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– गोपाल शुक्ल:
हममें से ज्यादातर लोगों ने राह चलते अक्सर ऐसे मंजर तो जरूर देखे होंगे, जब सड़के में किसी सीवर लाइन का ढक्कन खुला होता है और उसमें घुसकर कुछ लोग साफ सफाई करते दिखाई देते हैं। इन तस्वीरों को देखने के बाद अक्सर ये ख्याल दिल में आ ही जाता है कि जिस जगह हम एक मिनट खड़े नहीं हो सकते, वहां ये मजदूर मेनहोल में अंदर घुसकर काम कर रहे हैं, क्या इन्हें घुटन नहीं होती? क्या इनका जी नहीं घिनाता? और फिर ये ख्याल जोर पकड़ने लगता है कि आखिर दुनिया इतनी तरक्की करती जा रही है। हिन्दुस्तान का शुमार भी उन तमाम तरक्कीपसंद देशों में किया जाता है जहां इंसान धरती से दूर जाकर चांद सितारों में दुनिया बसाने के सपनों को हकीकत में बदलने की तैयारी कर रहा है। मगर इतनी तरक्की के बावजूद इन मजदूरों के लिए कब अच्छे दिन आएंगे। क्या इस तरक्की में इनका कोई हिस्सा नहीं है?
सामाजिक श्राप की जिंदा सच्चाई
यह सिर्फ जानलेवा ही नहीं, बल्कि सामाजिक तौर पर भी एक श्राप भी है। जिंदा सच्चाई तो ये भी है कि जिन लोगों को इस काम में लगाया जाता है, उन्हें समाज अशुद्ध मान लेता है। और यही वजह है कि उनकी जानलेवा मेहनत का भी कोई मोल देने को तैयार नहीं होता। सचमुच न तो उनकी उनकी मेहनत का मोल है और न ही उनके सपनों का कोई ठिकाना।
उच्च सदन में सांसद ने उठाया मामला
पिछले ही हफ्ते संसद के उच्च सदन राज्यसभा में RJD के सांसद मनोज झा ने अपने वक्तव्य में एक बात कही, उन्होंने कहा कि हम दुनिया की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था हैं। हमने हर क्षेत्र में बहुत तरक्की की है, लेकिन क्या एक पल को ठहरकर उन लोगों के बारें में भी सोचा है जो मेनहोल में भीतर घुसकर जहरीली गैस के साये में अपनी जान को जोखिम में डालकर गंदगी को साफ करते हैं। क्या इनके लिए सोचने का दायित्व हममें से किसी का नहीं है?

सीवर और मैनहोल की सफाई मामले में बहुत पीछे
सीवर या मैनहोल सफाई के मामले में भारत अभी दुनिया में बहुत पीछे खड़ा दिखाई पड़ता है। मैनुअल स्कैवेंजिंग यानी सीवर या मैनहोल को हाथों से साफ करने जैसी अमानवीय प्रथाएं आज भी देश के कई हिस्सों में चल रही हैं, जबकि कानूनी तौर पर इसे प्रतिबंधित किया जा चुका है। जबकि दुनिया के विकसित और कई विकासशील देशों ने तरक्की के रास्ते पर तेजी से कदम बढ़ाते हुए इस काम में तकनीक को तवज्जो दी और इस मुश्किल हालात का समाधान निकाल लिया।
किसी मैनहोल में घुसकर हाथों से गंदगी साफ करने के इस काम को 1993 में और 2013 में कानूनों के जरिए इस पर पाबंदी लगाई जा चुकी है, मगर किताबों और फाइलों से दूर जमीनी हकीकत यही है कि ये प्रथा अब भी हिन्दुस्तान के बड़े हिस्से में चल रही है।
शौचालयों की सफाई पर बहुत पहले शुरू हुई थी सोच
साल 1955 के ‘नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955’ यानी The Protection of Civil Rights Act, 1955 के तहत अस्पृश्यता यानी छुआछूत पर आधारित मैला ढोने या झाड़ू लगाने जैसी कुप्रथाओं को पूरी तरह से खत्म करने की बात कही गई थी। साल 1956 में काका कालेलकर आयोग ने शौचालयों की सफाई के मशीनीकरण की आवश्यकता की बात सबसे पहले उठाई थी।
जबकि 1993 में शुष्क शौचालयों की सफाई के लिए मैनुअल स्कैवेंजरों यानी शौचालयों की सफाई के लिए सफाई कर्मचारी की नियुक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। 2013 में सीवर, खाइयों, गड्ढों और सेप्टिक टैंकों की सीधी सफाई के लिए सफाई कर्मचारियों के शामिल किए जाने की बात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के लिए कानून को और स्पष्ट किया गया था। कहने का मतलब यही है कि सरकार ने इस दिशा में बहुत पहले ही सोचना शुरू किया, उसके लिए कानून भी बनाया और उसे अच्छी तरह समझाया भी गया, लेकिन जमीन पर उसका पालन नहीं हो पा रहा है।
मौजूदा वक्त में भारत को दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहा जा रहा है। लेकिन इस सफाई के मामले में इंसानों पर तकनीक को तवज्जो देने के मामले में उसका नंबर बहुत पीछे है।
2023 तक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 75,000 से ज्यादा लोग सीवर और मैनहोल की सफाई में मैनुअल स्कैवेंजिंग में लगे हुए थे। जिनमें से हर साल 300 से 400 सीवर सफाई कर्मचारी जहरीली गैसों और बेहद खतरनाक हालात में अपनी जान गंवा देते हैं। जबकि दूसरे किसी भी बड़े देश में ऐसा देखने को नहीं मिलता।
दुनिया के विकसित देशों में सफाई की व्यवस्था-
जापान- सीवर सफाई के मामले में जापान में 100% रोबोटिक और ऑटोमेटेड सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है। यहां सीवर सफाई के लिए सफाई कर्मचारी की जरूरत नहीं पड़ती।
अमेरिका और यूरोपीय यूनियन- सीवर सफाई के लिए पश्चिम के ज्यादातर देश अत्याधुनिक उपकरण और मशीनरी या रोबोट का इस्तेमाल करने लगे हैं। इन मुल्कों में मैनुअल स्कैवेंजिंग पूरी तरह खत्म की जा चुकी है।
सिंगापुर- दुनिया के सबसे छोटे देशों में शामिल सिंगापुर ने स्मार्ट सीवर सिस्टम अपना रखा है। इसके तहत सीवर की सफाई और निगरानी पूरी तरह से रोबोट या मशीनें करती हैं।
दुनिया के विकासशील देशों में सीवर की साफ सफाई
चीन- हमारा पड़ोसी देश चीन ने इस मामले में बहुत तरक्की की है। तेजी से बढ़ते शहरीकरण के बीच चीन ने सीवर सफाई में मशीनों और रोबोट्स का इस्तेमाल शुरू कर दिया है।
दक्षिण अफ्रीका- यही एक ऐसा मुल्क है जहां भारत की ही तरह मैनुअल सफाई अब भी हो रही है। हालांकि भारत के मुकाबले इस देश ने सीवर और मैनहोल की सफाई के लिए रोबोट और तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ा दिया है।
पाकिस्तान- जहां तक भारत के पड़ोसी देशों का ताल्लुक है तो पाकिस्तान का हाल भी भारत जैसा ही है। यहां भी मैनुअल स्कैवेंजिंग होती है। लेकिन मौत के मामले में पाकिस्तान की स्थिति भारत से काफी बेहतर दिखाई पड़ती है।
बांग्लादेश- बांग्लादेश में भी सेप्टिक टैंक और सीवर की सफाई मैनुअली की जाती है यानी इंसानों को सेप्टिक टैंक और सीवर में उतरकर उनकी सफाई करनी पड़ती है। ढाका वाटर सप्लाई एंड सीवरेज अथॉरिटी के अनुसार, शहर के सिर्फ 20% हिस्से में पाइप्ड सीवर नेटवर्क है। इसी वजह से शहर के सेप्टिक टैंक और सीवर की सफाई मैनुअली की जाती है।


मैनहोल में हर साल मरते हैं सफाई कर्मचारी
कोई भी ऐसा साल नहीं जाता है जब भारत में सीवर और सेप्टिक टैंकों की साफ सफाई के दौरान किसी कर्मचारी की मौत न होती हो। जाहिर है ऐसी मौत के आंकड़े किसी भी समाज के लिए चिंताजनक हो सकते हैं। बीते दस सालों के दौरान अलग-अलग हालात में सामने आई जानकारी के मुताबिक 2010 से मार्च 2020 तक करीब 631 सफाई कर्मचारियों की मौत हो चुकी है। जबकि 2018 से लेकर 2023 के बीच मौतों की गिनती 419 का आंकड़ा पार कर चुकी है। जिनमें सबसे ज्यादा तमिलनाडु में 67 उसके बाद महाराष्ट्र में 63 फिर उत्तर प्रदेश में 49 उसके बाद गुजरात में 49 और देश की राजधानी दिल्ली में 34 सफाई कर्मचारी अपने काम के दौरान मारे गए। मैनुअल सफाई के दौरान सफाई कर्मचारी की दम घुटने, गंदगी में डूबने या सीवर के अंदर होने वाले हादसों की वजह से मौत की घटनाएं बहुत ज्यादा होती है।
देश भर में सफाई कर्मचारियों की औसत आयु 30 साल कम
भारत में करीब 5 लाख से ज्यादा सफाई कर्मचारी मैनुअल स्कैवेंजिंग, सीवर सफाई या कचरा उठाने के कामों में लगे हुए हैं। इनमें से कई की आजीविका सीधे-सीधे सीवर सफाई के काम पर निर्भर है।
भारत में सीवर सफाई कर्मचारियों का औसत जीवन आम लोगों की तुलना में बेहद कम है। सफाई कर्मचारियों की औसत उम्र 40 से 50 साल के बीच मानी जाती है। जो कि देश की औसत उम्र 77 साल से काफी कम है।
असल में सीवर में हाइड्रोजन सल्फाइड यानी H₂S, मीथेन, और अमोनिया जैसी जहरीली गैसें होती हैं, जो सीधे फेफड़ों और सांस पर बुरा असर डालती हैं। लंबे समय तक इन गैसों का संपर्क जानलेवा बीमारियों का कारण बनता है। सीवर में उतरने की वजह से त्वचा रोग, पीलिया और आंतों में संक्रमण जैसी गंभीर बीमारियां सफाई कर्मचारियों को जकड़ लेती हैं और ये बेहद आम बात हैं। खराब सेहद, खराब देखभाल और इलाज की सुविधाओं में बेताहाशा कमी से इन बीमारियों का समय पर इलाज नहीं हो पाता।
औसत आमदनी 300 रुपये रोज से भी कम
जो सफाई कर्मचारी गंदगी भरे सीवर या नाले में उतरकर काम करता है उसकी आमदनी के बारे में सुनकर शायद सभी के होश उड़ जाएं। भारत में सफाई कर्मचारियों की औसत आमदनी अलग अलग राज्यों और शहरों के हिसाब से अलग अलग ही होती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में एक सफाई कर्मचारी की औसत मासिक आमदनी करीब ₹8,000 से ₹15,000 के बीच होती है। इस आमदनी में किसी भी प्रकार के बोनस, इंसेंटिव या दूसरे भत्तों को शामिल नहीं किया जाता है। इन दिनों मैनहोल की सफाई का काम आमतौर पर ठेके पर किया जाता है, जहां एक सफाई कर्मचारी को एक दिन का औसतन ₹300 से भी कम मिलता है। इन कर्मचारियों का काम अस्थायी होता है और उनके पास कोई निश्चिंतता नहीं होती। ऐसे में ये भी देखा जाता है कि ये कर्मचारी अक्सर बिना किसी छुट्टी के काम करते हैं।
हर अंधेरी रात के बाद उजली सुबह की हकीकत
मैनहोल के भीतर जाकर साफ सफाई करना वाकई एक ऐसा अमानवीय और जानलेवा काम है, जिसमें एक मजदूर इंसान किसी गटर, किसी सीवेज और किसी सेप्टिक टैंक में घुसकर की सफाई के लिए अपने हाथों का इस्तेमाल करता है। गौर से देखा जाए तो यह काम न केवल जिस्मानी तौर पर खतरनाक है, बल्कि समाज के लिहाज से भी बेहद शर्मनाक और गैरइंसानी कहा जा सकता है।
इंजीनियरों ने अपना दायित्व समझा और बना डाली मशीन
सांसद महोदय उन तमाम हजारों मजदूरों के हक में अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे। मगर एक कहावत ये भी है कि हर अंधेरी रात के बाद एक उजली सुबह होती है। इसी बीच हमें केरल के उन लड़कों की टोली का ख्याल आया जिसने न सिर्फ एक ऐसी मशीन बना डाली जो मैनहोल में जाकर सफाई का काम कर सकती है बल्कि एक पढ़े लिखे इंजीनियर होने के नाते उन्होंने समाज के प्रति अपने दायित्व को सही ढंग से समझा और उन मजबूर और बेबस लोगों के हक में काम किया जो हर रोज जिंदगी को दांव पर लगाकर मौत के मुंह में जाकर काम करने को मजबूर हैं। इन चार इंजीनियरों ने जो मशीन बनाई वो असल में इंसानों को जहरीली गैस से बचाने का काम कर सकती है।

मैला ढोने की प्रथा जस की तस
क्योंकि उस मशीन के बारे में हमारी जो जानकारी थी उसके मुताबिक जिस तरह दुनिया में इंसानों के जरिए मैनहोल में घुसकर सफाई करने का सिलसिला थमा है लेकिन हमारे यहां मैला ढोने की प्रथा जस की तस ही चली आ रही है। बस उसका चेहरा थोड़ा बदल गया है। पहले इंसान अपने सिर पर मैला ढोता था अब वही इंसान उस मैले में घुसकर उसकी सफाई करता है।
बांदीकूट रोबोट का कमाल
थोड़ी सी कवायद के बाद केरल के उस स्टार्टअप का पता चल ही गया जिसने मेनहोल में घुसकर सफाई करने वाली मशीन नहीं बल्कि पूरा एक रोबोट की बना डाला था। उस रोबोट का नाम है बांदीकूट। ये बांदीकूट रोबोट बेहद आधुनिक तौर तरीकों से इंसान को इस जानलेवा काम से दूर करके उसके काम को आसान बना देता है और सफाई करता है। सचमुच बांदीकूट सदियों से चली आ रही एक शर्मनाक प्रथा की भी जड़ से सफाई करने वाला रोबोट साबित हो सकता है। इससे न सिर्फ जिंदगियों को बचाया जा सकता है बल्कि सामाजिक बदनामी बढ़ाने वाले इस काम के कलंक से भी छुटकारा दिला सकता है।
जहरीली गैस से इंसानों की मौत से बचाने का मिशन
जेनरोबोटिक्स (Genrobotics) नाम की इस संस्था से जुड़े चार इंजीनियरों की टोली ने आखिरकार एक लंबी और थका देने वाली मेहनत के बाद एक रोबोट तैयार करने में कामयाबी हासिल की जिसने गटर या मेनहोल की सफाई के मामले में किसी क्रांति से कम बड़ा और महान काम नहीं किया है। उन चारों इंजानियर के नाम है अरुण जॉर्ज, निखिल एनपी, राशिद के और गोविंद एम के। इन चारों इंजीनियरों के हाथों का कमाल ये है कि उसने उन हिस्सों में जाने का रास्ता बनाया है, जहां किसी इंसान के लिए जाकर काम करना किसी भी लिहाज से खतरनाक हो सकता है। चारों इंजीनियरों की मेहनत से बना यह रोबोट उन तंग जगहों में काम कर सकता है, जहां इंसान का पहुंचना या तो मुश्किल है या फिर वहां जाना जान को जोखिम में डालना हो सकता है।
इसलिए रखा गया बांदीकूट नाम
मैन्युअल सफाई के उस काले सिलसिले को खत्म करने का इरादा जब चारों इंजीनियरों के दिमाग में आया तो इन लोगों ने सोचा क्यों ने कुछ ऐसा तैयार किया जाए जिससे काम भी हो जाए और जान भी बच जाए। तभी इनकी मदद की गणेश की सवारी चूहे ने। जी हां इन चारों को एक चूहे को देखकर ऐसा रोबोट बनाने का ख्याल आया। असल में इन लोगों ने देखा कि चूहा जमीन के किसी भी हिस्से में अपना बिल बना लेता है और बड़ी आसानी से वहां से गुज़रकर दूसरी तरफ निकल भी जाता है। इतना ही नहीं, जमीन कैसी भी हो वो चूहे का रास्ता भी नहीं रोक पाती। बस उसी चूहे की बदौलत इन चारों ने अपने रोबोट का डिजाइन तैयार किया और उसे नाम दिया बांदीकूट। असल में बांदीकूट एक तरह का चूहा ही होता है जो ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है

बांदीकूट रोबोट के दो अहम हिस्से
इस बांदीकूट रोबोट के दो अहम हिस्से हैं। एक स्टैंड यूनिट और दूसरी है रोबोटिक ड्रोन यूनिट। अब सवाल ये है कि ये रोबोट बांदीकूट काम कैसे करता है। किसी भी तंग हिस्से या गटर के अंदर घुसने के बाद बांदीकूट रोबोट के रोबोटिक ड्रोन को उस हिस्से में भेजा जाता है। उस ड्रोन में लगा हाई रेजोल्यूशन कैमरा पूरे हिस्से या पूरे इलाके की साफ और लाइव तस्वीरें स्क्रीन पर दिखाता है। वो स्क्रीन उस ऑपरेटर के सामने होती है जो इस पूरे सिस्टम को ऑपरेट करता है। गंदगी और रुकावट को देखकर ऑपरेटर ही उसे उसी रोबोट की स्टैंड यूनिट को काम पर लगाता है और पूरे इलाके की सफाई कर देता है।
कई खासियतों से लैस है बांदीकूट रोबोट
चारों इंजीनियों के बनाए इस रोबोट बांदीकूट की कई ऐसी खासियतों भी हैं जिनका जिक्र करना बेहद जरूरी हो जाता है।
मल्टी फंक्शन आर्म्स- असल में इस बांदीकूट रोबोट को ठीक से काम करने के लिए उसके हाथों को कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया है जो कचरा उठाने के साथ साथ साफ सफाई और खुरचने, खोदने और पोंछने का काम भी आसानी से कर सकतें।
गैस सेंसर- जिस जगह पर जाकर इस रोबोट को काम करने के लिए बनाया गया है वहां खतरनाक गैस भी पायी जा सकती हैं। वहां कौन कौन सी गैस है जिसका इंसानी शरीर और सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है, लिहाजा अपने काम के क्षेत्र में मेथेन जैसी जहरीली गैस का पता लगाने के लिए रोबोट में कुछ सेंसर भी लगाए गए हैं।
रोबोटिक लेग्स- ये रोबोट एक जगह मजबूती से खड़ा हो सके और अपने काम को पूरी तत्परता से करने के साथ साथ झुक भी सके और उसमें लचीलापन भी आ सके इसके लिए इसमें रोबोटिक चार पैर लगाए गए हैं। जो इसे स्थिर रखते हैं।

मेक इन इंडिया के तहत विकसित हुआ रोबोट
वैसे केरल की स्टार्टअप कंपनी के बनाए गए बांदीकूट रोबोट को 2018 में जब लॉन्च किया था तो उसकी खूबियां और खासियतें जानने के बाद खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूनाइटेड नेशन यानी संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इसकी जबरदस्त तारीफ की थी। बताया यही जा रहा है कि इस बांदीकूट रोबोट को मेक इन इंडिया और स्वच्छ भारत की पहल के तहत विकसित किया गया है। इस मामले में केरल की सरकार के अलावा गोवा सरकार ने भी अपने MISSIONROBOHOLE के तहत बांदीकूट रोबोट को तैनात करने का फैसला किया था। इसके साथ साथ बांदीकूट रोबोट धीरे-धीरे पूरे भारत के अलग अलग हिस्सों में मैनहोल सफाई के लिए बेहद सुरक्षित और प्रभावी समाधान के रूप में देखा जा रहा है।
23 राज्यों के साथ चार देशों में काम कर रहे सैकड़ों रोबोट
मेनहोल साफ करने वाला स्टार्टअप का मिशन का ‘मिशन रोबोहोल’, अब तक 23 राज्यों और 4 देशों में 350 से ज्यादा रोबोट्स लगा भी चुका है। जिसकी वजह से अब तक कम से कम 3,300 से ज्यादा सफाई कर्मचारियों की जिंदगी बहुत बेहतर हो गई है। यानी एक लिहाज से कहा जाए तो उन कर्मचारियों के अच्छे दिन आ गए।
वन सिटी वन ऑपरेटर वाली योजना
उत्तर प्रदेश में 35 जिलों में योगी आदित्यनाथ सरकार वन सिटी वन ऑपरेटर वाली योजना लागू करने जा रही है, जिससे सफाई कर्मचारियों को राहत दी जा सके। नाले या सीवर में सफाई के दौरान मौत की बढ़ती घटनाओं के मद्देनज़र यूपी सरकार ने ये फैसला किया है। मिली जानकारी के मुताबिक जिलों को जोन बनाकर उनमें सीवर की सफाई व एसटीपी के रखरखाव के लिए एक ही आपरेटर तैनात किया जाएगा। इन आपरेटरों के जरिये गहरे सीवर और नालों में रोबोट व हाईड्रोलिक मशीनों के जरिए सफाई की जाएगी। हिन्दुस्तान में गुजरात के गांधीनगर से लेकर यूपी के नोएडा, छत्तीसगढ़ के नवा रायपुर और उत्तर प्रदेश के कानपुर जैसे शहरों में बांदीकूट रोबोट ने इंसानों के जरिए की जा रही सैप्टिक टैंक या सीवर की सफाई की जरूरत को काफी हद तक खत्म कर दिया है। कुछ ही वक्त बीता है जब गांधीनगर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने अपने बेड़े में दो और बांदीकूट रोबोट शामिल किए हैं।
बांदीकूट रोबोट की कीमत
Genrobotics Innovations Pvt Ltd ने जो बांदीकूट रोबोट तैयार किया उसकी कीमत 20 लाख रुपये से 35 लाख रुपये के बीच रखी गई है। ये लागत असल में रोबोट में लगाए जाने वाले विशेष उपकरणों के मुताबिक कम ज्यादा होती है। हालांकि, कई राज्य सरकारें और नगर निगम इस कीमत को सब्सिडी या CSR (Corporate Social Responsibility) फंडिंग के जरिए कम करने की कोशिश करते हैं।
और भी कंपनियों ने तैयार किया सफाई करने वाला रोबोट
वैसे ये पहला मौका नहीं है कि जेनरोबोटिक्स ने मैनहोल या सीवर सफाई के लिए किसी रोबोट को विकसित किया है, अलबत्ता इससे पहले भी कुछ कंपनियों ने इस दिशा में काफी तेजी से कदम बढ़ाये थे। सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए कई कंपनियों ने रोबोटिक समाधान विकसित किए थे। जिससे हाथ से मैला ढोने की कुप्रथा को पूरी तरह से खत्म किया जा सके।
1- सोलिनास इंटीग्रिटी – आईआईटी मद्रास के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग यानी डीएसटी टेक्नोलॉजी बिजनेस इनक्यूबेटर (टीबीआई) में स्थापित इस स्टार्टअप ने ‘होमोसेप एटम’ नाम का एक रोबोट विकसित किया था। यह रोबोट सेप्टिक टैंकों और मैनहोल की सफाई के लिए एंड-टू-एंड सिस्टम मुहैया करवाता है।
भारत के पहला सेप्टिक टैंक और मैनहोल सफाई करने वाला रोबोट होमोसेप एटम को अलग अलग राज्यों में तैनात किया गया है। खासतौर पर इस रोबोट का इस्तेमाल मदुरै और चेन्नई जैसे शहरों में किया जा रहा है। मदुरै में, इस रोबोट ने मैनहोल की रुकावटों को साफ करने और सीवर ओवरफ्लो को कम करने में मदद की है। चेन्नई की घनी आबादी वाली गलियों में भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। मौजूदा वक्त में यह तकनीक भारत के 16 शहरों में इस्तेमाल भी की जा रही है।
2- आर्क रोबोटिक्स- आईआईटी कानपुर की इन्क्यूबेटेड कंपनी आर्क रोबोटिक्स ने ‘फ्लेक्सिबल रोबोटिक आर्म्स’ विकसित की। जिसके बारे में यही दावा किया गया कि सीवर की सफाई में ये सबसे ज्यादा कारगर साबित हो सकती है। इस डिवाइस की मदद से 20 से 25 मिनट में एक सीवर चैंबर को साफ किया जा सकता है। इसकी कीमत करीब 55 लाख रुपये के आस पास है जो इस तरह के किसी भी दूसरे रोबोटिक की तुलना में बेहद किफायती माना जाता है।
सफाई के काम में रोबोट के फायदे
जीवन की सुरक्षा- मैनहोल और सीवर की सफाई करते वक्त सफाई कर्मचारियों की जान खतरे में रहती है। गैस रिसाव और गंदगी के संपर्क में आने का खतरा हमेशा बना रहता है। रोबोट इंसानों को इन जोखिम से तो बचाते हैं।
स्वच्छता में सुधार- रोबोट्स की तकनीकी ज्यादा असरदार हो सकती है। मैनहोल को पूरी तरह से साफ करने में रोबोट्स सक्षम हैं।
कम लागत- एक ही मैनहोल की बार-बार सफाई के लिए इंसान को भेजने की तुलना में रोबोट से सफाई करवाना लंबे वक्त में कम खर्चीला साबित हो सकता है।
खतरे में सफाई कर्मचारियों की नौकरियां
सरकार हो या समाज हर कोई साफ सफाई के मिशन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना चाहता है। स्वच्छता के प्रति जागरूकता भी बढ़ाई जा रही है। साफ सफाई के काम में तकनीकी को शामिल किया जा रहा है। जिससे मैनहोल की सफाई जैसे जोखिम भरे काम को रोबोटिक तकनीक से किया जा सके। इसका सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि इंसानों की जान को खतरा नहीं होगा। लेकिन यहीं से एक दूसरा सवाल खड़ा होता है, जब इन रोबोटिक मशीनों को इंसानों की जगह तैनात कर दिया जाएगा तो सफाई कर्मचारियों को अपनी नौकरियां खोनी पड़ेंगी? यह एक ऐसा अहम और बड़ा सवाल है, जिसका असर सीधे तौर पर समाज के एक बड़े हिस्से पर पड़ेगा।
यह तकनीकी तरक्की हजारों सफाई कर्मचारियों की नौकरियों के लिए खतरा भी बन सकती है। सफाई कर्मचारी समाज के उसी वर्ग से आते हैं, जो पहले से ही आर्थिक रूप से लगातार संघर्ष कर रहे हैं। इनकी जिंदगियों में कामकाज के हालात और तनख्वाह के मामले में पहले से ही दुश्वारियां कम नहीं हैं, ऐसे में बांदीकूट जैसे रोबोट सीधे तौर पर इनकी नौकरी भी खत्म करके इन्हें बेरोजगार कर सकते हैं।
इन आंकड़ों पर गौर करना ज्यादा मुनासिब होगा
भारत में सफाई कर्मचारी– भारत में करीब 4 लाख सफाई कर्मचारी मैनहोल की सफाई और दूसरी गंदगी की सफाई के कामों में लगे हुए हैं। इनमें से कई कर्मचारी तो ठेके पर काम करते हैं, जिससे उनकी हालत और उनके भरण पोषण पर सवाल उठता है।
रोजगार पर असर- मैनहोल की सफाई में रोबोट के आने से आठ लाख सफाई कर्मचारियों के रोजगार पर संकट हो सकता है। इन आंकड़ों के मुताबिक, अगर हर जिले में रोबोट लगाए गए, तो हजारों कर्मचारी अपनी नौकरी या रोजगार खो सकते हैं।
सर्वे से सामने आई सच्चाई- मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड एम्पॉवरमेंट ने 2018 में मैनुअल स्कैवेंजर्स का एक नेशनल सर्वे किया। ये सर्वे 18 राज्यों के 170 जिलों में किया गया था। इन राज्यों में मैनुअल स्कैवेंजर्स की संख्या 42,303 पाई गई।
तकनीक से सोच बदलने का दायित्व
कहते हैं न जहाँ सोच न बदली जा सके वहां वहाँ तकनीक रास्ते बना देती है। बांदीकूट रोबोट की कहानी भी करीब करीब ऐसी ही है जिसकी वजह से केवल सफाई कर्मचारियों की जिंदगी ही नहीं बदली, बल्कि सैकड़ों और हजारों जानों को जानलेवा हालात में जाने से बचा लिया। इसके अलावा इस मशीन ने सामने आकर उन कर्मचारियों को समाज में सम्नान और पहचान दिलाने के सिलसिले में एक पहल की जो गंदगी में उतरकर जान और मान दोनों ही जोखिम में डालते रहने को मजबूर थे। सच मुच यह एक ऐसा कदम भी है, जो मैन्युअल सफाई जैसे कलंक को इतिहास के पन्नों में कहीं दफन कर देगा।