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डिजिटल अरेस्ट होने से बचना है तो मान लो ये बात, क्राइम ब्रांच से बोलने वाला साइबर शातिर भी हो सकता है

Digital Arrest
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– साहिल सिंह:

जिसके हाथ में मोबाइल है तो उसमें एक लक्षण करीब करीब हरेक में देखने को मिल जाता है, अगर उसके मोबाइल में इंटरनेट कनेक्शन नहीं आता तो उसकी बेचैनी बढ़ने लगती है। वो हाथ पैर पटक कर किसी भी तरह अपने मोबाइल पर इंटरनेट का कनेक्शन जब तक हासिल नहीं कर लेता तब तक उसका हाल बुरा ही होता है। यानी आज के इस दौर में इंटरनेट पर इस कदर निर्भरता बढ़ती जा रही है कि हम कुछ पल भी बिना उसके नहीं गुजार पाते। जाहिर है इस इंटरनेट ने हमारी जिंदगी को कई सहूलियतों से सराबोर कर दिया है। हम बिना बिस्तर से उठे दुनिया के करीब करीब सारे काम निपटा सकते हैं। फिर वो चाहें शॉपिंग हो, या बैंकिंग यहां तक शेयर बाजार की लहर में गोते लगाने हों या फिर किसी स्टेडियम में हो रहे मैच के जश्न में डूबना। यानी कोई भी काम बिना हिले डुले सिर्फ मोबाइल की बदौलत निपटा दिए जाते हैं।

इसी सहूलियत ने उन शातिरों को भी पनाह और मौका दे दिया जो मोबाइल के जरिए ही लोगों की जेब पर डाका डाल देते हैं। इसी शातिर चालबाजी की तमाम खबरों के बीच इन दिनों एक वाक्य अचानक सुर्खियों में इस कदर छाया कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अपना सारा काम धाम छोड़कर उसके बारे में सोचना विचारना और आमजन को बताना और समझाना पड़ा। वो शब्द है डिजिटल अरेस्ट। जिसके बारे में खुद PM मोदी का कहना है कि ऐसा कोई शब्द होता ही नहीं। लेकिन इन दिनों अखबारों की सुर्खियों में ये शब्द बुरी तरह से छाया हुआ है।

आजकल एक ऑनलाइन ठगी के जो मामले सामने आ रहे हैं उसी सिलसिले में इस डिजिटल अरेस्ट नाम के एक शब्द ने भी गहरी पहचान बना ली है। सवाल उठता है कि आखिरा क्या होता है क्या है डिजिटल अरेस्ट ? शातिरों के इस चंगुल में लोग कैसे फंस जाते थे है? और क्या इससे बचने का भी कोई उपाय है? इन सभी सवालों के जवाब को जानना और समझना बेहद जरूरी है।

क्या है डिजिटल अरेस्ट?

सबसे पहले तो यही समझना जरूरी है।
-दरअसल ये डिजिटल अरेस्ट साइबर ठगों के जरिए ब्लैकमेल करने का सबसे एडवांस तरीका है।
-आमतौर पर देखा गया है कि पढ़े लिखे लोग ही शातिरों के इस हथियार का शिकार हो रहे हैं
-डिजिटल अरेस्ट में किसी व्यक्ति को ऑनलाइन माध्यम या फोन कॉल से डराया और धमकाया जाता है
-ठगी करने वाले लोग खुद को सरकारी एजेंसी या पुलिस का आला अधिकारी बता कर डराते हैं और किसी भी सूरत में लाइन काटने नहीं देते।
-डिजिटल अरेस्ट नामक ऐसा कोई शब्द कानून या उसकी धाराओं में नहीं है। लेकिन साइबर अपराधियों ने इस शब्द को अपनी सहूलियत के लिए लोगों को धमकाने के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
-डिजिटल अरेस्ट के जरिए ही लोगों पर वीडियो कॉल के जरिए नजर रखी जाती है।
-इस दौरान पीड़ित को अपने खाते से लगातार दूसरे के खातों में पैसे डलवाते हैं।
-पीड़ित को लगातार वीडियो कॉल पर बने रहने को कहा जाता है
-पीड़ित को उस पर लगाए गए फर्जी केस को खत्म करने का भरोसा देकर उससे पैसे ट्रांसफर करवाए जाते हैं।
-ठगी की ये कॉल अक्सर विदेशी नंबर से भी आती है।

बुजुर्ग को डिजिटल अरेस्ट करके फर्जी कोर्ट ले गए

दिल्ली-NCRके इंदिरापुरम में रहने वाली 65 साल की बुजुर्ग महिला हुई ठगों का शिकार। मनी लॉन्ड्रिंग के झूठे केस में फंसाकर पहले महिला को डिजिटल अरेस्ट किया, फिर ऑनलाइन एक फर्जी कोर्ट रूम में ले गए, जहां एक व्यक्ति ने खुद को जज बताकर 20 लाख रुपये जुर्माने के रूप में ट्रांसफर करने के लिए कहा, ऐसा नहीं करने पर जेल भेजने की धमकी दी गई। जिसके बाद महिला ने अपनी FDतुड़वाकर आरोपियों के बताए अकाउंट में रुपये बैंक जाकर ट्रांसफर कराए। एडीसीपी क्राइम ने बताया कि इंदिरापुरम की रहने वाली लज्जा बगाई की शिकायत पर केस दर्ज कर जांच की जा रही है। अभी तक साइबर थाना टीम ने कार्रवाई करते हुए करीब 6 लाख रुपये फ्रीज करवाए हैं। आगे की कार्रवाई की जा रही है.

कैसे होती है ठगी?

आपके फोन पर नॉर्मल कॉल या ऑनलाइन माध्यम से कॉल आएगा। जिसके बाद ठग अपने आप को पुलिस या सरकारी अधिकारी के रूप में पेश करेंगे। जिसके चलते आप के नाम से या आपके परिवार के शख्स के नाम से एक ऐसा जाल बुना जाएगा कि आपको सब सच लगेगा और हर वक्त वह शातिर आपसे ये जरूर कहेंगे कि आप फोन ना काटे और ना ही वॉट्सऐप के जरिए किसी को इस बारे में बताएं। आप उसकी सारी बातों का भरोसा करेंगे क्योंकि उसके पास आप की ऐसी जानकारी होगी जिस के बारे में सिर्फ आप ही जानते होंगे और ये सारी जानकारी उस तक अलग- अलग डिजिटल प्लेटफॉर्म या बहुत सारी ऐसी वेबसाइट है जिस पर जाने अनजाने में आप अपनी सारी डिटेल डाल देते हैं. जिसके बाद आप उस ठग के डिजिटल अरेस्ट के जाल में फंस जाते है।

साइबर अरेस्ट के 5 बड़े मामले

दिल्ली का मामला- दिल्ली के रोहिणी में 14 नवंबर को रिटायर्ड इंजीनियर के साथ 10 करोड़ 30 लाख रुपये की ठगी की गई। अपराधी ने खुद को पुलिस का आला अधिकारी बताया। साइबर अपराधियों ने बुजुर्ग से कहा कि उनके पार्सल में ताइवान से कई प्रतिबंधित दवाएं आई हैं.जिसके बाद वो बुजुर्ग चंगुल में फंस गए।

वर्धमान ग्रुप के चेयरमैन हुए डिजिटल अरेस्ट

पंजाब के लुधियाना में मशहूर वर्धमान ग्रुप के चेयरमैन एसपी ओसवाल भी डिजिटल अरेस्ट के झांसे में सात करोड़ रुपये गंवा चुके हैं। ठगों ने ओसवाल पर दबाव बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट, कस्टम, सीबीआई और दिल्ली पुलिस के नकली दस्तावेज तक दिखाएं।

हिंदी के मशहूर कवि का मामला- साहित्यकार नरेश सक्सेना को साइबर अपराधियों ने 6 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट में रखा जिसमें उनसे शायरी और कविताएं सुनी और बांसुरी भी बजवाई। इस दौरान उनसे जरूरी दस्तावेज और बैंक खातों की डिटेल भी हासिल कर ली। बस ऐन वक्त पर उनके परिवार के लोग आ गए और वो ठगे जाने से बच गए।

पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नाम पर ठगी

गुजरात के अहमदाबाद में बीती 10 अक्टूबर को साइबर ठगी का मामला सामने आया। साइबर ठग पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की डीपी लगाकर ठगी को अंजाम दे रहे थे। यहां एक बुजुर्ग को डिजिटल अरेस्ट करके उनसे एक करोड 26 लाख रुपये की ठगी कर ली।

लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) की डॉ. रुचिका टंडन को साइबर क्राइम के झांसे में लिया। अपराधियों ने सात दिन तक डॉक्टर से डिजिटल अरेस्ट के जरिए 2.81 करोड़ कि ठगी की। पुलिस के मुताबिक डॉक्टर को एक अगस्त को फोन आया। फोन करने वाले ने खुद को टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया का कर्मचारी बताया और कहा कि आपके सिम पर कई शिकायतें हैं इसलिए आपके नंबर बंद किए जा रहे हैं।

कैसे बचें डिजिटल अरेस्ट से

सबसे पहले किसी भी अनजान कॉल या वीडियो कॉल को नज़रअंदाज करें। अगर उठा भी ली तो उससे बिना डरे बात करें। अगर अपराधी ने अपने आप को पुलिस या सीबीआई अधिकारी या किसी भी सरकारी ओहदे पर बताएं तो घबराने की जरूरत नहीं है। साथ ही कोई अपराधी आपको डिजिटल तौर पर गिरफ्तार करने की धमकी देता है, तो सबसे पहले आपको अपने परिवार के सदस्यों या दोस्तों को सूचित करना चाहिए। तुरंत नजदीकी पुलिस स्टेशन में जाकर इसकी शिकायत करनी चाहिए। इस बात से नहीं डरना चाहिए कि पुलिस आपके खिलाफ कोई कार्रवाई करेगी। आप तुरंत ही साइबर हेल्पलाइन नंबर- 1930 डायल कर शिकायत दर्ज कराएं।

Author

  • साहिल सिंह

    पढ़ने-लिखने में इतनी खुशी मिली कि कब किताबों से इश्क़ हो गया, पता ही नहीं चला। इस किताबों के प्रेम ने मुझे कब खबरों की दुनिया में ला खड़ा किया, यह भी समझ नहीं पाया। किताबें मेरी माशूका हैं, तो पत्रकारिता मेरी बेगम। इन दोनों के बीच मैंने अपने सफर की शुरुआत दायित्व मीडिया के माध्यम से जिम्मेदारी और जुनून के साथ की है। मुझे उम्मीद है कि मेरा लिखा हुआ आपको पसंद आएगा।

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1 Comment

  1. अजीत तिवारी
    19th Nov 2024 Reply

    सत्य सूचना का सम्प्रेषक *दायित्व*

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