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Bangladesh Political Situation Impact In India: साल 2024 के जुलाई महीने में भारत के पड़ोसी बांग्लादेश में शुरू हुआ छात्रों का छोटा प्रदर्शन देखते ही देखते दुनियाभर की मीडिया में छा गया और देश के हालात बदल डाले। छात्रों ने कोटा के खिलाफ ऐसा आंदोलन किया कि इसमें देश सुलग उठा। जनहित की मांगों के बीच कट्टरपंथी भी उग्र हो गए और देश में जमकर खून खराबा हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को अगस्त में देश छोड़ना पड़ गया। इसके बाद छात्रों ने नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस को अपना नेता चुना और उन्हें अंतरिम सरकार का प्रमुख बनने की अपील की जो हो भी गया। 5 अगस्त को शेख हसीना ने देश छोड़ दिया। इसके महज 3 दिन बाद यानी 8 अगस्त 2024 को मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख बन गए और छात्र नेताओं को अपनी कैबिनेट में शामिल किया। उसके बाद से वो देश को अगले चुनाव की ओर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच अब खबर आ रही है कि बांग्लादेश के स्टूडेंट लीडर अपना नया दल बना रहे हैं और वो सत्ता में आने के लिए उत्सुक हैं। इसके लिए उन्हें सेना का सपोर्ट भी मिल रहा है। आइये जानें अगर बांग्लादेश में सेना के समर्थन से छात्र नेताओं की सरकार बनती है तो इसका भारत पर क्या असर होगा?
हाइलाइट्स
- शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन का इतिहास
- आंदोलन को Gen-Z प्रोटेस्ट क्यों कहा गया?
- छात्रा नेता बना रहे हैं नया दल
- देश में कब हो सकते हैं चुनाव
- छात्र नेताओं को सेना का समर्थन
- बांग्लादेश में कब-कब सेना ने सत्ता संभाली
- सेना और छात्रा नेताओं का भारत पर रुख
- भारत में क्या होगा Gen-Z सरकार का असर?
शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन का इतिहास
बांग्लादेश में जुलाई 2024 में शुरू हुआ आंदोलन अगस्त 2024 में शेख हसीना के देश छोड़ने के साथ ही समाप्त हो गया। हालांकि ऐसा नहीं है कि ये कोई नया-नया आंदोलन था। बांग्लादेश में सालों से कोटा के खिलाफ छोटे मोटे प्रदर्शन हो रहे थे। इस दौरान लगातार देश में शेख हसीना की सरकार रही जो 1971 के संग्राम के शहीदों, सेनानियों के परिवार और उनके बच्चों को आरक्षण की वकालत करती थी। ये आरक्षण 30 फीसदी था। ऐसे में सरकारी नौकरियों में कुल आरक्षण 56 फीसदी हो गया था। इसी बात का कड़ा विरोध साल 2018 में पहली बार हुआ था। इसमें बड़ी संख्या में देश की युवा इकाइयों ने भाग लिया था।
अप्रैल 2018 में कोटा के खिलाफ लड़ रहे प्रदर्शनकारियों ने लामबंदी की और सरकार को दबाव में ले लिया। इसके बाद सरकार झुकी और कोटा प्रणाली को हटाने के लिए सहमति बनाने की बात करने लगी। हालांकि जब कई सालों तक इसपर ठोस फैसला नहीं हुआ तो छात्रों का प्रदर्शन उग्र होने लगा। ऐसा करते-करते साल 2024 आ गया। छात्रों के आंदोलन में कट्टरपंथियों ने अपनी सियासत चमकानी शुरू कर दी। इसके बाद सरकार ने प्रदर्शन को सख्ती से दबाना चालू कर दिया। इसका खामियाजा ये हुआ कि वो अधिक उग्र हो गई और देश में मार-काट मच गई। इस बीच अब ये महज कोटा का विरोध न होकर हसीना सरकार का विरोध हो गया था।
इससे पहले खुद को ‘रजाकार’ कहने पर छात्र नेता भड़क चुके थे। वो लगातार प्रदर्शन कर रहे थे। इस बीच मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अदालत ने भी कह दिया कि 1971 के मुक्ति संग्राम के दिग्गजों के वंशजों का कोटा किसी भी हाल में 5 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता। इस दौरान सरकार भी समन्वय के लिए अपने कदम बढ़ा चुकी थी। ऐसे में लगा कि अब बांग्लादेश शांति की राह पर आगे बढ़ेगा। हालांकि तब तक छात्रों का आंदोलन अन्य कई मांगों के साथ उग्र हो गया था। प्रदर्शनकारी कोटा सुधार के साथ जेल में बंद प्रदर्शनकारियों की रिहाई, हत्या करने वाले पुलिस वालों पर मुकदमे और मंत्रियों के इस्तीफे अड़ गए।
सरकार कुछ हद तक फिर सख्त हुई। वहीं छात्र नेताओं के साथ ही अन्य प्रदर्शनकारी उग्र हो गए। मेट्रो स्टेशन में आग लगा दी गई। कई स्थानों पर अल्पसंख्यकों की हत्या हुई। उग्र प्रदर्शन के बंपर कवरेज के साथ ही स्थानीय मीडिया ने सरकार की घोर आलोचना की। अब सरकार हालात को लेकर BNP और इस्लामिस्ट पार्टी जमात-ए-इस्लामी पर आरोप मढ़ने लगी और प्रदर्शन को सियासी बताने लगी। इस 5 अगस्त को छात्रों ने PM हाउस और संसद में हमला बोल दिया। नतीजा ये हुआ की शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ गया। उसके बाद अंतरिम सरकार का गठन हुआ। ये सरकार दावा कर रही है कि वो सभी धर्मों के लोगों के लिए शांति का माहौल बना रही है। हालांकि, वहां के अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की घटनाएं दावों की पोल खोलती रहती हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है।
आंदोलन को Gen-Z प्रोटेस्ट क्यों कहा गया?
साल 2024 में हुए प्रदर्शनों का नेतृत्व मूल रूप से छात्र नेताओं ने किया। इसके लीडर किसी न किसी विश्वविद्यालय के छात्र और छात्र पदाधिकारी होने साथ सियासी दलों के स्टूडेंट विंग के पदाधिकारी थी। माना जाता है कि इसमें शामिल ज्यादातर लोगों का जन्म 1997 से 2012 के बीच हुआ है। इसी कारण दुनिया में इस आंदोलन को जेन-जी (Gen Z) या जूमर्स (Zoomers) क्रांति का भी नाम दिया गया।
छात्रा नेता बना रहे हैं नया दल
छात्रों का आंदोलन शेख हसीना की अवामी लीग के खिलाफ था। जब सरकार गिरी और प्रधानमंत्री को देश छोड़ना पड़ा। इससे प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और इस्लामिस्ट पार्टी जमात-ए-इस्लामी ने सरकार बनाने के सपने संजो लिए। उन्हें अंतरिम सरकार के बाद होने वाले चुनाव में जीत की उम्मीद नजर आ रही थी। इस बीच छात्रों ने अपना दल बनाने का ऐलान कर दिया। उन्होंने जातीय नागरिक समिति के नाम से संगठन खड़ा किया और चुनावों की तैयारी में जुट गए। इसके पदाधिकारियों में आंदोलन का नेतृत्व करने वाले नसीरुद्दीन पटवारी, अख्तर हुसैन, सामंथा शर्मिन, सरजिस आलम शामिल हैं। अब वो अगले चुनाव में उतरने की तैयारी में जुटे हैं।
बांग्लादेश में कब हो सकते हैं चुनाव
अगस्त में देश की बागडोर संभालने के बाद ही मोहम्मद यूनुस ने स्थिरता बनाने और शांति बहाल के बाद देश में चुनाव कराने की बात कही थी। कुछ महीनों तक दुनिया में इंतजार किया। हालांकि अब उन पर बाहरी दुनिया के साथ देश के भीतर भी चुनाव कराने को लेकर दबाव बनाया जा रहा है। इस बीच खबरें चल रही हैं कि अंतरिम सरकार दिसंबर 2025 आम चुनाव करा सकती है। इसी के मद्देनजर देश के भीतर सियासी माहौल गरमाने लगा है। अब प्रमुख सियासी दलों के सामने छात्रों का नया दल खड़ा हो रहा है। खबर ये भी है कि छात्रों को सेना की भी समर्थन हासिल है। जो बैकडोर से बांग्लादेश में सरकार चलाना चाह रही है।
छात्र नेताओं को सेना का समर्थन
जातीय नागरिक समिति नाम के संगठन को सियासी पार्टी के सांचे में ढाला जा रहा है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, इसे सेना का समर्थन हासिल है। 30 दिसंबर 2024 के अंक में अमानूर रहमान का एक लेख है जिसमें सेना के अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि सेना सीधे सत्ता में आने की संभावनाओं पर कोई विचार नहीं कर रही है। हालांकि, देश में उभर रही नई पार्टी को वो समर्थन दे रही है। ऐसे में अब अगर नया दल सेना के समर्थन से सत्ता में आता है तो बांग्लादेश के सामने कई चुनौतियां आएंगी। इसका असर उसके पड़ोसियों पर भी खासा पड़ने वाला है।
बांग्लादेश में कब-कब सेना ने सत्ता संभाली
साल 1971 भारत की मदद से देश के आजाद होने के बाद बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान देश के प्रधानमंत्री बने। कुछ समय तक सब ठीक चल रहा था। देश विकास की दौड़ में भागने के लिए तैयार था। इसी बीच 15 अगस्त 1975 को सरकार से नाराज कुछ युवा सैनिकों ने बंगबंधु की परिवार समेत हत्या कर दी। इसमें शेख हसीना और उनकी बहन बच गईं। इसके बाद से ही देश में किसी न किसी तरीके से सत्ता में सेना का दबाव बनता रहा और तख्तापलट होता रहा।
तख्तापलट का इतिहास
- 1975- बंगबंधू की हत्या के बाद मुस्ताक अहमद राष्ट्रपति बने और मेजर जनरल जियाउर रहमान नए सेना प्रमुख बने
- 1975- 3 नवंबर को तख्तापलट हुआ। बंगबंधु के सपोर्टर ब्रिगेडियर खालिद मुशर्रफ ने खुद को सेना प्रमुख नियुक्त कर लिया।
- 1975- 7 नवंबर को मोशर्रफ की हत्या के बाद एक बार फिर जियाउर रहमान राष्ट्रपति बन गए। कुछ सालों में उन्होंने BNP का गठन कर लिया।
- 1982- 24 मार्च को तत्कालीन सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल हुसैन मोहम्मद इरशाद ने तख्तापलट किया और मार्शल लॉ लागू कर दिया।
- 2007- 11 जनवरी को सेना जनरल मोइन अहमद ने तख्तापलट कर सैन्य समर्थित इकोनॉमिस्ट फखरुद्दीन अहमद को प्रमुख नियुक्त कर दिया।
- 2008- इस साल पूरी तरह से सेना की सत्ता खत्म हुई और शेख हसीना सरकार में आईं।
सेना और छात्रा नेताओं का भारत पर रुख
बांग्लादेश, भारत का महत्वपूर्ण पड़ोसी है। यहां की सत्ता में सेना का प्रभाव कोई नई बात नहीं है। पिछली बार राजनीतिक अस्थिरता चरम पर थी तो भी सेना ने आपातकाल लागू कर दिया था और सत्ता को अपने हाथों में ले लिया था। ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार भी छात्रों के बहाने सेना सत्ता पर अपना नियंत्रण बनाना चाहती है। बांग्लादेश में बन रहे इन हालात का भारत पर खासा असर पड़ सकता है। क्योंकि सेना में एक बड़ा धड़ा भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थित है। कुछ वही हाल छात्र नेताओं का है। इन दिनों छात्र नेताओं में बड़ी संख्या कट्टरपंथियों की है। इसके साथ ही शेख हसीना के भारत में शरण लेने के कारण भी सेना और सियासी दलों का बड़ा धड़ा भारत के खिलाफ रहता है।
भारत में क्या होगा Gen-Z सरकार का असर?
अगर बांग्लादेश में अगली सरकार छात्र संगठनों की बनती है तो इनके पास किसी तरह का खास अनुभव नहीं होगा। इस कारण सेना का प्रभाव सरकार में और अधिक बढ़ जाएगा। कुल मिलाकर एक बार फिर से बांग्लादेश में Gen-Z के बहाने सेना पावर में आ जाएगी। चूंकि भारत बांग्लादेश का बड़ा पड़ोसी है। हमारे कई निवेश भी वहां हैं। साथ ही दोनों देशों के बीच अच्छे व्यापारिक संबंध रहे हैं। इस कारण इन तमाम घटनाक्रम का असर हम पर भी हो सकता है। शेख हसीना की सरकार के दौरान भारत और बांग्लादेश के मजबूत संबंध बने हैं। खासकर सुरक्षा और व्यापार के मोर्चे पर दोनों देश काफी आगे बढ़े हैं। सेना समर्थित Gen-Z सरकार बनती है तो संबंध बिगड़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
- दोनों देशों के बीच सीमा सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी सहयोग को लेकर हुए समझौतों पर समीक्षा हो सकती है
- भारत और बांग्लादेश के बीच लगभग $10 बिलियन का व्यापार होता है। नई सरकार में ये काफी हद तक प्रभावित हो सकता है।
- बांग्लादेश में अस्थिरता बढ़ने से रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा जटिल हो सकता है। सीमावर्ती क्षेत्रों में इसका असर दिखेगा।
- नई और अनुभवहीन सरकार के राज में बांग्लादेश में चीनी प्रभाव बढ़ सकता है। ये भारत के लिए ठीक नहीं होगा।
अपना दायित्व निभा पाएगी Gen-Z की सरकार?
Gen-Z नेताओं की पार्टी सही दिशा में अपने दायित्व को समझते हुए काम करती है तो देश निश्चित प्रगति की राह में आगे बढ़ेगा। हालांकि, अनुभव की कमी और सेना के संभावित हस्तक्षेप से मामला संदिग्ध हो सकता है। ऐसे में बदलती राजनीतिक हवा भारत और दक्षिण एशिया के लिए विचार करने का नया विषय बन सकती है। ऐसे में भारत को भी अपने लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलित नीति अपनानी होगी, जिससे बांग्लादेश में लोकतंत्र को समर्थन तो मिले, लेकिन अपनी सुरक्षा और व्यापारिक संबंधों पर आंच न आए।
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