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बेटियों को घर में ही है सबसे ज्यादा जान का खतरा, हर दिन होती हैं 140 हत्याएं, संयुक्त राष्ट्र की सबसे सनसनीखेज रिपोर्ट

Daughters in danger at home - Dayitva Media
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– गोपाल शुक्ल:

घर में रहने वाली शादीशुदा महिलाओं और लड़कियों की जान सबसे ज्यादा खतरे में है। आधी आबादी का ये खतरा उसके ही घर में ही छुपा हुआ है। यानी अपने ही घर की दहलीज के भीतर घरों की बेटियां महफूज नहीं है। एक लिहाज से कहा जा सकता है कि दुनिया भर की जनानियों के लिए अब उनका ही घर उनके लिए जहन्नुम बनता जा रहा है। ये बात यूं ही नहीं फिजा में तैरने लगी, बल्कि उस एजेंसी का दावा है कि जिसकी दुनिया भर में नज़र है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि महिलाएं अपने ही घर में सुरक्षित नहीं हैं। और ये बात किसी एक मुल्क या एक इलाके में लागू नहीं होती बल्कि ये सारा हाल पूरी दुनिया का है। यानी इल्जामों की उठी उंगली के निशाने पर दुनिया का हरेक मुल्क आकर खड़ा हो जाता है।

रिपोर्ट ने फैलाई संसार में सनसनी

दुनिया की आधी आबादी को लेकर जैसे ही संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट जमाने के सामने उजागर हुई तो संसार में सनसनी फैल गई। न जाने कितने मां बाप भाई बहन और नाते रिश्तेदार सवालों के घेरे में आकर खड़े हो गए कि उनके रहते हुए उनके ही घर में घर की बेटी की जान को खतरा हो गया है। हिफाजत की तमाम कसमें वादो और दावों के बीच जिस बात का जिक्र हुआ उसने वाकई एक दहशत फैला दी है। अमेरिका से लेकर एशिया तक और यूरोप से लेकर अफ्रीका तक हर कहीं औरत अपने ही घर में सुरक्षित नहीं है।

रिश्तेदारों के हाथों हर रोज होती है 140 हत्याएं

ये सनसनीखेज खुलासा करने वाली संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में हर रोज करीब 140 महिलाएं और लड़कियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है और वो भी किसी अपने घर परिवार के सदस्य या अपने पार्टनर के हाथों।  सोमवार को ये चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी हुई और मंगलवार तक पूरी दुनिया में बहस छिड़ गई कि इस रिपोर्ट का दावा आखिर कहां तक सच है।

अपना ही घर सबसे खतरनाक

रिपोर्ट्स में बताया गया कि महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक स्थान उनका अपना घर ही है। यूएन वूमन और संयुक्त राष्ट्र अपराध और मादक पदार्थ द्रव्य कार्यालय (UNODC) की तरफ से जारी की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में करीब 51,100 महिलाओं और लड़कियों को अपनी जान गंवानी पड़ी, और इनकी हत्या उनके पार्टनर या परिवार के सदस्यों ने की थी। यह आंकड़ा 2022 में 48,800 महिलाओं की मौत के आंकड़े से भी ज्यादा है। यानी साल 2023 में हर दिन औसतन 140 महिलाएं और लड़कियां अपने पार्टनर या परिवार के सदस्य के हाथों मारी गईं।

लंबे समय से महिलाएं हो रहीं हिंसा की शिकार’

रिपोर्ट्स में यह साफ किया गया है कि ‘महिलाएं और लड़कियां हर जगह लिंग आधारित हिंसा से प्रभावित हो रही हैं। हैरानी की बात यही है कि दुनिया में कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है।’ यूएन वूमन की डिप्टी एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर न्यारदजाई गुम्बोंजवांडा ने कहा कि लंबे समय से अपने ही परिवार या पार्टनर के जरिए महिलाओं और लड़कियों की हत्या की जा रही है। लेकिन इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि इस पर ध्यान न देने की वजह से यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। लिंग के आधार पर भेदभाव और सामाजिक मान्यताओं की वजह से ऐसी हिंसा को बढ़ावा मिलता है।

Dayitva Media - Daily murders of daughters

सबसे ज्यादा हत्याएं अफ्रीका में

महिलाओं की हत्याओं के लिहाज से अफ्रीका सबसे खतरनाक इलाका निकलकर सामने आया। जबकि दुनिया का सबसे तरक्कीपसंद देश अमेरिका इस मामले में ज्यादा पीछे नहीं है। एशिया का नाम आंकड़ों के मुताबिक काफी पीछे आता है।  2023 में अफ्रीका में करीब 21,700 महिलाओं और लड़कियों की हत्या हुई और उनकी हत्या में उनके ही परिवार को लोग या उनके पार्टनर शामिल थे। अफ्रीका में प्रति 1,00,000 आबादी में ऐसी 2.9 हत्याएं हुईं,  जो दूसरे इलाकों के मुकाबले बहुत ज्यादा है। करीब करीब दोगुने का फर्क है। अफ्रीका के बाद अमेरिका और ओशिनिया का नंबर आता है। इस रिपोर्ट में बोला गया है कि पिछले साल अमेरिका में भी यह रेट काफी ज्यादा था। वहां प्रति एक लाख में 1.6 स्त्री पीड़ित थी। जबकि ओशिनिया में यह रेट प्रति एक लाख में 1.5 निकला। एशिया का हाल उतना बुरा नहीं है। जबकि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा रिपोर्ट इसी इलाके की होती है। एशिया में प्रति एक लाख पर सिर्फ 0.8 महिलाएँ पीड़ित निकली जबकि यूरोप में यह रेट प्रति एक लाख में 0.6 का ही रहा।

घर के बाहर हिंसा का शिकार पुरुष ज्यादा होते हैं

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि ‘महिलाएं और लड़कियां निजी जगहों में हिंसा का ज्यादा शिकार होती हैं’, जबकि पुरुष हत्या की घटनाओं में ज्यादातर घर के बाहर मारे जाते हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2023 में दुनिया में हत्या की घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों में 80 फीसदी संख्या पुरुषों की थी जबकि 20 फीसदी संख्या महिलाओं की थी। हालांकि चौंकाने वाली बात यह है कि 2023 में जिन महिलाओं की हत्या हुई, उनमें से 60 फीसदी की जान उनके पार्टनर या रिश्तेदारों ने ली थी।

यूरोप और अमेरिका में यौन हिंसा ज्यादा

इस रिपोर्ट में इस बात पर भी रोशनी डाली गई है कि यूरोप और अमेरिका भले ही तरक्की के मुकाबले पूरी दुनिया की रेस में सबसे आगे हैं बावजूद इसके वहां महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ यौन हिंसा की घटनाएं और आर्थिक असमानताओं की वजह से महिलाओं के साथ भेदभाव अब भी एक आम समस्या ही है। जबकि एशिया के कई देशों में अब भी छोटी उम्र में लड़कियों की शादी एक बड़ी समस्या है। ये बात भी इस तरह की हिंसा को बढ़ावा देने में आग में घी का काम करती है।

यूएन वूमन की नेताओं से अपील

रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं और लड़कियों की हत्याएं रोकने की तमाम कोशिशों के बावजूद अभी भी ऐसा खतरनाक स्तर पर हो रहा है। यूएन वूमन की तरफ से सरकारों और नेताओं से अपील की गई है कि वे अपनी ताकत और पॉवर का इस्तेमाल महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के उपायों को बढ़ावा देने के लिए करें, न कि इसका दुरुपयोग करने के लिए।

महिलाओं की सुरक्षा और लैंगिक समानता पर संयुक्त राष्ट्र की 2024 की रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट “Progress on the Sustainable Development Goals: Gender Snapshot 2023-24” में महिलाओं की सुरक्षा और लैंगिक असमानता पर गहरी चिंताएं जताई गई। यह रिपोर्ट विशेष रूप से यह दिखाती है कि महिलाएं विश्व स्तर पर हिंसा, असमानता, और संरचनात्मक भेदभाव का शिकार हो रही हैं।

1. लैंगिक हिंसा

  • हर चार में से एक महिला या लड़की अपने जीवनकाल में हिंसा का अनुभव करती है।
  • संघर्ष और युद्ध क्षेत्रों में यह खतरा सबसे ज्यादा बढ़ जाता है। खासतौर पर, गाजा में 70% से अधिक पीड़ित महिलाएं और बच्चे हैं।

2. आर्थिक असमानता

  • वैश्विक अर्थव्यवस्था को लैंगिक असमानता से हर साल $10 ट्रिलियन का नुकसान हो रहा है।
  • महिलाएं अभी भी पुरुषों की तुलना में लगभग 20% कम कमाती हैं।

3. कानूनी अधिकारों की कमी

  • विश्व के 27% देशों में अभी भी घरेलू हिंसा पर कोई कानून नहीं है।
  • ऐसे देशों में महिलाओं को हिंसा का सामना करने की संभावना अधिक है।

4. मैदान ए जंग का हाल

  • गाजा, वेस्ट बैंक और इज़राइल जैसे क्षेत्रों में महिलाओं को यौन हिंसा, भेदभाव और मानवीय संकट का सामना करना पड़ रहा है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए, गंभीर चिंता का विषय है।

2030 सतत विकास लक्ष्यों पर प्रगति

रिपोर्ट के अनुसार, अगर मौजूदा रुझान जारी रहे, तो 2030 तक लैंगिक समानता हासिल करना असंभव होगा।

महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार के लिए सुझाव

  • कानूनी ढांचे का सुधार- सभी देशों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए प्रभावी कानून लागू किए जाएं।
  • शिक्षा और रोजगार-  शिक्षा और रोजगार में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जाए।
  • शांति प्रयासों में महिलाओं की भागीदारी- युद्ध क्षेत्र में शांति प्रक्रिया और मानवीय सहायता में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
  • डिजिटल सशक्तिकरण- डिजिटल क्षेत्र में महिलाओं की पहुंच बढ़ाई जाए।

वैश्विक और क्षेत्रीय दृष्टिकोण

  • मध्य पूर्व और अफ्रीका: यमन, गाजा, और अन्य संघर्ष क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों को भारी संकट का सामना करना पड़ता है।
  • दक्षिण एशिया- यहां बाल विवाह और घरेलू हिंसा के मामले चिंता का विषय हैं।
  • यूरोप और उत्तरी अमेरिका: आर्थिक असमानता और यौन उत्पीड़न की घटनाएं अभी भी आम हैं।
  • यह रिपोर्ट महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा के लिए वैश्विक जागरूकता और ठोस कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देती है।

Author

  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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