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सिगरेट बट्स से खिलौने बनाना: कचरा प्रबंधन, क्रिएटिविटी या बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़?

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गोपाल शुक्ल:

दफ्तर से घर जाते समय रास्ते में जबरदस्त जाम लगा हुआ था। उस जाम से जूझते जूझते आगे बढ़ रहा था। तभी एक पेट्रोल पम्प के पास रुका, सोचा गाड़ी में पेट्रोल डलवा लेता हूं। पेट्रोल पंप से बाहर निकल रहा था तो उसके ठीक बगल में फुटपाथ पर एक दुकान लगी हुई थी जिस पर सॉफ्ट टॉयज बिक रहे थे। टेडी बियर, पांडा, हाथी, ट्वीटी वगैरह वगैरह…। मैं भी गाड़ी से उतरकर उस दुकान की तरफ बढ़ गया। मेरी ही तरह कुछ और लोग भी वहां मौजूद थे। कुछ देख रहे थे तो कुछ मोल भाव कर रहे थे। इसी बीच एक सज्जन ने टेडी बियर पसंद किया। वह सिगरेट भी पी रहे थे। जैसे ही वह पेमेंट करने लगे तो उन्होंने सिगरेट खत्म करने के बाद उसे फेंकना चाहा, तभी उस दुकानदार ने उनसे आग्रह किया कि साहब सिगरेट को बुझाकर इसमें डाल दीजिए और उसने एक पॉलीथिन का पैकेट उनकी तरफ बढ़ा दिया। पॉलीथिन का वो पैकेट सिगरेट के बट्स से आधा भरा हुआ था। जिसे देखकर मेरा मन जिज्ञासा से भर गया। आखिर ये सिगरेट के बट्स का क्या करेगा?

कचरा प्रबंधन का नायाब तरीका

अपने मन के सवालों को लेकर मैं उस दुकानदार के पास पहुंचा और पूछ ही लिया आखिर वह इन सिगरेट्स के बट्स का क्या करेगा? उसने जो कहा, तो सुनकर यकीन ही नहीं हुआ। क्योंकि ये तो कचरा प्रबंधन का वो नायाब तरीका था जिसे अगर सही ढंग से अमल में ले आया जाए तो हमारी और आपकी और हमारे आस पास की बहुत बड़ी समस्या का समाधान हो सकता है। जानकार हैरान हो जाएंगे कि सिगरेट की उन बट्स से ही वो सॉफ्ट टॉयज बनाकर बेचे जा रहे हैं और इस पूरे सिलसिले में कई लोगों को न सिर्फ रोजगार मिल रहा बल्कि सिगरेट के टुकड़ों से होने वाली गंदगी को दूर करने का एक अनोखा रास्ता भी निकलकर सामने आ गया।

प्रदूषण से निपटने का अनोखा तरीका

उस दुकानदार से मिली जानकारी के बाद जब मैंने सोशल मीडिया पर इस बारे में कुछ खंगाला तो वो वायरल वीडियो मिल गया जिसमें एक शख्स सिगरेट की बट्स से टेडी बियर बनाते दिखाई पड़ा। उस वीडियो को लाखों लोग न सिर्फ देख चुके थे बल्कि हजारों की संख्या में उस पर कमेंट्स भी थे। थोड़ी सी छानबीन के बाद पता चला कि वह शख्स नोएडा का ही है और प्रदूषण से निपटने के लिए उसने जो अनोखा तरीका अपनाने का वीडियो बनाया तो लोग देखकर हैरान रह गए।

सिगरेट की बट को ऐसे करते हैं री-सायकल

वीडियो में उस शख्स ने दावा किया कि वह जले हुए सिगरेट के बट को रीसायकल करके उन्हें खूबसूरत टेडी बियर में बदल देता है। हालांकि उसके वीडियो में कुछ लोगों ने उसकी इस अनोखी पहल की जमकर तारीफ की तो कुछ लोगों ने चिंता जाहिर करते हुए कुछ सवाल उठाए, जो वाजिब भी हैं, क्योंकि आमतौर पर ऐसे सॉफ्ट टॉयज हम अपने बच्चों को खेलने के लिए दे देते हैं। कमेंट्स में इसी बात को लेकर चिंता ज़ाहिर की गई थी कि क्या ये टेडी बियर बच्चों के लिए हानिकारक तो नहीं, क्योंकि उसमें इस्तेमाल रुई उसी सिगरेट की बट्स से निकली है, जिसे लोगों ने धूम्रपान के बाद फेंक दिया।

नोएडा के नमन की नायाब कोशिश

सोशल मीडिया पर शेयर किए गए एक वीडियो में नमन गुप्ता नाम के उस शख्स ने प्रदूषण से मुकाबला करने का एक नायाब तरीका ढूंढ़ निकाला। कुछ लोग नमन गुप्ता के इस नई खोज की जमकर तारीफ की। नमन गुप्ता ने सिगरेट के अवशेषों को रीसायकल करने का एक स्थायी तरीका खोज निकाला है। नमन गुप्ता ने सोचा कि सिगरेट की बट्स में कैद रुई को इकट्ठा करके उसकी साफ सफाई के बाद उसे खिलौनों में तब्दील किया जा सकता है। इस ख्याल के बाद नमन गुप्ता ने अपने भाई के साथ मिलकर कोड एफर्ट प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की।

दरअसल नमन गुप्ता का भाई एक रिसर्चर है और वह सिगरेट के बट्स से निकली रूई में मौजूद जहरीली धातुओं की जांच करता है। उसके बाद फिर उस रूई को केमिकल से धोया जाता है जिससे उसमें जमा निकोटीन और दूसरे हानिकारक तत्वों को उसमें से हटाया जा सके। इसके बाद उस रूई को पूरी तरह से साफ करने के बाद उन्हें फिर से धुना जाता है, ताकि रुई को कुदरती तौर पर हवा से भर दिया जाए। इसके बाद इन्हें टेडी बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। सोशल मीडिया पोस्ट में साझा किए गए एक वीडियो में, नमन गुप्ता अपने काम के बारे में बताते हुए नजर आते हैं। वह कहते हैं कि सिगरेट के बट को कैसे रीसायकल किया जाता है।

आपदा में अवसर निकाल लिया मोहाली के ट्विंकल ने

नोएडा के नमन गुप्ता की इस कारीगरी के बारे में जब सोशल मीडिया पर और तलाशी लेनी शुरू की तो मोहाली के ट्विंकल नजर आ गए। नमन की ही तरह ट्विंकल ने भी आपदा को अवसर में बदलने का हुनर सीखा है और सिगरेट की बट्स के रुई से वो भी टेडी बियर बनाते हुए करोड़पति बन चुके हैं। ये बात उस वक्त की है जब देश भर में लॉकडाउन लगा था। कोरोना का काल चल रहा था। घर में बैठे बैठे बोर हो गए ट्विंकल ने यूट्यूब से यह तकनीक सीखी और फिर ट्राइसिटी में अपना काम शुरू कर दिया। आज उनके साथ 22 लोगों की टीम है। इससे वह अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं। ट्विंकल पेशे से फिल्म वीडियोग्राफर भी हैं।

पिता से मांगी मदद, लोगों ने जमकर खिल्ली उड़ाई

ट्विंकल ने बताया कि उनकी फिल्म बनाने की कंपनी भी है। इसमें वह फिल्म वीडियोग्राफर का काम करते हैं। मार्च में जब लॉकडाउन लगा तो उनका काम बंद हो गया। उनकी आमदनी का कोई जरिया नहीं था। एक दिन उन्होंने यूट्यूब पर सिगरेट को रिसाइकल करने का वीडियो देखा। इससे उन्होंने प्रेरणा ली और अपने दोस्तों से यह बात साझा की। दोस्तों ने उसका मजाक उड़ाया और गंभीरता से उसकी बात को नहीं सुना। इसके बाद उन्होंने अपने पिता और जीजा से मदद मांगी। उनके सहयोग से उन्होंने काम शुरू कर दिया। इसके लिए उन्होंने पहले पूरी जानकारी ली। सिगरेट, तंबाकू की दुकान पर अपने बॉक्स लगाए, जिसमें लोग सिगरेट पीकर बचा हुआ हिस्सा डालने लगे। पहले तो काफी दिक्कतें आईं। लोगों ने जमकर उनकी हंसी उड़ाई।

दोस्त को बनाया पार्टनर

ट्विंकल ने बताया कि इसे शुरू करने के लिए उन्होंने अपनी सारी बचत पूंजी लगा दी। एक दोस्त को पार्टनर बनाया। पता चला कि उत्तर भारत में एक ही व्यक्ति इस काम को करता है। उसकी नोएडा में छोटी सी फैक्टरी है। उनसे मिलकर जाना कैसे सिगरेट के बचे हुए हिस्से को कागज से कैसे अलग करके उसमें से प्लास्टिक नुमा रूई निकाल सकते हैं।

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महिलाओं को दिया रोजगार

ट्विंकल ने पंचकूला से शुरुआत की और धीरे-धीरे चंडीगढ़ और मोहाली की छोटी बड़ी सभी सिगरेट बेचने वाली दुकानों में अपने बॉक्स लगाए। लोग सिगरेट पीकर बचा हुआ हिस्सा इसमें फेंकने लगे। बॉक्स से सिगरेट बट्स को इकट्ठा करने के लिए दो लड़कों को रखा। सिगरेट के बड्स को साफ करने का काम महिलाओं को दिया। ये महिलाएं आज इनसे तीन से चार हजार रुपये महीना कमा रही हैं।

15 दिन में साफ होती है सिगरेट की रूई

ट्विंकल बताते हैं कि सिगरेट के पिछले हिस्से में प्लास्टिक की रूई होती है। इसे चार हिस्सों में अलग करते हैं। सिगरेट बट्स के पिछले हिस्से के केमिकल को साफ करने में पंद्रह दिन का समय लगता है। इसे नोएडा भेजा जाता है। फिल्टर होने के बाद इसमें से 98 प्रतिशत केमिकल या भारी धातुओं को निकाल दिया जाता है। साफ हुई रूई को तकिये, टेडी बियर, सोफे के गद्दे, जूडो बॉक्स आदि में इस्तेमाल किया जाता है।

आधी जली सिगरेट

मोहाली वाले ट्विंकल ने बताया कि एक आधी जली सिगरेट से कागज, राख और तंबाकू हमारे पास बच जाता है। जली सिगरेट के कागज को मच्छर भगाने के लिए जलाए जाने वाले पेपर में इस्तेमाल किया जाता है। जबकि राख और तंबाकू खाद बनाने के काम आते हैं। आज की तारीख में ट्राइसिटी में हमारे 800 बॉक्स लगे हुए हैं। इस काम को करते डेढ़ साल से ज्यादा का समय बीत गया है।

कचरे से कमाई का जरिया

सिगरेट के बट्स को लेकर एक नई पहल में टेडी बियर और अन्य सॉफ्ट टॉयज बनाने के लिए रिसाइकिल किया जा रहा है। बेशक इस अनूठी कोशिश का मकसद पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कचरे को उपयोगी चीजों में बदलना है। मगर कुछ सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब के बगैर बात आगे न तो बनेगी और न ही बढ़ेगी। सवाल यह है कि क्या इस तरह से बनाए गए खिलौने बच्चों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित हैं? क्योंकि-

खतरनाक होता है सिगरेट का फिल्टर

सिगरेट बट्स में फिल्टर होता है, जो सेलूलोज़ एसीटेट यानी एक तरह का प्लास्टिक का एक प्रकार होता है उससे बना होता है। यह नॉन-बायोडिग्रेडेबल होता है यानी ये मिट्टी में नहीं घुल मिल पाता। और पर्यावरण में कई सौ सालों तक बना रह सकता है। दावा यही है कि रिसाइक्लिंग प्रक्रिया में बट्स को साफ करके ऐसे ही टॉक्सिक केमिकल्स हटाए जाते हैं, फिर इन्हें नए उत्पाद बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

हालांकि, मेडिकल समुदाय के अनुसार, इस प्रक्रिया में कुछ जोखिम भी हो सकते हैं-

केमिकल अवशेष- सिगरेट बट्स में निकोटिन, टार, और दूसरे जहरीले केमिकल्स होते हैं। भले ही इन्हें प्रोसेसिंग के दौरान हटाया जाता है, लेकिन पूरी तरह से केमिकल फ्री होना और ये सुनिश्चित करना काफी मुश्किल है।
एलर्जी और त्वचा संबंधी समस्याएं- रिसायक्लिंग के बाद भी बचे हुए रसायन बच्चों की त्वचा पर एलर्जी या रेशेज का कारण बन सकते हैं।
सांस की समस्याएं- अगर खिलौने पूरी तरह से साफ नहीं हुए हैं, तो बच्चों के मुंह में लगने या सांस लेने से समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

खिलौनों से बच्चे खुश, लेकिन डॉक्टर नाखुश

  • मेडिकल विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के लिए बनाए गए उत्पादों को बनाने में कठोर सुरक्षा मानकों का पालन करना चाहिए। खिलौने की सामग्री 100 फीसदी नॉन-टॉक्सिक और सुरक्षित होनी चाहिए।
  • बाल रोग विशेषज्ञ, डॉ. अरुण गुप्ता, कहते हैं, “सिगरेट बट्स से बने खिलौनों को खरीदने से पहले यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि वे अंतरराष्ट्रीय सेफ्टी स्टैंडर्ड्स को पूरा करते हैं। बच्चों की सेहत के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता।”
  • एक पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. शालिनी वर्मा ने चेतावनी दी हैं कि, “अगर रिसायक्लिंग की प्रक्रिया में थोड़ी भी कमी रहती है, तो इसका बच्चों की सेहत पर गहरा और खतरनाक असर पड़ सकता है।”

ऐसे खिलौनों को लेकर विवाद

बेशक कचरा निस्तारण और पर्यावरण को बचाने का ये एक नायाब तरीका हो सकता है, लेकिन ये हमारे बच्चों के लिए भी पूरी तरह से सुरक्षित है इस बात को लेकर बाजार में मौजूद ऐसे खिलौनों की सुरक्षा की बात पर बहस छिड़ी हुई है। कुछ लोगों का कहना है कि यह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है। जबकि इसके उलट आलोचक इसे बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ मानते हैं।

तो क्या आप इन्हें खरीदें?

ऐसे में इन तमाम हां और ना के दरम्यान सवाल तो यही है कि क्या आप ऐसे टेडी बियर्स को खरीदने की सोच सकते हैं और बच्चों की सेहत के साथ कोई समझौता करने जा रहे हैं। ऐसे में कुछ जरूरी बातें भी हैं जिन पर ध्यान देना शायद ज्यादा जरूरी है।

सर्टिफिकेशन- खिलौने के सेफ्टी सर्टिफिकेट और क्वालिटी स्टैंडर्ड्स को जरूर चेक करें।
बच्चों की उम्र- ऐसे छोटे बच्चों को इस तरह के खिलौने देने से बचें, जिन्हें बार-बार हर चीज को मुंह में लगाने की आदत होती है। हो सके तो बच्चों को इस तरह की रुई से बने खिलौनों और तकियों से दूर ही रखें। क्योंकि बच्चों को हर वक्त देख पाना मुश्किल है।

बचपन सहेजना हमारा दायित्व

सिगरेट बट्स से टेडी बियर बनाना पर्यावरण के लिए सराहनीय कदम हो सकता है, लेकिन बच्चों की सेहत के लिए सुरक्षा पहली जरूरत होनी चाहिए। जब तक यह साबित न हो जाए कि ये खिलौने पूरी तरह सुरक्षित हैं, माता-पिता को सतर्क रह कर बच्चों को उनसे दूर ही रखने की कोशिश की जानी चाहिए। बच्चों की सुरक्षा केवल एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं है; यह एक सामूहिक दायित्व है। माता पिता, समाज के साथ साथ सरकार को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरण की रक्षा करते हुए कहीं हम बच्चों की सेहत सो कोई समझौता न कर बैठें। जैसा कि कहा गया है-“जहां बचपन सहेजा जाए, वहां खुशहाली का बसेरा होता है।”

Author

  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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