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-श्यामदत्त चतुर्वेदी:
वन नेशन वन आधार, वन नेशन वन राशन कार्ड के बाद अब मोदी सरकार ‘वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन’ (ONOS) ले आई है। हालांकि, वन नेशन वन इलेक्शन का मुद्दा अभी लूप लाइन में है। खैर लूप लाइन छोड़िये ‘वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन’ पर बात कर लेते हैं। हमारा मानना है कि हमारी ही तरह देश के करोड़ों मनोरंजन के शौकीन युवाओं के दिमाग में इस शब्द को सुनते ही दिमाग में आया होगा ‘..वाह मोदी जी..वाह..! आपने तो मौज करा दी। अब 40 जगह से OTT सब्सक्रिप्शन का झंझट खत्म। एक सब्सक्रिप्शन में पैसे भी बचेंगे और मनोरंजन की पक्की गारंटी।’ अगर सच में आपके दिमाग में भी कुछ ऐसा आया है और आप योजना के लागू होने का इंतजार कर रहे हैं तो जरा रुकिए। हम आपको बताते हैं कि आखिर क्या है ये ‘वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन’ और आपको इसमें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष क्या फायदा है।
तो शुरू करते हैं…
सोमवार को मोदीजी की कैबिनेट ने अपनी बैठक की। इसमें सरकार ने कई सौ करोड़ रुपये की योजनाओं को मंजूरी दी। इसमें रेलवे की तीन बड़ी परियोजनाएं, PAN 2.0 प्रोजेक्ट, राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन, अटल इनोवेशन मिशन 2.0 समेत कई योजनाओं के लिए बजट मंजूर किया गया। इसमें मोदी सरकार की एक योजना ‘वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन’ थी। इसके लिए 6000 करोड़ रुपये की मंजूरी भी दी गई थी। इसे जनवरी 2025 से लॉन्च करने की तैयारी भी है।
क्या है ‘वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन’ यानी ONOS?
इस योजना का उद्देश्य भारत को अनुसंधान और शिक्षा का केंद्र बनाने के साथ-साथ इंटरडिसिप्लिनरी स्टडीज केंद्रित करना है। देश के केंद्रीय और राज्य संचालित उच्च शिक्षण संस्थानों या उनमें रिसर्च कर रहे स्कॉलर को एक कॉमन प्लेटफॉर्म पर जर्नल्स उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें 30 अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित 13,000 से अधिक जर्नल्स उपलब्ध होंगे। इसका संचालन UGC के तहत आने वाले इनफार्मेशन एंड लाइब्रेरी नेटवर्क (INFLIBNET) के जरिए किया जाएगा। इससे अकादमिक जर्नल्स के मौजूदा असंगठित सिस्टम सुधरेगा जो फिलहाल 10 अलग-अलग लाइब्रेरियों से संचालित है।
बैठक के बाद जारी नोटिफिकेशन में बताया गया है कि ‘वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन’ में फिलहाल जर्नल पब्लिशर्स कैम्ब्रिज, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, इंडियनजर्नल्स.कॉम, बीएमजे जर्नल्स, स्प्रिंगर नेचर, अमेरिकन सोसायटी फॉर माइक्रोबायोलॉजी, टेलर एंड फ्रांसिस, सेज पब्लिशिंग जैसे कुल 30 इंटरनेशनल पब्लिशर शामिल हैं। इनके करीब 13000 ई-जर्नल हमारे 6300 से अधिक सरकारी हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट्स, केंद्र सरकार के रिसर्च इंस्टीट्यूट, स्कॉलर और उच्च शिक्षण संस्थानों तक पहुंच जाएंगे। इसमें सबसे खास बात ये कि अब देश की सभी यूनिवर्सिटीज अपने रिसोर्स आपस में शेयर करेंगी।
किसे होगा लाभ?
इस स्कीम के जरिए लगभग 1.8 करोड़ शोधकर्ताओं, शिक्षकों और छात्रों को लाभ मिलेगा। उनको पहले की तरह स्टडी मटेरियल के लिए अलग-अलग स्थान पर भटकना नहीं पड़ेगा। उनको ये सिंगर पेमेंट के जरिए डिजिटल प्रोसेस में एक्सेसिबल होगा। ये फैकल्टी व रिसर्चर्स के लिए गेम चेंजर बनेगा। खासतौर से टियर 2 और टियर 3 शहरों के छात्रों के लिए। जिनके पास काफी चीजों का एक्शन आसान नहीं होता है।
इसके लिए उच्च शिक्षा विभाग, शिक्षा संस्थानों और रिसर्च एंड डेवलपमेंट बॉडी के साथ काम करेगी। ये संस्थाएं मिलकर छात्रों, शिक्षकों, शोधकर्ताओं योजना और संसाधनों तक पहुंच के बारे में जानकारी देंगी। इसके लिए सूचना, शिक्षा और संचार अभियान भी चलाए जाने की योजना है। राज्य सरकारों से भी इस अभियान के लिए समर्थन की अपील की गई है। ताकि इस योजना के व्यापक उपयोग से भारत को रिसर्च डेवलपमेंट में शिखर को ले जाया जा सके।
आपको भी फायदा है इसमें
अब आप सोच रहे होंगे की भाई इसमें भला हमारा या देश के तमाम युवाओं, नौकरीपेशा, किसान, व्यापारी अन्य लोगों का क्या फायदा है? अगर आप विद्यार्थी, शोधार्थी या शिक्षक हैं तो इसके फायदे समझ ही गए होंगे। अगर नहीं समझे तो जान लीजिए। इस स्कीम के जरिए देश में रिसर्च काफी आसान होगी। इससे रिसर्च और डेवलपमेंट को बढ़ावा मिलेगा। ये शोध कला, विज्ञान, वाणिज्य किसी भी क्षेत्र की हो सकती है। जिसके बाद आए परिणामों पर हुए विकास का फायदा आम आदमी से लेकर खास सभी को होगा और भारत के विकास को तेज रफ्तार मिलेगी।