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घटना नंबर-1
बात 2017 की है। मुंबई की अंधेरी में एक बहुत ही पॉश कॉलोनी में एक महिला अकेली रहती थी। बेटा अमेरिका में इंजीनियर था। कभी-कभार उसकी अपनी मां से बात हो जाया करती थी। कुछ ऐसा हुआ कि साल भर तक उसकी मां से उसकी बात नहीं हो पाई। जब अमेरिका से वह लौटा, मां को फोन लगाया तो फोन लगा नहीं। घर पहुंचा, फ्लैट का दरवाजा तोड़वाया तो वहां से बदबू का भभका उठा। भीतर उसकी मां का कंकाल पड़ा हुआ था। इस महिला का नाम था आशा साहनी। पति की चार साल पहले मौत हो गई थी। इकलौता बेटा अमेरिका में था। बेटे से बार-बार कहती थी कि बेटा मुझे वृद्धाश्रम पहुंचा दे, लेकिन बेटे के पास समय नहीं था। नतीजा, करोड़ों की जायदाद की मालकिन आशा साहनी तिल-तिल कर प्राण त्यागने पर मजबूर हुईं। डॉक्टरों की मानें तो करीब 5 महीने पहले ही आशा साहनी की मौत हो गई थी, धीरे-धीरे शरीर गला और बचा तो बस कंकाल।
घटना नंबर- 2
बात मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की है। मामला बिल्कुल नया है।भोपाल की ललिता देवी वृद्धावस्था में बीमार रहती थीं। उनका बेटे अपनी पत्नी के साथ उन्हें घर के भीतर छोड़कर, बाहर से ताला मारकर उज्जैन चला गया। दो दिन तक ललिता देवी घर में पानी की एक बूंद के लिए भी तड़पती रहीं। आखिरकार उनकी मौत हो गई। घर का ताला खोला गया तो उसमें से उनकी लाश निकली।
क्या कहती हैं ये दोनों घटनाएं?
इन दोनों घटनाओं का मतलब यह नहीं है कि हम उन कुपुत्रों को कोसने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी मां का ख्याल नहीं किया, जिसकी वजह से उनकी माताएं तड़प-तड़पकर मर गईं। विषय यह है कि आखिर किस हाल में हैं हमारे बुजुर्ग, क्या है उनकी असली समस्या। क्या हमारे बुजुर्ग समाज पर बोझ बन जा रहे हैं। पूरी जिंदगी, जिन्होंने मेहनत की, घर-बार बनाया। बच्चों को पाल-पोसकर, पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाया, वे क्यों जीवन की सांध्य बेला में यूं अकेलेपन का शिकार हो जा रहे हैं कि घर में तड़प-तड़पकर जान देने पर मजबूर हो जा रहे हैं । क्यों उनकी बीमारी के समुचित इलाज नहीं है, क्यों उनकी देखभाल, उनके स्वास्थ्य की सही परवाह नहीं हो पा रही है। बुजुर्गों के प्रति हमारे समाज और हमारे देश के आखिर क्या दायित्व हैं..? हम इस विषय पर भी बात रखेंगे, लेकिन उससे पहले बुजुर्गों को लेकर कुछ आंकड़े देख लें।


बुजुर्गों का अकेलापन एक बड़ी समस्या
बात अगर तीन चार दशक पूर्व के गांवों की करें तो बुजुर्ग गांवों की बहुमूल्य संपत्ति हुआ करते थे। गांव का अपना सामाजिक ताना-बाना होता था। हर मामले में बड़े- बुजुर्गों की राय लेना लोग अपना सौभाग्य समझते थे। परिवार और गांव में उनकी अच्छी खासी अहमियत हुआ करती थी। हर उम्र के लोगों का अपनी उम्र के लोगों के साथ मिलना-जुलना, उठना-बैठना था। सभी अपनी संगत में मस्त थे। समाज में उनकी सक्रिय भागेदारी हुआ करती थी। नई पीढ़ी उनके सम्मान में झुकी रहती थी। सर उठाने की हिम्मत तक नहीं थी।
बुजुर्गों की कदर को लेकर कवियों और शायरों ने भी खूब लिखा है,
इन्हीं बुजुर्गों की दुआओं से रोशन है ये जहां,
वरना अकेले चिराग में इतनी रोशनी कहां।
उनके लफ्ज़ों में छुपा है तजुर्बे का समंदर,
वो बुजुर्ग हैं, वक्त की हर चाल समझते हैं।
तेजी से बदलते वक्त और शहरों की तरफ युवाओं के पलायन ने गांवों में बुजुर्गों की स्थिति बदली, फिर भी गांव में अभी गनीमत है, लेकिन शहरी इलाकों में बुजुर्गों की हालत खराब होती चली गई । वर्तमान समय में बुजुर्गों का अकेलापन एक गंभीर समस्या बनकर उभरी है। यह बात भारत की ही नहीं है, यह ग्लोबल समस्या है, जिससे पूरी दुनिया जूझ रही है। बुजुर्गों को देने के लिए नई पीढ़ी के पास वक्त नहीं है, उनकी प्राथमिकता की सूची से घर के ही बड़े बुजुर्ग बाहर होते जाते हैं। बचता है बुजुर्गों का अकेलापन। ये अकेलापन इनकी सेहत के लिए बहुत ही हानिकारक होता है। तमाम रोगों का शिकार बना देता है। मौत के मुंह में ढकेल देता है। बुजुर्गों के अकेलेपन की वजह से जो रोग हो सकते हैं, उनकी जरा फेहरिस्त देख लीजिए।
नेशनल स्कूल ऑफ एजिंग की एक रिसर्च के मुताबिक अमेरिका में 28 फीसदी बुजुर्ग अकेलेपन का शिकार हैं। इसमें भी गंभीर बात यह है कि तमाम बुजुर्ग भीड़ में रहने के बावजूद अकेलापन महसूस करते हैं। यह अकेलापन उन्हें चिंतित करता है और मानसिक अवसाद यानी डिप्रेशन की तरफ ढकेलता है। अकेलेपन की वजह से उन्हें चिंता घेरती है, तनाव होता है, जिसके चलते शुगर, ब्लड प्रेशर और हृदय रोग की समस्याएं घेर लेती हैं । बुजुर्गों का अकेलापन उनकी मानसिक स्थिति के लिए घातक होता है। अकेलेपन की वजह से उन्हें अल्जाइमर, डिप्रेशन जैसे रोग आ घेरते हैं। उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ जाती है ।
बुजुर्गों की बात करें तो अमेरिका या दूसरे देशों से भारत की स्थिति अलग है। पश्चिमी में पारिवारिक मूल्यों की अहमियत कम है। वहां लोग अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर स्वतंत्र कर देते हैं। सभी अपना स्वतंत्र जीवन जीते हैं, कोई किसी के ऊपर बोझ नहीं बनता, लेकिन भारत में संस्कार और परिवार दोनों का महत्व अधिक है। तभी यहां बुजुर्गों के साथ दोहरी समस्या आ जाती है। अगर बुजुर्ग अपने बच्चों से अलग रहते हैं तो वहां उनकी देखभाल कौन करेगा, ये समस्या खड़ी हो जाती है। अगर उनके बच्चे उन्हें अपने साथ लाकर रखें तो जड़ों से कटे ये बुजुर्ग शहरी जनजीवन के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते। नौजवानों के पास समय नहीं है, उनसे बात करने का, उनके जीवन में आनंद भरने का। ये समस्या सिर्फ गरीबों की ही नहीं है, अमीर घरों का भी यही हाल है। वहां बुजुर्गों के अकेलेपन की समस्या दूसरे तरह की है। वहां दौलत और शोहरत का बोलबाला है, लेकिन बुजुर्गों के पास बैठकर कुछ वक्त बिताने का किसी के पास समय ही नहीं है। फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह बता रहे थे कि उनके बेटे सनी देओल ने उनसे कहा- पापा मैं आपसे बहुत प्यार करता हूं। मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं। कुछ चाहिए तो जरूर बताइए। तब धर्मेंद्र ने सनी से कहा था- सब कुछ तो है बेटा, अगर कुछ देना ही है तो बस मुझे अपना थोड़ा वक्त दे दिया कर।
विचलित कर देगी अभिनेता जैकी श्राफ की ये सच्चाई
फिल्म अभिनेता जैकी श्राफ ने एक इंटरव्यू में एक स्वीकारोक्ति की थी। अपनी बात रखी थी। वीडियो में उन्होंने कहा कि बचपन में जब उन्हें खांसी आती थी तो उनकी मां सोते से उठ जाती थी। पूछती थी-बेटे तू ठीक तो है ना..? तब घरों में दीवारें नहीं थीं। जब मां को खांसी आती थी तो वह या उनके भाई उठ जाते थे। पैसे कमा लिए, बड़ा घर बन गया। घर में दीवारें बन गईं। सबका कमरा अलग। एक रोज मां को दिल का दौरा पड़ गया और उनकी मौत हो गई, घर में किसी को पता तक नहीं चला। दीवारें नहीं होती तो मां की आवाज शायद सुनाई पड़ जाती, शायद वह अपनी मां को बचा लेते। जैकी श्राफ ने कई मंचों पर यह बात सुनाई।
विदेश गए बच्चे और माता-पिता रह गए अकेले
परदेस के सपने बहुत लुभावने होते हैं और भारतीय परिवारों को ये सपने बहुत आते हैं। लोग अपना पेट काटकर अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा देते हैं, ताकि वह विदेश में जाकर मोटी कमाई करें। उस वक्त शायद उन्हें यह ध्यान नहीं रहता कि बच्चे विदेश में रहेंगे, तो उनका क्या होगा, कौन देखभाल करेगा। अक्सर ऐसी कहानियां सामने आती हैं कि बच्चे विदेश में हैं और माता-पिता की देश में मौत हो गई, परिस्थिति ऐसी बनी कि वे बच्चे माता पिता के अंतिम संस्कार तक में नहीं पहुंच पाए। कई बार ऐसा भी हुआ कि माता या पिता देश में इलाज के लिए या अकेलेपन की वजह से तड़पते रहे और बेटे को उनका हाल चाल लेने की फुर्सत नहीं मिली। जैसा कि ऊपर मुंबई के लोखंडवाला वाली घटना में हुआ। महिला आशा साहनी की मौत हो गई और मौत के करीब चार महीने बाद उनका बेटा मुंबई पहुंचा। फ्लैट का लॉक तोड़वाकर घर में घुसा तो वहां मां का कंकाल मिला। दिल्ली में ऐसी तमाम वारदात सामने आई हैं, जिनमें परिवार का इकलौता बेटा विदेश में सेटल था, दिल्ली में बुजुर्ग माता-पिता रहते थे। यहां नौकरों ने उनकी हत्या कर डाली और घर का कीमती सामान और नगदी लूटकर ले गए।
शहरी बुजुर्ग अकेलापन दूर करने के लिए क्या करें
दिल्ली एनसीआर में सुबह-सुबह अक्सर पार्कों से जोर जोर से हंसने की आवाजें आती हैं। यहां लॉफिंग क्लब बने हुए हैं। दिल्ली के तमाम बुजुर्ग पार्कों में सुबह जमा हो जाते हैं। योगासन करते हैं, टहलते हैं, साथ में हाथ उठाकर ठहाका लगाते हैं। इसका फायदा दोहरा है। एक तो बुजुर्गों की एक्सराइज हो जाती है। ऊपर से आपस में मिलना जुलना हो जाता है। पड़ोसियों से रिश्ते बन जाते हैं। उनका अकेलापन दूर हो जाता है। यह बुजुर्गों की सेहत के लिए बहुत अच्छा विकल्प है।
डिजिटल क्रांति के इस दौर में बुजुर्गों को डिजिटल तकनीक से वाकिफ होना चाहिए। ताकि वो अपने मोबाइल के जरिए दुनिया भर से जुड़े रहें। सोशल साइट्स पर लोगों से रिश्ते बना सकें और पुराने रिश्तों को और भी मजबूती दे सकें। इससे उन्हें अपने पुराने रिश्तों, दोस्तों से संबंधों को पुनिर्परिभाषित करने का मौका भी मिलेगा, अकेलापन दूर होगा और उनका समय भी अच्छे से कटेगा।
भूलकर न करें विजयपत सिंघानिया वाली गलती
2017 की बात है। रेमंड कंपनी के मालिक विजयपत सिंघानिया के बारे में ऐसी खबर आई, जिसे पढ़कर लोगों के होश फाख्ता हो गए। खबर यह थी कि विजयपत सिंघानिया को उनके बेटे गौतम सिंघानिया ने न सिर्फ घर से निकाल दिया बल्कि पाई-पाई के लिए मोहताज कर दिया। नतीजा ये हुआ कि अरबों की संपत्ति के मालिक रहे विजयपति सिंघानिया को किराए के मकान में रहना पड़ा। न तो अपना घर था और न ही अपनी कार। विजयपत सिंघानिया की गलती यह थी कि उन्होंने 2015 में पुत्र के मोह में अपने 12 हजार करोड़ रुपये की कंपनी और पूरी दौलत अपने बेटे गौतम सिंघानिया के नाम कर दी। सारे शेयर बेटे के नाम कर दिए। बेटा ये दौलत पचा नहीं पाया। पिता-पुत्र के बीच दूरियां बढ़ने लगीं। एक फ्लैट को लेकर तकरार हुई और मामला कोर्ट पहुंच गया। बेटे ने उन्हें अपने घर से निकाल दिया। मीडिया में ये खबर सुर्खियों में छाई रही। हालांकि 2024 में गौतम सिंघानिया ने अपने पिता के साथ एक पोस्ट सोशल मीडिया पर साझा की, जिसमें उन्होंने यह दर्शाने की कोशिश की कि सब कुछ ठीक है। फिर भी बुजुर्गों को इस घटना से यह सीख लेने की जरूरत है कि अपने जीते जी कभी भी अपनी संपत्ति अपने पुत्रों-पुत्रियों को न सौंपे। उनके लिए वसीयत बनवाएं, जो आपके न रहने के बाद संपत्ति की व्यवस्था में आपके बच्चों के काम आएगी।
वृद्धाश्रम का विकल्प कोई बुरा नहीं है!
बुजुर्गों के अकेलेपन की एक मंजिल वृद्धाश्रम है, लेकिन अब तक ज्यादातर वृद्धाश्रम उन्हीं बुजुर्गों का ठिकाना बना है, जो बेसहारा हैं या फिर जिनके नालायक बच्चों ने उनका तिरस्कार किया और वह वृद्धाश्रम में आ गए। ऐसे बुजुर्ग भी हैं, जिनके अपने बच्चों ने उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ दिया। यही वजह है कि देश में वृद्धाश्रम की तादाद लगातार बढ़ी है। 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 728 रजिस्टर्ड वृद्धाश्रम हैं। अब वृद्धाश्रम को लेकर धारणाएं टूट रही हैं। अकेलेपन से बचने के लिए बुजुर्ग स्वेच्छा से वृद्धाश्रम का चयन कर रहे हैं। देश में लग्जरी वृद्धाश्रम भी हैं, जहां उचित फीस पर अद्भुत व्यवस्थाएं मिलती हैं। देश में ऐसे दर्जनों लग्जरी वृद्धाश्रम हैं जहां उन्हें तमाम सुख सुविधाएं मिलती हैं।
मध्य प्रदेश में तो राजधानी भोपाल में सरकार ने एक शानदार लग्जरी वृद्धाश्रम तैयार करवाया है। यहां रहने-खाने, मनोरंजन और स्वास्थ्य की शानदार सुविधाएं हैं। यहां रहने का खर्च करीब 40 हजार रुपये प्रति महीने है। दिल्ली एनसीआर में भी कई सुविधायुक्त वृद्धाश्रम हैं, जिन्हें लग्जरी केयर सेंटर के नाम से जाना जाता है। बुजुर्ग अपनी मर्जी से ये ठिकाने चुन रहे हैं या फिर उनके बच्चे उन्हें यहां पहुंचा रहे हैं। दोनों पक्ष इसमें सुखी हैं। माता-पिता यहां बोझ नहीं बनते, उन्हें अपने जैसे लोगों की संगति मिल जाती है, अकेलापन भी दूर हो जाता है। बच्चे भी अपराधबोध से मुक्त रहते हैं। हम आपको यह भी बता देते हैं कि सभी सुविधायुक्त ऐसे वृद्धाश्रम और कहां कहां हैं।
- वरदान सीनियर लिविंग, दिल्ली
- निमा एल्डरकेयर, गुरुग्राम
- त्रावणकोर फाउंडेशन, केरल
- हेवन्ली पैलेस, पंजाब
- आस्था एल्डर केयर, मुंबई और पुणे
- प्रेम निवास, केरल
- आंतर्रा सीनियर लिविंग, देहरादून
- गोल्डन एस्टेट, फरीदाबाद
- कोवई केयर, कोयंबटूर
- श्रीराम रिटायरमेंट होम्स, चेन्नई और कोयम्बटूर
- पार्थ सारथी एल्डर केयर, जयपुर
इन लग्जरी वृद्धाश्रमों में सुविधाएं बेहतरीन हैं और फीस उसके मुकाबले कम है। यहां बुजुर्गों को अपनी जिंदगी की दूसरी पारी खेलने का सुनहरा मौका मिल जाता है, लेकिन यह विकल्प तो बुजुर्ग दंपतियों के लिए हैं। सवाल ये हैं कि जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, वो क्या करें, कहां जाएं। इसका जवाब भी है। देश में कई चैरिटेबल वृद्धाश्रम हैं, जो या तो निःशुल्क हैं या फिर उनकी फीस बहुत मामूली है।
बुजुर्गों के लिए सरकार और समाज का दायित्व
बुजुर्ग राष्ट्र पर बोझ नहीं हैं, बल्कि राष्ट्र की संपत्ति हैं। यह बात देश के हुक्मरानों को भी समझनी है और समाज को भी। साथ ही बुजुर्गों को भी पता रहना चाहिए कि सरकार उनके लिए क्या कर रही है। सरकार ने बुजुर्गों के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं, जिसका फायदा उन्हें मिल सकता है ।
- वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007- माता पिता का ख्याल न करने वाले बच्चों के खिलाफ इस अधिनियम के तहत होता है एक्शन
- वरिष्ठ नागरिक स्वास्थ्य बीमा योजना– इसके तहत बुजुर्गों को एक लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा मिलता है।
- अटल पेंशन योजना- इसके तहत बुजुर्गों को 1 हजार से 5 हजार रुपये तक की पेंशन मिलती है।
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांग और वृद्धजन योजना- इसके तहत दिव्यांगों और बुजुर्गों को विशेष पेंशन मिलती है।
- रिवर्स मॉर्गेज योजना- इसके तहत बुजुर्ग अपने घर के बदले मासिक रूप से नियमित पैसे पा सकते हैं।
- वृद्धावस्था पुनर्वास योजना- ये योजना गरीब बुजुर्गों के लिए है।
- बुजुर्गों के लिए हेल्पलाइन 14567- ये टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर बुजुर्गों के लिए हैं।
- प्रधानमंत्री वय वंदना योजना- बुजुर्गों को लिए 10 साल तक तय मासिक पेंशन
- आयुष्मान भारत योजना- बुजुर्गों के लिए 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा
- राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना- इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बुजुर्गों को मासिक पेंशन मिलती है।
सरकार बुजुर्गों की रक्षा और देखभाल के लिए तो प्रयत्नशील है ही, कई योजनाएं उनके लाभ के लिए हैं, लेकिन अभी बुजुर्गों की देखभाल के लिए बहुत कुछ और किए जाने की जरूरत है। साथ ही समाज का भी दायित्व है कि वह बुजुर्गों की अच्छे से देखभाल करे। अपने बड़े बुजुर्गों का आदर ही सच्चे संस्कार की निशानी है। अपने बुजुर्गों से विमुख लोगों को भी भी सोचना चाहिए कि आज जो भी उनके पास है, वह उनके बड़े बुजुर्गों की मेहनत और उनकी दुआओं का ही नतीजा है।