती रहेगी।
कानों में दुआ की जगह तबले के बोल सुनाए थे पिता ने
9 मार्च 1951 को मुंबई में जन्में जाकिर हुसैन के पिता उस्ताद अल्लाह रक्खा कुरैशी खुद तबले के उस्ताद थे। संगीत की दुनिया में उनका अलग ही रुआब और अलग ही रुतबा हुआ करता था। 20वीं सदी के सबसे मशहूर तबलावादकों में से एक उस्ताद अल्लारक्खा कुरैशी ने जब अपने बेटे को गोद में लिया था तो कान में कुरान की आयत नहीं पढ़ी, बल्कि तबले के बोल कहे। अल्लाह रक्खा को ऐसा करते देख जाकिर हुसैन की मां काफी नाराज हुईं और बोलीं कि आपको दुआ कहनी चाहिए न कि तबले के बोल। खुद जाकिर हुसैन ने एक इंटरव्यू में ये बात दुनिया को बताई थी कि उस वक्त उनके पिता ने अपनी पत्नी की नाराजगी को दूर करते हुए कहा, मैं ऐसे ही दुआ पढ़ता हूं, यही मेरी दुआ है। मैं देवी सरस्वती और भगवान गणेश का उपासक हूं। तबले की ये तालें ही मेरी आयत है। ये सारी बात एक मुसलमान अल्लाह रक्खा ने कही तो उनकी पत्नी का गुस्सा एक झटके में खत्म हो गया। दुनिया जानती है कि वही बच्चा जब बड़े होकर जाकिर हुसैन बना तो संसार में उसके तबले की थाप गूंजती सुनाई पड़ी।
मंच पर उस्तादों के साथ जुगलबंदी का सिलसिला
मुंबई के सेंट माइकल हाई स्कूल में पढ़ने वाले जाकिर हुसैन ने सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। मगर तबले के साथ स्टेज पर आने के लिए उन्हें अपनी पढ़ाई को पूरा करने तक का इंतजाम नहीं करना पड़ा। क्योंकि पिता के साथ बचपन से संगत करते करते वो जवान होते होते इतने पारंगत हो गए थे कि अब वो अपने पिता के ही साथ जुगलबंदी करने लगे थे। पिता से ही तबला के गुर सीखे और पढ़ाई पूरी होने से पहले ही वो बड़े बड़े संगीत समारोह में शिरकत करने लगे थे। देखते ही देखते जाकिर हुसैन उस्तादों में गिने जाने लगे। अमेरिका से लेकर यूरोप तक को उन्होंने अपने तबले का दीवाना बना दिया था।

तबले के बोल से करते थे संवाद
जाकिर हुसैन की सबसे खास बात यही थी कि वह अपने दर्शकों के साथ तबले के जरिए संवाद करते थे। तबले पर तरह तरह के बोल निकालकर सीधे अपने श्रोताओं और दर्शकों के दिलों में जाकर अपना बसेरा कर लिया करते थे। जिस किसी ने भी एक बार उनका तबला सुना वो दीवाना हो गया। फिर चाहें वो छोटा हो या बड़ा। किशोर हो या जवान मर्द औरत कोई भी है, किसी भी मुल्क का ही क्यों न हो, उनका तबला ही उनकी जुबान होता था और वो हरेक से उसी जुबान में बात करते थे।
पांच रुपये की बोहनी, 5 लाख तक का सफर
उन्होंने महज 12 साल की उम्र में अमेरिका में अपनी पहली परफॉर्मेंस दी थी, जिसके लिए उन्हें 5 रुपये बतौर नजराना मिले थे। मीडिया की रिपोर्ट्स की मानें तो इस छोटी शुरुआत के बाद उनका नाम दुनियाभर में ऐसा मशहूर हुआ कि उनके एक कंसर्ट की फीस 5 से 10 लाख रुपये तक पहुंच गई।
आह ताज से वाह ताज तक
1966 में कोलकाता से शुरू हुए ब्रुक बॉन्ड ताजमहल चाय ब्रांड को घर-घर तक पहुंचाने का बड़ा श्रेय जाकिर हुसैन को भी जाता है। शुरुआत में यह ब्रांड ‘आह ताज’ टैगलाइन पर केंद्रित था, लेकिन इसका जुड़ाव भारतीय संस्कृति से नहीं हो पा रहा था। तब हिंदुस्तान यूनिलीवर ने इसे फिर से ब्रांडिंग करने का फैसला लिया, तो जाकिर हुसैन को इसके चेहरे के रूप में चुनने का इरादा किया गया। दरअसल तब तक जाकिर हुसैन दुनिया भर में तबले और हिन्दुस्तानी संगीत का एक बड़ा नाम बन चुके थे। उनकी कला, उनका व्यक्तित्व, और आधुनिकता का उनका संगम ताजमहल चाय के तीन अहम पहलुओं रंग, खुशबू, और स्वाद के लिए बिल्कुल परफेक्ट पाया गया।
अरे हुजूर, वाह ताज बोलिए
ताजमहल चाय का पहला ऐतिहासिक विज्ञापन आगरा के विश्व प्रसिद्ध ताजमहल के सामने शूट किया गया। जाकिर हुसैन अपने तबले की थाप पर चाय का आनंद लेते नजर आते हैं। जब उनकी कला की प्रशंसा में कहा जाता है, वाह, उस्ताद वाह!’ तो वे मुस्कुराते हुए जवाब देते हैं, ‘अरे हुजूर, वाह ताज बोलिए।’ यह जुमला भारतीय चाय प्रेमियों के बीच ऐसा लोकप्रिय हुआ कि ताजमहल चाय की पहचान बन गया। इस विज्ञापन ने ताजमहल चाय को प्रीमियम ब्रांड के रूप में स्थापित कर दिया। जाकिर हुसैन की तबले की थाप और उनकी परफेक्शन ने इस ब्रांड को ऐसा ऊंचा मुकाम दिलाया, जो आज भी याद किया जाता है। यह महज एक ऐड सिर्फ चाय का प्रचार नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक अनुभव था जिसने भारतीय बाजार में शास्त्रीय संगीत को हिन्दुस्तान में आम लोगों से लाकर जोड़ दिया।
बड़े बड़े उस्तादों को बनाया अपना दीवाना
जाकिर हुसैन महज 12 साल की उम्र में बड़े ग़ुलाम अली, आमिर खां, ओंकारनाथ ठाकुर के साथ तबला बजा रहे थे। इतने महान कलाकारों के साथ इतनी कम उम्र में तबला बजाना उनके बेमिसाल हुनर की कहानी अपने आप बयां कर देती है। 16-17 साल की उम्र में उन्होंने पंडित रविशंकर, अली अकबर खान के साथ तबला बजाया। इसके बाद अगली पीढ़ी पंडित हरि प्रसाद चौरसिया, पंडित शिव कुमार शर्मा, अमज़द अली खान के साथ और फिर शाहिद परवेज़, राहुल शर्मा, अमान-अयान के साथ भी तबला बजाया।
तबले की जुगलबंदी में अपने ही उस्ताद को हराया
दूरदर्शन के दौर में एक बार एक जुगलबंदी का कार्यक्रम हुआ था। जिसमें जाकिर हुसैन ने तबले पर अपने ही उस्ताद और पिता अल्लाह रक्खा खान के साथ जुगलबंदी की थी। वो मंजर हिन्दुस्तान के जिस भी संगीत प्रेमी ने देखा तो फिर उसे भूल नहीं सका। संगीत की विरासत को अपनी रगों में लहू की तरह संजोने वाले जाकिर हुसैन देश के उन चुनिंदा फनकारों में से एक थे जिन्होंने दुनिया के मंच पर न सिर्फ भारतीय शास्त्रीय संगीत के सम्मान में चार चांद लगाए, बल्कि ताल वाद्यों की दुनिया में तबले को एक आला मुकाम दिलवा दिया।

उंगलियों की थिरकन देख बिजलियां भी शरमा जाएं
साल 1973 में जाकिर हुसैन ने अपना पहला एलबम ‘लिविंग इन ‘द मैटेरियल वर्ल्ड’ लॉन्च किया। इसके बाद जाकिर हुसैन ने ठान लिया था कि वह तबले की आवाज को दुनिया भर में पहुंचाएंगे। कहते हैं न जहां चाह, वहां राह। सो जाकिर हुसैन ने पूरी दुनिया को अपने तबले की तिरकिट पर फिरकी का नाच नचाया है। संगीत के कुछ उस्तादों का तो जाकिर हुसैन के लिए यहां तक कहना था कि वो इतना बड़ा फन्नेखां है कि उसकी उंगलियां बिजली की गति से तबले पर थिरकती हैं, लेकिन वो तबले पर ऐसे बोलती हैं जैसे हम और आप आपस में बात कर रहे हों। अक्सर उनके किसी भी शो में एक कार्यक्रम ये जरूर रहता था कि जाकिर हुसैन दर्शकों से जब बात कर रहे होते थे तो दर्शकों के सवालों के जवाब वो तबले के बोलों से दिया करते थे और मजे की बात ये है कि उनके तबले के मुश्किल बोल दर्शकों के लिए आसान भाषा का जवाब बन जाया करते थे।
बराक ओबामा ने व्हाइट हाउस बुलाया
जाकिर हुसैन ने 1973 से लेकर 2007 तक अलग अलग अंतरराष्ट्रीय समारोह और एलबमों में अपने तबले का दमखम दिखाया। जाकिर हुसैन को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ऑल-स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में भाग लेने के लिए व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया था।
कम उम्र में ही मिल गई अंतरराष्ट्रीय ख्याति
कॉन्टेंपरेरी वर्ल्ड म्यूजिक यानी पश्चिम और पूर्व के संगीत को एक साथ लाने के कामयाब प्रयोग की वजह से जाकिर खान को काफी कम उम्र में ही इंटरनेशनल आर्टिस्ट के रूप में ख्याति मिली। मिकी हार्ट, जॉन मैक्लॉफ्लिन जैसे आर्टिस्ट्स के साथ फ्यूजन म्यूजिक बनाने के दौरान ही उन्होंने अपना बैंड ‘शक्ति’ भी शुरू किया।
चार चार पीढ़ी के साथ की संगत
फ्यूजन म्यूजिक बनाने के बाद भी उन्होंने कभी तबले को नहीं छोड़ा, क्योंकि उनके मुताबिक तबला बचपन से उनके साथ एक दोस्त और भाई की तरह रहा। जाकिर हुसैन दुनिया से एकदम जुदा किस्म के तबलावादक थे, जिन्होंने सीनियर डागर ब्रदर्स, उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब से लेकर बिरजू महाराज और नीलाद्रि कुमार, हरिहरन जैसे 4 पीढ़ियों के कलाकारों के साथ तबले पर संगत की।
सिनेमा के पर्दे पर भी उस्ताद जाकिर हुसैन
सिनेमा जगत में भी उस्ताद जाकिर हुसैन का योगदान अहम है। ‘बावर्ची’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’, ‘हीर-रांझा’ और ‘साज’ जैसी फिल्मों के संगीत में उस्ताद की बड़ी भूमिका थी। सिर्फ संगीत ही नहीं लिटिल बुद्धा, हीट एंड डस्ट और साज जैसी फिल्मों में उस्ताद ने एक्टिंग भी की थी।

इसी साल तीन ग्रैमी अवार्ड्स जीतकर रच दिया इतिहास
उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपने पूरे करियर के दौरान पांच ग्रैमी अवार्ड जीते। इनमें से तीन अवार्ड, फरवरी 2024 में हुए 66वें ग्रैमी अवार्ड्स समारोह में जीते। 1988 में जाकिर हुसैन को पद्म श्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। संगीत की दुनिया का शायद ही कोई ऐसा अवार्ड हो जिसे जाकिर हुसैन ने अपने हाथ से न छुआ हो। इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।
पंडित रविशंकर ने दी उस्ताद की उपाधि
यूं तो जाकिर हुसैन की हुनर के कायल तो संगीत जगत की हर जानी मानी हस्ती हो चुकी थी। लेकिन एक बार पंडित रविशंकर अपने सितार के साथ संगत करने बैठे। देखने वालों का कहना था कि वो छह घंटे पूरी दुनिया जैसे थम सी गई थी। अगर कुछ चल रहा था तो इन दो धुरंधरों की उंगलियां। सितार के तार थक गए, लेकिन पंडित रविशंकर की उंगलियां थमने का नाम ही नहीं ले रहीं थी और उधर तबले पर जाकिर हुसैन की उंगलियां ऐसे थिरक रहीं थीं मानों हाथों में बिजली उतर आई हो। ये जुगलबंदी जब रुकी तो पंडित रविशंकर ने उठकर जाकिर हुसैन को अपने सीने से लगा लिया और हजारों दर्शकों के सामने जाकिर हुसैन को उस्ताद कहकर पुकारा। यहां से जाकिर हुसैन को उस्ताद की उपाधि मिली।
हर अवार्ड उस्ताद के नाम
उस्ताद जाकिर हुसैन को 2002 में पद्म भूषण, 2006 में कालिदास सम्मान, 2009 में उनके ‘ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट’ एल्बम को ग्रैमी अवॉर्ड मिला। 2023 में पद्म विभूषण और 4 फरवरी 2024 को 66वें एनुअल ग्रैमी अवॉर्ड्स में एक साथ 3 ग्रैमी अवॉर्ड्स जीत कर उन्होंने इतिहास रच दिया।

बहुत तेजी से बने ग्लोबल आइकन
उस्ताद जाकिर हुसैन की कमाई का एक बड़ा हिस्सा तबला वादन से ही आता था, लेकिन इसके अलावा उन्होंने एक्टिंग में भी हाथ आजमाया था. अपने करियर में उन्होंने 12 फिल्मों में एक्टिंग की थी। महज पांच रुपये से छोटी सी शुरुआत करने वाले जाकिर हुसैन तेजी से फेमस होते हुए एक ग्लोबल आइकन बन गए। जाकिर हुसैन की नेटवर्थ करीब 1 मिलियन डॉलर बताई जाती है। उनकी कमाई तबला वादन के साथ ही विज्ञापन, एंडोर्समेंट और फिल्मों में एक्टिंग के जरिए भी होती थी। 22 साल की उम्र में साल 1973 में अपनी पहली एल्बम ‘लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड’ लॉन्च की थी, जो खासी पॉपुलर हुई थी।
शास्त्रीय संगीत के गहरे समंदर
उस्ताद जाकिर हुसैन भारतीय शास्त्रीय संगीत के गहरे समंदर थे, लेकिन उन्होंने पश्चिमी संगीत के साथ मिलकर ऐसा पुल बनाया, जिसने पूरी दुनिया को भारतीय संगीत का दीवाना बना दिया।
शो मस्ट गो ऑन
उस्ताद जाकिर हुसैन का जाना संगीत की दुनिया के लिए एक ऐसा खालीपन छोड़ गया है, जिसे कोई भर नहीं सकता। लेकिन कलाकारों की दुनिया में एक कहावत बड़ी मशहूर है, शो मस्ट गो ऑन। साथ ही ये भी कहते हैं कि कलाकार कभी मरते नहीं। वे अपने हुनर से हमारे दिलों में हमारी यादों में जिंदा रहते हैं। जाकिर हुसैन भी अपने सुरों और थापों में अमर रहेंगे। यह सच है कि तबले पर छोड़ी गई उनकी थापें हमेशा करोड़ों दिलों में धड़कती रहेंगी।
कहता है तबला अब भी,
जाकिर का सुरूर यहीं है,
हर थाप में उनकी दुआ,
हर बोल में खुदा यहीं है।
जाकिर साहब की यादें, उनके तबले के बोल और उनकी शख्सियत की खुशबू हर संगीत प्रेमी के दिल में बसी ही रहेगी। उनकी विरासत हर उस शागिर्द के हाथों में जिंदा रहेगी, जो तबले को सिर्फ वाद्य नहीं, बल्कि आत्मा मानेगा। उस्ताद जाकिर हुसैन, आपका संगीत अमर है।
जाकिर हुसैन के परिवार में कौन-कौन?
उस्ताद जाकिर हुसैन के परिवार में उनके बाद पत्नी एंटोनिया मिनेकोला और दो बेटियां हैं। उनकी पत्नी इतालवी-अमेरिकी हैं और कथक डांसर भी हैं। इसके अलावा एक टीचर और मैनेजर भी रही हैं। जाकिर और एंटोनिया की दो बेटियां अनीसा कुरेशी और इसाबेला कुरेशी हैं। उनकी पत्नी मशहूर दिवंगत सितारा देवी की शिष्या थी और उन्हीं से कथक सीखा था।