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‘गिलहरी के पिंजरे’ में कैद है लॉरेंस बिश्नोई का शातिर भाई अनमोल, अमेरिका की इस भूतिया जेल में नजर आती हैं काली परछाइयां

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– गोपाल शुक्ल:

29 मई 2022 में हुए शूटआउट में सिद्धू मूसेवाला की हत्या का मामला हो या फिर सलमान खान के बांद्रा वाले घर गैलेक्सी अपार्टमेंट के बाहर फायरिंग की वारदात। मुंबई में सियासत और बॉलीवुड के चहेते बाबा सिद्दिकी को गोलियों से छलनी करने का ही किस्सा क्यों न हो, इन सभी संगीन जुर्म का सीधा लिंक गैंग्स्टर लॉरेंस बिश्नोई से जाकर जुड़ता है। लेकिन इन सभी वारदात में जिस एक नाम की मौजूदगी सुरक्षा एजेंसियों की पेशानी पर सिलवटों को गहरा कर देती है, वो नाम है  अनमोल बिश्नोई।

खौफनाक जेल में बंद अनमोल बिश्नोई

लॉरेंस का भाई अनमोल इन दिनों अमेरिका में है और वो भी पुलिस की गिरफ्त में। मगर सुर्खियों में अनमोल के फिर से आने की जो वजह सामने आई है वो हैरान करने वाली है। क्योंकि हिन्दुस्तान के इस अपराधी को अमेरिका की जिस जेल में रखा गया है वो न सिर्फ खतरनाक है, बल्कि उसकी अलग ही खौफनाक कहानी है।

‘गिलहरी के पिंजरे’ में लटका कर रखा गया अनमोल को

अनमोल बिश्नोई इसी नवंबर महीने की 14 तारीख को कैलिफोर्निया पुलिस के चंगुल में आया था। ये बात अलग बहस का मुद्दा है कि अनमोल बिश्नोई ने खुद को पुलिस के हवाले किया या फिर उसे वहां की पुलिस ने दबोचा है, इस बारे में तस्वीर पूरी तरह से साफ नहीं है। मगर ये बात सच है कि अनमोल इस वक्त आयोवा की एक खतरनाक जेल में बंद है। उसे वहां की पोटावाटामी काउंटी की स्क्विरल केज जेल में रखा गया है। ऐसी जेल जिसकी कोठरी गिलहरी के पिंजरे की तरह हवा में लटकी है और घूमती रहती है। इस जेल से जुड़ी कई दिल दहलाने वाली कहानियां है। पोटावाटामी जेल असल में केवल तीन बची हुई रोटरी जेलों में से एक है।  जो अपराधियों को घूमने वाली कोठरियों में रखने के लिए जानी जाती है।

बेहद डरावनी हैं स्क्विरल जेल की कहानियां

इस जेल के बारे में जो कहानियां अब तक सामने आई हैं वो सुनकर ही किसी की भी हवा खराब हो सकती है। कहा जाता है कि ये जेल एक पुराने चर्च के मुर्दाघर के मैदान पर बनी है। अमेरिका की ये जेल असल में टूरिस्टों के लिए भी बनाई गई है। इसकी खौफनाक और परेशान करने वाली डिज़ाइन की वजह से इस जेल का नाम दुनिया भर में कुख्यात हो गया था। यहां अक्सर अजीबो गरीब घटनाएं होती रही हैं।

जेल में काली परछाईं और दरवाजे हिलते दिखाई दिए

यहां जेल के कर्मचारियों को और घूमने के लिए आने वाले टूरिस्टों को कई बार किसी के पैरों के निशान देखने को मिले तो किसी की फुसफुसाहट भी सुनने को मिली। काउंसिल ब्लफ्स वेबसाइट पर एक लेख में संग्रहालय के प्रबंधक कैट स्लॉटर के हवाले से कहा गया, “जेल के कई कर्मचारियों और स्वयंसेवकों ने यहां पर किसी के पैरो के निशान देखे हैं, हिलते हुए दरवाजे देखे हैं, तरह तरह की आवाजें और फुसफुसाहट भी सुनी है। कुछ लोगों ने सीढ़ियों और दरवाजों के पार काली परछाइयां भी देखी हैं।”

जेलर ने भी सुनी थी किसी की आहट

1900 के दशक की शुरुआत में यहां आने वाले लोगों को लगने लगा कि कुछ तो गड़बड़ है। 50 के दशक में एक जेलर ने जेल की चौथी मंजिल के अपार्टमेंट में रहने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उसके आसपास कोई नहीं था। खुद जेलर ने  फर्श पर किसी के कदमों की आवाज़ सुनी थी। इसलिए जेलर ने जेल की दूसरी मंजिल पर बने सेल में रहना गवारा किया। जेल के कई कर्मचारियों और वॉलिंटियर्स ने चहलकदमी, फुसफुसाहटों और दरवाज़ों की अजीब आवाज़ सुनी है। वहीं कुछ ने सीढ़ियों या दरवाज़ों के पीछे से काली परछाइयों को चलते हुए देखने का दावा किया है।

किसी जमाने में इंसानी कारीगरी की मिसाल थी जेल

इस जेल को साल 1885 में बनाया गया था। इस जेल को इस तरह बनाया गया कि जेलर और अपराधी के बीच बातचीत कम से कम हो। इस जेल को किसी जमाने में इंसानी कारीगरी की बेहतरीन मिसाल माना जाता था। यही वजह है कि इसे 19वीं सदी का चमत्कार भी कहा जाता है। इस जेल के अनोखे डिजाइन के पीछे मकसद सिर्फ इतना था कि जेल की सभी कोठरियां एक गोल चक्कर पर मौजूद हों जिन्हें हाथ की क्रैंक के जरिए घुमाया जा सके। ऐसा इसलिए ताकि एक बार में केवल एक कैदी के होल्डिंग तक ही पहुंचा जा सके। जबकि इस समय के आसपास बनी ज्यादातर रोटरी जेलों में केवल एक लेवल की कोठरियां हुआ करती थी। लंबी कोठरियों की बनावट ने जेल को पिंजरे जैसा आकार दे दिया, जिसमें कोई छोटा जानवर रखा जा सकता है, इसलिए इसका नाम स्क्विरल केज यानि गिलहरी का पिंजरा पड़ गया।

जेल में ही हो जाती है कैदियों की मौत

इस चमत्कारिक जेल को जल्द ही इसके डिजाइन में समस्याओं का सामना करना पड़ा। गिलहरी के पिंजरे जैसी जेल को इसके खुलने के कुछ साल बाद ही विफल मान लिया गया। क्योंकि इसमें समय बहुत भयानक शोर होता था। यहां की मशीनों के गियर अक्सर जाम हो जाया करते थे, जिससे कैदियों के भूखे मरने तक का खतरा पैदा हो जाता था। इसके घूमने वाले डिजाइन की वजह से, कैदी को अलग रखने की कोई ज़रूरत नहीं थी। इसलिए, छोटे-मोटे धोखेबाजों को बलात्कारियों के बगल में कैद किया जाता था। जेल के घूमने पर कैदी अक्सर अपने हाथ और पैर सलाखों से बाहर निकाल लेते थे, जिससे भयानक चोटें लग जाया करती थीं। साल 1960 के दशक में घुमती हुई इस जेल में इस हद तक खराबी आ गई कि एक कैदी की मौत के बाद उसके मुर्दा जिस्म तक पहुँचने में जेल प्रशासन को दो दिन तक लग गए थे।

भूतिया जेल में डरावनी कहानियों के अनगिनत किस्से

इस जगह को भूतिया भी माना जाता है। स्क्विरल केज जेल में कई खूंखार अपराधियों का रखा जा चुका है। जिसमें हत्यारा जेक बर्ड भी था। जेक बर्ड ने कुल्हाड़ी से काटकार 46 लोगों की हत्या की थी और मिशिगन, आयोवा और यूटा में 31 साल जेल में काटे थे। अपने मुकदमे में, हत्यारे ने उन लोगों पर “जेक बर्ड हेक्स” लगाया, जिन्हें उसने उसे सज़ा देने में शामिल देखा था। कहा तो यहां तक जाता है कि कथित तौर पर छह लोगों की मौत हुई थी जिसमें एक जज भी शामिल थे। बर्ड को 1949 में फांसी दी गई थी। तभी से यहां जेक बर्ड के भूत की खबरे सुनने को मिलती रही। पैरानॉर्मल जांचकर्ताओं ने स्क्विरल केज जेल का दौरा करने के बाद कहा था कि उन्होंने डरावनी आवाज़ें सुनी हैं और अजीबोगरीब चीजें देखी है।

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  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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