#एक्सक्लूसिव

लहू से लथपथ हुईं भारत की सड़कें, बेलगाम हादसों को लेकर NHAI और सरकार के पास है कोई समाधान?

टैंकर हादसा, दायित्व मीडिया, Jaipur ajmer road accident
Getting your Trinity Audio player ready...

– गोपाल शुक्ल:

बीते हफ्ते राजस्थान की राजधानी जयपुर में अजमेर रोड पर जो हादसा हुआ, उसने पूरे हिन्दुस्तान को झकझोर कर रख दिया। हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल तैरता दिख जाएगा कि आखिर ये सड़क हादसा क्यों हुआ? लेकिन जिस सवाल ने सबसे ज्यादा लोगों के माथे पर बल पैदा किया वो ये है कि आखिर इस सड़क हादसे का असली कसूरवार कौन है?

कौन है राजस्थान के हादसे का कसूरवार?

क्या वो ड्राइवर जो उस गैस टैंकर को चला रहा था और हादसे के बाद से लापता बताया जा रहा है? या वो ट्रक ड्राइवर जिसने मोड़ पर घूम रहे टैंकर को टक्कर मारी? या फिर वो अधिकारी जिनकी इस सड़क की देख रेख करने की जिम्मेदारी थी, लेकिन वो अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में कहीं चूक गए? या फिर सड़क का वो मोड़ ही इस पूरे हादसे का कसूरवार है जहां टैंकर के ड्राइवर ने मौका देखकर मोड़ ले लिया और दूसरी तरफ से आ रहे ट्रक ने अपनी रफ्तार का ख्याल नहीं किया और ट्क से टैंकर पर टक्कर मार दी।

14 लोगों की मौत का मुजरिम कौन?

असल में कौन है उन 14 लोगों को दर्दनाक मौत का असली मुजरिम जो उस टैंकर की टक्कर के बाद भड़की आग की चपेट में आकर झुलसकर बेमौत मारे गए? जयपुर अजमेर हाईवे पर भांकरोटा के पास एलपीजी गैस टैंकर के धमाके के बाद जब लोगों ने आग की लपटें देखीं तो उनकी रुह फना हो गई। ये लपटें पूरे 200 फुट से ज्यादा ऊंची उठी थी जिन्हें करीब एक किलोमीटर दूर से देखा गया। शुक्रवार को सुबह करीब 5 बजकर 44 मिनट पर अजमेर से जयुपर की तरफ जा रहा भारत पेट्रोलियम का टैंकर भांकरोटा में दिल्ली पब्लिक स्कूल के सामने बने कट से यू टर्न ले रहा था। उसी समय दूसरी तरफ से यानी जयपुर से अजमेर जाने वाली लेन पर एक ट्रक आ रहा था।

आग के गोले में तब्दील हो गया था टैंकर

ये टक्कर इतनी तेज थी कि गैंस टैंकर के पांच नॉजल टूट गए और टैंकर से करीब 18 टन एलपीजी गैस रिसी और देखते ही देखते एक तेज धमाके के साथ वो टैंकर आग के गोले में तब्दील हो गया। इस हादसे में उस टैंकर के आस पास मौजूद कई गाड़ियां और बाइक सवार उस आग की चपेट में आकर बुरी तरह झुलस गए। 20 दिसंबर को जयपुर अजमेर हाईवे पर हुए उस हादसे के वक्त चार लोग तो मौके पर जिंदा जल गए थे जबकि आठ लोगों की मौत सवाई मानसिंह हॉस्पिटल में इलाज के दौरान हुई। अब तक इस हादसे में 14 लोगों की जान जा चुकी है जबकि 35 से ज्यादा लोग अस्पताल में इलाज करवा रहे हैं।

… और भयानक होने से बच गया हादसा

हैरानी की बात यही है कि जिस जगह ये हादसा हुआ वहां से महज 200 मीटर की दूरी पर ही एक और तेल से भरा टैंकर खड़ा था। गनीमत यही रही कि उस जलते हुए टैंकर की आंच उस सड़क किनारे खड़े ऑयल टैंकर तक नहीं पहुँची वरना ये हादसा और भी ज्यादा भयानक हो जाता।

बेलगाम होते जा रहे हैं सड़क हादसे

हम अक्सर ऐसे या इसी तरह के कई हादसों के बारे में मीडिया में देखते सुनते और पढ़ते रहते हैं। कुछ हादसे कुछ दिनों तक तो सुर्खियों में होते हैं, लेकिन ज्यादातर हादसे तो ऐसे भी होते हैं जिनका कोई जिक्र तक नहीं होता। ये पूरे हिन्दुस्तान का हाल है।

नितिन गडकरी का मंत्रालय और सवाल

ये हादसा जयपुर अजमेर हाईवे पर हुआ। जाहिर है हाईवे का नाम आते ही सबसे पहले सेंटर में सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का नाम सामने आ जाता है। क्योंकि मौजूदा सरकार में नितिन गडकरी को उन मंत्रियों में शुमार किया जाता है जिनका मंत्रालय जमकर काम करता दिखाई पड़ता है।

हाईवे पर हादसा जिम्मेदार केंद्र सरकार!

ऐसे में जयपुर अजमेर हाईवे यानी राष्ट्रीय राजमार्ग का सारा बंदोबस्त का जिम्मा केंद्र सरकार की जिम्मेदारी में आता है। क्योंकि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1956 यही कहता है कि राष्ट्रीय राजमार्ग केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है। यानी राजमार्ग को बनाने से लेकर उसके रख रखाव की भी जिम्मेदारी इसी सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ही होती है। अब यहां एक सवाल खड़ा होता है कि हाईवे के जिस कट पर ये हादसा हुआ वो कट क्या वाकई जरूरी था। सड़क का निर्माण करने वाले इंजीनियरों ने वहां के जमीनी हालात के मुताबिक क्या इस कट को छो़ड़ा था। जबकि उसी कट के ठीक सामने बच्चों का स्कूल है। और एक सामान्य सी बात है कि सड़के के किसी भी कट पर हादसों की गुंजाइश बनी रहती है क्योंकि गाड़ियों की रफ्तार को लेकर किसी भी तरह का कोई कायदा या कानून सड़कों पर चलता तो नहीं दिखाई पड़ता। ये थी पहली बात।

सड़क हादसों की ये हैं सबसे बड़ी वजहें

अब दूसरी जरूरी बात कर लेते हैं। आमतौर पर देखा जाता है कि सड़क हादसे के लिए कुछ जरूरी बातें हैं जिन पर नज़र गाहे बगाहे चली जाए तो चली जाए। वर्ना ऐसा तो होता नहीं है। असल में सड़क हादसे की एक सबसे बड़ी वजह है गाड़ियों का अपनी लेन में न चलना। इसके अलावा सड़क पर ओवरटेक भी हादसे की दूसरी सबसे बड़ी वजह माना जाता है। हालांकि इस ओवरटेक को लेकर भी तस्वीर साफ नहीं है। तेज गाड़ी चलाना और उसी तेजी में सड़क पर अपनी लेन को बार बार बदलना भी एक सबसे बड़ी वजह माना जाता है।

सड़क हादसों में सालाना 12 फीसदी का इजाफा

एक सच ये भी है कि भारत में हर साल सड़क हादसों की रफ्तार करीब 12 फीसदी की स्पीड से बढ़ रही है। खुद सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने ‘भारत में सड़क दुर्घटनाएं-2022’ के नाम से अपनी एक सालाना रिपोर्ट जारी की थी। उस रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में करीब 4,61,312 सड़क हादसे हुए। इन सड़क हादसों में 1,68,491 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी जबकि 4,43,366 हादसे का शिकार हुए लेकिन उनको लगी चोट से ही बला टल गई। खुद सरकार की रिपोर्ट कहती है कि पिछले साल के मुकाबले सड़क हादसों में एक साल के भीतर 11.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है।

हर रोज होते हैं 1263 एक्सीडेंट

ये आंकड़ों की ही गवाही है कि भारत में हर रोज करीब 1263 हादसे होते हैं इस लिहाज से हर साल होने वाले हादसों की गिनती साढ़े चार लाख के पार निकल जाती है।

सड़क हादसों में मौत के मामले में दिल्ली नंबर वन

खुद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में बताया है कि सड़क हादसों के मामले में उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश देश में सबसे आगे रहने वाले सूबे हैं जबकि देश की राजधानी दिल्ली सड़क हादसों में 1457 मौतों के साथ टॉप पर है। दूसरे नंबर पर 915 मौत के साथ बेंगलुरू और 850 मौतों के साथ जयपुर का नंबर तीसरा आता है।

ट्रैफिक स्पीड है हादसों की बड़ी वजह

यहां एक सवाल तो खड़ा ही होता है कि आखिर इतने हादसे होते क्यों हैं? बुनियादी तौर पर माना जाता है कि सड़क पर वाहनों की रफ्तार और सड़क पर तेजी से बढ़ता ट्रैफिक इसकी सबसे बड़ी वजहों में शामिल हैं। इसके अलावा भी कई और वजह हैं, जिसके लिए वो अफसर वो महकमे कसूरवार हैं जो अपनी लापरवाही और काम के दायित्व से मुंह मोड़ने की वजह से लोगों की जान से खिलवाड़ करनें में लगे हुए हैं। जिन वजहों को सबसे पहले गिना जाता है उनमें बुनियादी ढांचे से लेकर ट्रैफिक के नियमों को लागू कर पाने में तो कमी है ही, सबसे बड़ी कमी तो इस बात की देखी गई है कि ड्राइविंग के तौर तरीकों के बारे में या सड़क के कायदे और कानून के बारे में लोगों को जानकारी ही बेहद कम या नहीं के बराबर है।

बहुत ही बुरा हाल है सड़कों का

ये आम शिकायत है कि शहर के भीतर हो या शहर का बाहरी इलाका, सड़क का रखरखाव अक्सर बहुत बुरी हालत में होता है। इस बात से कोई इनकार कर ही नहीं सकता कि यहां सड़कों पर भीड़ बेतहाशा है। देखने में तो ये भी आया है कि ज्यादातर सड़क में केवल दो ही लेन होती हैं। उसमें भी न तो चेतावनी के चिन्ह लगे होते हैं, न ही सड़क पर हादसे वाली जगहों के बारे में कोई पहचान सुनिश्चित की जाती है इसके अलावा कई सड़कें तो ऐसी हैं जहां रोशनी ही नहीं होती या इतनी कम होती है कि गाड़ी चलाने वाले को अपने वाहन की लाइट पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

अथॉरिटी के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां

सड़क के कायदे और कानून को लागू करने का आलम तो ये है कि राजमार्गों यानी हाईवे पर लोग उल्टी दिशा में मीलों सफर तय कर लेते हैं और उन्हें कोई रोकने और टोकने वाला नहीं होता। यानी वहां का सारा हाल लोगों की मनमर्जी से चलता है। यानी मोटे तौर पर देखें तो ये चार ऐसे प्वाइंट है जो सड़क अधिकारियों के लिए चुनौती के तौर पर देखे जा सकते हैं-

  • भारत की सड़कों पर बेतहाशा भीड़
  • सड़कों की हालत और रखरखाव बेहद खराब
  • सड़कों पर कम लेन की वजह से क्षमता की कमी
  • ज्यादातर राजमार्गों में से एक चौथाई हिस्से पर भीड़ का होना

इस वजह से होते हैं सबसे ज्यादा हादसे

भारत में दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे सबसे चौड़ी सड़क के तौर पर जानी जाती है। 96 किलोमीटर लंबे इस हाइवे पर एक भी रेडलाइट नहीं है। इस सड़क को बनाने में पूरे छह साल लगे हैं। लेकिन हिन्दुस्तान में ज्यादातर सड़कों पर हादसों की जो वजह देखी जाती हैं उनमें ब्रेक का फेल होना या स्टीयरिंग का फंस जानाटायर का फटना, या रोशनी की वजह से रास्ता भटकना। इसके अलावा ओवरलोडिंग की भी एक बड़ी समस्या है। जबकि सड़क पर गड्ढ़े और टूटी फूटी सड़कें भी हादसों की बड़ी वजह बनकर सामने आती हैं। जिस बात को लेकर सबसे ज्यादा माथे पर बल पड़ते हैं वो है देहाती इलाकों की सड़कों का राष्ट्रीय राजमार्गों से मिलना। इसके अलावा डायवर्जन, तेज रफ्तार और मौसम की मार जिसमें कोहरा, भारी बारिश, हवा के तूफान और बर्फबारी के साथ साथ ओलो का गिरना शामिल हैं।

भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क

हिन्दुस्तान में सड़क के रास्ते से चलना फिरना सबसे बड़ा और अहम साधन है। 68 हजार 53 लाख 3024 किलोमीटर लंबी सड़क के साथ भारत का सड़क नेटवर्क दुनिया में दूसरे नंबर पर आता है। जबकि इस लिस्ट में अमेरिका का नाम पहले नंबर पर है। इसमें भी कोई शक नहीं है कि भारत में सड़क के बुनियादी ढांचे में काफी बदलाव आ चुका है। ये तो सब जानते ही हैं कि भारत सड़क नेटवर्क के लिहाज से दूनिया का दूसरा बड़ा देश है। भारत में हरेक 1000 लोग पर 5.13 किलोमीटर सड़क की लंबाई गिनी जाती है ,जबकि चीन में ये आंकड़ा हरेक 1000 में सिर्फ 3.6 किलोमीर ही बैठता है।

देश में महाराष्ट्र की सड़कें सबसे अच्छी

राजमार्गों यानी हाइवे के अच्छे रखरखाव के हिसाब से देश में महाराष्ट्र पहले नंबर पर आता है। 247652 किलोमीटर लंबे चौड़े सड़क नेटवर्क के साथ महाराष्ट्र नंबर वन बनाहुआ है। इस राज्य की शहरी और ग्रामीण दोनों ही तरह की सड़कों की हालत बाकी देश के मुकाबले काफी बेहतर है। यहां का बुनियादी ढांचा तो बेहतर है ही कनेक्टिविटी के मामले में भी काफी उम्दा है। इस मामले में राजस्थान का नंबर दूसरा है। राजस्थान में 150,876 किलोमीटर तक सड़क नैटवर्क फैला हुआ है।

टैक्स तो बेहिसाब है लेकिन देख भाल जीरो

अब इस बात पर गौर करना जरूरी है। हमारे मुल्क में कई सड़कों की हालत इतनी खराब है कि उनकी जर्जर हालत देखकर कोई भी कह सकता है कि यहां किसी भी गाड़ी का सही सलामत बचना नामुमकिन है। देश में किसी भी हिस्से में निकल जाओ, सड़कों पर बेहिसाब क्रॉसिंग मिल जाएंगे, जिन्हें अगर बंद कर दिया जाए तो मुमकिन है कि ट्रैफिक की समस्या काफी अच्छे ढंग से देखी भाली जा सकती है और उसका निदाना निकाला जा सकता है। सड़कों पर न तो उपकरण हैं और न ही कोई सुरक्षा के उपाय। ज्यादातर पुल और पुलिया या तो संकरी हैं या फिर टूटे फूटे। इसके अलावा ज्यादातर हाइवे पर टेलिफोन बूथ और वहां से पुलिस स्टेशन तक पहुँचने की सहूलियतें करीब-करीब न के बराबर हैं। मजे की बात तो ये है कि हमारे यहां सड़कों पर चलना सस्ता तो कतई नहीं। क्योंकि यहां ज्यादातर रास्तों पर टोल टेक्स बेहिसाब लगाया जाता है जिसकी वजह से सड़क परिवहन बहुत महंगा भी हो चुका है।

छह हिस्सों में बांटी जा सकती हैं भारत की सड़कें

असल में राष्ट्रीय राजमार्ग यानी नेशनल हाईवे वो सड़कें हैं जो एक राज्य को दूसरे राज्य से जोड़ देती हैं। इसके अलावा देश के अलग अलग हिस्सों में मौजूद बंदरगाहों यानी पोर्ट तक जाती है। वैसे सड़कों की देखभाल और रखरखाव के हिसाब से उन्हें छह हिस्सों में बांटा जाता है।

राष्ट्रीय राजमार्ग यानी नेशनल हाईवे
एक्सप्रेस वे
राज्य राजमार्ग
जिला सड़कें
ग्रामीण सड़कें
और
सीमा सड़कें

इन सभी सड़कों की देखभाल अलग अलग अथॉरिटी करती है। ग्रामीण इलाकों की सड़कों की देख भाल का जिम्मा पंचायती संस्थाओं का होता है। जबकि राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए NHAI ही जिम्मेदार होता है।

भारतीय न्याय संहिता के आधार पर होगी कार्रवाई

यहां एक सवाल ये भी आता है कि अगर किसी सड़क पर कोई हादसा होता है और एक्सीडेंट के बाद ड्राइवर अगर फरार हो जाता है तो कानूनी तौर पर क्या हो सकता है। जैसा कि राजस्थान में जयपुर अजमेर हाईवे पर हुआ जिसमें ड्राइवर फरार बताया जा रहा है। भारतीय न्याय संहिता यानी BNS 2023 की धारा 106 (2) के तहत हादसे के बाद फरार होने और पुलिस को हादसे की इत्तेला न देने वाले ड्राइवर के खिलाफ कड़े दंड का प्रावधान रखा गया है। इस प्रावधान के तहत ड्राइवर को 10 साल की कैद और जुर्माने की सजा है। मगर उसके पकड़े जाने के बाद। हालांकि सरकार की तरफ से एक फंड भी बनाया गया है जिसे सोलेशियम फंड कहा जाता है जिसमें हादसे में मरने वाले के परिजनों को दो लाख रुपये और घायलों को 50 हजार रुपये मुआवजा देने का प्रावधान रखा गया है। लेकिन उसके लिए कुछ कागजी कार्रवाई का होना निहायत जरूरी है। मसलन हादसे के 30 दिन के भीतर एक AIR यानी एक्सीडेंट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट दाखिल करनी जरूरी है। उस सूरत में हादसे के शिकार को बीमा कंपनी की तरफ से 90 दिन के भीतर क्लेम मिल सकता है। शर्त ये है कि पुलिस को अपनी एआईआर 30 दिनों के भीतर सीजेएम को सौंपनी होगी।

अजीब है, कोई एक अकेला जिम्मेदार नहीं!

चंद्रगुप्त के जमाने में जिसे उत्तरापथ कहा जाता था आज वही हाईवे यानी राष्ट्रीय राजमार्ग कहलाता है। मगर इस तरह के हादसों के भी कई पहलू होते हैं। बहस इस बात को लेकर छिड़ी हुई है कि ऐसे किसी हादसों के लिए किसी एक व्यक्ति या किसी एक संस्था को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता बल्कि इसमें कई लोग या सामूहिक तौर पर जिम्मेदारी बंट जाती है। खासतौर पर स्थानीय प्रशासन, टैंकर वाली कंपनी, टैंकर का ड्राइवर और वहां मौजूद लोग भी इस हादसे के लिए बराबर के जिम्मेदार माने जा सकते हैं। जाहिर है यहां दायित्व के इस तरह के बंटवारे में पेचीदगी बढ़ जाती है और हादसे के शिकार को इंसाफ मिलना मुश्किल ही नहीं करीब करीब नामुमकिन हो जाता है।

Author

  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

    View all posts

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *