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देश में जब भी हिंदू-मुस्लिम विवाद या किसी मंदिर मस्जिद को लेकर चर्चा होती है तो बाबर और औरंगजेब का नाम लिया ही जाता है। इन चर्चाओं में अयोध्या के राम मंदिर से लेकर इन दिनों चल रहा संभल के जामा मस्जिद का विवाद भी शामिल हैं। हालांकि, ऐसा नहीं है कि हिंदुस्तान में हिंदुओं को भावनाओं को आहत करने की षड्यंत्र केवल बाबर ने रचा था। बाबर के जन्म से पहले भी कई बादशाह ऐसे हुए हैं जिन्होंने मंदिरों का विनाश कर मजार और मस्जिद बनाने का काम किया है। कई ऐसे विवाद है जिनका इतिहास तो बाबार के जन्म से कुछ सौ साल पहले मिलता है। ऐसा ही एक विवाद सामने आया है उत्तर प्रदेश के बदायूं से जहां जामा मस्जिद से पहले नीलकंठ महादेव का मंदिर होने का दावा किया गया है।
संभल, अजमेर के बाद अब बदायूं की जामा मस्जिद का मामला गरमाने लगा है। यहां हिंदू पक्ष ने नीलकंठ महादेव का मंदिर बताया है। मंगलवार को इस संबंध में जिला कोर्ट में अर्जी भी लगाई गई है। कोर्ट ने अर्जी लेकर 10 दिसंबर की तारीख तय की है। इसी दिन पता चलेगा की याचिका सुनवाई योग्य है कि नहीं। मुस्लिम पक्ष माहौल बिगाड़ने की कोशिश बता रहा है। इस बीच हिंदुओं के दावों की चर्चा हो रही है। आइये जानें क्या है पूरा मामला और क्या हैं दावे?
क्या है बदायूं का मामला?
2 सितंबर 2022 को उत्तर प्रदेश के बदायूं सिविल कोर्ट में भगवान नीलकंठ महादेव महाकाल (ईशान शिव मंदिर) की ओर से एक याचिका दायर की गई। इस याचिका में दावा किया गया है कि वर्तमान समय में जहां जामा मस्जिद है वहां पहले नीलकंठ महादेव का मंदिर हुआ करता था। याचिका में यह दावा भी किया गया कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग को मस्जिद निर्माण के दौरान हटा दिया गया था।
पिछले दो साल से मामला कोर्ट में विचाराधीन था। इस दौरान दोनों पक्षों (हिंदू और मुस्लिम) को सुनवाई का मौका दिया जा रहा है। हालांकि, इस पर कोई फैसला नहीं आ सका है। अब एक बार फिर से कोर्ट ने सुनवाई के लिए 10 दिसंबर की तारीख तय की है। इस दिन तय होगा की मामला आगे सुनने लायक है भी कि नहीं है।
मामले में जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), केंद्र और राज्य सरकार, बदायूं कलेक्टर और प्रदेश के मुख्य सचिव को पार्टी बनाया गया है। वहीं मामले को लड़ने के लिए अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजश्री चौधरी ने पांच प्रतिनिधियों को नियुक्त किया। इसमें मुकेश पटेल (प्रदेश संयोजक), अरविंद परमान (एडवोकेट), ज्ञानेंद्र प्रकाश, डॉ. अनुराग शर्मा, उमेश चंद्र शर्मा शामिल हैं।
हिंदू पक्ष के 3 दावे और इतिहास के पन्ने
मंदिर का दावा करते हुए हिंदू पक्ष ने तीन प्रमुख दस्तावेजों का हवाला दिया है। इसमें ASI की रिपोर्ट, 1857 के गजेटियर और जिला प्रशासन की रिपोर्ट का हवाला देकर मंदिर होने की बात कही गई है।
1- ASI की रिपोर्ट: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने 1875 से 1877 के बीच बदायूं से बिहार तक एक सर्वेक्षण किया। ए. कनिंघम द्वारा तैयार इस रिपोर्ट को 1880 में प्रकाशित किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, बदायूं का प्राचीन नाम “बेदामऊ” या “बदामैया” था। तोमर वंश के राजा महिपाल ने यहां एक किला और “हरमंदर” नामक मंदिर बनवाया था। इस मंदिर को मुस्लिम शासन के दौरान नष्ट कर दिया गया और इसके स्थान पर जामा मस्जिद बनाई गई। मस्जिद के नीचे मंदिर की मूर्तियां दबे होने का भी दावा किया गया है।
2- 1857 का गजेटियर: ब्रिटिश काल में तैयार बदायूं तहसील के गजेटियर में भी इस विवाद का जिक्र मिलता है। 1857 में छपे गजेटियर के पेज 249 पर लिखा है कि इल्तुतमिश ने बदायूं में जामा मस्जिद का निर्माण कराया। इसमें मस्जिद की दीवारों में हिंदू मंदिर से लिए गए नक्काशीदार खंभों का उपयोग हुआ है। गजेटियर में बदायूं के पहले गवर्नर शम्स-उद-दीन अल्तमश की ईदगाह की भी जिक्र है जिसे 1202 से 1209 के बीच बनाया गया था। इसे शहर की सबसे पुरानी मुस्लिम इमारत बताया गया है।
3- जिला प्रशासन की रिपोर्ट: बदायूं जिला प्रशासन द्वारा छपाई गई पुस्तिका इस याचिका में लगाई गई है। इसमें लिखा गया है कि गुप्तकाल में वेदामऊ के नाम शहर को पहचाना जाता था। इस समय लखपाल के शासन हुआ करते थे जिन्होंने मठाधीश ईशान शिव का निर्माण कराकर नीलकंठ महादेव मंदिर की स्थापना कराई थी। इसके बाद 1175 में राजा अजयपाल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इसमें दावा किया गया है कि 1202 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बदायूं पर कब्जा कर लिया और अपने दामाद इल्तुतमिश को सूबेदार बनाया। उसी ने मंदिर को तोड़कर जामा मस्जिद का निर्माण कराया था।
बेहद संवेदनशील है मामला
यह मामला धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। एक ओर हिंदू पक्ष मंदिर की पुरानी उपस्थिति का दावा कर रहा है, वहीं मुस्लिम पक्ष जामा मस्जिद को वैध वक्फ संपत्ति मानता है। अदालत का निर्णय इस विवाद के भविष्य की दिशा तय करेगा और धार्मिक स्थलों से जुड़े ऐसे अन्य मामलों पर भी प्रभाव डाल सकता है। हालांकि, याचिका में पेश किये गए दावों से स्पष्ट है कि बाबर के समय से पहले भी देश में मंदिरों को क्षति पहुंचाई गई है।
हिंदू और मुस्लिमों का पक्ष
हिंदू पक्ष का दावा है कि विवादित स्थल पर स्थित मस्जिद वास्तव में एक प्राचीन मंदिर के ऊपर बनाई गई है। यहां वर्शिप एक्ट लागू नहीं होता। 1493 के खसरे के अनुसार, इस पूरे क्षेत्र में एक किला था जिसके बीच में नीलकंठ महादेव का मंदिर स्थित था। इसी मंदिर के ऊपर बाद में मस्जिद का निर्माण किया गया।
दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष ने इस दावे का खंडन किया। उन्होंने बताया कि उनके पास 1272 का एक बंदोबस्त है जिसमें भूमि का मालिकाना हक जामा मस्जिद के नाम से दर्ज है। गजेटियर में केवल यह उल्लेख है कि मस्जिद पत्थरों से बनी है। इसमें यह नहीं लिखा है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।
इतिहास के दावों पर बहस
दिल्ली फतह करने के बाद गौरी का सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक आगे बढ़ा और उसने अपने विजय अभियान का विस्तार करते हुए कन्नौज पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया। उन दिनों बदायूं कन्नौज में आया करता था। कुतुबुद्दीन ने राजा महिपाल की हत्या के बाद अपने दामाद को बदायूं का सूबेदार बना दिया। यहां तक का इतिहास तो ठीक है। इसके बाद दावा किया जाता है कि कुतुबुद्दीन के दामद ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई। यही आज विवाद का विषय बना है।