Getting your Trinity Audio player ready...
|
– श्याम दत्त चतुर्वेदी:
प्यारी सी सूरत, नन्हें कदम और कोमल हाथ, जिसकी चहलकदमी से आगन खुशियों से चहक जाए और देखते ही जीभर का दुलार करने का मन करें। वो बच्ची अचानक अब बड़ी सी हो गई है। घूंघट ने उसकी प्यारी सूरत को ढक रखा है। नन्हें कदमों को हल्दी की बेड़ियों ने जकड़ लिया। और कोमल हाथों पर मेहंदी की हथकड़ी लग गई है। फूलों से सजी डोली में पलक झुकाए वो कली सुबक रही है, क्योंकि वो बच्ची ससुराल के लिए विदा हो रही है। जिसे अभी ढ़ंग से बात करना नहीं आता है, ढंग से वो कपड़े तक नहीं पहन सकती जिसकी दुनिया ही उसकी मां की गोद और घर का आंगन है, वो अचानक इतनी बड़ी कैसे हो गई कि उसे बाबुल की दहलीज से दूर किया जाए….लेकिन ऐसा होता आया है और आज भी होता है…हमारे देश में सदियों से बार-बार हुआ। मां के दर्द और पिता के डर की बीच बच्चियां ऐसे ही विदा होती रहीं।
मां का दर्द और पिता का डर… भला कोई अपनी नन्ही बच्ची को ऐसे कैसे विदा कर सकता है। ये कैसा डर और कैसे दर्द है जो ऐसा करने पर मजबूर कर रहा है? इतना पढ़ने के बाद बेशक आपके मन में भी सवाल आ रहा होगा। तो हम बताते चलें की हम बाल विवाह की बात कर रहे हैं। किसी कारण से शुरू हुई ये परंपरा हमारे समाज में एक प्रथा बन गई। और धीरे-धीरे बच्चियां रूढ़िवाद का ऐसे ही शिकार होती चली गईं।
जबरन नहीं जरूरी था बाल विवाह
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार के निर्देश पर 27 नवंबर से 10 दिसंबर तक बाल विवाह मुक्त भारत अभियान चलाया जा रहा है। इसके में तरह-तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसमें देश के कई NGO भाग ले रहे हैं और समाज के साथ स्कूलों में बच्चों को जागरूक कर रहे हैं। बाल विवाह प्रथा निश्चित रूप से देश को कलंकित करती है और बच्चों के भविष्य को खतरे में डालती है। लेकिन, अगर हम कहें कि ये प्रथा जब शुरू हुई तो इसके पीछे इरादा नेक था तो आप शायद भरोसा नहीं कर पाएंगे लेकिन ये सच है।
क्या होता है बाल विवाह?
बाल विवाह का मतलब है 18 वर्ष से कम आयु की लड़की और 21 साल के कम आयु के लड़के का विवाह किसी अन्य बच्चे या वयस्क से होना। बच्चे किसी भी औपचारिक या अनौपचारिक विवाह के लिए सहमत भी हैं तो इसे बाल विवाह माना जाएगा। भारत में इसके लिए अब पर्याप्त कानूनी प्रावधान हैं। हालांकि, अभी भी ये प्रथा देश से पूरी तरह खत्म नहीं हुई है।
बाल विवाह की प्रथा क्यों शुरू की गई?
भारत में बाल विवाह के पीछे कई जटिल सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारण हैं। हालांकि, इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यहां के भूगोल और देश में आक्रमणों से इतिहास को माना जाता है। मध्यकाल में देखा गया कि अफगान और अरब आक्रांता भारत में आते थे। लड़ाई होती थी। कई बार राजा हार जाते थे तो आक्रांता अविवाहित लड़कियों को निशाना बनाते थे। इसमें राजा की लड़की के साथ ही उसकी प्रजा में शामिल लड़कियां भी होती थी।
मान सम्मान और सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा
बीते जमाने में बच्चों और उनके माता पिता के बीच उम्र का फासला काफी ज्यादा होता था। ऐसे में आक्रांताओं से बच्चों की सुरक्षा कई बार माता पिता के लिए मुश्किल हो जाती थी। खासतौर से बूढ़े मां बाप के लिए लड़कियों को सुरक्षित करना बहुत बड़ी समस्या थी। ऐसे में समाज में ये धारणा थी कि किसी लड़की का पति जवान होगा और उसे बेहतर तरीके से सुरक्षा मुहैया करवा सकेगा। ऐसे में उन दिनों लड़कियों के मान सम्मान और सुरक्षा के लिए ये चलन जरूरी हो गया था। भूलना नहीं चाहिए कि ये वही दौर था जब स्त्रियां जौहर करती थीं।
सीमावर्ती इलाकों में फैली थी समस्या
आपने देखा होगा कि बाल विवाह के अधिकतर मामले राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश के राजस्थान वाले सीमा इलाके से सामने आते रहे हैं। ये वही इलाके है जहां से आक्रांता भारत में प्रवेश करते थे और अपना विस्तार करते थे। भौगोलिक स्थिति के कारण इस बात को दम मिलता है कि ये लड़कियों की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम थे। हालांकि, जब ये मान्यता रूढ़िवादी हुई तो देश के अन्य राज्यों से भी मामले सामने आने लगे।
बाल विवाह के अन्य कारण
- आर्थिक बोझ: गरीब और कमजोर परिवार अपनी बेटियों को कम उम्र में शादी कर देते हैं ताकि परिवार का वित्तीय बोझ कम हो।
- दहेज प्रथा: माता-पिता कम उम्र में बेटियों की शादी इस उम्मीद में कर देते हैं कि उस समय दहेज की मांग कम होगी।
- शिक्षा और जागरूकता: बाल विवाह के नकारात्मक प्रभावों के प्रति जागरूकता का अभाव भी इसका एक बड़ा कारण है।
- पारंपरिक मान्यता: कई पारंपरिक मान्यताएं और सांस्कृतिक प्रथाएं बाल विवाह को प्रोत्साहित करती हैं।
- जबरन का भ्रम: लोगों का मानना है कि कम उम्र में शादी करने से लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी और वंश को बनाए रखा जा सकेगा।
- लिंग भेदभाव: समाज में महिलाओं की भूमिका को अक्सर शादी और मातृत्व तक सीमित कर दिया जाता है।
- कानूनों में ढील: मौजूदा कानूनों का सख्ती से पालन न करना इस प्रथा को और बढ़ाने में मददगार होता है।
- सामाजिक दबाव: कुछ समुदायों और क्षेत्रों में ये सांस्कृतिक दबाव के कारण प्रचलित है। क्योंकि ये पीढ़ियों से चली आ रही है।
- अवसरों की कमी: माता-पिता को लगता है कि कम उम्र में शादी ही उनकी बेटियों के लिए एकमात्र विकल्प है।
भारत में बाल विवाह के आंकड़े
भारत में 23 करोड़ से ज्यादा बाल वधू हैं। करीब हर साल 15 लाख लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाती है। यूनिसेफ ने साल 2021 में अपनी रिपोर्ट में वैश्विक आंकड़े जारी किए थे। इसमें बताया गया था कि दुनिया की तुलना में भारत में एक तिहाई बाल वधू हैं। यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार अभी देश में 20-24 साल की कुल 23.3 फीसदी ऐसे महिलाएं है जिनकी शादी 18 साल से कम उम्र में हो गई थी। वहीं 7 फीसदी महिलाओं की शादी 15 से 19 साल के बीच में हो गई थी।
बाल विवाह के राज्यवार आंकड़े
साल 2021 में आई रिपोर्ट की बात करें तो देश में 50 फीसदी से अधिक बाल विवाह के मामले मात्र 5 राज्यों से आते हैं। इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र का नाम शामिल है। इसके अलावा बाकी के 50 फीसदी मामले देश के शेष राज्यों से आते हैं। बाल विवाह के मामले में राजस्थान 6वें स्थान पर आता है। हालांकि, इस इलाके में जनसंख्या के आधार पर बाल विवाह का अनुपात अधिक है। इसी कारण यहां के मामले प्रकाश में ज्यादा आते हैं।
बाल विवाह के खिलाफ कानून
भारत में बाल विवाह को रोकने के लिए सबसे पहले शारदा अधिनियम को साल 1929 में लागू किया गया। इस कानून के तहत लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 14 वर्ष और लड़कों की 18 वर्ष निर्धारित की गई थी। इसके बाद, इस कानून में समय-समय पर संशोधन किए गए। साल 1949, 1978, और 2006 में बदलाव किए गए।
बाल विवाह निरोधक (संशोधन) अधिनियम, 2006
भारत में वर्तमान में बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 2006 के आधार पर बाल विवाह के मामले में कार्रवाई, जांच और सजा होती है। इसी अधिनियम में शादी के लिए लड़कों की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 कर दी गई थी। इसके साथ ही इस अपराध के लिए 2 साल तक की कैद और 1 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया था। इस संशोधन में अधिकारियों को ऐसे आयोजन रोकने के अधिकार दिए गए थे। साथ ही इस कानून के आने के बाद ऐसे विवाह भी निश्चित समय के भीतर रद्द किए जा सकते हैं। ऐसे में इस कानून के बाद देश में बाल विवाह में काफी कमी आई है।
बाल विवाह से होने वाले खतरे
लड़कियों को होने वाली सस्याएं: शिक्षा का अधिकार छिन जाना, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे कुपोषण, एनीमिया का खतरा। लड़कियों में बढ़ जाता है। इसके साथ ही कम उम्र में गर्भ धारण करने के कारण कई बार उनकी मौत तक हो जाती है। छोटी उम्र के कारण वो अपने खिलाफ हो रहे कृत्य का विरोध नहीं कर पाती है।
लड़कों को होने वाली समस्याएं: बाल विवाह लड़कों की शिक्षा पर भी असर डालता है। कम उम्र में उनके पास अधिक जिम्मेदारियां आ जाती हैं जिससे उनपर आर्थिक बोझ पड़ता है। इसके साथ ही परिवार को चलाने की जिम्मेदारी उनके सिर पर आ जाती है। इससे उनका भी बचपन छिन जाता है।
समाज के लिए खतरे: गरीबी, कुपोषण, आबादी में अनायास की वृद्धि, सामाजिक असमानता आने के साथ ही बाल विवाह से समाज में अंधविश्वास और रूढ़िवादी विचारधारा को बढ़ावा मिलता है।
बाल विवाह को कैसे रोकें?
- समाज में शिक्षा: लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना।
- जागरूकता अभियान: इसके खतरों के बारे में जागरूकता फैलाना।
- कानून का पालन: प्रशासन को चाहिए की कानूनों का सख्ती से पालन कराए।
- समाज में बदलाव: सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ना इसका बहुत कारगर उपाय है।
बाल विवाह मुक्त भारत अभियान
भारत में बाल विवाह के जटिल सामाजिक-आर्थिक कारण हैं, जिनमें गरीबी, शिक्षा की कमी और लिंग भेदभाव से लेकर पारंपरिक रीति-रिवाज और सांस्कृतिक मानदंड शामिल हैं। इसे कारण इससे लड़ना थोड़ा कठिन हो जाता है। इस प्रथा से समाज को बचाने के लिए शिक्षा तक बेहतर पहुंच, लड़कियों का सशक्तिकरण, नीतिगत सुधार, सामाजिक आंदोलन और कानूनों का सख्त क्रियान्वयन जरूरी है। इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने के लिए रूढ़िवादी विचारों को बदलना भी बेहद जरूरी है। क्योंकि, बाल विवाह केवल कानूनी उपाय ही नहीं, बल्कि समाज की सोच में बदलाव लाकर ही रोके जा सकते हैं।