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नेपाल को ड्रैगन का डर? सवालों में जिनपिंग से ओली की जुगलबंदी; भारत का विकल्प क्यों नहीं ?

Dayitva Media - Nepal China India Relations Xi Jinping KP Sharma Oli
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– श्यामदत्त चतुर्वेदी:

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अपनी चार दिवसीय चीन यात्रा पर हैं। यह दौरा कई कारणों से खास है, क्योंकि परंपरागत रूप से नेपाल के प्रधानमंत्री अपनी पहली विदेश यात्रा भारत से शुरू करते रहे हैं। ओली के इस कदम को नेपाल की कूटनीतिक दिशा में बदलाव और चीन के साथ घनिष्ठता बढ़ाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, यह सवाल उठता है कि क्या यह यात्रा नेपाल के लिए लाभकारी साबित होगी या फिर भारत-नेपाल संबंधों पर इसका असर पड़ेगा?

प्रधानमंत्री ओली लंबे समय से चीन के साथ मजबूत संबंधों की वकालत करते रहे हैं। उन्होंने भारत-विरोधी रुख अपनाकर अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत किया है। साल 2015 और 2019 में इसके कुछ उदाहरण देखने को मिलते हैं। इसके अलावा भी कई बार ओली के बयान आते रहे हैं जिससे उनके रुख को समझा जा सकता है।

नेपाल-चीन के बढ़ते रिश्ते

प्रधानमंत्री ओली लंबे समय से भारत-विरोधी रुख और चीन-समर्थक नीतियों के लिए जाने जाते हैं। 2015 में भारत-नेपाल सीमा नाकाबंदी से लेकर 2019 में नेपाल का विवादित नक्शा लाने तक, ओली ने भारत के खिलाफ कड़ा रुख अपनाकर अपनी राजनीति को मजबूत किया। उनकी यह यात्रा भी चीन के साथ संबंधों को गहराने की दिशा में एक और कदम है। ओली की चीन यात्रा से यह स्पष्ट है कि नेपाल एक संतुलित विदेश नीति अपनाने की कोशिश कर रहा है।

कितना हित साध पाएगा नेपाल

नेपाल दो पड़ोसी देशों के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास कर रहा है। ओली की चीन यात्रा भारत के लिए किसी बड़ी चिंता का कारण नहीं है लेकिन लंबे समय में बनने वाली राजनीतिक स्थिति को लेकर जरूर सोचने का विषय है। नेपाल के लिए भारत के साथ साझेदारी ज्यादा फायदेमंद है। इस बीच चीन के साथ परियोजनाओं का ठहराव एक चिंता का विषय हो सकता है। अब ओली की यात्रा नेपाल के दीर्घकालिक हितों को कितना साधेगी, यह समय ही बताएगा।

कर्ज के डर से सतर्क नेपाल

नेपाल चीन से अनुदान की अपेक्षा रखता है, लेकिन चीन ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज देने के पक्ष में है। श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह मामले से सबक लेते हुए, नेपाल चीन के कर्ज जाल से बचना चाहता है। क्योंकि, नेपाल पर पहले से ही 42 अरब डॉलर का कर्ज है, जिसमें 4% चीन का हिस्सा है। चीन से करीब दो करोड़ डॉलर की परियोजनाओं के लिए अनुदान लेना है। हालांकि, ओली ने स्पष्ट किया है कि नेपाल किसी भी अनावश्यक ऋण समझौते में शामिल नहीं होगा।

नेपाल 2017 में चीन के महत्वाकांक्षी बीआरआई परियोजना में शामिल हुआ। इसका उद्देश्य नेपाल को तिब्बत के रास्ते रेल और सड़क नेटवर्क से जोड़ना है। हालांकि, सात साल बाद भी परियोजना उस रफ्तार से आगे नहीं बढ़ पाई है। इस बीच नेपाल सरकार ने 41 लाख डॉलर मूल्य की अतिरिक्त परियोजनाओं के लिए भी सहमति दी है।

चीन के साथ समझौते का कोई लाभ नहीं

  • नेपाल ने ट्रांस-हिमालयन कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट पर समझौता किया था। इसमें नेपाल को तिब्बत से जोड़ने वाली रेल और सड़क परियोजना थी लेकिन अब तक कोई प्रगति नहीं हुई।
  • साल 2016 में नेपाल ने परिवहन समझौता किया था। इसमें चीन ने छह बंदरगाहों तक पहुंच का वादा किया था। हालांकि, नेपाल तब से अब तक उनका केवल एक बार उपयोग किया है। इसका कारण दूरी और लागत अधिक है।

चीन से क्यों नहीं बन पा रहा सीन

व्यापार के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है समुद्री मार्ग। चूंकि नेपाल लैंड लॉक देश है ऐसे में उसके पास अपना खुद का कोई बंदरगाह नहीं है। मतलब उसे किसी भी तरह के व्यापार के लिए बंदरगाह की जरूरत होती है। ऐसे में उसके लिए भारत चीन से कई अधिक जरूरी हो जाता है। क्योंकि, भारत का कोलकाता बंदरगाह नेपाल से केवल 700 किलोमीटर दूर है, जबकि चीन के बंदरगाह 3,000 किलोमीटर से अधिक दूर हैं। 2015 के बाद से नेपाल ने चीन के बंदरगाहों का केवल एक बार उपयोग किया। वहीं भौगोलिक और आर्थिक दृष्टि से भारत का विकल्प खोजना नेपाल के लिए मुश्किल है।

श्रीलंका से लेनी चाहिए सीख

चीन से कर्ज नेपाल के लिए एक बड़ी चिंता का कारण हो सकता है। इसी कारण वो अनुदान की मांग कर रहा है लेकिन चीन उसे कर्ज देने पर अड़ा है। ऐसे में नेपाल के सामने श्रीलंका हंबनटोटा बंदरगाह का उदाहरण सामने आ जाता है। जिसे कर्ज न चुका पाने की स्थिति में चीन को सौंपना पड़ा था। ऐसा इसलिए भी होता है कि चीन का कर्ज विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक से कई ज्यादा महंगा है।

नेपाल और भारत संबंध

भारत और नेपाल के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं। हाल ही में नेपाल ने भारत के रास्ते बांग्लादेश को बिजली बेची, जिससे आर्थिक लाभ के साथ क्षेत्रीय सहयोग के नए रास्ते खुले। भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। दोनों देश पनबिजली, विज्ञान और तकनीकी सहयोग में भी आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे में नेपाल का भारत के साथ संबंध बनाए रखना जरूरी हो जाती है। ओली की सरकार में विदेश मंत्री भी भारत के साथ मजबूत संबंधों की समर्थक हैं।

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  • श्यामदत्त चतुर्वेदी - दायित्व मीडिया

    श्यामदत्त चतुर्वेदी, दायित्व मीडिया (Dayitva Media) में अपने 5 साल से ज्यादा के अनुभव के साथ बतौर सीनियर सब एडीटर जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इससे पहले इन्होंने सफायर मीडिया (Sapphire Media) के इंडिया डेली लाइव (India Daily Live) और जनभावना टाइम्स (JBT) के लिए बतौर सब एडिटर जिम्मेदारी निभाई है। इससे पहले इन्होंने ETV Bharat, (हैदराबाद), way2news (शॉर्ट न्यूज एप), इंडिया डॉटकॉम (Zee News) के लिए काम किया है। इन्हें लिखना, पढ़ना और घूमने के साथ खाना बनाना और खाना पसंद है। श्याम राजनीतिक खबरों के साथ, क्राइम और हेल्थ-लाइफस्टाइल में अच्छी पकड़ रखते हैं। जनसरोकार की खबरों को लिखने में इन्हें विशेष रुचि है।

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