Getting your Trinity Audio player ready...
|
– गोपाल शुक्ल:
सुबह सुबह अखबार के पन्ने पलटते समय एक खबर पर अचानक नजर टिकी और फिर वहीं टिककर रह गया। खबर ही ऐसी थी जो सीधे सीधे हमारी जेब पर असर डाल रही थी। दिल भी धड़क रहा था कि कहीं कंगाली में आटा गीला जैसी बात न हो जाए। बड़े ध्यान से खबर पढ़ने पर ये बात साफ हो गई कि बैंकों को एक बार फिर आम लोगों की जेब काटने के लिए खुद सुप्रीम कोर्ट ने ब्लेड थमा दिया है।
देरी से भुगतान पर 16 साल पुराना फैसला बदल दिया
यानी जो लोग क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करते हैं इस खबर का ताल्लुक सीधा उन्हीं के साथ है, क्योंकि शुक्रवार यानी 20 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने 16 साल पुराने एक फैसले को पलटते हुए बैंकों को ग्राहकों की जेब काटने की सहूलियत दे दी। असल में हुआ ये कि अभी तक देश में क्रेडिट कार्ड पर बिल पेमेंट में देरी करने पर ज्यादा से ज्यादा 30 फीसदी तक ब्याज लेने की छूट थी। मगर 20 दिसंबर को आए फैसले के बाद अब इसकी 30 फीसदी वाली सीमा पर लगी रोक को हटा दिया गया है।
तीन विदेशी बैंकों की अर्जी पर सुप्रीम फैसला
दरअसल साल 2008 में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट कमीशन यानी जिसे हम आम बोलचाल में NCDRC कहते हैं, उसने क्रेडिट कार्ड के कस्टमरों पर बैंकों की मनमानी को रोकने की गरज से एक सीमा यानी कैप तय कर दी थी। उसके मुताबिक क्रेडिट कार्ड के लेट पेमेंट फीस के तौर पर ज्यादा से ज्यादा 30 फीसदी तक ही ब्याज के तौर पर वसूल सकते हैं। 7 जुलाई 2008 को एनसीडीआरसी के दिए गए इस फैसले के खिलाफ HSBC, सिटी बैंक और स्टैंडर्ड चार्ज बैंक ने अर्जी लगाई थी। करीब 16 साल तक चली सुनवाई के बाद अब 20 दिसंबर को इस अर्जी के एवज में बैंकों के हक में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बैंच ने अपना फैसला दे दिया है।

अब देरी से पेमेंट का मतलब 50 फीसदी तक देना पड़ सकता है ब्याज
इस लिहाज से क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक तरह से बुरी खबर के तौर पर सामने आया है। यानी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब बैंक क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों पर लेट फीस के तौर पर 36 से 50 फीसदी तक का ब्याज वसूल करने के लिए आजाद हो गए हैं। जाहिर है इस फैसले से उन लोगों को बुरी तरह से झटका लगा है जो किन्हीं कारणों से अपने क्रेडिट कार्ड के बिल को देरी से भुगतान करते थे। क्योंकि अब इस फैसले के बाद उन्हें ये रकम पहले के मुकाबले काफी ज्यादा चुकाने को मजबूर होना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट की दो जज की बेंच ने बदल दिया आयोग का फैसला
अपने फैसले में जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा है कि बैंक और क्रेडिट कार्ड देने वाली कंपनियां लेट फीस पर जो पेनल्टी लगाती हैं उसके लिए ग्राहकों के साथ पहले ही करार कर लेती हैं। इसके अलावा जो भी पेनल्टी लगाई जाती है वो भारतीय रिजर्व बैंक के जो दिशा निर्देश हैं उसके मुताबिक ही लागू की जाती है। अपने फैसले में जिस बात पर बेंच ने ज्यादा जोर दिया उसके मुताबिक कोर्ट मानती है कि ऐसी रोक या सीमा लगाने से बैंकों को अपना कारोबार करने और बैंकों के कस्टमर के हितों में एक तरह से बाधा डालने का काम हो सकता है।
क्रेडिट कार्ड ग्राहकों की कटेगी जेब
अब सवाल उठता है कि इस फैसले का आखिर किस तरह के ग्राहकों पर इसका असर पड़ेगा? असल में इस फैसले से अब कस्टमरों को लेट फीस के साथ साथ दूसरे चार्जेस के तौर पर अब पहले के मुकाबले ज्यादा रकम चुकानी पड़ जाएगी। ऐसे में ग्राहकों के लिए यही एक सलाह दी जा रही है कि क्रेडिट कार्ड का बिल पे करते समय अंतिम तारीख का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। क्योंकि तय मियाद के बाद बैंक अब ग्राहकों से ब्याज के तौर पर 50 फीसदी से ज्यादा की रकम वसूलने के लिए आजाद हो गए हैं।

16 साल पहले तय की गई थी 30 प्रतिशत ब्याज की सीमा
साल 2008 में जब आयोग ने अपना फैसला सुनाते हुए जुर्माने की रकम पर 30 फीसदी की सीमा तय की थी तो तर्क यही था कि बैंकों और ग्राहकों के बीच जो करार होता है वो सामान्य हालात में नहीं होता। इसके अलावा ये भी बात होती थी कि क्रेडिट कार्ड लेने वाले ग्राहकों के पास मोलभाव करने की स्थिति नहीं होती है। बस ग्राहक सिर्फ एक ही बात कर सकता था कि क्रेडिट कार्ड को लेने से ही इनकार कर दे।
आयोग ने ज्यादा ब्याज वसूलने को कहा था गलत है
साल 2008 में NCDRC ने अपना फैसला देते समय कुछ देशों का भी हवाला दिया था। आयोग ने बैंकों के ज्यादा ब्याज वसूलने वाले फैसले को चुनौती देते हुए उसे इस कारोबार के लिए एक गलत परंपरा तक कहा था। साथ ही आयोग ने अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों का भी हवाला दिया था। अपने फैसले के बारे में आयोग ने कहा था कि अमेरिका में कोई भी बैंक या कंपनी क्रेडिट कार्ड के बिल पर लेट पेमेंट के तौर पर ब्याज की शक्ल में 9.99 % से ज्यादा वसूल नहीं सकते। जबकि ब्रिटेन में ये दर 17.99% है। जबकि ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी ये दर 18 से 24% तक ही बैठता है। हालांकि फिलीपींस, इंडोनेशिया और मैक्सिको जैसे देशों में जरूर ये दर 36 से 50 प्रतिशत तक हो जाती है। ऐसे में भारत में इस ऊंची कीमत पर ब्याज दर को वसूलने का कोई न तो औचित्य है और न ही कोई मतलब।
आयोग को सीमा तय करने का अधिकार नहीं
आयोग के फैसले को चुनौती देते हुए जब बैंकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की तो उसमें यही सवाल पूछा था कि क्या राष्ट्रीय उपभोग्ता अदालत यानी NCDRC को इस बात का अधिकार है कि वो ब्याज दरों की अधिकतम सीमा को तय कर सके। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने माना कि ऐसा तय करना आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। इस फैसलो को आने में 16 साल लगे। और मजे की बात ये है कि ये याचिका किसी भी हिन्दुस्तानी बैंक की तरफ से नहीं लगाई गई थी बल्कि विदेशी बैंकों ने ही आयोग के फैसले को चुनौती दी थी।
इन सावधानियों में छुपा है बचाव का तरीका
ऐसे में अब क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों के लिए ये सलाह बड़े काम की हो सकती है। यानी कुछ जरूरी बातें हैं क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करने की जिन्हें अगर ग्राहक ध्यान में रखते हैं तो उन्हें परेशान नहीं होना पड़ेगा।
- ये बात सही है कि क्रेडिट कार्ड से अगर आप किसी भी तरह सी कोई खरीदारी करते हैं तो आपको बिल का भुगतान को करने का थोड़ा वक्त मिल जाता है। ऐसे में ये आमतौर पर देखा जाता है कि कई दफा कुछ ऐसी गैरजरूरी चीजों की भी खरीदारी कर ली जाती है जिसकी उस वक्त कोई जरूरत भी नहीं होती। ऐसा भी देखने को मिलता है कि बाजवक्त लोग अपने जेब का ख्याल न करते हुए जरूरत से ज्यादा महंगी चीजें भी खरीद लेते हैं जो उनके बजट से कहीं बाहर होती है। जाहिर है ऐसी सूरत में बिल बढ़ जाता है और ग्राहक क्रेडिट कार्ड के उस बिल के मिनिमम पेमेंट की चक्रव्यूह में फंस जाता है। क्रेडिट कार्ड के वो ऐसा मकड़जाल है जिसमें कोई भी एक बार उलझा तो फिर उलझता चला जाता है।
- वैसे होना तो यही चाहिए कि क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों को बिल का भुगतान वक्त पर कर देना चाहिए। क्योंकि वक्त पर भुगतान न होने की सूरत में बैंक और कंपनियां अच्छी खासी पेनल्टी वसूल कर लेती हैं। मगर दुश्वारी तब खड़ी होती है जब ग्राहक का CIBIL रिपोर्ट खराब होने का खतरा बढ़ जााता है। क्योंकि एक बार CIBIL के खराब होने का मतलब है कि भविष्य में बैंक या किसी बड़ी कंपनी से कर्ज नहीं मिल सकेगा। अगर किसी भी तरह से लोन हो भी जाएगा तो उसके लिए ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ सकता है।
- ग्राहकों के पास अक्सर बैंक या क्रेडिट कार्ड देने वाली कंपनियों की तरफ से क्रेडिट लिमिट बढ़ाने के बेशुमार मनभावन ऑफर दिए जाते हैं। लालच में आकर ग्राहक अपने क्रेडिट कार्ड की लिमिट बढ़वा भी लेते हैं। जबकि होना ये चाहिए कि जितनी आपकी जेब की गहराई हो लिमिट भी उसी हिसाब से होनी चाहिए।
- अक्सर देखा जाता है कि कुछ ग्राहक ज्यादा फायदे के चक्कर में क्रेडिट कार्ड से ही निवेश करना शुरू कर देते हैं। शेयर बाजार या म्यूचुअल फंड में क्रेडिट कार्ड से निवेश करना बहुत घातक है। ये इसलिए भी खतरनाक है कि शेयर बाजार का कोई भरोसा नहीं। अगर बाजार गिरा तो निवेश करने वाले को जरूरत से ज्यादा नुकसान हो सकता है। ऐसे में ग्राहक पर समय पर बिल का भुगतान करने का दबाव बढ़ सकता है।
- वैसे ज्यादातर हिन्दुस्तानियों की एक फितरत आमतौर पर देखी गई है। वो बिना सोचे समझे अपने लोगों की मदद करने के लिए आगे आ ही जाते हैं। मदद करना अच्छी बात है, मगर उस सूरत में जब आपके पास कुछ अतिरिक्त हो। क्रेडिट कार्ड से किसी की मदद करना खुद के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। उधार लेकर उधार देना किसी भी सूरत में सही नहीं कहा जा सकता। ऐसे में क्रेडिट कार्ड भी एक तरह से उधार ही है। लिहाजा क्रेडिट कार्ड से किसी की मदद करना शायद मुश्किल में खुद को डालने जैसा है।

बड़ी ही दिलचस्प है क्रेडिट कार्ड की शुरुआत
इस क्रेडिट कार्ड की जब बात चल ही निकली है तो ये ख्याल भी आता होगा कि आखिर ये क्रेडिट कार्ड की शुरूआत कब और कहां से हुई।
वैसे क्रेडिट कार्ड के शुरू होने का किस्सा भी कम दिलचस्प नहीं है। असल में बात 1950 की है। अमेरिका में एक कारोबारी थे फ्रेंक मैकनामारा। वो डाइनर्स क्लब भी चलाते थे। हुआ ये कि एक रोज फ्रेंक मैकनामारा डिनर के सिलसिले में एक रेस्टोरेंट गए और जब अपना डिनर पूरा कर लिया और पेमेंट की बारी आई तो उन्हें महसूस हुआ कि वो अपना पर्स घर पर ही भूल गए हैं। बस उसी समय उन्हें ये ख्याल आया कि क्यों न कोई ऐसा कार्ड होना चाहिए जिससे किसी भी आदमी को ज्यादा पैसे लेकर घर से न निकलना पड़े और कार्ड से ही बिल का भुगतान हो जाए। तब उन्होंने अपने ही पार्टनर रॉल्फ श्नाइडर के साथ मिलकर इस आइडिया पर विचार किया और डाइनर्स क्लब कार्ड के नाम से एक कार्ड को तैयार किया।
डाइनर्स क्लब कार्ड से होती है क्रेडिट कार्ड की शुरुआत
ये बिना कैश के बिल का भुगतान करने का नया चलन था। और अगले ही साल यानी साल 1951 में डाइनर्स क्लब कार्ड के तौर पर वो क्रेडिट कार्ड चलन में आया। इस कार्ड को खासतौर पर चलन में लाया गया था जो रेस्टोरेंट जाने वाले और ट्रैवल करने वाले ग्राहकों के लिए ही था। ये ऐसे ग्राहकों के लिए सुविधा थी इसे खासतौर पर रेस्टोरेंट और ट्रैवल के लिए बनाया गया था। असल में इस कार्ड का उद्देश्य ही यही था कि उन ग्राहकों को सहूलियत दिया जाए जो भुगतान से पहले सुविधाएं लेना चाहते थे लेकिन भुगतान करने के मामले में वो पक्के हैं।
पहले उधार देने का ये था तरीका
हालांकि इस कार्ड से भी बहुत पहले साल 1920 के दशक में अमेरिका के कुछ दुकानदारों ने डिपार्टमेंट स्टोर क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराने शुरू कर दिए थे जिन्हें चार्ज कार्ड के नाम से भी जाना जाता था। असल में उस कार्ड को एक छोटे से रोलर के जरिए चलाकर उसकी एक कॉपी तैयार कर ली जाती थी।
एक उपन्यास में मिला क्रेडिट कार्ड का सुराग
लेकिन कहते हैं कि क्रेडिट कार्ड का इतिहास इससे भी कहीं पुराना है। इसकी शुरूआत की कहानी 1887 के आस पास की बताई जाती है। असल में उस साल एडवर्ड बेलामी का एक उपन्यास लुकिंग बैकवर्ड आया था और उस उपन्यास में बेलामी ने पहली बार क्रेडिट कार्ड शब्द का इस्तेमाल किया।

1960 के दशक में शुरू हुआ क्रेडिट कार्ड
मगर आम ग्राहकों के लिए साल 1958 में बैंक ऑफ अमेरिका ने पहली बार बैंकअमेरिकार्ड के नाम से क्रेडिट कार्ड की शुरूआत की थी। सच कहा जाए तो यहीं से प्लास्टिक कार्ड की शुरुआत भी मानी जाती है। इसी कार्ड में जब एक मैग्नेटिक स्ट्रिप जोड़ी गई तो ट्रांजेक्शन तेज भी हो गया और कार्ड ज्यादा सुरक्षित कहलाने लगा। रिवॉल्विंग क्रेडिट देने के लिहाज से ये दुनिया का पहला कार्ड कहलाता है। इसी सिलसिले में क्रेडिट कार्ड का अगला पड़ाव साल 1976 को माना जाता है जब बैंकअमेरिकार्ड वीज़ा में बदल गया।
1980 के दशक में भारत पहुँचा क्रेडिट कार्ड
अमेरिका और यूरोप में कामयाबी हासिल करने के बाद ही क्रेडिट कार्ड का चलन 1980 के दशक में पहली बार भारत में देखने को मिलता है। हालांकि भारत में पहले खर्च करें और फिर भुगतान करने वाली परंपरा सदियों से चली आ रही है। लेकिन क्रेडिट कार्ड के आते ही इस चलन में तेज उछाल आ गया। भारत में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने ही सबसे पहला क्रेडिट कार्ड 1988 में लॉन्च किया था। यहीं से भारत में एक नई परंपरा नए रिवाज और नए इतिहास की बुनियाद पड़ गई। स्टेट बैंक के उस क्रेडिट कार्ड को मिली कामयाबी के बाद ही भारत के दूसरे बैंकों और वित्तीय संस्थाओं ने क्रेडिट कार्ड के उस मॉडल को अपना बना लिया और यहीं से बाजार का रुख और तौर तरीका बदल गया।
तीन सालों में 63 फीसदी उछला क्रेडिट कार्ड
मौजूदा दौर में अगर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के दिए गए आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में बीते बरस यानी 2023 में 9 करोड़ से ज्यादा क्रेडिट कार्ड चलन में हैं। जबकि उससे एक साल पहले यानी 2022 में ये गिनती 8 करोड़ के आस पास थी। सीधा सा गणित है कि एक साल में क्रेडिट कार्ड के ग्राहकों की संख्या में 17 प्रतिशत का उछाल देखने को मिला। अगर और पीछे जाते हैं तो 2020 में भारत में क्रेडिट कार्ड की संख्या 5.6 करोड़ के आस पास की बताई जाती है। मतलब साफ है कि महज तीन साल के भीतर ही क्रेडिट कार्ड ग्राहकों के लिहाज से 63 फीसदी ऊपर उठ गया है।
अमेरिका में क्रेडिट कार्ड का सबसे ज्यादा इस्तेमाल
भारत से दूर सात समंदर पार अमेरिका जैसे मुल्कों में करीब 82 प्रतिशत लोगों के पास कम से कम एक क्रेडिट कार्ड तो जरूर है। लेकिन वहां बड़ी संख्या में लोगों के पास एक से ज्यादा क्रेडिट कार्ड होते हैं। एक आंकडा इस बात की गवाही देने के लिए काफी है कि अमेरिका में एक सर्वे के मुताबिक हरेक अमेरिकी नागरिक के पास औसत 3.84 क्रेडिट कार्ड होते हैं।