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मणिपुर में घुसपैठियों के पास से मिला एलॉन मस्क की कंपनी का ‘स्टारलिंक डिवाइस’, जासूसी की कोई गहरी साजिश तो नहीं!

Elon Musk company Starlink - Dayitva Media
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– गोपाल शुक्ल:

सुबह सुबह सोशल मीडिया एक्स पर एलॉन मस्क का एक ट्वीट देखा तो दिमाग झनझना गया। क्योंकि उस पर लिखा था कि भारत के ऊपर सैटेलाइट बीम्स बंद है। कुछ देर तो यही समझने में लग गई कि आखिर ये मसला है क्या? ये किस बीम की बात हो रही है? फिर अचानक जेहन में एक बॉलीवुड की फिल्म पोखरण याद आ गई। कुछ अरसा पहले आई इस फिल्म में एक सीक्वेंस कुछ ऐसा है कि अमेरिका की स्पेस एजेंसी ने भारत पर नजर रखने के लिए अपने सैटेलाइट तैनात कर रखे थे। क्योंकि अमेरिका को इस बात की आशंका थी कि भारत अपने रेगिस्तानी इलाकों में कोई ऐसी हरकत कर रहा है, जिसके लिए अमेरिका की तरफ से मनाही है।

एलॉन मस्क की सफाई ने चौंकाया

उस फिल्मी सीक्वेंस का ख्याल आते ही इस बात को समझना शुरू किया कि आखिर दुनिया के सबसे अमीर और सबसे कामयाब इंसान को आखिर ये कहने की क्या गरज हो गई कि वो किसी दाावे पर इनकार करे। ये सारी चीजें तो एलॉन मस्क की फितरत से एकदम जुदा हैं और वो जो भी करता है तो ठसक से कह देता है, लेकिन जो कुछ नहीं करता उसके बारे में कोई कितनी भी बात कर ले वो उस तरफ ध्यान ही नहीं देता।

सेना के सर्च ऑपरेशन में हुआ खुलासा

तब दिमाग में खटका हुआ कि आखिर भारत में ऐसी कौन सी बात हो गई जिसकी वजह से इतने ठसक वाले अमीर आदमी को भी किसी दावे से इनकार करने की नौबत आ गई। इसके बाद जो खुलासा हुआ उसने वाकई हैरत में डाल दिया। क्योंकि पूर्वोत्तर भारत में भारत की सेना और असम राइफल्स की तरफ से चलाए गए सर्च ऑपरेशन के दौरान घुसपैठियों के अड्डों का पता चला, लेकिन जब उन अड्डों की तलाशी ली गई तो वहां कुछ ऐसे उपकरण मिले जिनका इंटरनेट और सैटेलाइट फोन से ताल्लुक था। इसके साथ साथ उन अड्डों पर कई खतरनाक किस्म के हथियार भी बरामद हुए, जिसने एक तरह से हिन्दुस्तान की सुरक्षा एजेंसियों के भीतर खतरे की घंटी बजा दी।

घुसपैठिये कर रहे हैं स्टारलिंक डिवाइस का इस्तेमाल

जब उपकरणों को ढंग से खंगाला गया तो वो उपकरण स्टारलिंक कंपनी के पाये गए। खुलासा यही हुआ कि पूर्वोत्तर राज्यों में घुसपैठ करने वाले उपद्रवी और टेरेरिस्ट स्टारलिंक की इंटरनेट डिवाइस का ही इस्तेमाल करते हैं। सबूत के तौर पर वो राउटर और स्टारलिंक के कई और उपकरण मिले। जेहन में ये सवाल सिर उठाने लगा कि तो क्या एलॉन मस्क की कंपनी भारत की जासूसी करवा रही है? या अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA स्टारलिंक के जरिए पूर्वोत्तर के राज्यों में अपनी पैठ बना रही है? कहीं ये किसी बहुत बड़ी साजिश का कोई एक सिरा तो नहीं?

स्टारलिंक के इंटरनेट ने बढ़ाई सेना की दुश्वारियां

हिन्दुस्तान की सुरक्षा एजेंसियों की हैरानी उस वक्त बढ़ गई जब उन्हें ये सारा सामान मणिपुर के इलाके से मिला। क्योंकि पूर्वोत्तर का ये राज्य ही इस समय सबसे ज्यादा डिस्टर्ब है। यहां घुसपैठियों को घुसपैठ का मौका आसानी से मिल जाता है। जैसे ही एलॉन मस्क की कंपनी स्पेस X की एक शाखा स्टारलिंक के इंटरनेट में इस्तेमाल होने वाले टूल्स और औजार मिले, तो माथा खटकना शुरू हो गया। इसके अलावा जब सेना और सुरक्षा बल ने इस सर्च ऑपरेशन को आगे बढ़ाया तो चूड़ाचंदपुर, इंफाल, चंदेल के साथ साथ कांगपोक्सी शहर में भी स्टारलिंक के उपकरण हाथ लगे। इन उपकरणों ने सचमुच सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी। क्योंकि आमतौर पर जब भी ऐसे सर्च ऑपरेशन होते थे तो घुसपैठियों के हथियार ही मिला करते थे। वो हथियार खतरनाक भी होते थे और मामूली इस्तेमाल वाले भी। लेकिन यहां ये बात इसलिए और भी ज्यादा खतरनाक हो जाती है क्योंकि यहां संचार का सारा बंदोबस्त हाथ लगा और उन तमाम चीजों पर अमेरिकी कंपनी का निशान नजर आया। सुरक्षा बल को जो उपकरण मिले उस पर रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट के भी निशान मिले हैं। इसी बात ने सुरक्षा एजेंसियों को और भी ज्यादा मुश्किल में डाल दिया क्योंकि ये संगठन चीन की सेना PLA से फंडेड बताया जा रहा है।

Manipur news - Dayitva Media

क्या ये किसी गहरी साजिश की तरफ इशारा है?

जाहिर है ये कोई मामूली बात तो है नहीं और इस बात से भी कोई गुरेज नहीं कर सकता कि दुनिया के इस सबसे ताकतवर मुल्क की खुफिया एजेंसियों के कारनामों का एक अच्छा खासा अतीत रहा है। ऐसे में सुरक्षा एजेंसियों के माथे पर बल पड़ गए। आखिर हिन्दुस्तान के इस हिस्से में घुसपैठ करने वाले घुसपैठियों के पास इतने आधुनिक संचार उपकरण कहां से आ रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों के साथ साथ सेना और पुलिस भी इस खुलासे के बाद से अलर्ट मोड में आ गई और गहराई से छानबीन का सिलसिला शुरू हो गया। क्योंकि ऐसे संजीदा और आधुनिक संचार उपकरणों का इस तरह से मिलना सरासर देश की सुरक्षा के लिए एक खतरनाक हो सकता है।

पूर्वोत्तर में घुसपैठियों पर लगाम एक चुनौती है

पहले ही भारत के इस इलाके में घुसपैठियों पर लगाम लगाना सुरक्षा बल के लिए एक बड़ी चुनौती है और उस पर घुसपैठियों के पास से इस तरह के उपकरणों का मिलता इस मुश्किल को और भी ज्यादा पेचीदा बना देती है। ऐसे में अगर मामला एलॉन मस्क की स्पेस एक्स जैसी कंपनी की एंट्री होती दिखाई देती है तो उसकी पेचीदगी और भी ज्यादा बढ़ जाती है।

स्टारलिंक के उपकरण मिलने का क्या मतलब

आखिर पूर्वोत्तर भारत में स्टारलिंक के उपकरण मिलने का क्या मतलब हो सकता है? इस सवाल का ठीक ठीक जवाब तो किसी के पास नहीं। अलबत्ता जो कुछ सामने आया है उसके मुताबिक यही कहा जा सकता है कि स्पेस एक्स की स्टारलिंक कंपनी दूरदराज के इलाकों में इंटरनेट की सहूलियत मुहैया करवाती है। सबसे हैरानी की बात यही है कि ये सहूलियत बिना किसी एंटीना या टॉवर के मुहैया करवाई जाती है। इसका संबंध सीधा सैटेलाइट से होता है। यानी इंटरनेट की सर्विस वाया सैटेलाइट। ये सबसे ज्यादा दिलचस्प है कि इसके लिए स्टारलिंक को किसी भी सरकार या लोकल अथॉरिटी से परमीशन की भी जरूरत नहीं होती। साथ ही इस तरह के इंटरनेट का न तो सेना, न ही खुफिया एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन को पता लग पाता है। जबकि घुसपैठिये इस सेवा का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं। वॉट्सऐप की तरह ये सर्विस भी एंड टू एंड इनक्रिप्टेड होती है, यानी इसे बीच में हैक करना करीब-करीब नामुमकिन है।

Starlink Device in India -Dayitva Media

स्टारलिंक के इंटरनेट ने उड़ाई सेना की नींद

स्टारलिंक के इंटरनेट उपकरणों ने सेना की नींद इसलिए भी उड़ा दी है, क्योंकि अभी तक स्पेस एक्स की स्टारलिंक को भारत में ब्रॉड बैंड लाइसेंस नहीं दिया गया है। ऐसे में पूरा का पूरा शक अमेरिकी खुफिया एजेंसी की ही तरफ जाता है। तब ये सवाल बड़ा हो जाता है कि क्या अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में किसी गहरी साजिश के बीज बो दिए हैं।

घुसपैठियों तक कैसे पहुँचा अमेरिकी कंपनी का इंटरनेट

ऐसे में इस बात की आशंका सिर उठाने लगती है कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों तक स्टारलिंक के इंटरनेट उपकरण घुसपैठियों के ठिकानों तक आखिर कैसे पहुंचे। इसके दो ही रास्ते हो सकते हैं, या तो इन्हें खुफिया तरीके से लाकर घुसपैठियों के हवाले किया गया या फिर इन्हें स्मगलिंग करके लाया गया। दरअसल स्टारलिंक के ये उपकरण इतने आधुनिक और सटीक हैं कि इनसे बड़ी ही आसानी से कोऑर्डिनेशन किया जा सकता है और बीच में बात के सुने जाने का कोई खतरा भी नहीं। लिहाजा इस बात को बल मिल जाता है कि इन उपकरणों और स्टारलिंक के इंटरनेट का इस्तेमाल करके घुसपैठिये अपनी प्लानिंग को सटीक तरीके से कर सकते हैं, जिसके बारे में सेना या सुरक्षा एजेंसियों को भनक तक नहीं लग सकती।

खुफिया एजेंसियों की किसी गहरी साजिश का अंदेशा

इस सिलसिले में डिफेंस एक्सपर्ट ने जिस तरफ इशारा किया है वो तो और भी ज्यादा चौंका देता है। कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि इस सैटेलाइट सिस्टम को यहां बिना किसी बड़ी प्लानिंग के नहीं लाया जा सकता। जाहिर है इसके पीछे किसी न किसी बड़ी खुफिया एजेंसी का हाथ हो सकता है। क्योंकि घुसपैठियों के पास इस तरह की आधुनिक टेक्नोलॉजी का पाया जाना इस बात का साफ साफ इशारा है कि ये काम अकेले घुसपैठियों का हो ही नहीं सकता, इसके पीछे बड़ी और गहरी साजिश है जो किसी खुफिया एजेंसी ने रची है। दूसरा इसका सबसे बड़ा खतरा ये हो सकता है कि ये इंटरनेट बेहद हाईस्पीड की सहूलयित से लैस है। ऐसे में आतंकवादियों के बीच बेरोकटोक बातचीत सारा नक्शा ही बदलकर रख सकता है। आतंकी तो बड़े आराम से अपनी प्लानिंग को अंजाम दे सकते हैं, जबकि रक्षा एजेंसियों को इसके बारे में भनक तक नहीं लग पाएगी। ऐसे में घुसपैठियों के खिलाफ चलाए जा रहे ऑपरेशन कामयाब नहीं हो सकेंगे।

भारत के खिलाफ प्रॉपगैंडा के आसार

रक्षा एजेंसियों के साथ साथ रक्षा मामलों के जानकारों का भी यही कहना है कि ऐसे उपकरणों के जरिए घुसपैठिये और उनके आका भारत के खिलाफ अपना प्रॉपगैंडा आसानी से चला सकते हैं। अपने हक में भटके हुए नौजवानों का ब्रेन वॉश कर सकते हैं। साथ ही साथ नौजवानों को किसी भी मुहिम के लिए तैयार कर सकते हैं। सच कहा जाए तो आतंकियों की ये तरक्की सेना के लिए किसी नए सरदर्द से कम नहीं, क्योंकि सेना और सुरक्षा बल ऐसे किसी भी आतंकी तैयारी के लिए तैयार नहीं थे। जाहिर है स्टारलिंक के उपकरणों का घुसपैठियों के ठिकाने से मिलना भारतीय एजेंसियों के लिए खतरे का अलार्म भी कहा जा सकता है।

आखिर एलॉन मस्क ने क्यों दी सफाई?

इसी बीच एक बार फिर एलॉन मस्क के उस दावे की तरफ ध्यान जाता है, जिसमें कहा जा रहा है कि भारत के ऊपर सैटेलाइट बीम बंद है। लेकिन भारत के पूर्वोत्तर इलाकों में स्टारलिंक के इंटरनेट उपकरणों का मिलना इस बात की तरफ साफ साफ इशारा है कि एलॉन मस्क की कंपनी ने अपना ये स्टारलिंक सिस्टम पूरी दुनिया में एक तरह से लॉन्च ही कर दिया है। क्योंकि स्टारलिंक के ही इंटरनेट का इस्तेमाल रूस-यूक्रेन के युद्ध के दौरान यूक्रेन के लोग धडल्ले से कर रहे हैं। हालांकि आधिकारिक तौर पर भारत में स्टारलिंक को अभी लाइसेंस नहीं दिया गया है। ऐसे में स्टारलिंक खुले तौर पर भातर की हद के भीतर कहीं काम नहीं कर सकता।

क्या है स्टारलिंक इंटरनेट?

आखिर ये स्टारलिंक इंटरनेट है क्या बला, क्यों इसके मिलने के बाद भारतीय एजेंसियां अलर्ट मोड पर आ गई हैं? दरअसल अमेरिका के सबसे अमीर और दुनिया के सबसे टैक्निकल एलॉन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स ने इस इंटरनेट को विकसित किया है। ये एक तरह से सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस है जो धरती की कक्षा में चक्कर लगा रहे हजारों सैटेलाइट के एक समूह के जरिए काम करता है। ये सभी सैटेलाइट पृथ्वी की सतह से 550 किलोमीटर दूर चक्कर लगा रहे हैं। इस सर्विस के तहत सैटेलाइट पहले आपस में नेटवर्क स्थापित करते हैं और उससे इंटरनेट सेवा मुहैया करवाई जाती है। इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि ये स्टारलिंक केबल के जरिए प्रसाारित होने वाली ब्रॉड बैंड सर्विस से एकदम अलग है। बिना किसी तार और टॉवर की मदद से इंटरनेट की सेवा मुहैया करवाई जाती है। इस सर्विस के तहत कस्टमर को 150 मेगाबाइट प्रति सेकेंड यानी 150 MPBS की स्पीड से इंटरनेट की सर्विस मिलती है। इस सर्विस पर न तो खराब मौसम का असर पड़ता है और न ही बरसात इसकी सेवाओं पर बाधा डाल पाती है।

आराम से मिल जाती है स्टारलिंक सर्विस

इससे भी बड़ी बात ये है कि स्टारलिंक की सर्विस हासिल कर पाने के लिए किसी भी तरह के इंस्टॉलेशन की जरूरत नहीं पड़ती। इसे कोई भी बड़े आराम से खुले बाजार से खरीद सकता है और खुद ही चालू भी कर सकता है। यानी बाजार से खरीदकर केवल बिजली के प्लग में लगाओ और काम चालू।

टेलीफोन के किट की तरह मिलती है

ये स्टारलिंक असल में किसी टेलीफोन की एक किट की तरह एक डिब्बे में बंद होकर आती है। जिसमें एक डिश एंटीना, एक डिश माउंट, एक वाई फाई का राउटर और वाई फाई का बूस्टर होता है।

सुरक्षा एक्सपर्ट ने किया आगाह

सुरक्षा एक्सपर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि सेना और सुरक्षा एजेंसियों को इस बात का पता लगाना बेहद जरूरी है कि आखिर पूर्वोत्तर के राज्यों में मिलने वाला स्टारलिंक डिवाइस आखिर आ कहां से रहा है? इसकी पूरी सप्लाई चेन कहां से शुरू हो रही है? और सबसे बड़ी बात इस सप्लाई चेन के पीछे किसका हाथ है? ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है ताकि उसके मुताबिक ही इससे बचाव का रास्ता निकाला जा सके। सेना और भारत की तकनीकी एक्सपर्ट के लिए ये एक बड़ी चुनौती है कि ऐसे किसी भी उपकरणों को कैसे बेअसर किया जा सके और दूर से ही इन्हें निष्क्रिय किया जा सके।

एलॉन मस्क ने भारतीय सेना के ट्वीट को फेक कहा

इसी बीच एलॉन मस्क ने जो कहा उस पर गौर करना बेहद जरूरी हो जाता है। एलॉन मस्क का कहना है कि अभी तक स्टारलिंक की बीम को भारत के ऊपर से बंद रखा गया है। लिहाजा ये बात मानने लायक है ही नहीं कि स्टारलिंक का कोई उपकरण भारत के मणिपुर या पूर्वोत्तर राज्यों में इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन एलॉन मस्क की बातों को काटते हुए भारतीय सेना ने बरामद स्टारलिंक की डिवाइस की तस्वीरों को सोशल मीडिया एक्स पर ही शेयर किया और उसे एलॉन मस्क को टैग भी किया है। हालांकि एलॉन मस्क ने इस सिलसिले में जो जवाब दिया वो उनके मुंह फट होने का सबसे बड़ा सबूत भी है। एलॉन मस्क ने इसे फेक कहकर खारिज कर दिया।

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  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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