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– गोपाल शुक्ल:
“अब तुम्हारी बारी है, डॉक्टर।” करीब 14 साल पहले 14 साल के एक लड़के के हाथों मस्जिद की दीवार पर लिखी इस एक लाइन ने पूरे सीरिया को बारूद की आग में झुलसाकर रख दिया। पूरा देश एक दो नहीं पूरे 14 सालों से जल रहा है। आखिरकार सीरिया में तख्तापलट के बाद जाकर इस सुलगती चिंगारी के बुझने का रास्ता बनता दिखाई दे रहा है। एक छोटे से शहर दारा में शुरू हुई बगावत की वो छोटी सी चिनगारी में दमिश्क, अलेप्पो और होम्स जैसे शहर करीब-करीब जलकर राख हो गए।
क्यों कब और कैसे जल उठा सीरिया
इन दिनों अगर आप टीवी की स्क्रीन पर देखें तो वहां आपको सीरिया की तस्वीरें दिखाई पड़ेंगी। जैसा पहले श्रीलंका में हुआ, या कुछ अरसा पहले बांग्लादेश में देखने को मिला, वहां मौजूदा सरकार को खदेड़ने के बाद बगावत पर उतरे लोगों ने सबसे पहले वहां कुछ मूर्तियां गिराईं। ठीक उसी तर्ज पर सीरिया में भी विद्रोहियों ने मौजूदा शासक और हुकूमत की सबसे बड़ी निशानी उनकी मूर्तियों को जमींदोज़ कर दिया। मूर्ति गिराने की जो तस्वीरें दिखाई गईं वो 30 नवंबर 2024 की हैं।
तो यहां ये समझने की कोशिश करते हैं कि
- सीरिया में क्या हो रहा है, और क्यों हो रहा है?
- विद्रोही गुटों ने सीरिया में कहां कहां कब्जा कर लिया?
- सीरिया के इस हालात का पूरे मिडिल ईस्ट पर क्या असर पड़ने वाला है?
किसकी तोड़ी गई मूर्तियां और क्यों?
लेकिन पहला सवाल ये उठता है कि आखिर इनकी मूर्तियां क्यों तोड़ी गईं? और ऐसा करने वाले लोग कौन हैं? असल में जिन लोगों ने मूर्तियां तोड़ी वो सीरिया के विद्रोही गुट के लोग हैं। पिछले महीने की 27 नवंबर को विद्रोही गुट के इन लोगों ने सीरिया की सेना पर हमला किया था और शाम होते होते इस विद्रोही गुट ने अलेप्पो के दो दर्जन से ज्यादा गांवों पर कब्जा कर लिया था। पूरे देश में खबर फैल गई कि अलेप्पो पर विद्रोही गुट का कब्जा हो गया और सबसे मजेदार बात ये थी कि बशर अल असद की सेना अलेप्पो शहर छोड़कर ही भाग खड़ी हुई। हालांकि देर रात रूस ने बशर अल असद के समर्धन में अलप्पो में विद्रोही गुटों के ठिकानों पर हवाई हमले भी किए। जिसमें 200 से ज्यादा विद्रोही मारे गए और उनके ठिकानों पर भारी तबाही हुई। अलेप्पो पर कब्जा करने के बाद विद्रोही गुट सीरिया के दूसरे बड़े शहर हमा की तरफ बढ़े और उसे भी अपने कब्जे में लेने के बाद दमिश्क का रुख किया। सीरिया में पिछले एक हफ्ते से खानाजंगी यानी गृह युद्ध तेज हो गया। आखिर में दमिश्क पर कब्जा करने के बाद ही विद्रोही गुट ने सांस ली। जबकि मौजूदा हुकूमत की कमान संभालने वाले बशर अल असद अपनी जान बचाकर रूस भाग गए जहां रूस की व्लादिमीर पुतिन की सरकार ने मानवीय आधार पर उन्हें शरण भी दे दी है।

सीरिया के सबसे बड़े तानाशाह की मौत
जो तस्वीरें सामने आईं अलेप्पो से, इसमें एक मूर्ति थी बासिल अल असद की। बासिल अल असद असल में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के भाई हैं। जिनकी 1994 में एक कार हादसे में मौत हो गई थी। जबकि दूसरी मूर्ति जिसे बागियों तो तोड़कर अल्लाह हू अकबर के नारे लगाए, वो मूर्ति है हाफिज अल असद की। जो बशर अल असद के पिता थे और सीरिया के अब तक के सबसे बड़े तानाशाह थे। साल 2000 में उनकी मौत हो गई थी और उसके बाद से बशर अल असद की हुकूमत सीरिया में चल रही थी।
दुनिया भर की ताकतों का अखाड़ा बना सीरिया
अगर सीरिया के नक्शे पर नज़र डालें तो वहां एक बड़े से हिस्से पर सीरिया में बशर अल असद की मिलिट्री का कब्जा है। जबकि नक्शे में दिख रहा जो पीले हिस्सा है, वो कुर्द समर्थित सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्स यानी SDF के कब्जे में है। इसके अलावा पूरे सीरिया में अलग अलग गुट और अलग अलग विद्रोहियों के साथ साथ दुनिया भर की तमाम दूसरी बड़ी ताकतों के समर्थन वाली सेनाओं और गुटों का कब्जा है।
विद्रोही इलाके- इदलिब प्रांत पूरी तरह से विद्रोहियों के कब्जे में है, जहां संघर्ष रुक-रुक कर जारी है।
कुर्द क्षेत्र- उत्तर-पूर्व सीरिया कुर्द मिलिशिया के कब्जे में है, जो अमेरिका के समर्थन पर निर्भर है।

सीरिया का गृहयुद्ध-सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी
सीरिया का गृहयुद्ध 21 वीं सदी की दुनिया की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदियों में से एक मानी जा रही है। इसकी शुरूआत सीरिया के एक बेहद छोटे से शहर में एक मस्जिद की दीवार पर लिखी एक इबारत से मानी जाती है।
एक छोटी सी इबारत से शुरुआत
सवाल उठता है कि आखिर एक छोटी सी इबारत कैसे इतनी बड़ी चिनगारी बन गई। तो उसके लिए वक्त में थोड़ा और पीछे जाने की जरूरत है। सीरिया में सुन्नी और कुर्द की आबादी ज्यादा है जबकि शिया मुसलमान आबादी के लिहाज के बेहद कम। बावजूद इसके बशर अल असद शिया मुसलमान होते हुए भी अपने पिता की दी गई सत्ता को अपने मनमाफिक तरीके से चलाते आ रहे थे। तमाम मनमुटाव और नइत्तेफाकी के बावजूद सीरिया में हालात इतने खराब भी नहीं थे कि बशर अल असद को रूल करने में कोई दिक्कत हो। मगर बशर अल असद के बुरे दिन की शुरूआत होती है, साल 2006 से।
साल 2006 के सूखे से उपजा बवाल
साल 2006 से 2010 तक के बीच सीरिया में कम बारिश की वजह से पूरे देश में करीब-करीब सूखा पड़ जाता है। लोगों के पास अपनी रोजमर्रा की जरूरत को पूरा करने के लिए भी पैसों की कमी हो जाती है। गरीबी भुखमरी और बेरोजगारी के उन हालात में लोगों के भीतर बशर अल असद सरकार के प्रति विरोध की बातों को हवा देनी शुरू कर दी थी। दिक्कत फिर भी नहीं थी। हालांकि उस पूरे इलाके में अरब स्प्रिंग का दौर चल रहा था और सीरिया के कई पड़ोसी मुल्कों में देश की हुकूमतों के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए थे। मोरक्को, ट्यूनीशिया, लीबिया, लेबनान, मिस्र जैसे देशों में सरकार के खिलाफ आवाज उठने लगी थीं जिनकी खबरें टीवी और रेडियो के जरिए सीरिया तक भी पहुँच रही थी। हालात ऐसे हुए कि कुछ देशों खासतौर पर लीबिया और मिस्र के तानाशाहों को वहां की जनता ने विद्रोह के बाद उतार फेंका।
सेना को बशर अल असद की हिदायत
अपने पड़ोसी मुल्कों के हालात पर बशर अल असद की भी नज़र थी। उन्हें कहीं न कहीं ये अहसास होने लगा था कि बगावत की ये चिंगारी उनके आशियाने तक भी पहुँच सकती है। लिहाजा बशर अल असद ने अपनी फौज और सुरक्षा एजेंसियों के साथ साथ खुफिया एजेंसी को भी अलर्ट कर दिया था । साफ साफ हुक्म था कि किसी भी मामूली सी मामूली बात को नज़र अंदाज न किया जाए बल्कि उसको रिपोर्ट किया जाए।
दारा की मस्जिद की दीवार पर लिखी वो इबारत
सीरिया का एक शहर है दारा। मार्च 2011 में इसी दारा के एक स्कूल में सातवीं क्लास के बच्चे मोआविया सिआसने ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर स्कूल के पास की मस्जिद अल ओमारिया की दीवार पर लिखा था “अब तुम्हारी बारी है, डॉक्टर।” दरअसल सीरिया के लोग बशर अल असद को डॉक्टर के नाम से भी जानते थे। क्योंकि सीरिया की हुकूमत संभालने से पहले बशर अल असद इंग्लैंड में वेस्टर्न आई हॉस्पिटल में आंखों के डॉक्टर के तौर पर प्रेक्टिस कर रहे थे लेकिन 1994 में अपने भाई बासिल की हादसे में मौत के बाद उनके पिता हाफिज ने उन्हें सीरिया वापस बुला लिया था। और साल 2000 में हाफिज की मौत के बाद देश की हुकूमत बशर के हाथ में आ गई थी।

सीरिया में बशर अल-असद का शासन 2000 में उनके पिता हाफ़िज़ अल-असद की मृत्यु के बाद शुरू हुआ।
हाफ़िज़ अल-असद ने 30 साल तक सख्त शासन किया।
बशर ने सुधारों का वादा किया, लेकिन वे निरंकुशता, भ्रष्टाचार और सत्ता के केंद्रीकरण की ओर बढ़े।
2011 में, “अरब स्प्रिंग” आंदोलन की लहर जब सीरिया पहुंची, तो वहां पहले से मौजूद असंतोष ने इसे उग्र बना दिया।
शाम तक ही बदल चुके थे हालात
14 साल के सातवीं में पढ़ने वाले मोआविया सिआसने और उसके दोस्त उन दिनों रोडियो और टीवी में दिखाई जा रही आस पास के मुल्कों की खबरों को देखते थे। इसके अलावा अपने आस पास अपने बड़े बड़े लोगों को भी आपस में बात चीत करते हुए भी सुनते रहते थे। लिहाजा मोआविया ने अपने 14 दोस्तों के साथ मिलकर स्प्रे पेंट के जरिए मस्जिद की दीवार पर लिखा, “अब तुम्हारी बारी है, डॉक्टर।” असल में इस संदेश में ट्यूनीशिया और मिस्र में हुई क्रांतियों का प्रभाव साफ दिख रहा था। मोआविया ने दोपहर को ये सब लिखा और शाम को उसने जब ये बात अपने पिता को बताई तो पिता डर गए और समझ गए कि हुकूमत और हुकूमत के सिपाही अब मोआविया के साथ बहुत बुरा सलूक करेंगे। मोआविया के पिता ने जो सोचा वही हुआ।
उस बात को लिखने के अगले ही रोज दारा की पुलिस ने मोआविया और उसके 15 दोस्तों को पकड़ लिया। उसके बाद अगले छह हफ्तों तक पुलिस ने उन स्कूली बच्चों के खिलाफ जुल्मों सितम की इंतेहा कर दी। यहां तक कि बच्चों को न सिर्फ उल्टा लटकाया गया बल्कि उनके नाखून तक उखाड़ लिए गए। जब बच्चों के माता पिता पुलिस के सामने अपने बच्चों को छोड़ने की गुहार लगा रहे थे तब पुलिस ने कुछ ऐसा किया जिसकी वजह से बात बिगड़ गई और फिर बिगड़ती चली गई। बच्चों के माता पिता पुलिस से उन्हें छोड़ने की गुहार लगा रहे थे। तब पुलिस ने उन्हें ये कहकर वहां से खदेड़ दिया कि तुम लोग इन बच्चों को भूल जाओ और जाकर दूसरे बच्चे पैदा कर लो। अगर तुम बच्चे नहीं पैदा कर सकते हो तो अपनी औरतों को हमारे पुलिसवालों के पास भेज दो हम बच्चे पैदा करके भेज देंगे।
बगावत के पलीते में पुलिस की वजह से लगी आग
ये जहर जैसी लगने वाली बात लोगों को बर्दाश्त नहीं हुई और लोग पुलिस के खिलाफ बगावत पर उतर आए। देखते ही देखते विरोध की वो आवाज दारा शहर की हदों से निकलकर मुल्क के अलग अलग शहरों तक फैलनी शुरू हो गई। सरकार ने जब विरोधों की इन आवाजों को जोर जबरदस्ती दबाने की कोशिश की तो हालात और बिगड़ गए। इसके बाद देश भर में विद्रोह फैल गया और देखते ही देखते वो मामूली चिंगारी गृहयुद्ध बदल गई। इस खानाजंगी यानी सिविल वॉर ने सीरिया को पूरी तरह तबाह और बर्बाद कर दिया। इस वाकये के मुख्य बिंदु बने –
घटना की शुरुआत- डेरा के लड़कों का मजाकिया ग्राफिटी गृहयुद्ध का कारण बना। दमनकारी कार्रवाई और गिरफ्तारी ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को हिंसक विद्रोह में बदल दिया।
सरकार की प्रतिक्रिया- बच्चों की गिरफ्तारी और यातना ने विरोध को भड़काया।
अंतरराष्ट्रीय दखल- सीरिया का गृहयुद्ध वैश्विक शक्तियों के टकराव का केंद्र बन गया। रूस और ईरान ने असद सरकार का समर्थन किया, जबकि अमेरिका और कई अन्य देशों ने विद्रोही समूहों का समर्थन किया।
नतीजा- इस गृहयुद्ध ने सीरिया को तबाह कर दिया। लाखों लोग मारे गए, करोड़ों शरणार्थी बने, और देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बर्बाद हो गई।

सीरिया का कोढ़ और ऊपर से खाज
बीते 14 सालों के दौरान सीरिया का कोई हिस्सा ऐसा नहीं बचा जहां बारूद का गुबार न दिखाई पड़ा हो। एक तरफ सीरिया गृह युद्ध से जूझ रहा था। इसी दौरान साल 2014 में सीरिया के रक्का और उसके आस पास के इलाकों पर अल बगदादी वाले ISIS का प्रभाव बढ़ता चला गया। जिसने दुनिया भर की तमाम ताकतों को सीरिया में अपने हाथ आजमाने का मौका दे दिया। इससे सीरिया के हालात तो नहीं सुधरे अलबत्ता दिन दूनी और रात चौगुनी रफ्तार से सीरिया की तबाही का ग्राफ ऊपर उठता चला गया। –
सीरिया की तबाही का ग्राफ- आंकड़े जो अपनी कहानी खुद सुना सकते हैं।
सीरिया में बीते 13 साल के दौरान 5 लाख से अधिक लोग मारे गए।
बीते 13 सालों में सीरिया से 67 लाख लोग देश के अंदर ही विस्थापित हुए।
बीते 13 सालों में सीरिया के 60 लाख शरणार्थी तुर्की, जॉर्डन और लेबनान चले गए।
90% सीरियाई लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए।
सीरिया का बेहिसाब नुकसान
जंग की आग से झुलस रहे सीरिया को जबरदस्त आर्थिक नुकसान भी हुआ।
- गृहयुद्ध के कारण सीरिया को लगभग 300 अरब डॉलर का नुकसान हुआ।
- जीडीपी 2011 के बाद 90% गिर गई।
कहने को सीरिया और सीरिया की सेना देश के भीतर बागियों से निपटने की कोशिश में लगी हुई थी लेकिन बीतते वक्त के सात सीरिया महाशक्तियों की शतरंज में उलझ कर रह गया।
सीरिया का युद्ध सिर्फ एक देश का संकट नहीं रह गया बल्कि यह एक ऐसा रणभूमि तैयार हो गई, जहां दुनिया की महाशक्तियों ने अपनी राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए बिसात पर मोहरे चलने शुरू कर दिए।
इस बीच कुछ देश खुलकर सीरिया की बशर अल असद सरकार के हक में जाकर खड़े हो गए। जिनमें रूस और ईरान सबसे अहम देश थे जिन्होंने सीरिया का समर्थन किया।
रूस- 2015 से सीरिया में सक्रिय। एयर स्ट्राइक्स और सैन्य समर्थन से असद की सरकार को बचाया।
ईरान- शिया मिलिशिया और वित्तीय मदद के जरिए समर्थन दिया।
अमेरिका की भूमिका- अमेरिका ने विद्रोहियों को समर्थन दिया, लेकिन आईएसआईएस के खात्मे को प्राथमिकता दी।अमेरिका का समर्थन कुर्द मिलिशिया तक सीमित रहा।
इस बीच सीरिया के भीतरी हालात को देखकर तुर्की ने अपने फायदे की फसल काटने का इरादा किया और सीरिया के भीतरी मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। तुर्की ने उत्तर सीरिया में कुर्द बलों को कमजोर करने के लिए अपने सैन्य अभियान चलाए।
यह सिर्फ आंकड़े नहीं, जिंदगियां हैं
- तुर्की में लगभग 36 लाख सीरियाई शरणार्थी।
- लेबनान की 25% आबादी सीरियाई शरणार्थियों से बनी है।
- भोजन और स्वास्थ्य की कमी
- 70% आबादी को भोजन की कमी है।
- स्वास्थ्य सुविधाएं लगभग खत्म हो चुकी हैं।
सीरिया का रास्ता कहां जाता है?
सीरिया का संघर्ष जारी है। यह कहानी सिर्फ सीरिया की नहीं, पूरी दुनिया की है। यह हमें सिखाती है कि अगर समय रहते समस्याओं को हल नहीं किया गया, तो एक चिंगारी पूरे देश को खाक कर सकती है। यह घटना केवल एक किशोर की बगावत भर नहीं थी, बल्कि दशकों से चली आ रही दमनकारी सरकार, भ्रष्टाचार और असमानता के खिलाफ बढ़ते असंतोष का प्रतीक भी बनी। जब मोआविया और उसके दोस्तों को गिरफ्तार किया गया और गंभीर यातनाएं दी गईं, तो यह बात आस पास के लोगों को बर्दाश्त नहीं हुई। गुस्साए लोगों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किये जिन्हें फैलने में ज्यादा वक्त बिल्कल भी नहीं लगा। सीरिया का भविष्य अभी अंधेरे में है, लेकिन उम्मीद की रौशनी अभी भी पूरी तरह बुझी नहीं है।