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– श्यामदत्त चतुर्वेदी:
पिछले ही साल की बात है, मणिपुर के कई इलाकों में हिंसा फैल गई थी। हिंसा की आग में कई लोगों की मौत हुई। मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हुए विवाद में महिलाओं को निशाना बनाया गया और उन्हें बलात्कार कर सड़कों पर नग्न अवस्था में घुमाया गया। याद है ना…अभी भी वो वाकया सोचकर रूह कांप जाती होगी। इस बात से आपको और नाराजगी होगी की ये विवाद किसी ऊन के बंडल की तरह उलझता जा रहा है। जांच आयोग को अदालत की तारीखों की तरह मोहलत पर मोहलत मिलती जा रही है जो वहां महिलाओं के साथ हुई बर्बरता के दर्द को और बढ़ा रही है। सरकार ने आयोग को अब रिपोर्ट पेश करने के लिए 20 मई तक का समय दे दिया है।
अर्जुन का ससुराल है आज का मणिपुर
महाभारत काल का ये नागलोक अर्जुन का ससुराल हुआ करता था। आधुनिक काल में यहां राधा-कृष्ण की पूजा की जाती है लेकिन इसी धरती में महिलाओं के साथ घिनौना कृत्य कर इसे बदनाम किया गया। मणिपुर में घटित घटनाएं मानवता को शर्मसार करने वाली हैं। एक सभ्य समाज में ऐसी बर्बरता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। निर्दोष लोगों को निशाना बनाया गया, उनके घरों को जलाया गया। महिलाओं के साथ जो हुआ है, वह न केवल एक व्यक्तिगत अपराध है, बल्कि समाज के लिए एक कलंक है। मणिपुर का इतिहास जितना उजला है, उसी मणिपुर का आज किसी अंधेर में डूबा हुआ है।
कब हुई थी हिंसा की शुरुआत
3 मई 2023 को हिंसा की शुरुआत हो चुकी थी। घाटी बहुल समुदाय मैतेई और पहाड़ी बहुल समुदाय कुकी जनजाति के लोग आपस में भिड़े और हिंसा लगातार उग्र होती रही। हिंसा में अब तक 258 लोग मारे जा चुके हैं जबकि 500 से अधिक लोग घायल हो गए। इसे रोकने के लिए सेना, अर्धसैनिक बलों और पुलिस के जवानों को मैदान में उतारना पड़ा। 60,000 से अधिक लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। हिंसा के दूसरे ही दिन यानी 4 मई को महिलाओं के साथ बर्बरता के वीडियो सामने आए। इन घटनाओं ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। कई दिनों तक इलाके में तनाव रहा जो अब भी काफी हद का जारी है।
मैतेई और कुकी विवाद का असली कारण
मणिपुर में मैतेई समाज की मांग है कि उसको कुकी की तरह राज्य में शेड्यूल ट्राइब (ST) का दर्जा दिया जाए। इसी का विरोध करने के लिए कुकी समुदाय ने अपने कदम आगे बढ़ाए। कुकियों ने तर्क दिया कि इससे सरकार और समाज पर मैतेई का प्रभाव और अधिक मजबूत होगा। अगर ऐसा होता है तो कुकी इलाकों में उनका अतिक्रमण बढ़ जाएगा। अभी भी सरकार मैतेई के साथ खड़ी रहती है और हमारे समाज को खत्म करने के लिए अभियान चलाए जाते हैं।
मैतेई समाज की जड़ें
मैतेई की जड़ें मणिपुर, म्यांमार और आस-पास के क्षेत्रों में हैं। वो बहुमत में है और हिंदू धर्म के साथ सनमही धर्म का पालन करते हैं। वहीं कुकी, ज्यादातर ईसाई है। वो ज्यादातर उत्तर-पूर्व से लेकर म्यांमार तक फैले हुए हैं। मणिपुर में मैतेई ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि कुकी आस-पास की पहाड़ियों और उससे आगे के हिस्से में रहते हैं।
अल्पसंख्यक है कुकी समाज
पहाड़ों पर किसी के दखल को रोकने के लिए कुकी हिंसक हुए और मैतेई ST स्टेटस के साथ म्यांमार से घुसपैठ का विरोध करने के लिए हिंसा के मैदान में कूद पड़े। मैतेई मेजॉरिटी ग्रुप और कुकी माइनॉरिटी ग्रुप में है। मैतेई समुदाय को ST स्टेटस मिल जाता है तो उनकी पहुंच पहाड़ी इलाकों में बढ़ जाएगी।
पहले भी होती रही हैं हिंसा
मैतेई, कुकी और नगा मिलिशिया दशकों से विरोधी रहे हैं। उनमें मांगों और धार्मिक मतभेदों को लेकर एक-दूसरे से लड़ाई होती रही है। कई बार ये विवाद काफी हिंसात्मक हुआ है। ये सभी पक्ष आपस में लड़ने के साथ ही सुरक्षा बलों के साथ भिड़ते रहे हैं। हालांकि, साल 2023 में भड़की हिंसा पूरी तरह से मैतेई और कुकी समुदाय के बीच थी।
मणिपुर का इतिहास
मणिपुर का मॉर्डन इतिहास पहले राजा पाखंगबा से शुरू होता है। उन्होंने 120 सालों तक शासन किया। इसके बाद महाराजा कियाम्बा, खागेम्बा, चराइरोंबा, गरीबनिवाज़, भाग्यचंद्र (जयसिंह) और गम्भीर सिंह जैसे तमाम राजा इस धरती में हुए। 1819 में बर्मियों ने यहां हमला कर गिया। तब मणिपुर की मदद अंग्रेजों ने की। इसके बाद उन्होंने 1824 से 1891 तक ब्रिटिश संरक्षित राज्य बना दिया। तब से ये ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा रहा। हालांकि, जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो मणिपुर के राजा महाराजा बोधचंद्र ने भारत में विलय को चुना।
पौराणिक इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल में भी मणिपुर का इतिहास मिलता है। तब इसे नागलोक भी कहा जाता था। वनवास काल में मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से अर्जुन का विवाह हुआ था। उन दोनों के पुत्र का नाम बभ्रुवाहन था जो आगे चलकर मणिपुर के राजा बने। विवाह के बाद जब अर्जुन को लौटना था तो महिला प्रधान समाज होने के कारण राजा ने बेटी की विदा करने से मना कर दिया। हालांकि, अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा लेकर अर्जुन दोबारा वहां पहुंचे थे तब उनका युद्ध उनके बेटे से ही हुआ था। बभ्रुवाहन ने अर्जुन का वध कर दिया था। हालांकि, बाद में उन्हें संजीवनी देकर जीवित किया गया और बभ्रुवाहन का परिचय कराया गया।
केंद्र में रहती हैं महिलाएं?
मणिपुर की हिंसा में महिलाओं को निशाना बनाया गया और उनके साथ हुई बर्बता दुनिया में सुर्खियों पर रही। अब सवाल उठता है कि महिलाएं केंद्र में क्यों रही? इसका उत्तर है, मणिपुर महाभारत काल से ही महिला प्रधान समाज वाला राज्य रहा है। यहां के ज्यादातर आदिवासियों में बेटियों की विदा नहीं होती है बल्कि दामाद को घर जमाई बनना पड़ता है। इसी बात का जिक्र महाभारत में भी होता है।
घर की कमाई करने वाली होती हैं महिलाएं
मणिपुर की महिलाएं अधिकांश भारतीय राज्यों से अलग पहचान रखती हैं। यहां महिलाओं को अभी भी घर में कमाई करने वाली ही होती है। महिलाएं यहां दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा मजदूरी लेती हैं। ये भी कहा जाता है कि मणिपुरी महिलाएं अन्य राज्यों की महिलाओं की तुलना में अधिक ताकतवर और आजादख्याल होती हैं। इसी कारण हिंसा के दौर में उनके साथ ही बर्बरता ज्यादा सुर्खियों में रही।
सरकार ने बनाया आयोग
पिछले साल मई में हुई हिंसा के कुछ हद तक शांत होने के बाद सरकार ने जून में जांच आयोग का गठन किया था। तीन सदस्यीय आयोग की अध्यक्षता गुवाहाटी हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा को दी गई। उसके साथ दो अन्य सदस्य सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हिमांशु शेखर दास और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी अलोका प्रभाकर को जांच का जिम्मा दिया गया। आयोग को पहले निर्देश दिए गए कि वो अपनी रिपोर्ट 6 महीने के भीतर सौंप दें। हालांकि, नवंबर 2023 में सरकार ने समय अवधि नवंबर 2024 के लिए बढ़ा दी। इसके बाद भी जांच पूरी नहीं हुई और अब सरकार ने 4 दिसंबर को नोटिफिकेशन जारी कर आयोग को 20 मई 2025 तक का समय दे दिया है।
इतना बड़ा है आयोग का दायरा
आयोग के जांच के दायरे में हिंसा के कारणों और इसके फैलने की जांच करना है। इसके साथ ही आयोग को देखना है कि क्या प्रशासनिक स्तर पर कोई चूक हुई और हिंसा रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए वो कितने प्रभावी रहे। इसके अलावा किसी व्यक्ति, संगठन या अधिकारी की लापरवाही की जांच के साथ ही आयोग मामले में आए तमाम आरोपों और शिकायतों की भी सुनवाई करेगा। मणिपुर हिंसा से जुड़े कई पहलुओं पर आयोग को जांच करना पड़ा रहा है। संभवतः इसी कारण रिपोर्ट देने का समय बढ़ाया जा रहा है।
मणिपुर की चीखें, देश की शर्म
मणिपुर की धरती, जो कभी शांति और सौहार्द का प्रतीक थी, आज उसकी चीख और आग देश की आंखों में जलन पैदा कर रही है। मां के समान इस धरती पर बेटियों को निर्वस्त्र कर घुमाया गया। मणिपुर की ये चीखें सिर्फ एक राज्य की नहीं, बल्कि पूरे देश की आत्मा को झकझोर रही हैं। मणिपुर की ये घटनाएं हमें आईना दिखा रही हैं कि हम कहां खड़े हैं और हमें किस रास्ते पर जाना है।