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– गोपाल शुक्ल:
हर साल जैसे ही दिसंबर आता है, पूरी दुनिया में इस बात की तलाश शुरू हो जाती है कि साल की सबसे बड़ी उपलब्धि या कामयाबी क्या रही। हर क्षेत्र की अलग-अलग उपलब्धियां देखी जाती हैं और फिर उनका आकलन किया जाता है। इस बार का दिसंबर खत्म होते-होते इस बात का खुलासा हो गया कि आने वाले वक्त में कंप्यूटर का चाल चरित्र और चेहरा बदलने वाला है। बीती 9 दिसंबर को गूगल ने सामने आकर जो धमाका कर दिया उसके बारे में सुनने के बाद पूरी दुनिया के होश अभी तक गुम हैं। गूगल ने अपनी उपलब्धि की शायद इस साल की सबसे बड़ी दावेदारी ठोंक दी है। 9 दिसंबर को गूगल अपना बाहूबली चिप लेकर क्या आया, सारी दुनिया में तहलका मच गया। यह चिप इतना ताकतवर है कि इसके सामने आज के सुपर कंप्यूटर भी पिद्दी साबित हो सकते हैं। गूगल ने अपना क्वांटम चिप विलो (Willow) पेश किया है।
लाखों सालों की गणना कर देता है पांच मिनट में
गूगल की इस नई चिप को लेकर जिस तरह के दावे सामने आ रहे हैं वो किसी को भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर सकते हैं। दावा किया गया है कि ये विलो चिप ऐसी किसी भी गणना को महज पांच मिनट में कर सकती है, जिसे करने में आज के सुपर कंप्यूटर को लाखों साल लग सकते हैं।
तमाम कंपनियों को पछाड़कर आगे निकल गया गूगल
इस तरह के तेज कंप्यूटर को क्वांटम कंप्यूटर कहा जा रहा है। जिसे विकसित करने की कोशिश में माइक्रोसॉफ्ट और इंटेल जैसी बड़ी कंपनियां काफी समय से जुटी हुई थीं। बीते अरसे के दौरान इन कंपनियों को इस सिलसिले में कई कामयाबियां भी मिली थीं। लेकिन गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट ने जो करिश्मा कर दिखाया वो इतना अद्भुत और बड़ा है जिसके बारे में अभी कोई भी कुछ कहने से बच रहा है। फिलहाल तो यही दावा है कि इस ब्लू विलो चिप की मदद से पैरेलल यूनिवर्स, AI, फ्यूजन एनर्जी और दूसरे सेक्टर में जटिल से जटिल गणनाओं को कम समय में करने में बहुत मदद मिलेगी। इसकी इसी खासियत की वजह से क्वांटम चिप को नेक्स्ट जनरेशन चिप भी कहा जाने लगा है।
आज के सुपर कंप्यूटर से बहुत तेज है ‘विलो’
गूगल का दावा है कि आज के सबसे पावरफुल सुपर कंप्यूटर्स जिस काम को 10 सेप्टिलियन यानी 10 के पीछे 25 जीरो लगाने पर जो नंबर आएगा, उतने साल में कर सकेगा, Willow उस काम को सिर्फ 5 मिनट में कर देगा।’ 10 सेप्टिलियन इतनी बड़ी गिनती है कि एक ब्रह्मांड की उम्र छोटी पड़ जाए।

30 साल की प्रॉब्लम चंद सेकंड में दूर
इस चिप को दुनिया के सामने लाते हुए गूगल के CEO सुंदर पिचाई ने लिखा, ‘ये विलो है। हमारा नया क्वांटम कम्प्यूटिंग चिप। इस चिप में हमने ज्यादा क्यूबिट्स का इस्तेमाल किया है, जिसकी वजह से गलतियों को कम किया जा सकेगा। ये क्वांटम फील्ड की 30 साल की एक प्रॉब्लम को चंद सेकंड में दूर कर सकता है।
इस चिप की बदौलत मल्टीवर्स फिर आया चर्चा में
इस चिप को Saint Barbara में मौजूद कंपनी की क्वांटम लैब में तैयार किया गया है। असल में ये चिप मुश्किल से मुश्किल मैथमेटिकल प्रॉब्लम्स को बस कुछ ही मिनटों में सुलझा सकता है। सुंदर पिचाई का यही दावा है कि ऐसे टास्क जिन्हें हल करने में आज से सुपर कंप्यूटर्स को ब्रह्मांड की उम्र से भी ज्यादा का वक्त लग सकता है, ये चिप उसे चंद मिनटों में सुलझाकर रख सकती है। इस चिप की वजह से एक बार फिर पैरेलल यूनिवर्स के साथ-साथ मल्टीवर्स जैसे कॉन्सेप्ट पर भी चर्चा होने लगी है। माना जा रहा है कि भविष्य में ये चिप बहुत कुछ बदल सकता है।
दावों में कितना है दम, वक्त बताएगाा!
बीते कुछ अरसे के दौरान देखा जा रहा है कि माइक्रोसॉफ्ट, अमेजॉन, इंटेल जैसी दुनिया की जानी मानी कंपनियां तेज कंप्यूटर बनाने की होड़ में लगी हुई हैं। सचमुच आज के इस दौर में तेज कंप्यूटर की जरूरत भी है और ऐसे तेज कंप्यूटर बनाना ज्यादा मुश्किल भी नहीं। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि उस तेज कंप्यूटर को व्यावहारिक बनाना और उसे व्यवहारिक बनाए रखना बेहद मुश्किल है।
आने वाला है क्वांटम कंप्यूटर
गूगल ने विलो चिप बनाकर एक तरह से इस होड़ में बाजी मार ली है। इस चिप को क्वांटम कंप्यूटिंग के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा कदम माना जा रहा है। दावा ये है कि विलो चिप मुश्किल से मुश्किल से मुश्किल टास्क को हल करने में सक्षम है। यूं तो क्वांटम कंप्यूटर को बनाने की कोशिश पिछले चार दशकों से की जा रही है। मगर दिक्कत तब आती है जब ऐसे कंप्यूटर तेजी के चक्कर में गलतियां करने लगते हैं। कभी कभी वो किसी डाटा को छोड़ भी देते हैं। या फिर गलती से किसी डाटा को जोड़ देते हैं, जिससे सारी गणना गलत हो जाती है।
क्वांटम कंप्यूटर की खामियां दूर करने में जुटे वैज्ञानिक
बीते चार दशकों से साइंटिस्ट और इंजीनियर इसी मुश्किल से मुक्ति का रास्ता ढूंढ़ रहे थे। इस अवधारणा यानी कॉन्सेप्ट की बुनियाद 1995 में पड़ी। अमेरिकी वैज्ञानिक मीटर शोर ने बताया था कि क्वांटम कंप्यूटर तभी कामयाब हो सकता है, जब इसमें खुद ही गलतियों को सुधारने का सलीका आ जाए। इस बात के खुलासे ने वैज्ञानिकों की सोच को एक नई दिशा दी। और तभी से वैज्ञानिक इसकी तलाश में जुट गए।

बाजार को भी है ऐसे ही कंप्यूटर का इंतजार
से यहां बात महज कुछ गलतियों को तेजी से सुधारने वाले चिप को बनाने की नहीं है। सबसे गौर करने वाला पहलू तो ये है कि अल्फाबेट ने इस चिप को तैयार करने की घोषणा उस वक्त की है जब बाजार को ऐसे ही किसी तेज कंप्यूटर का इंतजार था, जितना इस चिप के आने के बाद संभव हो सकेगा। देखा जाए तो AI के लिए जिस तरह के कंप्यूटर की असल में जरूरत है, वैसे कंप्यूटर बाजार में ज्यादा हैं नहीं।
AI के लिए बड़े काम की चीज है ये नया चिप
अभी तक AI का पूरा बाजार अमेरिकी कंपनी एनविडिया के ग्राफिक प्रोसेसरों के हवाले है। माना जा रहा है कि इसके जरिए AI जिस हद तक जा सकता था, वहां तक पहुँचने में अब उसे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। लेकिन उसके बाद और तेज तर्रार और बड़े कंप्यूटर की जरूरत महसूस की जाएगी। उम्मीद है कि इससे AI एक विकास की गति और तेज हो जाएगी। सच कहा जाए अभी तक AI के लिए जो बातें किसी परीकथा जैसी लगती हैं, इस चिप के आने के बाद वो सब कुछ संभव होता नजर आने लगेगा।
एक एथिकल चिप है विलो
विलो को लेकर कई और भी दावे किए गए हैं। सुंदर पिचाई का ये भी दावा है कि विलो दरअसल एक एथिकल चिप होगा। यानी ऐसा चिप जो नैतिकता के आधार पर भी खरा उतरेगा। वैसे ये तो ठीक वैसा ही दावा है कि हमारा साबुन अब तक बाजार में बिक रहे तमाम साबुन से बेहतर और ज्यादा सफाई करने वाला है। यानी ये ठीक उसी तरह का दावा कहा जा सकता है जैसा आमतौर पर बाजार में उतारे जाने वाले तमाम उत्पादों के लिए किया जाता रहता है। ऐसे में किसी भी दावे पर यकीन कर पाना बेहद मुश्किल है। क्योंकि व्यवहारिक दिक्कतें कुछ और ही होती हैं।
Introducing Willow, our new state-of-the-art quantum computing chip with a breakthrough that can reduce errors exponentially as we scale up using more qubits, cracking a 30-year challenge in the field. In benchmark tests, Willow solved a standard computation in <5 mins that would…
— Sundar Pichai (@sundarpichai) December 9, 2024
कम एनर्जी में काम कर लेगा विलो
बेशक इसके साथ बहुत सारे दावे ऐसे भी हैं जो अगर सही हो गए तो इसे बाजार के लिए शुभ संकेत भी माना जा सकता है। खासतौर पर ये दावा कि ये चिप बहुत कम ऊर्जा में अपना काम चला लेगा। यानी अगर इसे पर्यावरण की नज़रिये से देखें तो ये अपने पीछे बहुत कम कार्बन के अवशेष छोड़ेगा।
गूगल ने एक ही झटके में मैदान मारा
वैसे गूगल की ये कामयाबी इस नाते गौरतलब है कि अभी कुछ दिनों पहले ही जब AI को लोकप्रियता मिलनी शुरू हुई तो बहुत से लोगों ने गूगल को श्रद्धांजलि देनी शुरू कर दी थी। तंज यही कसा जा रहा था कि गूगल कुछ भी हो एक सर्च इंजन कंपनी से ज्यादा कुछ नहीं। ऐसे में अब सर्च इंजान का बहुत सारा काम AI के हवाले हो जाएगा। हालांकि इस बीच गूगल ने अपना AI का एक एप्लीकेशन जेमिनी लॉन्च किया जिसे लोगों ने ज्यादा पसंद नहीं किया लिहाजा वो कामयाब नहीं हो सका। शायद इसी वजह से उन अटकलों को हवा मिल जाती है, जहां कामयाबी और विफलता के बीच एक बारीक लकीर का फासला होता है।

बदलते दौर के साथ बदल गया गूगल
संचार तकनीक की दुनिया ये बात अक्सर कही जाती है कि तकनीक बहुत तेजी से अपना चाल चरित्र और चेहरा बदल देती है। ऐसे में एक दौर की कंपनी बदलाव के दौर से गुज़रते वक्त कामयाबी के शिखर पर कायम नहीं रह पाती। इसके कई उदाहरण हैं। पर्सनल कंप्यूटर के दौर में माइक्रोसॉफ्ट का बोलबाला था। इसी के जरिए उसने लंबे समय तक दुनिया की सबसे अमीर कंपनी होने का सुख उठाया है। हालांकि पर्सनल कंप्यूटर की दुनिया में माइक्रोसॉफ्ट का अब भी बोलबाला है, लेकिन इंटरनेट के युग ने उसकी बादशाहत छीन ली। इंटरनेट और मोबाइल फोन के कारोबार में उसने कई तरह से हाथ आजमाने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी से दूर ही रही।
सोशल मीडिया के दौर में पिछड़ गया था गूगल
जबकि गूगल की शुरुआत ही इंटरनेट के जमाने में हुई। जल्दी ही सर्च इंजन से लेकर ई मेल तक के क्षेत्र में वो सभी को पीछे छो़ड़कर राजा बन गया। इंटरनेट युग के बाद डाटा का कारोबार शुरू हुआ। लेकिन गूगल ने उसमें भी अपनी बादशाहत कायम कर ली। जब सोशल मीडिया का दौर शुरू हुआ तो तमाम कोशिशों के बाद भी वो इस बाजार में कामयाब नहीं हो सका। जाहिर है ऐसे में उसे कई जगह शटर डाउन करने पड़े।
विलो की कामयाबी पर टिका गूगल का भविष्य
ऐसे में अब जबकि AI का दौर है, तब ये माना जा रहा था कि कुछ नए खिलाड़ी मैदान में आएंगे और गूगल अपनी हदों में कैद होकर रह जाएगा। ऐसे में सारा दारोमदार विलो की कामयाबी पर आकर टिक गया। यानी अगर विलो कामयाब होता है तो ये धारणा एक ही झटके में खत्म हो जाएगी कि बदलते दौर के साथ कंपनी की बादशाहत बनी नहीं रह सकती। गूगल का ये विलो इस सिलसिले में एक नया मील का पत्थर हो सकता है।
आखिर क्या हैं क्वांटम कम्प्यूटिंग?
असल में क्वांटम कम्प्यूटिंग क्वांटम मैकेनिक्स के सिद्धांत पर काम करती है, जो ट्रेडिशनल कम्प्यूटर्स की क्षमताओं से परे किसी समस्या को हल कर सकते हैं। आसान भाषा में कहें, तो ट्रेडिशनल कम्प्यूटर्स बिट्स पर काम करते हैं। इसमें जानकारी को 0 या 1 के रूप से ही प्रॉसेस किया जाता है। वहीं क्वांटम कम्प्यूटिंग में क्यूबिट्स का इस्तेमाल होता है। इसमें 0 या 1 या दोनों एक साथ हो सकते हैं। इस प्रक्रिया को सुपरपोजिशन कहा जाता है। इन क्यूबिट्स की वजह से क्वांटम कम्प्यूटर्स कई कैलकुलेशन को एक साथ कर सकते हैं, जिससे मुश्किल और जटिल प्रॉब्लम्स को भी आसानी से सॉल्व किया जा सकता है।

क्या होगा इस चिप का फायदा?
विलो के जरिए गूगल ने जो किया वो बहुत अहम है। हालांकि, इसकी एक बड़ी चुनौती है। असल जीवन में इसके फायदों को सामने लाकर दिखाना। गूगल का यही मानना है कि गगूल की नई क्वांटम कंप्यूटिंग चिप का इस्तेमाल दवाइयों की खोज में, न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर एनर्जी और कार बैटरी डिजाइन जैसे क्षेत्र में किया जा सकता है। माना तो ये भी जा रहा है कि AI के क्षेत्र में ये चिप बहुत मददगार साबित होगा। एक AI मॉडल को ट्रेन करने के लिए हमें उसे बहुत सारा डेटा देना होता है। इस मामले में क्वांटम कंप्यूटर्स मददगार साबित हो सकते हैं, क्योंकि ये डेटा की गणना बहुत तेजी से कर सकते हैं।
दुनिया की सबसे बड़ी कामयाबी है विलो?
दरअसल, क्वांटम कंप्यूटिंग में एक बड़ी चुनौती गलती की होती है। यहां क्यूबिट्स का असर एक दूसरे पर पड़ता है, ऐसे में किसी भी क्यूबिट में कोई दिक्कत आने पर पूरी कैलकुलेशन ही गड़बड़ हो सकती है। जबकि दूसरी तरफ जितनी ज्यादा क्यूबिट्स का इस्तेमाल होगा, उतना ही गलती होने का रिस्क भी ज्यादा बढ़ जाता है। गूगल ने बताया है कि उन्होंने इस चिप में 105 क्यूबिट्स का इस्तेमाल किया है. इन क्यूबिट्स के साथ Willow दो बेंचमार्च- क्वांटम एरर करेक्शन और रैंडम सर्किट सैंपलिंग में बेस्ट इन-क्लास परफॉर्मेंस देने में सक्षम है।
एलॉन मस्क ने ‘विलो’ को देखकर कहा ‘वॉव’
गूगल ने जैसे ही एक नई क्वांटम कंप्यूटिंग चिपसेट लॉन्च की, उसे लेकर सुंदर पिचाई ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया था, जिससे एलन मस्क काफी प्रभावित हुए। क्योंकि उन्होंने गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई के पोस्ट पर wow का रिएक्शन दिया। एक्सपर्ट का मानना है कि व्यवहारिक तौर पर गूगल की नई विलो चिप के इस्तेमाल में अभी कई साल का वक्त लग सकता है। साथ ही इसके इस्तेमाल के लिए कई बिलियन डॉलर खर्च करने पड़ेंगे।