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अब कैंसर को बेमौत मारेगी रूसी वैक्सीन, दुनिया भर के मरीजों में जिंदा हुई नई उम्मीद

Cancer Vaccine Russia Dayitva Media
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– गोपाल शुक्ल:

अपने दौर के एक जाने माने शायर हैं अब्दुल हमीद अदम। उनका एक शेर है, जरा गौर करें-

बढ़ के तूफ़ान को आग़ोश में ले ले अपनी
डूबने वाले तिरे हाथ से साहिल तो गया।

किसी के जज्बात को भड़काने, किसी के टूटते हौसले को बुलंद करने और किसी के भीतर छुपी आग को जगाने के लिए शायद इससे बेहतरीन कोई बात हो नहीं सकती।

कैंसर से लड़ने के लिए शुरू की थी सुनील दत्त ने जंग

अब अगर इसी बात को हम अपने दौर के जाने माने फिल्मकार और दिग्गज अभिनेता सुनील दत्त के लिए कहें या फिर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के सुपर स्टार क्रिकेटर और सबसे कामयाब कप्तान रहे इमरान खान के बारे में कहें तो शायद गलत नहीं होगा। क्योंकि अपने अपने मुल्क की इन दो बड़ी हस्तियों ने अपनी जिंदगी में एक ऐसी लड़ाई भी लड़ी है, जिसे इंसानियत के हक की लड़ाई कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा। सबसे पहले बात सुनील दत्त की कर लेते हैं। क्योंकि 1981 में पत्नी और जानी मानी अदाकारा नरगिस दत्त की मौत के बाद सुनील दत्त ने उस बीमारी के खिलाफ एक मुहिम सी छेड़ दी थी, जिसने उनकी पत्नी की जान ली। वो बीमारी थी कैंसर।

पैंक्रियाटिक कैंसर से हुई थी नरगिस दत्त की मौत

पैंक्रियाटिक कैंसर यानी अग्नाशय के कैंसर से जूझते हुए 2 मई 1981 को नरगिस दत्त ने 51 साल की उम्र में आखिरी सांस ली थी। नरगिस की इस बीमारी ने सुनील दत्त को भीतर तक झकझोर दिया था। क्योंकि इस बीमारी के इलाज के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं और कितना बेशुमार खर्चा उठाना पड़ता है, इस बात ने सुनील दत्त को बेचैन कर दिया था। तब कैंसर से जूझते मरीजों और खासतौर पर गरीब और कमजोर मरीजों को अच्छा और सुविधाजनक इलाज मुहैया करवाने की सोच के साथ सुनील दत्त ने नरगिस दत्त फाउंडेशन की शुरूआत की थी।

कैंसर ने ले ली थी इमरान खान की मां की जान

लगे हाथों अब बात क्रिकेट के ऑलराउंडर इमरान खान की भी कर लेते हैं। इमरान खान जिस दौर में अपने क्रिकेट के शिखर पर थे, उसी दौरान उनकी मां शौकत खानम अपनी कोलन कैंसर की बीमारी से जूझ रही थीं। बंटवारे से पहले भारत के जालंधर में जन्मीं शौकत खानम 63 साल की उम्र में 1985 में खुदा को प्यारी हो गईं। मां की ऐसी मौत ने इमरान खान को बुरी तरह से झिंझोड़कर रख दिया था। इमरान को इस बात का सबसे ज्यादा अफसोस हुआ कि जिस बीमारी ने उनकी मां शौकत खानम की जान ले ली। असल में दुनिया में उसका इलाज मुमकिन है।

मां की मौत ने खोली इमरान खान की आंखें

अपनी मां की मौत के दर्द को झेलते-झेलते इमरान खान को इस ख्याल ने दबोच लिया कि वो तो चलो किसी भी तरह से इलाज करा सकते थे। लेकिन इमरान खान को उस ख्याल ने बुरी तरह से बेचैन कर दिया जब उन्होंने अस्पतालों में कैंसर के मरीजों और उनके परिवार के लोगों को धक्के खाते और इलाज की खातिर तड़पते देखा। इमरान खान को महसूस हुआ कि पाकिस्तान के न जाने कितने गरीब परिवार के लोग अपनी माली हालत की वजह से इस खतरनाक बीमारी का इलाज तक नहीं करवा पाते। या फिर सही इलाज न मिलने की वजह से वो वक्त से पहले ही मौत के मुंह में चले जाते हैं।

ज़कात और खैरात से इमरान ने बनाया कैंसर का अस्पताल

तब इमरान खान ने इरादा किया कि वो एक ऐसा कैंसर अस्पताल बनवाएंगे जो पाकिस्तान के गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए हरदम उपलब्ध रहेगा और वहां गरीबों का इलाज मुफ्त किया जाएगा। इसी ख्याल से जूझते हुए इमरान खान ने ज़कात और खैरात का सहारा लिया। लोगों ने भी बढ़ चढ़कर इसमें हिस्सा लिया और 1994 में जाकर इमरान खान ने पाकिस्तान के लाहौर में शौकत खानम मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर को बनाने में कामयाबी हासिल की। आज यही अस्पताल पाकिस्तान का पहला और सबसे बड़ा कैंसर अस्पताल है।

बीमारी एक को होती, तड़पता है पूरा परिवार

ये बात भी किसी से छुपी नहीं है कि जिस किसी को कैंसर की ये बीमारी जकड़ती है तो पूरा परिवार उसके दर्द से तड़प उठता है। जो मरीज होता है वो तो हर पल मौत से जूझता ही रहता है लेकिन उसके परिवार का हाल भी कोई बहुत ज्यादा जुदा नहीं होता। इस लाइलाज बीमारी के महंगे इलाज की वजह से मरीज के घरवाले बुरी तरह से टूट जाते हैं। कई दफा तो ये भी देखा गया है कि परिवार इलाज कराने के चक्कर में दाने-दाने को मोहताज हो गया।

फोर्टिस अस्पताल की मुहिम ‘एक जंग कैंसर संग’

कुछ अरसा पहले ही ऐसी ही एक मुहिम फोर्टिस अस्पताल ने छेड़ी थी। एक जंग कैंसर के संग की वो मुहिम दरअसल जरूरत मंद मरीजों और उनके परिवार के लोगों की मदद करने के इरादे से ही शुरू की गई थी। इस मिशन का एक और मकसद था, किसी भी तरह लोगों को इस खतरनाक बीमारी के प्रति जागरूक करने का। ये बात सौ फीसदी सच है कि कैंसर दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों की जान लेता है। लेकिन फोर्टिस के डॉक्टरों की मानें तो अगर थोड़ी देख भाल और सही इलाज मिल जाए तो इस कैंसर को भी हराया जा सकता है। डॉक्टरों के मुताबिक आमतौर पर लोग कैंसर की बीमारी का नाम सुनते ही हिम्मत हार जाते हैं और जीने की सारी उम्मीदें खो देते हैं।

रूस के दावे से फैली दुनिया भर में सनसनी

उम्मीद का दीया अगर जलाने का हौसला हो तो मौत के भी मात दी जा सकती है। इसी हौसले के साथ एक नई उम्मीद का दीया फिर से रोशन हुआ है जब ये खबर सामने आई कि रूस ने कैंसर का टीका बना लिया। इस खबर के सामने आते ही सारी दुनिया के कैंसर मरीजों के अंदर जीने की उम्मीद फिर से जिंदा हो गई। क्योंकि रूस ने दावा किया है कि उसने कैंसर से लड़ने के लिए अब वैक्सीन बना ली है।

रूसी मरीजों को मुहैया होगी वैक्सीन

रूस ने जिस तरह से ये दावा किया है कि उसने कैंसर की वैक्सीन तैयार कर ली और रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से ये भरोसा दिया गया है कि जल्दी ही कैंसर की वैक्सीन रूसी मरीजों को मुहैया करवा दी जाएगी, सच मुच ये कदम मेडिकल साइंस के इतिहास में शायद अब तक का सबसे बड़ा कदम माना जाएगा। रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से ये भी दावा किया गया है कि अगले साल यानी 2025 में रुस में वैक्सीन लगाने का काम शुरू हो जाएगा। स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से ये भी साफ किया गया है कि ये वैक्सीन सिर्फ और सिर्फ कैंसर के मरीजों के लिए होगी, न की उन लोगों के लिए जिन्हें कैंसर होने का खतरा महसूस हो रहा है।

रूसी नागरिकों को दी जाएगी फ्री में वैक्सीन

अभी तक यह बात भी साफ नहीं हो सकी है कि जो वैक्सीन तैयार करने का दावा रूस ने किया है, वो असल में किस कैंसर की बीमारी के लिए असरदार होगी। अभी तक इस बात का भी कोई अता पता नहीं है कि ये वैक्सीन कितनी कारगर होगी, लेकिन ये बात जरूर साफ हो गई है कि जनवरी 2025 से ही रूस के नागरिकों के लिए ये वैक्सीन एकदम फ्री होगी। यानी रूस में जो नागरिक कैंसर की बीमारी से जूझ रहा है उसे ये टीका मुफ्त में लगाया जाएगा।

हर मरीज के लिए अलग वैक्सीन

समाचार एजेंसी तास के मुताबिक रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय के रेडियोलॉजी रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर आंद्रेई कॉप्रिन का कहना है कि रूस की तरफ से तैयार की जा रही कैंसर वैक्सीन अलग-अलग तरह के मरीजों के लिए अलग-अलग तौर पर तैयार की जाएगी। आंद्रेई कॉप्रिन ने ये भी साफ कर दिया है कि ये वैक्सीन कैंसर की रोकथाम के लिए कतई नहीं है। बल्कि ये वैक्सीन उन मरीजों के लिए है जो कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहे हैं। आंद्रेई कॉप्रिन की तरफ से ये भी दावा किया गया है कि इस वैक्सीन से कैंसर से जूझ रहे मरीज के भीतर प्रतिरोधक क्षमता में तेजी से विकास होता है जिससे मरीज को बीमारी से लड़ने की ताकत और क्षमता बढ़ जाती है।

कैंसर के लिए पर्सनलाइज्ड वैक्सीन

रूसी दावे के मुताबिक कैंसर के लिए तैयार वैक्सीन पर्सनलाइज्ड होगी। इसका मतलब ये है कि हर मरीज के लिए अलग तरह की वैक्सीन होगी। इस वैक्सीन को बनाने का जो तरीका बताया जा रहा है उसके मुताबिक हर एक मरीज के शरीर में मौजूद ट्यूमर से RNA लिया जाएगा। और उस RNA के कोड के मुताबिक ही वैक्सीन तैयार की जाएगी।

ट्यूमर सेल्स से तैयार होता है टीका

रूसी वैज्ञानिक और फेडरल मेडिकल बायोलॉजिकल एजेंसी की प्रमुख वेरोनिका स्वार्ट्ज्कोवा के मुताबिक इस वैक्सीन को तैयार करने का जो तरीका बताया गया वो भी कम हैरान करने वाला नहीं है। स्वार्ट्ज्कोवा ने बताया कि इसके लिए सबसे पहले कैंसर के मरीज के ट्यूमर से कैंसर सेल्स का नमूना लिया जाता है। इसके बाद साइंटिस्ट ट्यूमर के जीन की सीक्वेंसिंग करते हैं ताकि कैंसर के सेल्स में मौजूद प्रोटीन की पहचान पुख्ता की जा सके। इसके बाद पर्सनलाइज्ड mRNA वैक्सीन तैयार कर ली जाती है। ये हर मरीज के लिए अलग अलग ही होती है।

AI और जेनेटिक तकनीक से तैयार की गई वैक्सीन

रूस का एक रिसर्च सेंटर है गामालेया नेशनल रिसर्च सेंटर। इस सेंटर के निदेशक एलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग का कहना है कि कैंसर की इस वैक्सीन को तैयार करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल किया गया है। इसके मेडिकल साइंस में अब तक की सबसे आधुनिक जेनेटिक तकनीक का प्रयोग किया गया है। गिंट्सबर्ग के मुताबिक मरीज के ट्यूमर से जो डेटा हासिल होता है उसके आधार पर ही ये वैक्सीन तैयार की जाती है। सबसे चौंकानें वाला पहलू यही है कि इस पूरी प्रक्रिया में आधा घंटे से लेकर एक घंटे तक का वक्त लगता है।

पेट, फेफड़े और स्तन कैंसर में कारगर होगी वैक्सीन!

ये जमीनी सच है कि रूस में पेट, स्तन और फेफड़े के कैंसर सबसे ज्यादा होते है। ये भी सही है कि रूस की तरफ से किए गए वैक्सीन तैयार करने के दावे के साथ साथ ये बात नहीं बताई गई कि किस किस तरह के कैंसर के लिए वैक्सीन तैयार की गई है। माना जा रहा है, ये वैक्सीन पेट, फेफड़े और स्तन कैंसर के मरीजों को आराम देने की गरज से तैयार की गई है।

मेडिकल साइंस में रूस की लंबी छलांग

हालांकि मौजूदा दावे को ध्यान में रखें तो मेडिकल साइंस में रूस की ये सबसे लंबी छलांग मानी जा रही है। रुस की ही तरह कई और भी देश इसी तरह की वैक्सीन बनाने के काम में लगे हुए हैं। दावा यही किया जा रहा है कि कई देशों में पर्सनलाइज्ड वैक्सीन के लिए मरीज के ट्यूमर से RNA लेकर उसके जरिए वैक्सीन विकसित करने का काम जोर शोर से चल रहा है, लेकिन रूस ने सबसे पहले ये घोषणा करके इस रेस में बहुत आगे निकल जाने का दावा कर दिया है।

अमेरिका में भी तैयार हो रही है वैक्सीन

बताया जा रहा है कि साल 2024 में ही मई के महीने में अमेरिका की फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों और साइंटिस्टों ने कैंसर के कुछ मरीजों पर पर्सनलाइज्ड वैक्सीन का प्रयोग किया। दावा यही किया जा रहा है कि वैक्सीन लगने के दो रोज बाद ही मरीजों के भीतर जबरदस्त इम्युनिटी पैदा हो गई।

प्रीक्लिनिकल ट्रायल में तो कामयाब दिखी वैक्सीन

रूसी साइंटिस्ट आंद्रेई काप्रिन के मुताबिक अब तक किए गए प्रीक्लिनकल ट्रायल में इस वैक्सीन को काफी प्रभावी पाया गया है। एक अनुमान के मुताबिक इस वैक्सीन को अब तक के ट्रायल में 70 से 80 फीसदी तक प्रभावी पाया गया है। इसके अलावा अक्सर वैक्सीन के मामले में साइड इफेक्ट के असर भी देखे जाते हैं, लेकिन अब तक के ट्रायल में साइड इफेक्ट का कोई भी केस सामने नहीं आया है। रूसी वैज्ञानिकों के एक अनुमान के मुताबिक इस वैक्सीन की कीमत करीब 2.5 लाख रुपये के आस पास होने की संभावना है। हालांकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सरकार के अब तक सामने आए आदेश के मुताबिक कैंसर के लिए तैयार की गई वैक्सीन रूसी कैंसर मरीजों को मुफ्त में मुहैया करवाई जाएगी।

लाखों मरीजों के लिए संजीवनी बन जाएगी वैक्सीन

रूस के दावे के बाद इस वैक्सीन ने कैंसर के इलाज की दिशा में एक नई उम्मीद का सूरज दिखाया है। अगर रूस का दावा सही साबित होता है और दुनिया भर के हरेक स्तर पर ये वैक्सीन दुरूस्त पायी जाती है तो सचमुच ये दुनिया भर के लाखों करोड़ों कैंसर मरीजों के लिए संजीवनी साबित होगी। साथ ही साथ इस वैक्सीन के आने के बाद कैंसर के इलाज में जो लाखों करोड़ों खर्च होते हैं उससे भी छुटकारा मिलेगा।

दुनिया भर के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगी

एक लिहाज से देखा जाए तो सिर्फ रूस या अमेरिका जैसे बड़े और विकसित देश ही नहीं बल्कि गरीब और विकासशील देशों के लिए भी ये वैक्सीन किसी चमत्कार से कम नहीं होगी। क्योंकि पूरी दुनिया में कैंसर के इलाज की सुविधाएं अभी तक बहुत सीमित ही मानी जाती हैं।

कैंसर के चंगुल में जकड़ा है भारत भी

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में हर 6 में से एक कैंसर के मरीज की मौत हो जाती है। दुनियाभर में मौत की ये दूसरी सबसे बड़ी वजह मानी जाती है।

कैंसर की इस जानलेवा बीमारी ने भारत को भी अपने चंगुल में बुरी तरह से जकड़ा हुआ है, यहां भी कैंसर के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। साथ ही साथ भारत में कैंसर की वजह से होने वाली मौत का आंकड़ा भी बहुत तेजी से बढ़ रहा है। एक अंदाजे के मुताबिक अगले साल तक भारत में कैंसर मरीजों की गिनती 15 लाख के पार होने की आशंका जताई जा चुकी है।

पांच सालों में सामने आए 71 लाख मरीज

भारत का सरकारी आंकड़ा भी कम डरावना नहीं है। भारत में बीते पांच साल यानी 2019 से 2023 तक के दौरान कैंसर के 71 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। अकेले 2023 में ही करीब 15 लाख मरीज सामने आए। जबकि बीते पांच सालों के दौरान कैंसर से करीब 40 लाख से ज्यादा मरीजों की मौत हो चुकी है। पिछले साल 8.28 लाख कैंसर मरीजों की मौत हुई जो पांच सालों के दौरान एक साल में सबसे ज्यादा है।

तंबाकू से बढ़ जाता है कैंसर का खतरा

कैंसर के बारे में कहा जाता है कि भारत में तंबाकू कैंसर की एक सबसे बड़ी वजह है। तंबाकू खाने से मुंह और गले के कैंसर की आशंका सबसे ज्यादा होती है जबकि सिगरेट या बीड़ी पीने वालों में फेफड़े का कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है।

पुरुषों में सबसे ज्यादा होता है मुंह का कैंसर

WHO की एक रिपोर्ट के हवाले से कहा जा सकता है कि मुंह या गले का कैंसर पुरुषों में सबसे ज्यादा देखा गया है जबकि फेफड़े के कैंसर का नंबर दूसरा है। साल 2022 में कैंसर के 6.91 लाख मामले सामने आए थे। इनमें से डेढ़ लाख से ज्यादा पुरुषों में मुंह और गले या फेफड़े का कैंसर पाया गया।

महिलाएं होती हैं स्तन कैंसर का शिकार

भारत में आमतौर पर स्तन कैंसर की शिकार महिलाएं होती हैं। एक सर्वे के मुताबिक भारत में महिलाओं में जितने कैंसर के मामले सामने आते हैं उनमें 27 फीसदी महिलाएं स्तन कैंसर से पीड़ित होती हैं। जबकि बीते कुछ अरसे के दौगन सर्वाइकल कैंसर की गिनती में भी जबरदस्त तरीके से इजाफा देखा गया है।

समय पर पता लगे तो इलाज मुमकिन

डॉक्टरों और जानकारों की मानें तो कैंसर के इलाज के लिए उसका सही ढंग से पता लगना और जल्दी पता लगना जरूरी है। जानकार मानते हैं कि अगर कैंसर को पहली या दूसरी स्टेज में ही पता लगा लिया जाए तो उसका जल्दी इलाज शुरू किया जा सकता है। इससे मरीज के जिंदा रहने की संभावना बढ़ जाती हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरण सामने हैं, जहां कैंसर का जल्दी पता लगने के बाद उसका सही इलाज होने से मरीज अब सामान्य जिंदगी जी रहे हैं।

कई हस्तियों ने हराया है कैंसर को

बॉलीवुड की हीरोइन मनीषा कोइराला, महिमा चौधरी, लिसा रे और जाने माने क्रिकेटर युवराज सिंह इसकी मिसाल हैं, जिन्होंने कैंसर से जंग लड़ी और जीती भी। जानकार बताते हैं कि कैंसर के हर एक मरीज का इलाज अलग-अलग होता है। अब तक मौजूद इलाज के मुताबिक कैंसर के मरीज को सर्जरी, रेडियोथैरेपी और कीमोथेरेपी के दौर से गुजरना पड़ता है।

लक्षणों से हो सकती है कैंसर की पहचान

कैंसर को उसके लक्षणों से ही पहचाना जाता है। अक्सर तेज बुखार, तेज सिरदर्द, हड्डियों में दर्द और तेजी से लगातार वजन का कम होना, ये ऐसे लक्षण हैं जिनके उभरते ही मरीज को तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए और इलाज शुरू कर देना चाहिए। क्योंकि ऐसी सूरत में कैंसर के इलाज में खर्च भी कम होता है और मरीज के सही सलामत रहने की संभावना भी बढ़ जाती है।

अभी बहुत लंबा फासला तय करना बाकी

इसमें कोई शक नहीं है कि रूस का इस वैक्सीन को तैयार करना और उसका दावा करना मेडिकल साइंस के लिहाज से एक बड़ा कदम है। मगर बात यहीं पर आकर खत्म नहीं हो जाती। बल्कि इस वैक्सीन को अभी और भी ज्यादा तजुर्बे और टेस्ट करने की जरूरत है। जाहिर है कि वैज्ञानिक और साइंटिस्टों को इस सिलसिले में अभी कई कदम उठाने की जरूरत है। साथ ही कैंसर की वैक्सीन वाकई असरदार हो सके इसके लिए कई कदम उठाने की जरूरत हो सकती है। तभी तो यह वैक्सीन दुनिया भर के कैंसर मरीजों के लिए उपलब्ध करवाई जा सकती है।

Author

  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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