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कोचिंग कैपिटल कोटा हो रहा वीरान? इंडस्ट्री के उखड़ने लगे पांव, कंगाली की कगार पर सपनों का शहर

Coaching Capital Kota - Dayitva Media
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– गोपाल शुक्ल:

कोटा, जो कभी सपनों के परिंदों का शहर हुआ करता था, आज अपनी पहचान खोने की कगार पर है। हर साल लाखों छात्र अपने सपनों के साथ यहां कदम रखते थे, अपने भविष्य को तराशने के लिए अपने अपने घरों से चले आते थे, लेकिन अब इस शहर की गलियां सूनी हो गई हैं। हॉस्टल खाली हैं, दुकानों पर ताले लटके हैं, और शहर की रौनक कहीं खो गई है।

वीरान होते शहर में पसरी खामोशी

राजस्थान का कोटा शहर अचानक वीरान सा होने लगा है। चहल पहल से हर दम सराबोर रहने वाले इस शहर को अचानक मायूसी ने घेर लिया है। पूरे शहर में एक अजीब सी खामोशी छाई हुई है। आखिर ये क्या हो गया इस नौजवान शहर को? किसकी नज़र लग गई चहकते और महकते राजस्थान के इस गुलशन को जहां पूरे मुल्क के न जाने कितने गुलाब यहां आकर अपनी खुशबू बिखेरा करते थे।

कोटा का खोता हुआ जलवा

कोटा को इंजीनियर और डॉक्टरी की तैयारी कराने वाले कोचिंग का शहर कहा जाता था, लेकिन पिछले कुछ अरसे से ऐसा लगता है कि शहर पर कोई अनजाना साया छाया हुआ है। कोटा की चमक धीरे धीरे फीकी पड़ रही है। देश भर से आने वाले छात्रों के दम पर अरबों रुपए की कोटा कोचिंग इंडस्ट्री की सांसें अब फूलने लगी हैं। चमकते-दमकते कोटा में अब हर इलाके के हॉस्टल्स और पीजी के बाहर ‘टूलेट्स’ के लटकते बोर्ड यहां की अनकही कहानियां सुनाते दिखाई पड़ रहे हैं। जो हॉस्टल छात्रों की चहल-पहल से गुलज़ार रहते थे, अब वहां कमरों पर ताले लटके हैं और खिड़कियां सूनी पड़ी हैं।

टू लेट के बोर्ड ने बढ़ा दीं मुश्किलें

बीबीसी की एक रिपोर्ट पर यकीन किया जाए तो इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की तैयारी कराने वाले इस शहर का कारोबार करीब करीब ठप पड़ने लगा है। बीबीसी हिंदी के मुताबिक, यहां के हॉस्टल के अधिकांश कमरे अब खाली पड़े हैं। पहले लगभग हर एक हॉस्टल में बच्चे भरे रहते थे, मगर बीते छह महीनों के दौरान ज्यादातर हॉस्टलों के बाहर ‘टू लेट’ के बोर्ड लग गए हैं।

Kota industry struggling - Dayitva Media

30 फीसदी तक गिर गई है छात्रों की गिनती

कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल ने BBC को बताया है कि बीते 2 दशक में कोटा में ऐसे हालात पहली बार बने हैं जब यहां आने वाले छात्रों की गिनती कम हुई है। इस गिनती में मामूली गिरावट नहीं आई बल्कि यहां आने वाले छात्रों की तादाद करीब 25 से 30 प्रतिशत घट गई है। ज्यादातर कमरों पर ताले लग गए हैं। कोरोना के बाद इस शहर में बच्चों के आने का ग्राफ जिस तेजी से ऊपर की तरफ जा रहा था, मौजूदा सूरते हाल उसी ग्राफ को उल्टा होते हुए दिखा रही है।

ठप सा होने लगा शहर का कारोबार

इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना आंखों में सजाए ये छात्र पूरे देश से आकर यहां अपनी तैयारी करते हैं। इन्हीं छात्रों की बदौलत पूरे शहर का कारोबार चलता था। हॉस्टल के अलावा चाय के ढाबों, खाने के होटल और रेस्टोरेंट, यहां तक तक कि साइकिल की दुकान चलाने वाले सभी के सभी हैरानी भरी निगाहों से सड़क ताकते दिख जाएंगे। क्योंकि यहां किसी को समझ में ही नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसी कौन सी बात हो गई जिसकी वजह से छात्रों ने अचानक शहर से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया।

सारा धंधा होने लगा चौपट, कमाई रह गई आधी

कोटा में पुरानी साइकिल बेचने और खरीदने के धंधा करने वाले दिनेश कुमार भावनानी बताते हैं कि उनकी दुकान पर पहले 4 लोग काम करते थे, मगर अब तो एक आदमी की तनख्वाह निकालना मुश्किल हो रहा है। ऐसे ही जिस मेस में पहले 20 लोग काम करते थे, वहां अब 5 लोगों से ही काम चलाने को मजबूर हैं। एक चाय की दुकान चलाने वाले ने बताया कि उनकी दुकान पर छह महीने पहले रोजाना 80 किलो दूध की चाय बिक जाती थी, बल्कि कई दफा कम पड़ जाती थी। लेकिन अब 40 किलो दूध की ही चाय बिकना मुश्किल हो गया।

बच्चे नदारद, खतरे में कारोबार

इसी महीने की 9 दिसंबर को इंडिया टुडे की रिसर्च टीम ने भी इस मामले की एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि हॉस्टल, मेस और कोचिंग के साथ-साथ स्टेशनरी की दुकानें, ओला ऊबर के साथ साथ टेम्पो और रिक्शे वाले, खेल का सामान बेचने वाले कारोबारी अब किसी अनजान खतरे से जूझने को मजबूर हैं, क्योंकि शहर से अचानक बच्चे गायब से हो गए। जिसने यहां के तमाम कारोबार को ‘खतरे’ में डाल दिया। ये तो सारा हिन्दुस्तान जानता है कि इस शहर की अर्थव्यवस्था यहां आने वाले बच्चों पर टिकी है।

छात्रों को डराने लगा शहर का सन्नाटा

उत्तर प्रदेश में कानपुर के रहने वाले सोनू गौतम आठ मंज़िला हॉस्टल के पहले फ़्लोर पर बने एक कमरे में रह रहे हैं। वो पिछले दो सालों से अपने घर नहीं गए। एक सिंगल बेड, चाय बनाने के लिए छोटा सिलेंडर और कमरे में बिखरी किताबों और नोट्स के बीच बैठे सोनू इस कमरे में अकेले रहते हैं। कमरे का किराया 2500 रुपये महीना है। उनके ज़्यादातर दोस्त कोटा शहर छोड़कर जा चुके हैं। लेकिन क्यों इसका जवाब खुद सोनू गौतम भी नहीं जानते। जिस हॉस्टल में सोनू रह रहे हैं वो कभी छात्रों की चहल पहल से गुलजार रहता था लेकिन अब वहां सन्नाटा रहता है। सोनू कहते हैं, अब उनका ज़्यादातर समय पढ़ते और खुद से बातें करते बीतता है क्योंकि बात करने के लिए अब साथ में कोई है नहीं।

दिनों वीराना झेल रही कोचिंग सिटी

शहर से करीब दस किलोमीटर दूर 25 हजार छात्रों के लिए पूरी कोरल पार्क सिटी बसाई गई थी, जो इन दिनों वीराना झेल रही है। कामयाबी के ख़्वाब, दुनिया जीत लेने का जज़्बा और आगे बढ़ने की उम्मीदें लेकर देश के कोने-कोने से लाखों छात्र हर साल कोटा पहुंचते रहे थे। बीते कुछ सालों में यहां आने वाले छात्रों को छत देकर अपनी कमाई करने की गरज से करीब 350 से ज्यादा हॉस्टल बनाए गए थे। पिछले दो दशक में दस लाख की आबादी वाले कोटा शहर में कई इलाके हॉस्टल में तब्दील हो चुके थे। हर तरफ इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी करने वाले छात्रों का ही जमघट दिखाई पड़ता था।

आधी रह गई कोचिंग इंडस्ट्री

हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का कहना है कि कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री 6 हजार करोड़ रुपये से 3 हजार करोड़ रुपये पर आ गई। एक हॉस्टल संचालक का कहना है कि एक साल पहले वो राजीव नगर में एक कमरे का 15 हजार रुपये हर महीने तक का किराया वसूला करते थे, लेकिन अब ये 8 हजार रुपये पर आ गया है इसके बावजूद कई कमरे खाली पड़े हैं।

कोटा में मचे कोहराम की कई वजहें

कोटा में छात्रों की इस तरह बेतहाशा कमी के यूं तो कई कारण मालूम पड़ते हैं लेकिन एक कारण ये भी है कि कोटा की कोचिंग पद्धति पर आधारित बहुत सारे ऑनलाइन कोचिंग प्लेटफॉर्म्स शुरू हो गए हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे संजीदा मामले भी हैं जिन्हें नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता।

आत्महत्या की घटनाओं ने बढ़ा दिया डर

पटना में बीबीसी संवाददाता को एक छात्र ने बताया कि वो और उनके साथी 2024 में कोटा से वापस आ गए। क्योंकि लगातार आत्महत्या की खबरों से उन्हें परेशानी होने लगी थी। टेस्ट में कम नंबर आने पर उन्हें नीचे के बैच में डाल दिया जाता था। ऐसे ही एक दूसरे छात्र ने बताया कि वो जिस छात्र के साथ बैठकर खाना खाते, अगले दिन उन्हीं में से किसी के आत्महत्या की खबर आ जाती थी। जिसकी वजह से छात्रों के दिल में अकेलेपन का डर बैठने लगा था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोटा में 2023 में 23 छात्रों ने आत्महत्या कर ली। साल 2015 के बाद ये पहला मौका था जब इतनी बड़ी संख्या में बच्चों ने अपनी जान दे दी।

साढ़े तीन दशक पहले हुई थी शुरुआत

लगभग साढ़े तीन दशक पहले यानी 1990 के आसपास वीके बंसल ने कोटा शहर के विज्ञान नगर में बंसल क्लासेस की शुरुआत की थी। उन दिनों बंसल क्लासेस में बहुत कम छात्र-छात्राओं की संख्या थी, लेकिन धीरे-धीरे बंसल क्लासेस में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं ने नीट और आईटी क्षेत्र में सफलता हासिल करनी शुरू की, तो लोगों का ध्यान इस ओर गया। फिर क्या था? कोटा शहर में एक कोचिंग उद्योग खड़ा हो गया। ।

इंजीनियर और डॉक्टर बनाने वाला शहर

उनके बाद इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी करवाने के लिए कई कोचिंग इंस्टीट्यूट ने कोटा को अपना केंद्र बना लिया। धीरे धीरे इस शहर में कोचिंग इंडस्ट्री फलने फूलने लगी। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी के मुताबिक़, साल 2024 में करीब 23 लाख छात्रों ने नीट और करीब 12 लाख छात्रों ने जेईई की परीक्षा दी थी।

हॉस्टल इंडस्ट्री पर पड़ने लगे ताले

कोचिंग के लिए आने वाले छात्रों के लिए कोटा में हर तरफ हॉस्टल हैं। दक्षिण कोटा का विज्ञान नगर, महावीर नगर, इंदिरा कॉलोनी, राजीव नगर, तलवंडी और उत्तर कोटा की कोरल सिटी छात्रों का गढ़ हैं। विज्ञान नगर में मेस के साथ हॉस्टल चलाने वाले संदीप जैन कहते हैं, “यह कोटा में कोचिंग का सबसे पुराना इलाक़ा है। यहीं से बंसल सर ने कोचिंग शुरू की थी।”

कोरल सिटी में ही हॉस्टल चलाने वाले मुकुल शर्मा बेहद परेशान नजर आते हैं। वे हॉस्टल इंडस्ट्री में साल 2009 से हैं। और यहां 75 कमरों का एक हॉस्टल चला रहे हैं। शर्मा कहते हैं, “हमारे पास लोकेशन अच्छी थी। उम्मीद थी कि हॉस्टल भरकर चलेगा लेकिन अभी आधे से ज़्यादा ख़ाली पड़ा है। हॉस्टल बनाने में करीब चार करोड़ रुपए का खर्चा आया। उस हिसाब से महीने के चार लाख रुपये बचने चाहिए थे, लेकिन अभी हालात ये हैं कि मुश्किल से लाख रुपये भी नहीं बच पा रहे हैं।” जो छात्र कोटा की अर्थव्यवस्था की बैकबोन कहे जाते थे जब उन्हीं की संख्या कम होगी तो अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना लाज़िमी है।

विज्ञान नगर में दो दशकों से हॉस्टल के साथ मेस चलाने वाले संदीप जैन भी जूझ रहे है। वे कहते हैं, पहले 500 से 700 छात्र मेरे यहां खाना खाते थे लेकिन अब बच्चे आधे रह गए हैं। जहां पहले 20 लोगों का स्टाफ़ रहता था, वहीं इस साल मुझे पांच लोगों से ही काम चलाना पड़ रहा है।

इस साल अब तक आधे बच्चे ही पहुँचे

कोटा शहर में ही छात्र-छात्राओं के आत्महत्या करने के आंकड़ों पर गौर करें, तो तस्वीर काफी हद तक साफ हो जाती है। एक अनुमान के मुताबिक लगभग दो लाख बच्चे कोटा शहर में कोचिंग के लिए आते थे। ज्यादातर यह बच्चे बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा जैसे राज्यों से आते थे। लेकिन इस बार सिर्फ एक लाख बीस हजार बच्चों के ही आने की बात कही जा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह पढ़ाई का बढ़ता दबाव और कोचिंग संस्थानों के रवैये को माना जा रहा है जिससे छात्रों को आत्महत्या तक करने को मजबूर होना पड़ता है।

शिक्षा मंत्रालय की नई गाइडलाइन

कोटा में छात्रों की बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं और पढ़ाई के प्रेशर को कम करने के लिए हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने न्यू एजुकेशन पॉलिसी 2020 के तहत गाइडलाइन फॉर रजिस्ट्रेशन रेगुलेशन कोचिंग सेंटर 2024 जारी की। इसका एक मुख्य प्रावधान यह है कि अब 16 साल से कम उम्र के छात्र कोचिंग सेंटरों में दाख़िला नहीं ले सकते हैं। जबकि शहर में कई ऐसे संस्थान हैं जो पहले छठी क्लास के बाद से बच्चों को कोचिंग दे रहे थे, लेकिन अब इसे बंद कर दिया गया। नवीन मित्तल के मुताबिक़, ऐसे छात्रों की संख्या क़रीब 10 प्रतिशत तक थी। मित्तल इन नियमों का विरोध करते हैं।

कोटा को बेवजह बदनाम करने का आरोप

कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का मानना है कि आत्महत्याओं के नाम पर कोटा को जानबूझकर बदनाम किया गया। वे कहते हैं, ‘अगर आप नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों को देखेंगे तो कोटा का नंबर बहुत पीछे आता है। कोटा सिर्फ कोचिंग सिटी ही नहीं है बल्कि यह एक केयरिंग सिटी भी है। अभी हमने कोटा स्टूडेंट प्रीमियर लीग करवाई है, जिसमें 16 टीमें थीं। ये सिर्फ इसलिए ताकि बच्चों के लिए माहौल अच्छा रहे।’

कोटा कोचिंग की मुश्किलों का ये हो सकता है समाधान?

1. मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना

छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए मजबूत सपोर्ट सिस्टम तैयार करना चाहिए। कोचिंग संस्थानों को पढ़ाई के साथ-साथ छात्रों के मानसिक और भावनात्मक विकास पर ध्यान देना होगा।

2. शिक्षा का हाइब्रिड मॉडल

ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा का मिश्रण कोचिंग इंडस्ट्री के लिए एक नई दिशा हो सकता है। इससे छात्रों को लचीलापन मिलेगा और कोटा की शिक्षा प्रणाली में सुधार होगा।

3. पारदर्शिता और उचित फीस

कोचिंग संस्थानों को अपनी फीस संरचना में पारदर्शिता लानी चाहिए और छात्रों को उचित सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए।

कोटा के सपने को बचाने का दायित्व

कोटा का मौजूदा संकट यह बताता है कि शिक्षा केवल एक कारोबार नहीं हो सकती। छात्रों की भावनाओं और मानसिक स्वास्थ्य को समझे बिना, सफलता की इस दौड़ में सभी हार रहे हैं। इस शहर की तरफ देखने वालों का ये दायित्व बनता है कि समय रहते कोई ठोस कदम उठा लेना चाहिए। कोटा को फिर से उम्मीदों का शहर बनाया जाना चाहिए, जहां सपने न केवल देखे जाएं बल्कि पूरे भी हों। वर्ना कोटा अपनी पहचान पूरी तरह खो सकता है। जरूरत है आगे बढ़कर दायित्व निभाने की।

Author

  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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