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श्यामदत्त चतुर्वेदी:
सोशल मीडिया के जमाने में शायर नुरैन अंसारी लिखते हैं-
“तनख्वाह का कुछ रुपया राशन में गया, कुछ खर्च हो गया दवाई पर।
थोड़ा बहुत लेन-देन में खत्म हुआ, बाकी खर्च हुआ बच्चों की पढ़ाई पर।
समझ में नहीं आता क्या लिखूं महंगाई पर, मोहताज हुआ आदमी पाई-पाई पर।”
Investment Plan And Bank Data: कुल जमा बात ऐसी है कि आदमी के पास कमाई में बचत करने का स्कोप ही नहीं बच रहा है। शायर ने जो कहा वो कहा, लेकिन आंकड़े भी यही बता रहे हैं कि आम भारतीय परंपरागत बचत के तरीकों से बाहर निकल रहा है। अब सवाल ये उठता है कि वो महंगाई का मारा है जो सारे पैसे खर्च कर दे रहा है या फिर कहीं और उन पैसों का निवेश कर रहा है। उसकी कमाई का हिस्सा आखिर जा कहां रहा है? अगर आम आदमी अपने पैसे खातों से निकाल रहा है तो इसपर बैंकों की टेंशन क्यों बढ़ी हुई है?
साल 2010 में आई फिल्म ‘पीपली लाइव’ का बड़ा मशहूर गाना ‘सखी सैया तो बहुते कमात हैं, महंगाई डायन खाय जात है’। भले ही लोगों ने इस फिल्म को नहीं देखा लेकिन इसका गाना तो हर किसी को पता है। क्योंकि ये आम भारतीय, मिडिल क्लास आदमी से खुद को जोड़ लेता है। आम परिवार महंगाई की मार झेलते हुए भी अपनी कमाई से महीने के खर्च के बाद बचत की प्लानिंग करता है। इसके लिए पारंपरिक रूप से वह पैसों को बचत खातों में डाल देता है। एक बड़ी राशि बनने के बाद वो उसे अपने भविष्य के लिए FD में बदल देता है। हालांकि, पिछले कुछ सालों में ये परंपरा बदल गई है इससे बैंकों को भी चिंता में डाल दिया है।
स्मार्ट हुए लोग, खूब ले रहे रिस्क
लगातार छलांग मारते महंगाई के कांटे को टक्कर देने के लिए आम मिडिल क्लास भारतीय इस समय काफी स्मार्ट हो गया है। उसे ये मालूम हो गया है कि बैंक में पड़ी उसकी बचत भले ही ज्यादा सुरक्षित है, लेकिन लगातार बढ़ रही महंगाई के कारण उसके दाम लगातार कम होते जा रहे हैं। क्योंकि, फाइनेंसियल इंस्टीट्यूट से उसको वो दाम नहीं मिल रहा है जो बाजार में उपलब्ध अन्य माध्यमों से मिल रहा है। ऐसे में बंदा रिस्क न ले तो और भला क्या करे?
रिस्क तो ठीक है। लोग अपनी बचत को मल्टीपल ग्रोथ के लिए अन्य विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं और अन्य स्थानों पर निवेश कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने सबसे सुरक्षित और भरोसेमंद विकल्प खोजा है। ये है सोना और घर खरीदना या इनके लिए एक हिस्सा निवेश करना। एक रिपोर्ट बताती है कि घरेलू बचत में घर और सोने यानी गोल्ड का हिस्सा 23 फीसदी तक बढ़ गया है।
आंकड़े साफ बता रहे हैं कि आम आदमी अपनी आमदनी से घरेलू बचत में FD, छोटी बचत योजना और फिक्स शेयर में कम पैसे लगा रहा है। कुल मिलाकर पिछले 2 साल में घरेलू बचत से बैंकों जमा करीब 23 फीसदी कम हुआ है। ठीक इसके उलट सोना खरीदी और घर खरीदी में 23 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। यानी साफ है आम आदमी ये मानकर चल रहा है कि भविष्य में सोना और घर उसे अच्छे रिटर्न देने वाले हैं।
रिस्क लेने में भी कोई कमी नहीं है
दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल करीब 3 करोड़ डीमैट खाते खोले जा रहे हैं। इस तरह से नवंबर 2024 तक देश में कुल डीमैट खातों की संख्या 17.76 करोड़ हो गई है जो 10 साल पहले यानी 2014 में महज 2.2 करोड़ के आसपास ही थी। यानी आम भारतीय अपनी बचत के पैसों को शेयर बाजार और SIP में लगा रहा है और इससे मोटा मुनाफा कमा रहा है।
किन चीजों पर कितना निवेश
भविष्य को सुरक्षित करने और बचत को बढ़ाने के साथ उसने बढ़ियां ग्रोथ के लिए लोग प्लानिंग के साथ निवेश कर रहे हैं। इसके लिए बैंक जमा, जीवन बीमा, नकदी जमा, म्यूचुअल फंड, अन्य छोटी बचत का हिस्सा प्लानिंग के साथ घटाया और बढ़ाया जा रहा है।
अलग-अलग सेक्टर में साल 2021 और 2023 में निवेश के आंकड़े साफ जाहिर कर रहे हैं कि निवेशक कहां से लाभ लेना चाह रहा है और कहां से अपने रिस्क को कम करना चाह रहा है? आम आदमी की बैंकों पर निर्भरता कम हुई है। इसकी जगह वो अपने वित्तीय बचत में जीवन बीमा की हिस्सा बढ़ा रहा है। इसके साथ ही वो छोटी बचतों पर भी खासा ध्यान दे रहा है। सबसे ज्यादा निवेश वो म्यूचुअल फंड में बढ़ रहा है।
कोरोना के बाद बदले हालात और सोच
2020 में कोरोना कोरोना महामारी ने दुनिया भर में तबाही मचाई, उसके बाद से लोगों की कमाई और उनके बचत के स्ट्रेक्टर में काफी बदलाव आया है। साल 2023 में सोना और घर के लिए बचत का हिस्सा 71.5 फीसदी तक पहुंच गया। वो इससे 2 साल पहले 2021 में 48.3 फीसदी था। इसका नतीजा ये हुआ है कि लोग कर्ज तो ले रहे हैं, लेकिन बैंकों में सालों से पड़ी अपनी पूंजी भी निकाल रहे हैं। इसका असर ये हुआ है कि बैंकों का डिपॉजिट 2 साल में 2.5 फीसदी तक कम हो गया है।
बदले पैटर्न से बढ़ा GDP में हिस्सा
भले ही लोगों ने अपने बचत और निवेश का तरीका बदल दिया हो लेकिन वो इस बदले तरीके में पहले के मुकाबले ज्यादा निवेश कर रहे हैं। घरेलू बचत से पैसे निकालकर शेयर बाजार में लगाने से ये हिस्सा देश की GDP का 1 फीसदी हो गया है। इसका परिणाम ये हुआ है कि 10 साल में लोगों की कुल वित्तीय बचत GDP की तुलना में 5 फीसदी हो गई है। इन दिनों देश की कुल वित्तीय बचत 14.16 करोड़ रुपये हैं जो 2014 में 11.74 करोड़ रुपये थी।
क्यों बदल गया पैटर्न?
अब सवाल उठता है कि आखिर लोगों ने बैंक खातों से पैसे निकाल अन्य जगहों पर निवेश करना क्यों शुरू किया है। आखिर बचत और चालू खाते के नुकाबले अन्य स्थानों पर कितना लाभ मिलता है? सामान्य तौर पर बैंकों में जमाराशि पर 3 से 5 फीसदी तक ब्याज मिल रहा है। हालांकि, कुछ बैंक 7 फीसदी ब्याज की बात करते हैं लेकिन इसके लिए मोटी जमाराशि मांगी जाती है। फिक्स बचत और अच्छे रिटर्न के लिए बैंकों के पास केवल FD एक विकल्प होता है लेकिन इसके लिए इंतजार काफी लंबा करना होता है। पोस्ट ऑफिस और कुछ अन्य बैंकों से किसान बचत पत्र भी जारी होता है इसमें एक बार में निवेश की गई राशि 115 महीने यानी लगभग 9.5 साल में दोगुनी हो जाती है। देखिए कुछ बैंकों में मिल अलग-अलग जमा योजना पर मिलने वाला ब्याज
बैंकों की चिंता क्यों बढ़ी?
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के जारी आंकड़े बताते हैं कि इसके पास साल 2023-24 में चालू और बचत खाते में जमा राशि 41 फीसदी तक घट गई है। 2022 में आंकड़ा 43.5 फीसदी था। यानी जो पैसा निकाला गया वो घर, सोना खरीदी में लग दिया गया है या फिर उसे शेयर बाजार में निवेश कर दिया गया है। आम आदमी के लिहाज से ये बात अच्छी है लेकिन बैंकों से पैसे निकालने के कारण उनकी डिपॉजिट वैल्यू कम हो रही है। दूसरी तरफ लोन लेने वालों की संख्या में बढ़ोतरी भी हुई है।
बचत में हमारा दायित्व क्या है?
महंगाई की भागम भाग दौड़ हमारी बचत को लगातार पीछे छोड़ रही है। ऐसे में स्मार्ट निवेश का तरीका बेहतर विकल्प बन रहा है। हालांकि, सोना और घर की बात छोड़ दे या फिर कुछ हद तक शेयर बाजार के साथ ये एसेट भी मार्केट के ऊपर निर्भर हैं। बचत और निवेश की आदतें हमारे भविष्य को जरूर सुरक्षित कर सकती हैं, लेकिन कई मानकों पर जोखिम भी उतना ही ज्यादा है। इसलिए हमारा ये दायित्व बनता है कि हम अपने और परिवार के भविष्य के लिए एक सुरक्षित निवेश भी जारी रखें जो विकट परिस्थितियों में तत्काल हमें काम आए।