#दुनिया

जॉर्ज सोरोस: एक ही दिन में बैंक को कर दिया कंगाल, ऐसे बना था अरबपति, खिलाड़ी, मसीहा या साजिशकर्ता?

George Soros-2 - Dayitva Media
Getting your Trinity Audio player ready...

– गोपाल शुक्ल:

इन दिनों टीवी न्यूज, या अखबार या फिर सोशल मीडिया में जैसे ही खबरों पर नज़र जाती है तो एक नाम सबसे पहले चमकने लगता है। वो नाम है जॉर्ज सोरोस का। इस नाम की वजह से हिन्दुस्तान की संसद काम तक नहीं कर पा रही। जिधर देखो बस इसी नाम का बोलबाला सुनाई पड़ता है।

किसी रोमांचक कहानी का किरदार है जॉर्ज सोरोस

सचमुच जॉर्ज सोरोस का नाम सुनते ही ऐसा लगता है जैसे किसी कहानी के किरदार की बात हो रही हो। इस नाम और उससे जुड़ी कहानियों पर गौर करें तो ऐसा लगता है कि ये कहानी ऐसे किरदार की है जिसने जिंदगी में कभी हार नहीं मानी। इस नाम को सुनते ही एक जिज्ञासा मन में कुलांचे भरने लगती है कि आखिर ये जॉर्ज सोरोस कौन है, कहां से आया और आखिर इस नाम से जुड़ा वो कौन सा तिलस्म है जिसने हमारी सियासत को एक तरह से नजरबंद कर रखा है।

दुनिया भर में सोरोस के किस्सों की भरमार

जॉर्ज सोरोस के बारे में गूगल पर सर्च करने पर पता चलता है कि दुनिया भर में उनके नाम के अनगिनत किस्से मशहूर हैं।  कहीं उन्हें मसीहा कहा जाता है, तो कुछ लोगों के लिए वो साज़िशों का एक बादशाह है। दिल्ली की टकसाली ज़ुबान में कहा जाए तो इस दिलचस्प शख्स की कहानी पर नज़र डालें तो पता चलता है कि इस नाम के हरेक पहलू पर और इसकी जिंदगी के हर मोड़ पर एक नया ट्विस्ट मौजूद है।

श्वार्ट्ज से ऐसे बना था सोरोस

तो चलिए जॉर्ज सोरोस के बारे में जानने के लिए शुरू से शुरू करते हैं। साल 1930 में हंगरी के बुडापेस्ट में उस जमाने के जाने माने क्रांतिकारी और मशहूर लेखक तिवोडर सोरोस के घर एक लड़के का जन्म हुआ।नाम रखा गया ज्यॉर्जी श्वार्ट्ज। लेकिन ये लड़का इस नाम के साथ ज्यादा नाता नहीं रख सका। उसने अपना नाम बदलकर जॉर्ज सोरोस रख लिया। अब भला ज्यॉर्जी श्वार्ट्ज को अपना नाम बदलने की नौबत क्यों आई। असल में सोरोस एक यहूदी परिवार था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1940 के दशक में नाज़ियों का ज़ुल्म यहूदियों पर सिर चढ़कर बोल रहा था। सुरक्षा की खातिर उनके परिवार ने श्वार्ट्ज़ नाम को बदल दिया। क्योंकि श्वार्ट्ज नाम से यहूदी मालूम पड़ता था जबकि सोरोस हंगेरियन भाषा में अधिक सामान्य और गैर-यहूदी लगता था। परिवार को नाजियों से बचाने के लिए किया गया ये बदलाव एकदम सही कदम लगा। दिल्ली वालों की जुबान में कहें तो जान बचाने के लिए शातिर चाल चलनी पड़ी।

अपने नाम के मतलब को सार्थक करता सोरोस

हंगरी भाषा में सोरोस नाम का मतलब होता है ऊपर उठने वाला। और इस नाम के बाद तो जैसे जॉर्ज सोरोस ने जमीन देखी ही नहीं, हमेशा और तेजी से कामयाबी के आसमान की तरफ उठने लगे। हालांकि ऐसा नहीं है कि अपनी जिंदगी में सोरोस ने कोई तकलीफ नहीं झेली। लेकिन असल में सोरोस तो जैसे उनकी किस्मत में लिखी हुई थी। वो ना सिर्फ अपने परिवार के लिए बल्कि दुनिया भर में अपनी पहचान बनाने के लिए ऊपर उठे और फिर उठते ही चले गए।

मुसीबतों से सीखा कामयाबी का ककहारा पढ़ना

एक कहावत है कि जो ठोकर खाए, वही संभलना सीखता है। सोरोस का बचपन भी कुछ इसी तर्ज पर गुजरा। नाज़ी शासन के दौरान उनका परिवार एक-एक दिन जीने के लिए संघर्ष करता रहा। बुडापेस्ट में उन्हें नाज़ियों से छिपकर रहना पड़ता था। ये वही दौर था जब सोरोस ने ज़िंदगी की कड़वी सच्चाइयों को बहुत करीब से देखा। हंगरी में नाजियों की हुकूमत खत्म हुई लेकिन सोरोस की जिंदगी से परेशानियों ने हटने का नाम नहीं लिया। हंगरी में कम्युनिस्ट सरकार के बढ़ते असर की वजह से उन्हें 1947 में देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। सोरोस बुडापेस्ट छोड़कर लंदन चले गए। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में दाखिला लिया।

एक सोच से बदल गई सोरोस की पूरी जिंदगी

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात जाने माने दार्शनिक कार्ल पॉपर से हुई। हालांकि वो दोनों ही एक साथ एक ही क्लास में पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन जॉर्ज सोरोस कार्ल पॉपर की ओपन सोसाइटी वाले विचार से बहुत प्रभावित हुए। सच कहा जाए तो पॉपर का ये विचार जॉर्ज सोरोस के दिल में बस गया। पढ़ाई के दौरान ही जॉर्ज सोरोस इस बात के हिमायती हो गए कि ऐसी दुनिया ऐसा समाज होना चाहिए जहां अपनी बात कहने और सोचने की पूरी आजादी हो। इस एक विचार ने जॉर्ज सोरोस का पूरा व्यक्तित्व ही बदल दिया। कार्ल की इसी सोच ने जॉर्ज सोरोस को एक ऐसा परोपकारी बना दिया, जिसके किस्सों की आज पूरी दुनिया में गूंज सुनाई पड़ती है।

1956 में सोरोस न्यूयॉर्क चले गए। वहां सोरोस ने 1956 से 1959 तक एफ.एम. मेयर में एक शेयर ब्रोकर के रूप में और 1959 से 1963 तक वेर्थीम एंड कंपनी में एक विश्लेषक के रूप में काम किया। इस पूरे दौरान, सोरोस ने कार्ल पोपर के विचारों के आधार पर रिफ्लेक्सिविटी के दर्शन को विकसित किया।

सोरोस समझ गए कि जब तक वे अपनी ओर से निवेश नहीं कर लेते तब तक वे पैसे नहीं बना पाएंगे। तब सोरोस ने पता लगाना शुरू किया कि किस तरह निवेश किया जाए। 1963 से 1973 तक उन्होंने अर्होल्ड और एस. ब्लेक्रोएडर में काम किया।  यहां जॉर्ज सोरोस उपाध्यक्ष के पद पर थे। आखिरकार सोरोस ने ये नतीजा निकाला कि वे एक दार्शनिक या फंड मैनेजर की बजाए खुद एक बेहतर निवेशक हो सकते हैं। 1967 में उन्होंने खुद चलाने के लिए फर्स्ट ईगल नामक एक विदेशी निवेश कोष की स्थापना की। 1979 में कंपनी ने सोरोस के लिए एक दूसरा कोष डबल ईगल हेज फंड बनाया। कोष को अपनी मर्जी से चलाने पर जब निवेश नियमों ने उनकी क्षमता पर लगाम लगाने की कोशिश की तो 1973 में उन्होंने अपना पद छोड़ दिया और निजी निवेश कंपनी की स्थापना कर ली। यही कंपनी बाद में क्वांटम फंड के नाम से मशहूर हुई।  उन्होंने हिसाब लगाया कि पांच साल बाद 500,000 डॉलर बन जाना संभव होगा और इतना काफी होगा

बड़े खेल का बड़ा दांव

कहते हैं, जिसे दिमाग से खेलना आता हो तो खेल तुम्हारा है। सोरोस ने भी ऐसा ही किया। 1950 के दशक में उन्होंने शेयर बाजार की दुनिया में कदम रखा।। 1970 में जॉर्ज सोरोस ने सोरोस फंड मैनेजमेंट नाम की फर्म शुरू की। अपनी फर्म शुरु करने के कुछ ही दिनों बाद ही वो कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने लगे। लेकिन सबसे बड़ी कामयाबी 1992 में सोरोस के हाथ लगी जब उन्होंने ब्रेकिंग द बैंक ऑफ इंग्लैंड किया।

सोरोस का वो दांव जिसने इतिहास बदल दिया

सोरोस ने ब्रिटिश पाउंड के खिलाफ शॉर्ट सेलिंग की रणनीति अपनाई। उस समय ब्रिटेन यूरोपीय मुद्रा विनिमय तंत्र (ERM) का हिस्सा था, जिसमें पाउंड की कीमत को एक निश्चित स्तर पर बनाए रखना जरूरी था। लेकिन सोरोस ने आर्थिक हालातों का सटीक विश्लेषण करते हुए अनुमान लगाया कि ब्रिटिश सरकार ऐसा नहीं कर पाएगी। उन्होंने अपने निवेश के जरिए भारी मात्रा में पाउंड खरीद लिए। जब ब्रिटिश सरकार पाउंड की कीमत बचाने में नाकाम रही, तो उसकी कीमत गिर गई।  और फिर सोरोस ने उसी दिन कुछ ही देर के बाद ब्रिटिश पाउंड को तुरंत बेच दिया। जिससे एक ही दिन में 1 बिलियन डॉलर का मुनाफा कमा लिया। इस एक चाल ने सोरोस को रातों-रात दुनिया का सबसे चर्चित निवेशक बना दिया।

पैसे कमाने के अलावा भी काम करना

सोरोस सिर्फ पैसे कमाने में माहिर नहीं थे। उनके दिल में समाज में बदलाव और दकियानूसी बातों और विचारों से दूर हटने के लिए भी गुंजाइश हमेशा थी। 1984 में उन्होंने ओपन सोसाइटी फाउंडेशन की स्थापना की। इसका मकसद था दुनिया भर में मानवाधिकार, शिक्षा और लोकतंत्र को बढ़ावा देना।

पैसे से सत्ता और सियासत तक

जॉर्ज सोरोस दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक हैं। फोर्ब्स के मुताबिक, सोरोस की कुल संपत्ति 6.7 बिलियन डॉलर है। अब भला दुनिया में ऐसा कौन है जो तरक्की करे और दुश्मन न बनाए? सोरोस भी इससे अछूते नहीं हैं। उनके ऊपर कई देशों में राजनीतिक साज़िश करने का आरोप लगा है। उनके विरोधी कहते हैं कि वह एक चालाक उद्योगपति हैं। 1979 और 2011 के बीच उन्होंने 11 बिलियन डॉलर से ज़्यादा का योगदान ऐसे लोगों के लिए किया है जो गरीब और बीमार हैं। 2017 तक उनका कुल डोनेशन  जो गरीबी से लड़ाई,दुनियाभर में छात्रवृत्तियों से जुड़ी योजनाओं और विश्वविद्यालयों को गया वह 12 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। हालांकि जॉर्ज सोरोस पर मलेशिया और थाईलैंड की करेंसी से छेड़छाड़ का भी आरोप लगाया जाता रहा है। उनके ऊपर कई देशों की सत्ता परिवर्तन की कोशिश के आरोप भी लगते रहे हैं। जॉर्ज सोरोस कश्मीर मुद्दे पर भी बयान दे चुके हैं।

फोर्ब्स ने दिया उदार डोनेटर का तमगा

सोरोस ने 1984 में ओपन सोसाइटी फाउंडेशन की स्थापना की, जो दुनियाभर में मानवाधिकारों, लोकतंत्र और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन 32 बिलियन डॉलर से अधिक का योगदान कर चुकी है। फोर्ब्स ने उन्हें उनकी कुल संपत्ति के प्रतिशत के आधार पर सबसे ‘उदार डोनेटर’ का खिताब दिया है। अब तक उन्होंने अपनी संपत्ति से अरबों डॉलर परोपकारी कार्यों के लिए दान कर दिए हैं। उनका फोकस अक्सर गरीब और पिछड़े देशों में न्याय और समानता को बढ़ावा देने पर रहता है।

दुनिया की चालें पढ़कर अपनी चालें लिखीं

ये दुनिया का फलसफा है कि हरेक कामयाब शख्स के सौ दुश्मन होते हैं। खासतौर पर जो भी पैसा कमाता है उसे दुनिया में अक्सर अच्छी नज़र से भी नहीं देखा जाता। क्योंकि मान लिया जाता है कि उसने गलत तरीके से दौलत कमाई। ऐसा ही जॉर्ज सोरोस पर भी कई देशों में राजनीतिक साज़िश करने का आरोप लगा है।

सियासी साजिश के लगे बड़े इल्जाम

हंगरी- उनका अपना जन्मस्थान हंगरी अब उनके लिए सबसे बड़ा विरोध का केंद्र बन चुका है। वहाँ की सरकार, खासतौर पर प्रधानमंत्री विक्टर अर्बन, उन पर आरोप लगाते हैं कि उनकी फाउंडेशन राष्ट्रीय संस्कृति और पहचान को नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रही है। उनकी फंडिंग से जुड़े संगठनों को हंगरी में प्रतिबंधित भी किया गया है।

अमेरिका- अमेरिका में भी उन्हें अक्सर रिपब्लिकन पार्टी और दक्षिणपंथी संगठनों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। उनकी प्रगतिशील नीतियों और डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए फंडिंग ने उन्हें अक्सर विवादों के केंद्र में रखा है।

इज़राइल- इज़राइल में भी उन्हें  यहूदी विरोधी करार दिया गया है, क्योंकि उनकी फाउंडेशन ने फिलिस्तीनी अधिकारों और दीगर दूसरे प्रगतिशील संगठनों को समर्थन दिया है।

भारत- भारत में तो जॉर्ज सोरोस सियासत के लिए जरूरी नाम बन चुके हैं। देश की कई सियासी पार्टियां जॉर्ज सोरोस को एक खास तरह की विचार धारा के साथ जोड़कर कांग्रेस के साथ नाता रखने का इल्जाम लगाती रहती हैं। जॉर्ज सोरोस के नाम को उस वक्त सुर्खियाँ में जगह सबसे ज्यादा मिली जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है, जिससे हिन्दुस्तान के सियासी गलियारों के साथ साथ समाज के अलग अलग तबकों में उनकी जमकर आलोचना हुई।

खतरनाक त्रिकोण का चौथा कोण

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक धारा 370 हटाए जाने को लेकर जॉर्ज सोरोस ने कहा था कि भारत में कश्मीर के लोगों पर अत्याचार किया जा रहा है। जबकि बीजेपी आरोप लगाती रही है कि कांग्रेस पार्टी के जॉर्ज सोरोस से नजदीकी संबंध हैं। बीजेपी का दावा है कि सोरोस और कुछ अमेरिकी एजेंसियां, राहुल गांधी के साथ मिलकर भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे एक खतरनाक त्रिकोण का हिस्सा हैं।

भाजपा की नज़र में खलनायक है जॉर्ज सोरोस

भाजपा का दावा है कि सोरोस के संगठन ने कश्मीर को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के विचार का समर्थन किया है और सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित कांग्रेस नेताओं के सोरोस से संबंध हैं। हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने इन आरोपों का खंडन किया है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि भाजपा अडानी रिश्वतखोरी के आरोपों से ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है। अमेरिकी दूतावास ने भी भाजपा के दावों को खारिज करते हुए उन्हें निराशाजनक बताया है।

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और सोरोस का नाता

लेकिन साल 2023 में, अमेरिका की रिसर्च कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी ग्रुप पर अपने शेयर के साथ धोखे से उसकी कीमत को ऊपर रखने का गंभीर वित्तीय और कॉर्पोरेट धोखाधड़ी के आरोप लगाए। इस रिपोर्ट ने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हलचल मचा दी थी। इसका असल ये हुआ कि अडानी ग्रुप के शेयरों की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई। अब सवाल उठता है कि आखिर इस मामले में जॉर्ज सोरोस का नाम क्यों उछला। इस मामले में जॉर्ज सोरोस का नाम इसलिए जुड़ा क्योंकि उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के कारण अडानी ग्रुप को हुए नुकसान से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की स्थिति कमजोर हो सकती है। सोरोस ने अडानी और मोदी के संबंधों पर सवाल उठाए और कहा कि इससे भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था पर असर पड़ सकता है।

सियासी अखाड़े में कूदकर जॉर्ज सोरोस ने मचाई हलचल

सोरोस के बयान की हिन्दुस्तान के सियासी गलियारों में जमकर आलोचना का सामना करना पड़ा। भाजपा के नेताओं ने इसे भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप करार दिया और इसे  भारत विरोधी एजेंडे का हिस्सा बताया। कई लोगों ने सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के काम को संदर्भ में रखते हुए यह आरोप लगाया कि उनकी फाउंडेशन का उद्देश्य ही भारत में अस्थिरता पैदा करना है। दिल्ली की जुबान में कहें तो, सोरोस ने सीधे-सीधे सियासी अखाड़े में कूदकर हलचल मचा दी।

जिसने जैसा देखा वैसा पाया

हिन्दुस्तान के ज्यादातर लोगों ने सिर्फ जॉर्ज सोरोस का नाम सुना है। उसे देखा नहीं। अलबत्ता उसके बारे में ये धारणा जरूर पूरे मुल्क की बनती जा रही है कि भाई बंदा तेज़ है और अपनी चाल चलना जानता है। जॉर्ज सोरोस के समर्थक उन्हें एक ऐसा इंसान मानते हैं जिसने दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश की, जबकि आलोचक उन्हें सियासत का मंझा हुआ खिलाड़ी मानते हैं।

ऐसे कई सवालों के जवाब आपको इस आर्टिकल में मिलेंगे। दरअसल जॉर्ज सोरोस एक प्रमुख  Hungarian-American बिजनेसमैन और इन्वेस्टर हैं।जॉर्ज सोरोस की कुल संपत्ति 6.7 बिलियन डॉलर है और उन्होंने ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन को

कांग्रेस पर क्यों साधा जा रहा है निशाना?

संसद का शीतकालीन सत्र जारी है। कांग्रेस अडानी मुद्दे पर चर्चा की मांग कर रही है और अड़ गई है। बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस संसद नहीं चलने देना चाहती है और ऐसा जॉर्ज सोरोस जैसी ‘अंतरराष्ट्रीय ताकतों के साथ मिलीभगत करके हो रहा है’। अब जानते हैं कि क्यों जॉर्ज सोरोस को ‘विवादित’ कहा जाता है?

जॉर्ज सोरोस को उनके लिबरल और प्रोग्रेसिव विचार के लिए जाना जाता है जबकि

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक धारा 370 हटाए जाने को लेकर जॉर्ज सोरोस ने कहा था कि भारत में कश्मीर के लोगों पर अत्याचार किया जा रहा है।बीजेपी ने कांग्रेस के साथ संबंध के भी लगाए आरोप

बीजेपी आरोप लगाती रही है कि कांग्रेस पार्टी के जॉर्ज सोरोस से संबंध हैं। बीजेपी का दावा है कि सोरोस और कुछ अमेरिकी एजेंसियां, राहुल गांधी के साथ मिलकर भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे एक खतरनाक त्रिकोण का हिस्सा हैं। भाजपा का दावा है कि सोरोस के संगठन ने कश्मीर को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के विचार का समर्थन किया है और सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित कांग्रेस नेताओं के सोरोस से संबंध हैं। हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने इन आरोपों का खंडन किया है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि भाजपा अडानी रिश्वतखोरी के आरोपों से ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है। अमेरिकी दूतावास ने भी भाजपा के दावों को खारिज करते हुए उन्हें ‘निराशाजनक’ बताया है।

Author

  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

    View all posts

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *