Getting your Trinity Audio player ready...
|
Generation Naming History: आज से करीब 460 साल पहले 23 अप्रैल 1564 को इंग्लैंड के स्ट्रैटफोर्ड में चमड़ा व्यापारी जॉन शेक्सपियर के घर बच्चे का जन्म होता है। नाम रखा जाता है विलियम। पिता का उपनाम बच्चे के साथ जुड़ जाता है और वो विलियम शेक्सपियर बन जाता है। पहले तो बच्चा स्ट्रैटफोर्ड में ही पढ़ाई करता है, लेकिन पिता की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाने के बाद वह लंदन पहुंच जाता है। यहां उसे रंगमंच यानी थिएटर में काम करने का मौका मिलता है। ये काम उसे इतना भा जाता है कि वह नाटक लिखने लगता है। साल 1594-95 के आसपास विलियम शेक्सपियर ने एक नाटक लिखा- ‘रोमियो और जूलियट’, जो आज के दौर में भी उतना ही मशहूर और प्रासंगिक है। हालांकि वो बात अलग है कि इसकी मौलिकता इतिहासकार इटली के मशहूर लेखक मैटेओ बैंडेलो और कवि आर्थर ब्रुक को देते हैं। खैर शेक्सपियर के इसी नाटक में रोमियो-जूलियट के संवाद में एक सवाल आता है ‘नाम में क्या रखा है’। ये वाक्य इतना पॉपुलर है कि आज भी इसे हर कोई बोलता नजर आ जाता है। अब ये एक मुहावरा सा बन गया है।
अब आपके मन में सवाल कौंध रहा होगा न कि आखिर हम ‘रोमियो और जूलियट’ नाटक के ‘नाम से क्या रखा है’ की बात क्यों कर रहे हैं? तो मसला ये है कि नये साल में नई जनरेशन पैदा हो गई है। इसको बीटा जनरेशन (Gen-B) नाम दिया गया है। इसी के साथ पिछली कई जनरेशन के नाम और उनके पीछे के सवाल मन में दौड़ने लगे हैं। जाहिर है कि इसकी पिछली जनरेशन को लेकर भी लोग कुछ न कुछ तो जानना चाहते ही होंगे।
साल 1976 में यश चोपड़ा के निर्देशन में फिल्म ‘कभी-कभी’ आई थी। इसमें एक गाना था ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’। गाने को साहिर लुधियानवी ने लिखा और आवाज मुकेश ने दी। इसी गाने में एक मुखड़ा आता है ‘कल और आएंगे नगमों की खिलती कलियां चुनने वाले, मुझसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले’। यानी वक्त कभी किसी एक का नहीं रहता है। अगला जो भी आता है, कुछ नए ज्ञान और अनुभव के साथ आता है। कुछ ऐसा ही होता है दुनिया में पैदा होने वाली जनरेशन के साथ। हर अगली जनरेशन पिछली से कुछ एडवांस होती है। दुनिया में अब बीटा जनरेशन (Gen-B) आ चुकी है। खैर ये तो वक्त बताएगा कि ये जेनरेशन कितनी एडवांस और प्रोग्रेसिव होती है। हम तो जनरेशन के नाम और उसके पीछे के कारणों की बात करेंगे।
भारत का पहला ‘बीटा बच्चा’
1 जनवरी को 12 बजकर 3 मिनट में मिजोरम के आइजोल स्थित सिनोडा अस्पताल में जन्मा फ्रैंकी जैंडेन बीटा जनरेशन का पहला बच्चा है। अब दिसंबर 2039 तक जन्म लेने वाले सभी बच्चे इसी जनरेशन के होंगे। दुनिया में इनके आने के साथ अब जेन-ए यानी जनरेशन अल्फा के बच्चे बड़े हो गए हैं। वहीं जेन-जी (Gen-Z) को आप वयस्क कह सकते हैं। खैर अब आपके मन में ये सवाल तो आ ही गया होगा कि आखिर इनका नाम कौन, क्यों और कैसे रखता है? तो आइये जानें अब तक दुनिया में आई जनरेशन और इनके नाम रखने की कहानी क्या है।
पहले जान लें कि नाम में क्या रखा है?
दुनिया में हर बच्चे के पैदा होते ही उसका नाम रखा जाता है। ऐसा नहीं है कि नाम केवल एक शब्द या ध्वनि है, जो आपकी पहचान बनाता है। किसी भी नाम के पीछे बड़ा इतिहास और मनोविज्ञान होता है। किसी का भी नाम उसकी संस्कृति और सभ्यता को भी दिखाता है। सबसे बड़ी बात कि मनोविज्ञान में किसी भी इंसान के आचरण और उसके व्यवहार को उसके नाम से भी जोड़कर देखा जाता है।
अमेरिका की एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डेविड झू कहती हैं कि ‘हमारे व्यक्तित्व को बहुत सी चीजें आकार दे सकती हैं। इसमें हमारे जीन, हमारे संस्कार, परिवार और समाज शामिल है। हालांकि, इन सबके बाद हमारे व्यवहार को आकार देने में हमारा नाम बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह जन्म से लेकर मृत्यु और उसके बाद भी हमारे साथ रहता है।’ दुनिया में कई शोध हुए जो बताते हैं कि किसी के नाम का असर उस पर और दूसरों पड़ता है। नाम का असर किसी इंसान की प्रोडक्टिविटी पर भी पड़ता है। ठीक यही बात जनरेशन के नाम और उसके काम पर पड़ता है या यूं कहें की इसी आधार पर उसका नाम रखा जाता है।
अभी तक की जनरेशन
जनरेशन का नामकरण कोई सोशल मीडिया के कर्मवीर नहीं करते हैं। इसके पीछे समाजशास्त्री और जनगणना विशेषज्ञ की राय होती है। वे दुनिया के हालात और परिस्थितियों के आकलन के बाद नाम रखते हैं। हालांकि कोई नाम कितना पॉपुलर होगा ये मीडिया में इसके फेमस होने पर भी निर्भर करता है। जनरेशन के नामकरण के इतिहास की बात करें तो इसका लिखित इतिहास 20वीं सदी में ही शुरू होता है। सबसे पहली जनरेशन को ‘लॉस जनरेशन’ कहा गया जो 1880 से 1900 तक जन्मे लोगों की जनरेशन थी। अब जनवरी 2025 से 9वीं जनरेशन ‘जनरेशन बीटा’ का दौर शुरू हो गया है जो 2039 तक चलने वाला है।
अब तक की जनरेशन
- लॉस जनरेशन: 1880-1900
- ग्रेटेस्ट जेनरेशन: 1901-1927
- द साइलेंट जनरेशन: 1928-1945
- बेबी बूमर्स: 1946-1964
- जनरेशन एक्स: 1965-1980
- मिलेनियल्स: 1981-1996
- जनरेशन जेड: 1997-2009
- जनरेशन अल्फा: 2010-2024
- जनरेशन बीटा: 2025-2039
28 अप्रैल 2024 को ‘द हिंदू’ में ‘द नेम गेम’ के नाम से एक लेख प्रकाशित हुआ। इसमें बताया गया कि जनरेशन के नाम रखने की शुरुआत 20वीं सदी में ही हुई है। यही परंपरा आज 21वीं सदी में भी जारी है। ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट में बताया गया कि नामकरण शैक्षणिक अनुसंधान, मीडिया प्रभाव और सांस्कृतिक सहमति के साथ होता है। इसके लिए जनसांख्यिकीविद और समाजशास्त्री जनसंख्या सर्वेक्षणों, जन्म दर, सामाजिक आंकड़ों का अध्ययन करते हैं। इसमें पीढ़ीगत चले आ रहे ढांचे महत्वपूर्ण होते हैं। हालांकि, जनरेशन का लेबल अपनाना मीडिया और लोकप्रियता पर निर्भर करता है।
कैसे प्रभावित होता है जनरेशन का नामकरण?
कई चीजें जनरेशन के नामों को प्रभावित करती हैं। आर्थिक स्थितियां, तकनीकी, भू-राजनीतिक घटनाओं के साथ ही उनके अनुभव भी नाम को आकार देते हैं। जैसे 1920 से 1940 तक मंदी का दौर चल रहा था। ऐसे में इस दौरान जन्मे लोगों के आचरण में संयमी, मेहनती होने की प्रवृत्ति आ गई थी। इस कारण उन्हें ‘द साइलेंट जनरेशन’ कहा जाने लगा था।
जनरेशन और उसके नामकरण के कारण
साल 1880 यानी 19वीं सदी के आखिर में जन्मे लोगों का भी नामकरण हुआ है। हालांकि इन्हें भी नाम 20वीं सदी में ही मिल पाया। जब उनके हालात का आकलन किया गया। तब से लेकर अब तक 8 जनरेशन बीत चुकी हैं। अब 9वीं जनरेशन का दौर शुरू हो गया है। आइये जानें इन जनरेशन के नाम करण के पीछे क्या कारण थे?
तो यहां से होती है शुरुआत
कुछ इतिहासकार पीढ़ियों के नामकरण के लिए 1926 में आई अर्नेस्ट हेमिंग्वे की किताब ‘द सन ऑल्सो राइजेज’ को आधार मानते हैं। इसमें अर्नेस्ट ने अमेरिकी लेखक गर्ट्रूड स्टीन को लॉस जनरेशन यानी खोई हुई जनरेशन कहा था। हालांकि, बाद में इस शब्द का उपयोग 1880 से लेकर 1900 में जन्मे लोगों के लिए होने लगा। क्योंकि, ये वही लोग थे जिन्होंने 1914 से 1918 तक चले प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था। बताया जाता है कि इसमें 7 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। इस समय दुनिया की आबादी करीब 200 करोड़ थी। यानी प्रथम विश्व युद्ध में पूरी एक जनरेशन ही खत्म हो गई थी। जिस कारण उन्हें खोई हुई जनरेशन कहा जाने लगा।
ग्रेटेस्ट जनरेशन (Greatest Generation)
दूसरी जनरेशन को ग्रेटेस्ट जनरेशन कहा गया। इसके नाम के पीछे दोनों विश्व युद्ध कारण थे। इसमें वो लोग शामिल हैं जो 1901-1927 के बीच जन्मे थे। ये बच्चे ढंग से बडे हो पाते इस बीच प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया। ऐसे में इन बच्चों को कठिन समय का सामना करना पड़ा। इसके बाद जब वो बड़े हुए तो 1939 से 1945 तक द्वितीय विश्व युद्ध चला। कुल मिलाकर इनका जीवन कठिनाइयों से शुरू होकर कठिनाइयों में ही खत्म हो गया। इसी बीच इन्होंने जिंदगी को किसी महारथी की तरह जीया। इस कारण इनको ग्रेटेस्ट जनरेशन कहा गया।
द साइलेंट जनरेशन (Silent Generation)
1928 से 1945 के बीच जन्मे लोगों को पहली बार 1951 में ‘साइलेंट जनरेशन’ का नाम मिला। इसके पीछे कारण बताया जाता है कि इस दौर के लोगों ने विश्व युद्ध का बहुत बुरा दौर देखा है। इनके किस्मत में गुलामी, बेरोजगारी और डिप्रेशन उपहार में आई थी। इन सबके बाद भी इन्होंने चुपचाप सब सह लिया और किसी तरह जीवन काट लिया। इनके चुप रहने की प्रवत्ति ने इन्हें ‘साइलेंट जनरेशन’ बना दिया।
बेबी बूमर्स (Baby Boomers)
1945 में द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हुआ और इसी के साथ नई जनरेशन ने जन्म लेना शुरू किया। इस जनरेशन का दौर 1945 से 1964 तक माना जाता है। ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट बताती है पहली बार इस जनरेश को लेखक लेस्ली जे नैसन ने ‘डेली प्रेस’ 1963 के अपने लेख में ‘बेबी बूमर’ कहा था। उन्होंने इसके पीछे के कारण को स्पष्ट करते हुए बताया कि युद्ध खत्म होने के बाद सैनिक घरों को लौटे और तेजी से परिवार बढ़ाया। इसके कारण इस दौर में जनसंख्या में अच्छी खासी वृद्धि भी हुई।
जनरेशन एक्स (Generation X)
युद्ध, मंदी के बाद दुनिया में जनसंख्या का भी विस्तार हो चुका था। इसके बाद से सभी देश विकास की रेस में भाग रहे थे। इस दौरान तकनीक का जमकर अविष्कार हुआ। 1965-1980 के दौर में जनरेशन एक्स के बच्चे पैदा हुए। इनके दौर में ही कंप्यूटर, टीवी आए और इंटरनेट को बढ़ावा मिला। यह पहली पीढ़ी थी जिसके पास तकनीक और आधुनिक विकास का प्राथमिक अनुभव था। इस कारण इसको ‘मॉडर्न’ जमाने की शुरुआत करने वाली जनरेशन भी कहा गया। इसे ‘जनरेशन-X’ का नाम पहली बार 1987 ‘वैंकूवर मैगजीन’ में दिया गया।
मिलेनियल्स (Millennials)
1980 के बाद 1981-1996 तक जन्मे लोगों को मिलेनियल्स या Generation-Y कहा गया। हालांकि, ये नाम कुछ खासा पॉपुलर नहीं हुआ। 1991 में ‘जनरेशन’ नाम की एक किताब आई थी। इसी किताब में ब्लैक ऐंड वाइट टीवी से लेकर कलर टेलीविजन और लैंडलाइन फोन से स्मार्ट फोन में स्विच होने वाली जनरेशन का जिक्र करते हुए उन्हें मिलेनियल्स कहा गया था। यह दौर था जब नई-नई टेक्नोलॉजी के साथ संगीत, खेल, फिल्मों और टेलीविजन की ओर बड़ी संख्या में लोगों का रुझान बढ़ा था।
जनरेशन जेड (Generation Z)
1996 तक सभी तरह की तकनीकें आ चुकी थीं। इसके बाद आने वाले बच्चे पूरी तरह से डिजिटल युग में पैदा हुए। उन्होंने तकनीकी का पहले के मुकाबले ज्यादा विस्तार देखा और जमकर प्रयोग भी किया। इस जनरेशन को 1997-2009 के स्लॉट में रखा जाता है। इनका नामकरण पहली बार 2005 में हुआ, जब इनको आई जनरेशन, iGen, Gen Z, जूमर कहा गया। हालांकि, Gen-Z या जनरेशन-Z खासा पॉपुलर हुआ। इस दौर में संवाद तेजी से बढ़ा। इसी कारण Gen-Z बच्चे पिछली जनरेशन के मुकाबले ज्यादा चंचल और तेज माने जाते हैं। खैर कई बार तो इनके अल्ट्रा एक्टिव होने को गलत भी माना जाता है। खास तौर से मिलेनियल्स को जूमर थोड़े कम पचा पाते हैं।
जनरेशन अल्फा (Generation Alpha)
साल 2008 में ऑस्ट्रेलिया के मार्क मैक्रिंडल ने अपनी एक रिसर्च में 2010-2024 से दौर में जन्मे बच्चों को ‘जनरेशन अल्फा’ का नाम दिया था। इस जनरेशन में ज्यादातर के माता-पिता मिलेनियल्स हैं। वहीं कुछ के माता पिता Gen-Z भी है। इसलिए इनको कई बार ‘मिनी-मिलेनियल्स’ भी कहा जाता है। यह पहली पीढ़ी है जो गैजेट्स अडिक्शन के जमाने में आई है। इनके पास तमाम सुविधाएं है। हालांकि, अभी इनके भविष्य के बारे में काफी कुछ दावे के साथ नहीं कहा जा रहा है।
जनरेशन बीटा (Generation Beta)
साल 2025 की शुरुआत के साथ ही जनरेशन बीटा का जमाना आ गया है। अभी अल्फा की आबादी पूरी तरह से जवान नहीं हुई है। वहीं सारी कमान Gen-Z के हाथों में है। मिलेनियल्स अब केवल दौर को देखने के लिए बैठे हैं। ऐसे में अब अगले कुछ साल तीन जनरेशन के हाथों में होंगे। जनरेशन बीटा का नामकरण ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ता मार्क मैक्रिंडल ने किया है। उनके अनुसार, 2025 से 2039 तक का दौर तकनीकों का होने वाला है। अब AI का जमाना आ गया है। इस दौर में जन्मे बच्चों के एक क्लिक में सब कुछ होने वाला है। इस कारण इन्हें ‘जेन बीटा’ कहा जाना उचित है।
बदलते रहे हैं जनरेशन के नाम
इन तमाम नामकरण के बीच एक बड़ा सवाल ये भी उठता है कि क्या इसके पीछे जो कारण बताए जाते हैं वो दुनियाभर में लागू होते हैं? ये काफी कठिन और बेहद कम उत्तर वाला सवाल है। इस कारण कई बार जनरेशन का नामकारण विवादों का विषय भी बन जाता है। इसी कारण सालों बाद भी पीढ़ियों का नामकरण जारी रहता है। हालांकि, दुनिया भर में हालात कुछ एक जैसे ही होते हैं। इस कारण आमतौर पर इन नामों को स्वीकार लिया जाता है। इन सबके बीच एक बात साफ है कि हर पिछली पीढ़ी में अनुभव तो नई पीढ़ी के पास अवसर होते हैं। उनके पास वो जिम्मेदारियां भी होती हैं जो पिछली पीढ़ी में नहीं निभाई गईं या कुछ बची रह गईं। अब देखना होगा कि अल्फा और बीटा मिलकर दुनिया को किस रास्ते पर लेकर जाते हैं। इससे पहले Gen-Z को ये तय करना होगा कि वो नई पीढ़ी को कैसा रास्ता देते हैं।