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स्कूलों से किनारा कर रहे हैं बच्चे? ऐसे में क्या है समाज का दायित्व

Dayitva Media India School Education
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‘पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया’ जब देश में शिक्षा या शैक्षणिक सुधार की बात होती है तो इन नारे का जिक्र जरूर आता है। किसी भी राष्ट्र का भविष्य उसके बच्चों की पढ़ाई और युवाओं के शिक्षा के स्तर पर निर्भर करता है। भारत में भी इसे सालों पहले पहचान लिया गया था। यही कारण था कि अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में संविधान तक में संशोधन कर दिया गया। साल 2002 में इसके लिए सरकार ने 86वें संविधान संशोधन के जरिए शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया था। इतना ही नहीं, इस संशोधन के साथ, अनुच्छेद 51-A में भी संशोधन हुआ जिससे बच्चों को शिक्षा देना माता-पिता का मौलिक कर्तव्य बन गया।

इसके बाद से कई अभियान चलाए गए। कुछ सालों तक इसका असर भी दिखा। फिर नई शिक्षा नीति आई और शिक्षा के स्तर बेहतर हुआ। हालांकि अब सामने आए आंकड़ों ने एक बार फिर चिंता बढ़ा दी है। देश में तेजी से स्कूलों में रजिस्ट्रेशन कराने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है। इससे एक सबसे बड़ा सवाल ये भी खड़ा हो रहा है कि संविधान में संशोधन और अरबों के खर्चे के बाद भी बच्चों को स्कूल क्यों नहीं भा रहा है।

पढ़ेगा इंडिया, बढ़ेगा इंडिया’ हमें याद दिलाता है कि देश का भविष्य हमारे बच्चों से है, लेकिन स्कूलों में बच्चों का नामांकन कम होना एक गंभीर मुद्दा है। शिक्षा मंत्रालय ने कुछ आंकड़े जारी किए हैं। इसमें बताया गया है कि पिछले सत्र के दाखिलों में 37 लाख की कमी आई है। ऐसे में हमारा दायित्व बनता है कि हम इसके पीछे का कारण को जानें और इसमें सुधार के लिए अपने स्तर पर काम करें ताकि देश का भविष्य सुरक्षित हो सके। हमारा दायित्व ये भी है कि हम इसके लिए समाज, शासन, प्रशासन के स्तर पर हर संभव लड़ाई भी लड़ें क्योंकि, जवानी, बुढ़ापा तभी सुरक्षित होगा जब बचपन को सही राह मिल पाएगी।

क्या कह रहे हैं आंकड़े?

शिक्षा मंत्रालय की एकीकृत जिला सूचना प्रणाली यानी UDISE ने जाति, धर्म, उम्र, क्षेत्र, लिंग, स्तर अलग-अलग आधार पर आंकड़े जारी किए हैं। इसमें कुछ बड़े तथ्य सामने आए हैं जो गंभीर रूप से विचार करने पर मजबूर कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2023-24 में 37 लाख छात्रों ने स्कूली शिक्षा छोड़ दी है। इसमें से 16 लाख लड़कियां हैं। 2022-23 में स्कूलों में कुल 25.17 करोड़ छात्र पढ़ रहे थे। 2023-24 में यह संख्या घटकर 24.80 करोड़ पर पहुंच गई है। ऐसा नहीं ये कोई पहली बार हुआ है। इन आंकड़ों में गिरावट 3 साल से जारी है। 2021-2022 में स्कूली बच्चों की संख्या 26.52 करोड़ थी।

  • प्राथमिक शिक्षा में दाखिले का आंकड़ा बढ़ा
  • लड़कियों ने अपनी स्कूली पढ़ाई छोड़ी
  • अल्पसंख्यकों ST/SC की संख्या
  • फर्जी छात्रों की पहचान भी हुई
  • सामने आए संसाधनों के आंकड़े

प्राथमिक शिक्षा के आंकड़े बढ़े, लेकिन ये है चिंता

रिपोर्ट बताती है कि प्री-प्राइमरी नामांकन में बढ़ोतरी हुई है। 2022-23 में प्राथमिक स्कूलों में नामांकन संख्या 1.01 करोड़ थी। यह 2023-24 में बढ़कर 1.30 करोड़ हो गई है। वहीं प्री-प्राइमरी स्कूलों की संख्या में 2022-23 के 14.66 लाख के मुकाबले 2023-24 में 14.71 लाख हो गई है। हालांकि इसके आगे की शिक्षा में ड्रॉपआउट दर बढ़ा है।

  • मिडिल स्कूल में ड्रॉपआउट 5.2% से 10.9% पर पहुंचा
  • हाई स्कूल से हायर सेकेंडरी के तक 17 लाख बच्चों ने पढ़ाई छोड़ी
  • छठवीं से आठवीं तक 3 लाख बच्चों ने स्कूल से किनारा कर लिया है

बेटियों की संख्या में कमी गंभीर समस्या

एक ओर देश में ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ का नारा दिया जाता है। दूसरी ओर स्कूल शिक्षा विभाग को ओर से जारी आंकड़े बताते हैं कि बेटियों ने स्कूल से नाता कमजोर करना शुरू कर दिया है। UDISE ने सत्र 2023-24 में नामांकन की रिपोर्ट जारी की है। इसमें साफ बताया गया है कि बच्चियों ने अपने दाखिले कम किए हैं। UDISE के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले शिक्षण सत्र में 16 लाख की गिरावट आई। वहीं छात्रों की संख्या में 21 लाख की गिरावट दर्ज की गई है। लड़कों का नामांकन 51.9 फीसदी और लड़कियों का 48.1 फीसदी है।

अल्पसंख्यकों ST/SC की संख्या

UDISE 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार, अब तक 19.7 करोड़ छात्रों के आधार नंबर रिकॉर्ड सरकार के पास हैं। इसके मुताबिक, 2023-24 कुल नामांकित छात्रों में 20% छात्र अल्पसंख्यक हैं। इनमें 79.6% मुस्लिम, 10% ईसाई, 6.9% सिख, 2.2% बौद्ध, 1.3% जैन और 0.1% पारसी बच्चों की संख्या है। ये संख्या पिछले कुछ सालों में कम है। वहीं 26.9 प्रतिशत छात्र सामान्य, 18 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 9.9 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति. 45.2 प्रतिशत OBC वर्ग से आते हैं।

फर्जी छात्रों की पहचान भी हुई

नई प्रणाली के कारण फर्जी ‘घोस्ट स्टूडेंट्स’ की भी पहचान हो पाई है। ‘घोस्ट स्टूडेंट्स’ यानी वो छात्र जिनका स्कूलों में तो एडमीशन है, लेकिन उनकी पढ़ाई नहीं हो रही है। या फिर वो बच्चे जो एक साथ दो स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं। ऐसे में योजनाओं का दोहरा या बेजा लाभ ले रहे हैं, जिससे वास्तविक जरूरतमंदों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। हालांकि, एजेंसी की ओर से इस संबंध में कोई आंकड़ा नहीं दिया गया है।

सामने आए संसाधनों के आंकड़े

सरकार की ओर से जारी आंकड़ों में कुछ समस्याएं भी उजागर हो गई हैं। यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफार्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन ने स्कूलों में कंप्यूटर, बिजली, शिक्षकों की संख्या, छात्र-स्कूल अनुपात के आंकड़ों के साथ बुनियादी सुविधाओं के आंकड़े भी बताए हैं।

  • देश के महज 53 प्रतिशत स्कूलों में ही इंटरनेट की सुविधा है
  • 46 फीसदी स्कूलों में इंटरनेट की सही व्यवस्था नहीं है
  • केवल 57 प्रतिशत स्कूलों में ही कंप्यूटर चालू पाए गए हैं
  • देश के 10 फीसदी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी है

क्यों हुई स्कूलों में नामांकन में कमी

सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी स्कूलों में रजिस्ट्रेशन कम होने के कई कारण हो सकते हैं। देश में आर्थिक असमानता कही न कहीं इसके पीछे सबसे बड़े कारणों में एक है। वहां सामाजिक लापरवाही और स्कूलों में सुविधाओं का अभाव इस संख्या को और बढ़ाने का काम करता है। वहीं छात्रों तक सरकारी योजना का न पहुंच पाना और भ्रष्टाचार भी एक कारण है।

  • ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में खाई
  • गरीबी, सामाजिक भेदभाव
  • आर्थिक बाधाएं बड़ा पहाड़
  • स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
  • तकनीकी ज्ञान का अभाव
  • शिक्षकों की गुणवत्ता
  • इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी
  • जागरूकता का अभाव

देश में गांवों और शहरों के बीच में अभी भी इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में काफी कमी है। प्राथमिक स्कूल तो लगभग सभी गांवो में उपलब्ध हैं। हालांकि, इसके आगे माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के लिए बच्चों को पास के कस्बे और शहर में जाना पड़ा है। ऐसे में वो तस्वीरे तो साफ है कि बच्चे कभी पैदल तो कभी नाव के सहारे जा रहे हैं। उनके पास गरीबी के कारण कई बार संसाधनों की कमी हो जाती है जिससे उनके पढ़ाई रास्ते में छूट जाती है। वहीं विकासशील भारत में भी अभी भी आर्थिक और जातिगत भेदभाव बच्चों स्कूलों से किनारा करने के लिए मजबूर कर देता है।

साल 2017 में आए पीडब्ल्यूसी और सीआईआई के आंकड़े बताते हैं कि भारत की 70 फीसदी स्वास्थ्य सेवाएं महज शीर्ष 20 शहरों तक सिमटी हुई हैं। 30 फीसदी भारतीय स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च के कारण गरीब हो रहे हैं। देश की 30 फीसदी आबादी के पास प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। देश में 1000 की आबादी पर केवल 0.7 डॉक्टर, 1.3 नर्स और 1.1 हॉस्पिटल बेड है। ऐसे में स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च के कारण और बच्चों में बीमारी के कारण भी उनका स्कूल छूट जाता है। वहीं कई बार शिक्षा के प्रति माता-पिता और समाज में जागरूकता की कमी बच्चों को स्कूल से दूर कर देती है।

UDISE के आंकड़ों में ही बताया गया है कि देश के 46 फीसदी स्कूलों में इंटरनेट काम नहीं करता है। वहीं 10 फीसदी ऐसे स्कूल हैं जहां बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाएं जैसे वॉशरूम, खेल मैदान और लैब जैसी सुविधाएं नहीं है। ये तो इमारतें और इन्फ्राटेक्चर की बात हुई। कई आंकड़े ये बताते हैं कि देश 1.2 लाख स्कूलों में महज एक शिक्षक है। प्रदेश में शिक्षकों के पद 30 से 50 फीसदी तक खाली हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के मुताबिक देश में छात्र-शिक्षक प्राथमिक स्कूल में 30:1 और हाई स्कूल में 35:1 होना चाहिए लेकिन अभी भी सरकार इस आंकड़े से दूर हैं। नीति आयोग ने भी साल 2023 में बताया था कि भारत में 10 लाख शिक्षकों की कमी है।

नई शिक्षा नीति और डिटेंशन पॉलिसी

सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़े नई शिक्षा नीति के उद्देश्यों को हासिल करने में मदद करेंगे। जानकारों का मानना है कि इसके आंकड़े योजनाओं के बेहतर तरीके से लागू करने और शिक्षा प्रणाली में सुधार की गुंजाइश को जाहिर कर रहे हैं। इस बीच नई डिटेंशन पॉलिसी (फेल हुए छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट करने के स्थान पर दोबारा परीक्षा लेना) को लेकर भी चर्चा होने लगी है। माना जा रहा है नई डिटेंशन पॉलिसी के कारण भी आने वाले समय में ड्राप रेट बढ़ सकता है। हालांकि कई शिक्षाविदों का मानना है कि इससे शिक्षा के स्तर में सुधार आएगा।

शिक्षाविद डॉ ज्योति अरोड़ा का कहती हैं- दिल्ली सरकार ने पहले इस नीति पर काम किया है। उस समय भी मैं कमेटी की सदस्य थी। मेरा ख्याल है कि ये सराहनीय कदम है। बच्चों के फेल होने को अक्षमता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह उन्हें रचनात्मक मूल्यांकन और फीडबैक का मौका देगा जिससे वो बेहतर सुधार कर पाएंगे।

दिल्ली में दिखा था असर

  • पिछले साल दिल्ली में डिटेंशन पॉलिसी हटाई गई थी
  • RTI में पता चला कि 9वीं में 1 लाख और 11वीं 50 हजार बच्चे फेल हुए थे
  • ऐसे बच्चे बोर्ड परीक्षाओं में अटक जाते थे
  • इन्हें दोबारा परीक्षा का मौका देना इन्हें कंपटेटिव बनाता है

क्या-क्या कदम उठा रही है सरकार?

शिक्षा मंत्रालय ने नामांकन में गिरावट के आंकड़ों को स्वीकार किया है। हालांकि सरकार की ओर से कहा गया कि 2022-23 में लागू किए गए डेटा कलेक्शन विधियों के कारण ये आंकड़े सामने आ पाए हैं। नई प्रणाली में हम स्कूलों से केवल स्कूल-स्तर की संख्या ही नहीं छात्रों-विशिष्ट जानकारी भी मांगते हैं। इससे हर तरह का विस्तृत रिकॉर्ड हमारे पास है। ये आंकड़े शिक्षा में सुधार के साथ स्थानीय स्तर पर हो रही लापरवाहियों को कम करने में हमारी मदद करेंगे।

  • निःशुल्क, अनिवार्य शिक्षा को बढ़ावा मिला है।
  • स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार हो रहा है।
  • बच्चों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
  • छात्रवृत्ति और अन्य सहायता प्रदान की जाती है।
  • शिक्षा के महत्व पर जागरूकता कार्यक्रम चलते हैं।

समस्या का समाधान हमारा दायित्व

समस्या का समाधान निकालना बेहद जरूरी है। सरकारें इसके लिए लगातार काम तो कर रही हैं लेकिन प्रशासन को इसे जमीन पर उतारने के लिए लगातार और बेहतर तरीके से काम करना होगा। अगर हम चाहते हैं कि भारत तरक्की करे तो सरकार, प्रशासन के ठोस कदमों के साथ ही समाज को कदम ताल मिलाना होगा। वहीं समय-समय पर सरकार और प्रशासन को भी सजग करना होगा।

  • शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाएं
  • हो सके तो गरीब बच्चों को ट्यूशन दें
  • योजनाओं को लागू करने में मदद करें

सामाजिक प्रयासों के साथ ही सरकारों को चाहिए कि वो शिक्षण संस्थानों और बच्चों पर खर्च होने वाले बजट को बढ़ाएं, जिससे स्कूलों का विकास हो सके। इतना ही नहीं देश में शिक्षकों खास तौर से प्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या बढ़ाने के साथ ढांचागत विकास को भी बढ़ावा देना होगा। हर बच्चे की पहुंच में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को ले जाना होगा जिससे वो बीमारी के कारण स्कूल न छोड़ पाए। इसके साथ ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की स्कूल तक पहुंच सुनिश्चित करने की जरूरत है।

हर व्यक्ति को निभाना होगा दायित्व

अगर हमारे बच्चे नहीं पढ़ेंगे तो जाहिर है हमारा देश भी आगे नहीं बढ़ पाएगा। क्योंकि, शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है जो हमें गरीबी, अंधविश्वास और अज्ञानता से दूर प्रकाश की दुनिया में ले जाता है और तर्कों को विकसित करता है। सरकार, समाज के साथ ही हर व्यक्ति को निजी स्तर पर इस समस्या का समाधान खोजना होगा और अपना दायित्व निभाना होगा जिससे शिक्षा के स्तर में सुधार हो। तभी तो भारत मजबूत और सशक्त राष्ट्र बनेगा।

Author

  • श्यामदत्त चतुर्वेदी - दायित्व मीडिया

    श्यामदत्त चतुर्वेदी, दायित्व मीडिया (Dayitva Media) में अपने 5 साल से ज्यादा के अनुभव के साथ बतौर सीनियर सब एडीटर जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इससे पहले इन्होंने सफायर मीडिया (Sapphire Media) के इंडिया डेली लाइव (India Daily Live) और जनभावना टाइम्स (JBT) के लिए बतौर सब एडिटर जिम्मेदारी निभाई है। इससे पहले इन्होंने ETV Bharat, (हैदराबाद), way2news (शॉर्ट न्यूज एप), इंडिया डॉटकॉम (Zee News) के लिए काम किया है। इन्हें लिखना, पढ़ना और घूमने के साथ खाना बनाना और खाना पसंद है। श्याम राजनीतिक खबरों के साथ, क्राइम और हेल्थ-लाइफस्टाइल में अच्छी पकड़ रखते हैं। जनसरोकार की खबरों को लिखने में इन्हें विशेष रुचि है।

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