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क्या ऐसे होगी किसानों की आय दोगुनी, हरी लाइन में छुपा लाल खतरा: किसानों के दर्द पर पर्दा डालते सरकारी आंकड़े

Dayitva Media Farmers And Its Problems
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श्यामदत्त चतुर्वेदी:

जिस समय सारी दुनिया अपने बिस्तर पर दुबकी होती है, सूरज को निकलने में वक्त होता है, उस समय सिर्फ दो ही लोग जाग रहे होते हैं, एक सीमा पर तैनात जवान और दूसरा देश के भीतर किसान। किसान वही, जिसे देश का अन्नदाता भी कहा जाता है। मुर्गे की बांग और सूरज की रोशनी से बहुत पहले जागने वाला किसान जबतक संसार की नींद टूटती है तब तक अपने पशुओं और फसल की सेवा में लग चुका होता है। ताकि जिस वक्त देश जागे तो उसे अपने पेट को भरने के लिए ज्यादा जतन न करना पड़े। सूरज की तपिश, बारिश की बेरुखी, कीटों के कहर और मंडी की मार के बावजूद वो लगातार काम करता रहता है। लेकिन जब वो अपनी मेहनत का फल लेकर बाजार पहुँचता है तो कोई मालदार सेठ या यूं कहें की गद्दी वाला कारोबारी उसकी मेहनत को माटी के मोल खरीद लेता है।

हाड़तोड़ मेहनत और गाढ़े पसीने से भीगी फसल देखने में देश को खुशहाल तो बना रही है, लेकिन इसके बावजूद किसान की न तो गरीबी दूर हो रही और न ही कर्ज के बोझ सिर से उतर रहा। अपने खून की एक एक बूंद को पसीना बनाकर वो दिनभर खेतों को सींचता रहता है, तमाम थकान के बाद जब उसे उसकी मेहनत का नजरना मिलता है तो वो भी बूंद भर ही होता है। ये कमाई इतनी भी नहीं होती कि उसके परिवार का पेट भी ढंग से भर सके।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह कहते थे ‘देश में खुशहाली तब तक नहीं आ सकती, जब तक देश का किसान खुश नहीं होगा।’ खैर बात हुई तो आप ये भी जान लें कि 23 दिसंबर को चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन को ही किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। अब मुद्दे पर आते हैं… साल 1947 में आजादी होने के बाद विकास ने खासी रफ्तार पकड़ी है। जाहिर है तरक्की पसंद मुल्क में खेती और किसानी के तौर तरीके भी काफी बदले हैं। यकीनन किसानों और मजदूरों की औसत आमदनी में भी इजाफा हुआ है। लेकिन एक बेहद कड़वी सच्चाई ये भी है कि किसानों की खुशहाली और उनकी जरूरत के बीच की खाई अब भी करीब-करीब उतनी ही है जितनी 75 बरस पहले हुआ करती थी। एक दो प्रतिशत इधर उधर कर लो। । पहले भी किसान संघर्ष करता था और आज भी किसान को उतना ही पसीना बहाना पड़ता है। उसकी मुश्किलों की शक्ल जरूर बदली है लेकिन चुनौतियां जस की तस बनी हुई हैं। सरकारों ने किसान के लिए अलग अलग योजनाओं और नीतियों पर काम जरूर किया है लेकिन कागजों पर बनी योजनाएँ जमीन पर उतरकर किसान के चेहरे पर मुस्कान अब भी नहीं ला सकी हैं। जरूरी है कि भारत में खेती, किसान, उसकी फसल के साथ साथ उसकी कमाई पर तो बात हो जाए लेकिन उन समस्याओं पर भी नज़र डालना बेहद जरूरी है जिनके संभावित समाधान मुमकिन है कि तपती हुई धूप में किसी तरुवर की छांव जैसा काम करे।

कृषि प्रधान देश में गरीब किसान

इसमें कोई दो राय की बात नहीं है कि कृषि प्रधान देश भारत में हमेशा से ही सरकार, सियासी दलों के एजेंडे में किसान रहता है। हर कोई किसान की आमदनी बढ़ाने की बात भी करते हैं। लेकिन ये पूरा सच नहीं है। असल में किसान आज भी अपने हक की खातिर बार बार सड़क पर उतरकर हल्ला मचाने को मजबूर होते हैं।

हालांकि, किसानों का बराबर वर्गीकरण न होने की वजह से किसानों की औसत आए तो सबको नजर आ जाती है लेकिन निचले तबके के किसान का वही हाल हैं। अगर आंकड़ों की जुबानी सुनें तो देश में 70 से 80 फीसदी किसान गरीबी रेखा के नीचे ही आता है। जबकि 15 से 10 फीसदी किसानों की गिनती मध्यम वर्ग में की जा सकती है। अमीर किसानों की संख्या देश में 5 फीसदी के आसपास ठहरती है। इतने बड़े अंतर की सबसे बड़ी वजह किसानों के जरिए उगाई जा रही फसल के प्रकार और उसकी मात्रा है।

GDP में घटा किसानों का हिस्सा

जब हम आजाद हुए तो कृषि प्रधान देश के नाम से जाने जाते थे। जाने तो अब भी जाते हैं, बस अंतर इतना है कि GDP छलांग मारती गई लेकिन किसानों को अपने साथ ले जाना भूल गई। साल 2011 में हुई जनगणना के आधार पर बात करें तो आज के समय में देश की 56 फीसदी से कुछ ज्यादा आबादी किसानी या उससे जुड़े ही काम करती है। हालांकि, देश की GDP में इसका योगदान महज 18.2 फीसदी के आसपास है। ये आंकड़े चिंता में इसलिए डालते हैं क्योंकि, 1950-51 में देश की GDP में कृषि का योगदान 54.6 फीसदी हुई करता था।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) ने साल 2018-19 में कुछ आंकड़े जारी किए थे। इसके अनुसार, भारत में किसान परिवारों की औसत आय महज 10218 रुपये है। इसमें से उनके पास खेती से 3789, पशुपालन से 1582 और मजदूरी से 4063 रुपये आते हैं। वहीं किसान का परिवार कुछ अन्य स्रोतों से 775 रुपये का एक्स्ट्रा इनकम कर पाता है। साफ है एक परिवार में कम से कम 4 लोग होते हैं। ऐसे में 10 हजार रुपये में उस परिवार का पालन कैसे मुमकिन है। खाई जैसे अंतर इलाकों में भी है। पंजाब, हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान देश के औसत से ज्यादा कमाते हैं। वहीं बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ समेत मध्य भारत के किसानों की औसत आय राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है।

घट रहा कृषि निर्यात

WTO के आंकड़ों के अनुसार, साल 2024 में भारत का कृषि निर्यात घटा है। साल 2024-25 में कृषि निर्यात 48.9 बिलियन डॉलर के आसपास पहुंचा है जो ठीक एक साल पहले 53.2 बिलियन डॉलर था। PIB की रिपोर्ट बताती है कि साल 1950-51 में भारत 149 करोड़ रुपये का कृषि निर्यात करता था। यह आंकड़ा 2019-20 में बढ़कर 2.53 लाख करोड़ रुपये हो गया है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी रहती है। इसी के साथ हमारे पास दुनिया में कृषि योग्य भूमि की दूसरी सबसे बड़ी लैंड होल्डिंग है। इसके बाद भी हम निर्यात में काफी पीछे हैं।

भारत में फसलों के उत्पादन और निर्यात के आंकड़ों को देखकर कोई भी आसानी से यह कह सकता है की भाई आबादी है तो खपत भी है। इसी कारण निर्यात नहीं हो पाता है। हालांकि, ये सच नहीं है। देश में गलत प्रबंधन के कारण हजारों टन फसल उत्पादन के बाद बर्बाद हो जाती है। निर्यात को लेकर सही नीति न होने के कारण किसान का माल देश में ही रह जाता है और इसी कारण से उसके आय में बढ़ोतरी भी नहीं हो पाती है।

किसानों का कृषि कार्य के लिए योजनाएं

किसान की आमदनी बढ़ाने और किसानों का विकास करने के लिए सरकारी तौर पर देश में कई योजनाओं चलाई जा रही हैं। यहां तक कि सरकार के तरफ से कृषि कार्य में सब्सिडी और नकद सहायता भी मुहैया कराई जाती है। इसके साथ ही किसानों को उन्नत खेती के लिए तकनीकी भी दी जाती है। सबसे बड़ी और खास बात यही कि कई फसलों को सरकार MSP पर खरीद भी लेती है। इससे किसानों को एक निश्चित कीमत मिल जाती है और उसकी फसल का बाजार मूल्य तय हो जाता है।

PM किसान योजना

भारत में PM किसान योजना के नाम से एक साथ कई स्कीम देश के किसानों के लिए चलाई जा रही हैं। इसमें उन्हें सम्मान निधि से लेकर बीमा और पेंशन तक मिल रही है।

किसान सम्मान निधि: ये योजना किसानों को नगद लाभ देती है। इसमें सरकार हर साल रजिस्टर्ड किसानों को 6 हजार रुपये देती है। कुछ राज्य सरकार इस योजना में अपनी ओर से राशि जोडकर या फिर किसी अन्य योजना को जोड़कर अधिक का लाभ देती हैं। योजना के शुरू होने से लेकर अभी 18 किस्त दी जा चुकी हैं। इसमें देश के 11 करोड़ किसानों को 3.46 लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है।

फसल बीमा योजना: इस योजना के तहत किसानों को कुदरत के कहर, कीटों और बीमारियों से हुए नुकसान से बचाने की कोशिश की जाती है। सरकार इसके लिए एक निश्चित प्रीमियम भी लेती है और फसल का नुकसान होने पर किसानों को मुआवजा देती है। खरीब की फसल के लिए 2 फीसदी, रबी के लिए 1.5 और व्यापारिक या बागवानी वाली फसलों के लिए 5 फीसदी का प्रीमियम लिया जाता है। इस योजना में अब तक 1,67,475 करोड़ के दावों में 98 फीसदी दावों का भुगतान भी हो चुका है।

मानधन योजना: यह योजना किसानों को उस समय बचाती है जब वो शरीर से कमजोर होने लगता है और खेती का काम नहीं कर पाता। इसमें सरकार किसानों के 60 साल की उम्र पूरी होने के बाद उनको 3 हजार रुपये हर महीने पेंशन के तौर पर देती है। इसके लिए 10 से 40 साल तक के किसानों को 55 रुपये से लेकर 200 रुपये का हर महीने योगदान देना पड़ता है।

इसके अलावा भी किसानों की सहूलियत के लिए कुछ और योजनाएं भी चलाई जा रही हैं

कृषि अवसंरचना निधि: इसमें सामुदायिक किसानों को कटाई के बाद जमीन की अवसंरचना के लिए राशि दी जाती है।
ड्रोन दीदी: इस योजना में महिला स्वयं सहायता समूहों को किसानी के कामों के लिए ड्रोन दिए जाते हैं।
इंफ्रास्ट्रक्चर फंड: इसमें बुनियादी ढांचे के लिए फंड दिया जाता है। कृषि उद्यमी, स्टार्ट-अप को लाभ मिलता है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड: किसानों को उनके मिट्टी की गुणवत्ता और सुधार के लिए उपाय उपाय बताए जाते हैं।
क्रेडिट कार्ड: इस योजना में किसानों को कृषि कार्य के लिए कम ब्याज पर लोन दिया जाता है।

इन तमाम योजनाओं के अलावा भी किसानों को परम्परागत कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, मिशन इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर समेत अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग योजनाओं के जरिए लाभ दिया जाता है। हालांकि, इन सबके बावजूद भी किसानों की आय और बड़े किसानों के बीच की आय में भारी भरकम अंतर है। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण ये है कि देश में किसानों की परिभाषा क्या होगी आजादी के बाद से अभी तक ये तय भी नहीं हो पाया है।

कौन है किसान?

साधारण शब्दों में कहा जाए तो वो व्यक्ति या परिवार किसान है जो कृषि का काम करता है। हालांकि, भारत के राष्ट्रीय किसान नीति में किसानों का वर्गीकरण भूमिहीन कृषक श्रमिक, बंटाईदार, काश्तगार, सीमांत, उप सीमांत, बड़े धारणों वाले किसान, पशुपालन, बागान और जनजातीय परिवारों के आधार पर बांटा गया है। इसके बाद भी किसानों के लिए बनाई गई अधिकतर योजनाएं सभी के लिए एक सी ही है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा छोटे और गरीब किसानों को उठाना पड़ता है।

देश में 5 फीसदी ऐसे किसान हैं जिनके पास सबसे ज्यादा जमीन है। सीधी सी बात है कि उनके पास फसल भी सबसे ज्यादा आती होगी। ऐसे में MSP का बड़ा हिस्सा उन्हीं किसानों के पास ज्यादा है। छोटे और मजदूर किसानों के पास तो मंडी पहुंचने के लिए भी पैसों की कमी होती है। इतनी ही नहीं देश में किसानों की औसत आय 10 हजार रुपये हैं। वहीं कुल जमा कुछ किसानों की आए करोड़ों में भी है। इसमें एक बहुत बड़ा अंतर पैदा हो जाता है।

किसानों की समस्याएं

देश के किसानों के पास कई तरह की समस्याएं है। इसमें आर्थिक समस्याएं, सिंचाई और जल समस्या, टेक्नोलॉजी की समस्याएं, जलवायु परिवर्तन, बाजार की समस्याएं है। एक और सबसे बड़ी समस्या है जिसे सामाजिक समस्या है। आय के मामले में किसान ज्यादा पीछे है। इसी कारण उसे समाज में कमतर ही आंका जाता है।

किसानों की समस्या का समाधान

प्रकृति के कारण होने वाली किसानों की समस्या का हल कमतर ही सरकार और संगठनों के पास होता है। हालांकि, अन्य बड़े कारणों को लेकर विस्तृत कार्य योजना पर काम किया जा सकता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है कि सरकार किसानों को आय और लैंड होल्डिंग के आधार पर वर्गीकृत करें और इस आधार पर योजनाएं बनाए। इसके अलावा देश को कृषि में अव्वल बनाने के लिए जरूरी है कि हम किसान के फसलों को मंडी देने और उचित मूल्य देने के लिए काम करें। कई बार ऐसा होता है कि MSP से ज्यादा बाजार मूल्य होता है।

आंकड़े बताते हैं कि लगातार देश में छोटे किसानों की संख्या में कमी आई है। यानी कृषि की जमीन टुकड़ों में बंट गई। 70 के दशक में सीमांत किसानों की संख्या 36 मिलियन थी जो 2010 में बढ़कर 94 मिनिमम हो गई। वहीं बड़े किसान 3 मिनियन से घटकर 1 मिलियन हो गए हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि अब छोटे, मजदूर ही किसानी कर रहे हैं। बड़ी संख्या या बड़ी मात्रा में किसानों का पलायन हो गया है। सीमांत किसानों में अधिकतर मजदूर हैं। इस खाई को पाटने के साथ ही, बिजली पानी की समस्या को दूर करने में ही किसान का भला हो सकता है। देश में बड़ी आम समस्या है कि शहरों में 24 घंटे बिजली रहती है लेकिन ग्रामीण भारत में आज भी कटौती की जाती है। इसका असर यहां होता है कि किसान समय से फसलों को पानी नहीं दे पाता है। अंत में ये उत्पादन पर नजर आता है। सरकारों को चाहिए की किसानों के साथ हो रहे इस दोहरे रवैये को रोकें। निर्यात के लिए व्यापक रणनीति हो साथ ही किसान को आसान बाजार मिल पाए। तभी संभव होगा कि भारत एक बार फिर से दुनिया को अपने कृषि उत्पादों से भर पाएगा।

Author

  • श्यामदत्त चतुर्वेदी - दायित्व मीडिया

    श्यामदत्त चतुर्वेदी, दायित्व मीडिया (Dayitva Media) में अपने 5 साल से ज्यादा के अनुभव के साथ बतौर सीनियर सब एडीटर जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इससे पहले इन्होंने सफायर मीडिया (Sapphire Media) के इंडिया डेली लाइव (India Daily Live) और जनभावना टाइम्स (JBT) के लिए बतौर सब एडिटर जिम्मेदारी निभाई है। इससे पहले इन्होंने ETV Bharat, (हैदराबाद), way2news (शॉर्ट न्यूज एप), इंडिया डॉटकॉम (Zee News) के लिए काम किया है। इन्हें लिखना, पढ़ना और घूमने के साथ खाना बनाना और खाना पसंद है। श्याम राजनीतिक खबरों के साथ, क्राइम और हेल्थ-लाइफस्टाइल में अच्छी पकड़ रखते हैं। जनसरोकार की खबरों को लिखने में इन्हें विशेष रुचि है।

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