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– श्यामदत्त चतुर्वेदी:
सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त ने पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल को धार्मिक कदाचार का दोषी करार देते हुए सजा सुनाई है। सुखबीर बादल और 2015 की अकाली सरकार के मंत्रियों को गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को विवादास्पद माफी दिलाने के लिए जवाबदेह ठहराया गया। उनको तीन तरह से सजा भुगतनी होगी। अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर अकाल तख्त क्या है और क्या वो सजा सुना सकती है? आइये जानें हर सवाल का जवाब
जुलाई 2024 में सुखबीर सिंह बादल को “तनखैया” (धार्मिक दुराचार का दोषी) घोषित किया गया था। उन पर 2007 से 2017 के बीच अकाली सरकार के विवादास्पद फैसलों के साथ लापरवाही और पुलिस फायरिंग की घटनाओं का आरोप है। सुखबीर बादल ने अकाल तख्त के सामने अपनी गलतियां स्वीकार कीं। उन्होंने कहा कि हमसे बड़ी भूलें हुईं। बेअदबी की घटनाओं के दोषियों को सजा नहीं दिला सके।
दरबार साहिब में सेवा
- सुखबीर बादल को स्वर्ण मंदिर के शौचालयों की सफाई और लंगर हॉल में बर्तन धोने का आदेश दिया गया।
- उन्हें 3 दिसंबर 2024 से हर दिन दोपहर 12 से 1 बजे तक यह सेवा करनी होगी।
- गले में तख्ती डालकर यह सेवा करनी होगी, ताकि यह संदेश जाए कि उन्होंने अपनी गलती स्वीकार की है।
पार्टी से इस्तीफा और चुनाव
- अकाल तख्त ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) की कार्यसमिति को तीन दिनों के भीतर सुखबीर बादल का इस्तीफा मंजूर करने का निर्देश दिया।
- छह महीने के भीतर पार्टी का नया अध्यक्ष चुनने के लिए भी कहा गया है।
अन्य धार्मिक दंड
- अकाली नेताओं को विभिन्न गुरुद्वारों में सेवा करने और गुरु साहिब का पाठ करने का आदेश दिया गया।
- उनके गले में पट्टी पहनाई जाएगी, जिस पर उनके दोष का जिक्र होगा।
क्या है मामला?
2015 में अकाली सरकार ने गुरमीत राम रहीम को गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के बावजूद माफी दिलाई थी, जिससे सिख पंथ में भारी आक्रोश हुआ। बाद में यह माफी रद्द कर दी गई, लेकिन इस कदम ने अकाली दल और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) की छवि को नुकसान पहुंचाया। अन्य अकाली नेताओं, जैसे सुखदेव सिंह ढींडसा और बिक्रम मजीठिया को भी धार्मिक सेवा करने का आदेश दिया गया।
प्रकाश सिंह बादल से सम्मान छीना गया
अकाल तख्त ने दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से “फख्र-ए-कौम” सम्मान वापस ले लिया। यह फैसला उनके कार्यकाल में डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को माफी दिलाने और गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं के मद्देनजर लिया गया।
अब जानें अकाल तख्त और उसके अधिकार
सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद साहब ने 1609 में अकाल तख्त की स्थापना की थी। यह सिख धर्म के पांच पवित्र तख्तों में से एक है। अन्य तख्तों में दमदमा साहिब, केसगढ़ साहिब, हुजूर साहिब और श्री पटना साहिब शामिल हैं। अकाल तख्त का संचालन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) करती है। इसके 160 सदस्य और कार्यकारी समिति के 15 सदस्य मिलकर जत्थेदार का चयन करते हैं। जत्थेदार को सिख धर्म का सर्वोच्च पद माना जाता है और उनके आदेश को अनदेखा करने वाले का सिख समुदाय से बहिष्कार कर दिया जाता है। जत्थेदार के आदेश को अकाल तख्त का आदेश माना जाता है।
अकाल तख्त धार्मिक मामलों के अलावा भी सिखों के नैतिक चरित्र पर भी विचार कर फैसला देता है। अकाल तख्त की भूमिका धार्मिक संस्था तक सीमित नहीं रहती, बल्कि समाज के सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर भी गहरी छाप छोड़ती है। इसके फैसले सिख धर्म के अनुयायियों के लिए अनिवार्य माने जाते हैं। अकाल तख्त न केवल सिख धर्म की धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह पंजाब की राजनीति और समाज में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
Sukhbir Badal News : कौन हैं सुखबीर सिंह बादल, जिन्हें अकाल तख्त ने सुनाई सजा और किसने चलाईं उन पर गोलियां? - Dayitva M
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