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लाइक और फॉलोअर्स के चक्कर में बर्बाद होता बचपन, ऑस्ट्रेलिया में अब बच्चे नहीं कर पाएंगे सोशल मीडिया का इस्तेमाल, भारत में छिड़ी बहस

Dayitva Media
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– गोपाल शुक्ल

आज की डिजिटल दुनिया में बच्चे कम उम्र में ही इंटरनेट का इस्तेमाल करना शुरू कर दे रहे हैं। इन दिनों ये बात आम हो चुकी है कि सोशल मीडिया पर लाइक्स और फॉलोअर्स के चक्कर में हर बच्चा एक अजीब सी टेंशन में दिखाई पड़ता है। बच्चे ऐसी हरकत देखने के बाद ताज्जुब तो होता है कि आखिर ये बच्चों की मासूमियत पर ये डाका क्यों पड़ गया।

इंटरनेट का इस्तेमाल एक खतरनाक आदत

ऐसे में एक सवाल हिन्दुस्तान के हर माता पिता से पूछा जा सकता है कि क्या उनके बच्चे का दिन इंटरनेट और सोशल मीडिया के साथ शुरू होकर उसी पर खत्म होता है? अगर इसका जवाब हां है, तो ये कहा जा सकता है कि उनके बच्चे किसी अनजान मुसीबत की तरफ बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं जिसका उन्हें अभी अंदाजा तक नहीं है। क्योंकि ये आदत बहुत खतरनाक है।

ऑस्ट्रेलिया की संसद ने बनाया कानून

बच्चों की दिमागी सेहत का ख्याल करते हुए पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया ने एक कानून बनाया है। ऑस्ट्रेलिया की संसद ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर रोक लगाने का सख्त क़ानून बनाया। साथ ही उसके लिए कुछ गाइडलाइन्स भी तैयार की हैं। सीनेट की मंजूरी के बाद ऑस्ट्रेलिया में कानून बन गया। ये दुनिया में पहली बार हुआ जब 16 साल से कम उम्र के बच्चे फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। इसके अलावा यह बिल सोशल मीडिया कंपनियों को इस उम्र सीमा को लागू करने के लिए जिम्मेदार बनाएगा। उधर ऑस्ट्रेलिया में कानून बना और यहां भारत में इस बात की बहस छिड़ गई कि क्या ऐसा कानून भारत के लिए भी जरूरी है?

माता पिता का ऐसा गर्व शर्मनाक है

अक्सर देखा गया है कि छोटे बच्चों के माता पिता बड़ी शान से ये बताते हैं कि उनका बच्चा मोबाइल या इंटरनेट चलाने में कितना एक्सपर्ट है। वो छोटा बच्चा बड़ी ही आसानी से मोबाइल के मुश्किल से मुश्किल ऐप को बड़ी ही आसानी से चला लेता है। ऐसे माता पिता को इस बात का तनिक भी अंदाजा नहीं होता कि वो अपने बच्चों के साथ साथ खुद को भी कितनी मुश्किलों में डालने का रास्ता खोल रहे हैं। अपने छोटे बच्चे को मोबाइल पकड़ाकर ये माता पिता इस बात के लिए निश्चित हो जाते हैं कि बच्चा उन्हें तंग करने के बजाए मोबाइल में उलझा हुआ है। मगर वो शायद ये भूल जाते हैं कि इसी छोटी सी परेशानी से बचने के चक्कर में वो कितनी बड़ी परेशानी या आफत को दावत दे रहे है।

तीन घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया पर

इंडिया टुडे पत्रिका के एक सर्वे के मुताबिक भारत में, 9 से 17 साल के 60% युवा रोज़ाना तीन घंटे से ज़्यादा समय सोशल मीडिया या गेमिंग प्लेटफ़ॉर्म पर बिताते हैं. वहीं, 13 से 17 साल के 90% किशोर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. इनमें से 75% किशोरों के पास कम से कम एक एक्टिव सोशल मीडिया अकाउंट है।

इंटरनेट के मायाजाल में फंसा बचपन

हिन्दुस्तान की एक बड़ी आबादी मोबाइल का इस्तेमाल करती है। उस बड़ी आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस नए जमाने की जरूरत बन चुके इंटरनेट से भी अच्छी तरह वाकिफ है। इस आबादी में बच्चे बूढ़े और जवान हर तरह के लोग शामिल हैं। लेकिन ये भी सच है कि बड़ों से ज्यादा बच्चे इंटरनेट के इस मायाजाल में उलझे हैं जिसको लेकर चिंता की लहर अब पूरी दुनिया में फैल चुकी है।

हर देश को जरूरत है सोशल मीडिया कानून की

ज्यादातर मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे कानून हरेक देश को बना लेने चाहिए और जितना मुमकिन हो बच्चों को मोबाइल और सोशल मीडिया से दूर ही रखना चाहिए। हालांकि आज के इस दौर में ये बहुत व्यवहारिक नहीं लगता। आखिर ऐसा क्यों है, इस बात को समझना बेहद जरूरी है।

सोशल मीडिया के लिए चेतावनी

हाल ही में, अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन (APA) ने सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल के बारे में चेतावनी जारी की थी। चेतावनी में कहा गया था कि सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल करने से बढ़ती उम्र के किशोरों की दिक्कतें बहुत बढ़ जाती हैं। उन्हें रोजमर्रा के काम करने में दिक्कत होने लगती है। उनकी मानसिक सेहत खराब होने का खतरा बढ़ जाता है।

  • उनकी एकाग्रता पर इसका बुरा असर पड़ता है।
  • सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल सिखाने की जरूरत

दिल्ली एम्स में मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर राजेश सागर का कहना है, ‘बच्चों के लिए सोशल मीडिया पूरी तरह से बंद करना सही मायनों में एक अच्छा और बड़ा कदम है। हालांकि ये भी सच है कि इसे पूरी तरह से बंद करना शायद मुश्किल हो। लेकिन अपने बच्चों से अगर हम प्यार करते हैं तो हमें अपने बच्चों को सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल सिखाना चाहिए।’

सोशल मीडिया के लिए नियम की जरूरत

बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञ डॉक्टर प्रमित रस्तोगी का कहना है कि बच्चों के दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं हुए होते हैं। लेकिन उन्हें बिना किसी देखरेख के मोबाइल फोन और टैबलेट दे दिए जाते हैं। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर रोक लगाने की बात को बल मिला। उन्होंने कहा, ‘अगर हम सोशल मीडिया पर पूरी तरह से रोक लगा देंगे, तो दूसरी तरह की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। लोग गैर-कानूनी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने लगेंगे। लिहाजा हमें पहले देखना चाहिए कि पश्चिमी देशों में क्या होता है। फिर हम अपने देश में सोशल मीडिया पर कुछ नियम बना सकते हैं।

किशोरों की आदत बदलने लगी

सर गंगा राम अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर रोमा कुमार का कहना है कि सोशल मीडिया के ज़्यादा इस्तेमाल की वजह से किशोरों के दोस्त बनाने और उनसे बातचीत करने का तरीका बदल गया है। पिछले दस सालों में, किशोरों में डिप्रेशन, चिंता और आत्महत्या के ख्याल बहुत तेजी से बढ़े हैं। आंकड़े बताते हैं कि इस तरह की समस्याओं में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है।

रिसर्च के चिंताजनक नतीजे

रिसर्च से ये बात भी सामने आई है कि सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल करने से बच्चों में चिंता और अवसाद जैसी परेशानियां होने लगी हैं। असल में सोशल मीडिया की लत की वजह से मस्तिष्क में डोपामाइन नाम का कैमिकल रिलीज़ होता है, जिससे अच्छा महसूस होता है. हालांकि, जब मनचाहा लाइक या कमेंट नहीं मिलता, तो इससे तनाव और चिंता बढ़ सकती है। अब सवाल यही उठता है कि आखिर ये समस्या तो अब घर घर की है।

बच्चों को सोशल मीडिया से रोकने के लिए, आप ये कदम उठा सकते हैं:

  • बच्चों को सोशल मीडिया पर अपमानजनक या अनुचित सामग्री की सूचना देने के लिए सिखाएं.
  • बच्चों को सोशल मीडिया पर कितना समय बिताना है, इसकी लिमिट तय करें.
  • अभिभावकीय नियंत्रण का इस्तेमाल करके, बच्चों के लिए हानिकारक सामग्री को ब्लॉक करें.
  • बच्चों को पढ़ने के लिए समय तय करें.
  • बच्चों को सोशल मीडिया के साइड इफ़ेक्ट के बारे में बताएं.
  • खुद भी मोबाइल से दूर रहें.

बच्चों की मानसिक सेहत पर असर

अगर आपको लगता है कि सोशल मीडिया की वजह से आपके बच्चे की मानसिक सेहत पर असर पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में हर आधे सेकेंड में कोई न कोई बच्चा पहली बार ऑनलाइन दुनिया में दाखिल होता है. मगर यह ऑनलाइन क्रांति अपने साथ कई गंभीर चुनौतियां भी लेकर आई है।

जिम्मेदारी बढ़ाने की मांग बढ़ी

विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि जब सोशल मीडिया का इस्तेमाल लत की हद तक पहुंच जाए तो यह न केवल मानसिक सेहत बल्कि शारीरिक समस्याओं की भी एक बड़ी वजह बन जाती है। यही वजह है कि दुनियाभर में सोशल मीडिया कंपनियों की जिम्मेदारियों को बढ़ाने की मांग जोर पकड़ रही है।

1- मानसिक स्वास्थ्य पर असर

WHO के अनुसार, 10 में से 1 बच्चा सोशल मीडिया की वजह से अवसाद और चिंता का शिकार हो रहा है। लाइक और ‘फॉलोअर्स के लिए बच्चों का जुनून उन्हें लगातार तनाव में डाल रहा है। भारत में 2023 में 13% किशोर डिप्रेशन का शिकार हुए।

2-साइबर बुलिंग का खतरा

बच्चों के सामने साइबर बुलिंग एक बड़ा खतरा बन चुका है। एक सर्वे के मुताबिक, 2022 में 37% बच्चे साइबर बुलिंग के शिकार हुए। ये बुलिंग बच्चों के आत्मविश्वास को तोड़ सकती है।

  • 37% बच्चे साइबर बुलिंग के शिकार (2022)
  • 16% बच्चे ऑनलाइन शोषण का सामना करते हैं।

3-अनफिल्टर्ड कंटेंट और फिजिकल हेल्थ पर प्रभाव

सोशल मीडिया पर मौजूद अनफिल्टर्ड कंटेंट बच्चों की सोच को भटका सकता है। वहीं, स्क्रीन टाइम बढ़ने से 2023 में 22% बच्चों में आंखों की समस्याएं पाई गईं।

  • भारत में 22% बच्चों की आंखों की रोशनी कमजोर (2023)
  • 15% बच्चों की नींद पर असर।

4- लत और असामाजिक व्यवहार

सोशल मीडिया की लत बच्चों को उनके परिवार और दोस्तों से दूर कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदत उन्हें असामाजिक बना सकती है।
24% बच्चे दिन में 5 घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया पर बिताते हैं। 18% बच्चों में असामाजिक व्यवहार देखा गया।

5- समाधान और रोकथाम

ये समस्या हल हो सकती है उसके लिए जरूरी है कि बच्चों को डिजिटल साक्षरता सिखाएं। उनका स्क्रीन टाइम सीमित करें और उन्हें वास्तविक दुनिया से जोड़ने की कोशिश करें।
डिजिटल साक्षरता जरूरी। स्क्रीन टाइम की सीमा तय करें।

सोशल मीडिया ब्रेक लें

इसी दिशा में ऑस्ट्रेलिया ने एक कदम उठाया है जिसने एक तरफ तारीफ बटोरी है तो दूसरी तरफ आलोचना का भी सामना किया है। इस कानून के प्रावधानों, सरकार के तर्कों और इसकी आलोचनाओं पर गौर करें तो समझ में आ जाता है कि असल में ये कदम कितना जरूरी है।

नियम नहीं माने तो लगेगा भारी जुर्माना

ऑस्ट्रेलिया की संसद में भारी बहुमत से इस बिल को मंजूरी मिली. दिलचस्प बात यह है कि इसे सत्तारूढ़ लेबर पार्टी और विपक्षी लिबरल पार्टी दोनों का समर्थन मिला है। विधेयक के मुताबिक माता-पिता की सहमति या पहले से मौजूद सोशल मीडिया अकाउंट्स के लिए कोई छूट नहीं दी जाएगी। इसकी बड़ी बात यह भी है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को खुद बच्चों से दूर रखने का बंदोबस्त करना होगा। कानून बनने के बाद, प्लेटफॉर्म के पास प्रतिबंध को लागू करने के तरीके पर काम करने के लिए एक साल का वक्त होगा। मगर इसमें इसमें कामयाब नहीं होने पर उन्हें भारी जुर्माना भरना पड़ेगा ये जुर्माना 32.5 मिलियन डॉलर यानी करीब 270 करोड़ का जुर्माना हो सकता है।

सरकार का क्या तर्क है?

ऑस्ट्रेलियाई सरकार का तर्क है कि किशोरों के लिए सोशल मीडिया बेहद नुकसानदायक हो सकता है। 14 से 17 साल की उम्र के लगभग 66% ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने ऑनलाइन बहुत हानिकारक कंटेट देखा है। जिसमें नशीली दवाओं का इस्तेमाल, आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाना शामिल है।

टेक कंपनियों ने किया विरोध

हालांकि ऑस्ट्रेलिया को इस बिल को कानून की मंजिल तक ले जाना आसान नहीं था। बिल पास होने से पहले ही इसका विरोध भी शुरू हो गया था। 100 से भी ज्यादा ऑस्ट्रेलियाई और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने इसके लिए उम्र सीमा को बहुत सख्त माना है।

उधर टेक कंपनियों का अपना ही तर्क है। उनकी दलील है कि उम्र की सीमा तय करने को लेकर एक रिसर्च के नतीजे आने वाले हैं, तब तक सरकार को बिल पास नहीं करना चाहिए था।

इस दिशा में क्या कर रहे हैं दूसरे देश?

अमेरिका- अमेरिका ने तो बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए 26 साल पहले ही कानून बना दिया था. इस कानून का नाम है- चिल्ड्रन ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट। इसके तहत 13 साल से कम उम्र के बच्चों से जानकारी जमा करने से पहले वेबसाइटों को माता-पिता की परमिशन लेनी पड़ती है।

बच्चों के लिए इंटरनेट फिल्टर जरूरी

वहीं 2000 में, “चिल्ड्रन इंटरनेट प्रोटेक्शन एक्ट के तहत स्कूलों और लाइब्रेरी में बच्चों को गैर-जरूरी कंटेंट से बचाने के लिए इंटरनेट फिल्टर लगाना अनिवार्य कर दिया गया। हालांकि कानूनों पर यह आलोचना हुई है कि यह बच्चों के बीच उम्र के इस्तेमाल में धोखाधड़ी को बढ़ावा देते हैं।

ब्रिटेन- ऑस्ट्रेलिया के नक्शे कदम पर चलते हुए, ब्रिटिश सरकार भी 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन पर विचार कर रही है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार , ब्रिटेन के टेक्नोलॉजी सेक्रेटरी पीटर काइल का कहना है कि वह ऑनलाइन सुरक्षा तय करने के लिए जो भी करना होगा, करेंगे, खासतौर पर बच्चों के लिए।

फ्रांस- इस देश ने स्कूलों में 15 साल तक के बच्चों के लिए मोबाइल फोन पर बैन लगाने का ट्रायल शुरू किया है. अगर ये ट्रायल सफल होता है तो पूरे देश में लागू किया जा सकता है. यही नहीं फ्रांस में ये भी कानून है कि 15 साल से कम उम्र के बच्चें माता पिता की अनुमति के बिना सोशल मीडिया इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. वहीं नॉर्वे जैस यूरोपीय देश ने भी हाल ही में एलान किया कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल की उम्र सीमा को 13 से बढ़ाकर 15 वर्ष किया जाएगा.

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  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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