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बेजुबानों का मसीहा: डॉग शेल्टर वाले सरदारजी का ‘ठंड भगाओ, ठिकाना दिलाओ’ मिशन

Sardarji Dog Shelter Story - Dayitva Media
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कहते हैं कि जो इंसान दूसरों का दर्द समझ ले, वो आधी जंग जीत लेता है। सरदार जगजीत सिंह भी दूसरों के दर्द को अपना दर्द समझ लेते हैं। इनकी सबसे खूबसूरत बात तो ये है कि वह उनकी भी तकलीफ को समझते हैं जो किसी भी तरह से अपनी तकलीफ अपनी जुबान से बता नहीं सकते। बस उस तकलीफ से बचने और खुद को बचाने के ऊपाय ढूंढ़ते रहते हैं। उन बेजुबानों के दिल की आवाज को समझना और उन्हें दुश्वारियों से दूर करना ही शायद सच्ची इंसानियत का सबसे पहला सबक है।

गुरुग्राम के कारोबारी जगजीत सिंह की अनोखी पहल

कारोबारी जगजीत सिंह की कहानी एक मिसाल है। उनकी नज़र सिर्फ मुनाफे के आंकड़ों पर नहीं रहती, बल्कि उनकी आंखें बेघर, बेजुबान कुत्तों पर भी टिकी होती है, जिन्हें सर्दियों की रातों में एक अदद ठिकाने की दरकार होती है। दिल्ली की सर्दी वैसे भी अच्छे खासे मजबूत इंसान की भी हाड़ कंपाकर रख देती है। इस सर्दी में बेसहारा, बेजुबान कुत्ते हैं फुटपाथ पर ठिठुरते हैं, कचरे के ढेर में दो वक्त की रोटी ढूंढते हैं और दुनिया की आपाधापी में अक्सर अनदेखे रह जाते हैं, लेकिन जगजीत सिंह ने इनकी तकदीर बदलने की ठानी है।

डॉग शेल्टर वाले सरदारजी की छोटी पहल का बड़ा असर

असल में एक मिसाल बनने से पहले जगजीत सिंह एक ऐसे मंजर को देखकर खुद सहम गए थे। उसके बाद उन्होंने कुछ ऐसा किया कि दिल्ली और उसके आस पास के इलाकों में अब उन्हें बेजुबानों का मसीहा कहा जाने लगा। उनके साथ कुछ ऐसा हुआ। एक सर्द रात, जब हाड़ कंपा देने वाली ठंड से सारा आलम जमा सा जा रहा था। ठंड की वजह से हर कोई सिकुड़ा सा जा रहा था, तभी उनकी नज़र एक आवारा कुत्ते पर पड़ी। वो कुत्ता उनके कारखाने के बाहर पड़े खाली पड़े बैरल में दुबका पड़ा था। उसकी हालत ऐसी थी जैसे ‘जिंदा लाश’। वो मंजर देखकर उनका कलेजा कांप गया। उसी वक्त जगजीत सिंह ने ठान लिया अब इन बेजुबानों को ठंड से बचाने का इंतजाम वो खुद करेंगे और जहां तक होगा जितने भी कुत्तों को बचा सकेंगे वो बचाएंगे।

नफे नुकसान से परे एक कामयाब कोशिश

गुरुग्राम के बिजनेसमैन जगजीत सिंह की जिंदगी अब नफे और नुकसान की गणित से कहीं आगे बढ़ चुकी है। वह उन बेजुबान कुत्तों के लिए रात-दिन एक किए हुए हैं, जो सर्दियों में ठिठुरते हुए सड़कों पर दो पल की गरमी की आस में बैठे रहते हैं। इन बेजुबान जानवरों की मदद करने के लिए कारोबारी जगजीत सिंह ने लोहे को लोहे से काटने वाला उपाय ढूंढा और अपने कारखाने में रखे खाली बैरल्स को इकट्ठा किया। उन बैरल्स में मोटे गद्दे बिछाए और बाहर से उन पर कवर डालकर उन्हें खास ‘शेल्टर’ बना दिया। शुरुआत तो एक-दो बैरल से हुई, लेकिन कहते हैं न बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। आज ये बैरल शेल्टर गुरुग्राम, नोएडा, और मेरठ के हजारों बेसहारा कुत्तों की ज़िंदगी को सर्द हवाओं से महफूज़ रख रहे हैं।

बड़ा दिल चाहिए, बड़ा घर नहीं

लोग अकसर सोचते हैं कि जानवरों के लिए इतना सब करना एक शौक है। लेकिन जगजीत सिंह का जवाब सुनिए –

“बात शौक की नहीं, हक की है। इन बेजुबानों का भी इस दुनिया पर उतना ही हक है जितना हमारा। अगर हम उन्हें सहारा न दें, तो हमसे बड़ा कोई कंजूस नहीं।”

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर….

एक बहुत मशहूर शेर है कि अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया। जगजीत सिंह की इस मुहिम का भी कुछ कुछ ऐसा ही हाल था। उन्होंने खाली बैरल्स को लेकर उनमें मोटे गद्दे और कंबल डाले। फिर उन्होंने इसे छोटे-छोटे ‘शेल्टर’ का रूप दिया। एक ऐसा शेल्टर, जिसमें कुत्ते सर्द हवाओं से महफूज़ रह सकें। शुरू में यह काम छोटा था, लेकिन धीरे-धीरे इस नेक काम में उनका परिवार और उनके स्टाफ के लोग भी जुड़ गए।

छोटे कदम, बड़ा असर

जगजीत सिंह अब तक 3,800 से ज़्यादा शेल्टर गुरुग्राम, दिल्ली, नोएडा, मेरठ और आसपास के इलाकों में बांट चुके हैं। । हर रविवार, उनके घर पर ‘सेवा दिन’ मनाया जाता है। वहां लोग आते हैं, शेल्टर उठाते हैं और अपने इलाकों में बेसहारा कुत्तों के लिए ठिकाना बना देते हैं। उनका ये अभियान इतना मशहूर हो चुका है कि बच्चे-बच्चे की जुबान पर अब उनका नाम ‘डॉग शेल्टर वाले सरदारजी’ पड़ गया है। जगजीत सिंह बेसहारा जानवरों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं। पेशे से तो एक बिजनेसमैन हैं लेकिन अपनी बिजी जिंदगी से थोड़ा समय और संसाधन निकालकर इन बेसहारा कुत्तों को ठंड से छुपने के लिए ठिकाना दे रहे हैं।

जगजीत सिंह का कहना है, “लोग सोचते हैं कि जानवरों की मदद के लिए करोड़ों चाहिए। पर सच तो यह है कि बड़े काम का माप पैसा नहीं, इरादा होता है। मैंने देखा कि ये बेजुबान अपनी तकदीर के भरोसे सड़कों पर पड़े हैं। एक इंसान अगर इन्हें थोड़ा सहारा दे दे, तो उनकी पूरी ज़िंदगी बदल सकती है।”

कैसे कर रहे मदद?

जगजीत सिंह बताते हैं कि वह अपनी पहल ‘स्ट्रे टॉक इंडिया’ के माध्यम से यह काम कर रहे हैं। कुत्तों का घर बनाने के लिए सिंह प्लास्टिक बैरल, लकड़ी के फाइबर कंटेनर और ड्रम्स का इस्तेमाल करते हैं। कंटेनर से बनाए गए ये घर कुत्तों को सर्दी में गरमी का अहसास दे देते हैं।

कहां से आया आइडिया?

जगजीत सिंह ने बताया कि वह बचपन से स्ट्रीट डॉग्स के प्रति बेहद प्यार रखते थे. जानवरों के लिए यह प्यार उन्हें उनके पिता से विरासत में मिला था। जगजीत सिंह रंग बनाने का बिजनेस करते हैं और एक दिन उन्होंने काम के दौरान ही महसूस किया कि वह अपने बिजनेस के जरिए ही इन जानवरों की मदद कर सकते हैं। असल में ये आइडिया भी उन्हें एक कुत्ते से ही मिला। क्योंकि 2018 में उन्होंने सर्दी के दिनों में अपने कारखाने के बाहर पड़े एक खाली बैरल में एक कुत्ते को दुबका हुआ देखा तो वहीं से ये ख्याल आया कि क्यों न अपने फैक्टरी के खाली बैरल्स को इन कुत्तों की रखवाली के लिए इस्तेमाल कर दिया जाए। बस यहीं से उन्होंने उस दिन के बाद से कभी फैक्टरी में आने वाले गत्ते और प्लास्टिक के बैरल्स को स्क्रैप या कबाड़ में बेचने की बजाए उन्हें कुत्तों के शेल्टर के तौर पर इस्तेमाल करने की मुहिम ही चला दी।

पहली कोशिश और पहली तस्वीर

जगजीत सिंह ने बताया कि आइडिया आने के बाद उन्होंने अगले दिन से ही इस पर काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने घर के सामने गद्दों के साथ चार ड्रम रख दिए। अगली सुबह उन्होंने देखा की चारों में कुत्ते सो रहे थे। उन्होंने इसकी एक तस्वीर वाट्सएप ग्रुप में डाल दी. लोगों को यह पहल इतनी अच्छी लगी कि लोग उनसे मदद मांगने लगे।

Dayitva Media - Stray Dog Care Mission

मुफ्त में बांट रहे शेल्टर और जुड़ रहे लोग

जगजीत सिंह ने बताया कि वह इन ड्रम्स को हफ्ते के छह दिन तक अपने ड्राइवर, कुक और गॉर्ड के साथ मिलकर बनाते हैं। रविवार के दिन वे इन ड्रम्स को बांटते हैं और लोगों से जुड़ते हैं। ये ड्रम लेने गुरूग्राम के अलावा नोएडा, दिल्ली, मेरठ और गाजियाबाद तक से लोग उनके पास आते हैं। सबसे ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि वह ये शेल्टर मुफ्त में बांट रहे हैं। दरअसल हफ्ते में दो बार इन ड्रम्स में भरकर सामान उनकी फैक्टरी में आता है। वे इन ड्रम्स को खाली करवा कर अपने घर के वेयर हाउस में रखते हैं। वह हफ्ते में करीब 400 ड्रम तैयार कर लेते हैं। इसके बाद वह हर रविवार डीएलएफ फेज-1, गुरुग्राम में लोगों को मुफ्त में ये ड्रम बांटते हैं। कोई भी रविवार को सरदार जी से मिलकर ये ड्रम कलेक्ट कर सकता है। आवारा कुत्तों के प्रति प्रेम रखने वाले जगजीत सिंह ने कहते हैं कि स्ट्रे जानवरों की मदद करने के लिए हमें ड्रम्स की जरूरत नहीं है। बल्कि हम दूसरे तरीकों से भी इन कुत्तों की मदद कर सकते हैं। साथ ही वे लोगों से निवेदन करते हैं कि लोग कभी भी इन कुत्तों को न मारें।

‘बेजुबानों की कौन सुनेगा’

अपने बनाए शेल्टर पर सुस्ता रहे कुत्तों को प्यार से देखने के बाद जगजीत सिंह ने कहा, ‘कई बार लोग उनके इस काम को ‘छोटी बात’ समझते हैं। लेकिन जगजीत सिंह का जवाब हमेशा सटीक होता है, ‘इंसानियत सिर्फ इंसानों तक ही क्यों सिमट जाए? अगर हम बेजुबानों की नहीं सुनेंगे, तो फिर कौन सुनेगा?’

डॉग शेल्टर वाले अंकल

गुरुग्राम और आसपास के इलाकों में लोग उन्हें “डॉग शेल्टर वाले अंकल” के नाम से जानते हैं। लेकिन जगजीत के लिए यह कोई उपाधि नहीं, बल्कि उनकी जिम्मेदारी है। वो कहते हैं

“इन जानवरों का हमारे ऊपर हक है। ये बस प्यार और दया के भूखे हैं। हम इंसान अगर थोड़ा सा झुक जाएं, तो बहुत सारी जिंदगियां बच सकती हैं।”

एक छोटी सी अपील

जगजीत सिंह लोगों से अपील करते हैं कि वे अपने घर के आसपास के बेसहारा जानवरों की मदद करें। उन्हें शेल्टर, खाना या थोड़ी सी गर्मी देकर उनकी सर्द रातों को राहत दें। उनकी पहल “स्ट्रे टॉक इंडिया” अब और भी बड़े स्तर पर काम करने की तैयारी में है।

सरदार जी की पहल ने बदल दी शहरवालों की सोच

जगजीत सिंह के इस काम ने साबित कर दिया कि ‘बातें बनाने से कुछ नहीं होता, हाथ बढ़ाने से फर्क पड़ता है।’ ठंड में कांपते बेजुबान अब उनके शेल्टर में ‘चैन की नींद’ सोते हैं। उनकी पहल ने शहरवालों की सोच भी बदल दी है। जहां पहले लोग आवारा कुत्तों से कतराते थे, अब वही उन्हें खाना खिलाते और जगजीत सिंह के बनाए शेल्टर में सुलाते हैं।

“इंसानियत जिंदा है”

जगजीत सिंह की ये कहानी सुनने के बाद अगर आपका दिल नहीं पसीजता, तो “फिर काहे का इंसान?” वो कहते हैं—

Dog Shelter Mission - Dayitva Media

“दुनिया भले दौलत से चलती हो, लेकिन इंसानियत ही वो ईंधन है, जो रिश्तों और जिम्मेदारियों को जिन्दा रखता है। जब इन बेजुबानों की आंखों में सुकून दिखता है, तो लगता है कि असल कमाई यही है।”

ये दिल की दास्तां नहीं एक सबक है

जगजीत सिंह की यह कहानी सिर्फ एक इंसान के बड़े दिल की दास्तान नहीं, बल्कि यह सबक भी है कि बदलाव करने के लिए बड़े साधनों की नहीं, सिर्फ इंसानियत की ज़रूरत होती है। उनके इस काम ने यह साबित कर दिया कि जब इरादे नेक हों, तो दुनिया की सबसे मुश्किल लड़ाई भी जीतना मुमकिन है।

युधिष्ठिर और कुत्ते का रिश्ता

वैसे कुत्तों या बेजुबान जानवरों के साथ हमें हमेशा ही दया, प्यार और करुणा का ही व्यवहार करना चाहिए। द्वापर युग के युधिष्ठिर की कहानी हमें सिखाती है कि धर्म का पालन केवल मानवों के प्रति नहीं होता, बल्कि पशुओं के प्रति दया और करुणा भी उतना ही महत्वपूर्ण है। कुत्तों को भारतीय संस्कृति में वफादारी और धर्म का प्रतीक माना गया है। युधिष्ठिर की यह कहानी बताती है कि कुत्तों की वफादारी का सम्मान करना ही सच्चा मानव धर्म है।

कुत्ते संग युधिष्ठिर का स्वर्गारोहण

किस्सा कुछ यूं है कि महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडवों ने अपना राजपाट त्याग दिया, तो वे स्वर्गारोहण की यात्रा पर निकले। उनके साथ द्रौपदी और उनका एक-एक करके सारा कुटुंब यानी भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव भी थे। स्वर्गारोहण के इस कठिन सफर में सभी पांडव और द्रौपदी एक-एक कर गिरते चले गए, लेकिन सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर आगे बढ़ते रहे। युधिष्ठिर के साथ इस यात्रा में एक कुत्ता भी उनके चल रहा था। इस कुत्ते ने पूरे सफर में युधिष्ठिर का साथ नहीं छोड़ा, चाहे रास्ता कितना ही कठिन क्यों न रहा हो। जब युधिष्ठिर अकेले स्वर्ग के द्वार पर पहुंचे, तो देवताओं ने उन्हें स्वर्ग में प्रवेश की अनुमति दी। लेकिन तभी देवताओं ने कुत्ते को साथ ले जाने से मना कर दिया। उन्होंने कहा स्वर्ग में पशुओं का प्रवेश वर्जित है।

…और देवता भी प्रसन्न हो गए

यह सुनकर युधिष्ठिर ने कहा, “इस कुत्ते ने मेरे साथ कठिनतम यात्रा की है। इसका त्याग करना वफादारी के खिलाफ होगा। मैं स्वर्ग जाने से मना करता हूं, लेकिन अपने इस साथी का साथ नहीं छोड़ूंगा।” युधिष्ठिर की इस बात से देवता प्रसन्न हो गए और यह प्रकट हुआ कि वह कुत्ता धर्मराज यम का ही रूप था, जो युधिष्ठिर की परीक्षा लेने आए थे। यमराज ने कहा “तुमने अपनी वफादारी और करुणा से साबित कर दिया कि तुम सच्चे धर्मात्मा हो।” इसके बाद युधिष्ठिर को स्वर्ग में स्थान मिला और वह अमर हो गए।

ग्रहों और देवताओं से भी जुड़ता है ये जानवर

कुत्ता केवल एक जानवर ही नहीं, बल्कि इसे कई ग्रहों, देवताओं और ऊर्जा से भी जोड़ा गया है। कुत्ते को यमराज, भैरव, और शनि देव से संबंधित माना गया है। कुत्ते को भगवान भैरव का वाहन माना जाता है। भैरव, जिन्हें शिव का रौद्र रूप भी कहा जाता है। उनकी पूजा विशेष रूप से तंत्र साधना में की जाती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान भैरव के उपासक यदि कुत्ते को भोजन कराते हैं, उसकी देखभाल करते हैं, तो भैरव देव प्रसन्न होते हैं।

संकट दूर करना है तो कुत्ते को भोजन करवाओ

सनातन संस्था से ताल्लुक रखने वाले और कर्मकांड को जानने समझने वाले प्रकांड पंडित बृज किशोर शर्मा जी बताते हैं कि कुत्ते को भैरव का प्रतिनिधि मानते हुए उसकी सेवा करने से नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन कुत्ते को भोजन कराता है, भैरव कृपा से उसके जीवन के संकट दूर होते हैं।

कुत्ता और शनि देव

ज्योतिष विज्ञान के मुताबिक कुत्ते का संबंध शनि ग्रह से भी है। सनातन संस्था से जु़ड़े डॉक्टर अजीत तिवारी के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि कुत्तों को खाना खिलाने और उनकी देखभाल करने से शनि दोष शांत होता है। खासतौर पर काले कुत्ते को भोजन कराना साढ़े साती और ढैय्या के प्रभाव को कम करता है।

यदि शनि की महादशा चल रही हो या शनि कुंडली में अशुभ स्थिति में हो, तो कुत्ते को तेल लगी रोटी या मीठा खिलाना शुभ माना जाता है।

कुत्ता और राहु-केतु

राहु और केतु को अशुभ ग्रह माना जाता है। ज्योतिष में इन ग्रहों का बड़ा महत्व है। क्योंकि कुंडली में इनकी स्थिति किसी भी इंसान के जीवन पर खासा असर डालती है। इन ग्रहों की स्थिति से ही जीवन में समस्याओं, अचानक बाधाओं, विपत्तियों और भय को जन्म देती हैं। ज्योतिष के मुताबिक कुत्तों की सेवा करने से राहु और केतु के दोषों में राहत मिलती है। सफेद कुत्ता केतु से जुड़ा माना गया है, जबकि काला कुत्ता राहु का प्रतीक है। ज्योतिषियों का मानना है कि कुत्तों की सेवा करने से राहु-केतु से उत्पन्न कालसर्प दोष में भी राहत मिलती है। पौराणिक मान्यताओं में कुत्ते को यमराज के द्वारपाल के रूप में भी देखा जाता है।

वफादारी की मिसाल है कुत्ता

कुत्ते को वफादारी और निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक भी माना गया है। ज्योतिषीय के नजरिये से, कुत्ते की सेवा करना न केवल ग्रहों को अनुकूल करता है, बल्कि हमारे कर्म को भी सुधारता है। इन सारी बातों से इतर कुत्ता ईश्वर का भेजा हुआ एक ऐसा मित्र है, जो बिना किसी स्वार्थ के मनुष्य का साथ निभाता है।

सिक्के का दूसरा पहलू भी मौजूद है

ये तो था सिक्के का एक पहलू। जबकि दूसरा पहलू एक और कहानी भी सुनाता है। दिल्ली-एनसीआर का शहरी इलाका देश के सबसे बड़े महानगरों में से एक है। यहाँ आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या असल में लोगों के लिए एक गंभीर मुद्दा बन चुकी है। तेजी से होते शहरीकरण, कूड़े-कचरे की भरमार और आवारा जानवरों को संरक्षित करने के लिए संसाधनों की कमी ने आवारा कुत्तों की इस समस्या को और पेचीदा कर दिया है।

दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों के लिए मौजूद शेल्टर

1. सरकारी प्रयास

  • दिल्ली नगर निगम (MCD) और कई अन्य निकायों द्वारा ABC (Animal Birth Control) कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
  • आवारा कुत्तों को पकड़कर उनकी नसबंदी (Sterilization) और टीकाकरण (Vaccination) किया जाता है। फिर उन्हें वापस उन्हीं इलाकों में छोड़ दिया जाता है।

2. एनजीओ और निजी शेल्टर

  • दिल्ली-एनसीआर में कई एनजीओ और स्वयंसेवी संस्थाएँ आवारा कुत्तों के लिए शेल्टर होम चला रही हैं। ये संस्थाएँ कुत्तों की देखभाल, इलाज और पुनर्वास के लिए काम करती हैं।
  • Friendicoes SECA (दिल्ली)- यह संस्था बीमार और घायल आवारा कुत्तों के लिए आश्रय और चिकित्सा प्रदान करती है। उनके शेल्टर में हर महीने हजारों कुत्तों की देखभाल की जाती है।
  • Sanjay Gandhi Animal Care Centre (SGACC) (राजौरी गार्डन, दिल्ली)- यह एशिया का सबसे बड़ा पशु देखभाल केंद्र है। यहाँ बीमार, घायल और बेसहारा कुत्तों को चिकित्सा और आश्रय दिया जाता है।
  • People For Animals (PFA)- मेनका गांधी की अध्यक्षता में काम करने वाली इस संस्था का मुख्य उद्देश्य पशु अधिकारों की रक्षा और उनके लिए बेहतर वातावरण सुनिश्चित करना है।
  • Kannan Animal Welfare (नोएडा)- यह संस्था विशेष रूप से एनसीआर में कुत्तों के लिए बचाव और शेल्टर सेवाएँ प्रदान करती है।
  • Voice of Stray Dogs (VoSD)- यह संस्था गुड़गांव और एनसीआर में आवारा कुत्तों को टीकाकरण और आवश्यक चिकित्सा सेवा प्रदान करती है।

दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की आधिकारिक गिनती

दिल्ली में आवारा कुत्तों की संख्या साल 2012 में करीब 4.5 लाख थी। जो मौजूदा समय में बढ़कर 7-8 लाख के बीच मानी जा सकती है।

एनसीआर में भी बढ़ती समस्या-

दिल्ली के साथ-साथ गुड़गांव, नोएडा, गाज़ियाबाद और फरीदाबाद जैसे इलाकों में भी आवारा कुत्तों की तादाद में तेजी देखी गई है। सिर्फ नोएडा में करीब 25 हजार आवारा कुत्ते हैं।

  • टीकाकरण और नसबंदी की कमी:
    नगर निगमों की तरफ से चलाए जाने वाले कार्यक्रम अक्सर संसाधनों की कमी से जूझते रहते हैं। जिसकी वजह से ये मुहिम प्रभावी नहीं हो पाती और समस्या जस की तस बनी रहती है।
  • आवारा कुत्तों के बढ़ने के कारण
    खाली जगहों की कमी और बस्तियों के विस्तार की वजह से कुत्तों के कुदरती ठिकाने करीब करीब खत्म से हो गए हैं।
  • कूड़ा-कचरा:
    दिल्ली के कूड़े-कचरे वाले इलाकों में भोजन की भरपूर उपलब्धता के चलते कुत्तों की आबादी में इजाफा होता है।

ज़रूरी है कि हम कुत्तों सुरक्षा और जनसंख्या नियंत्रण के बीच संतुलन बनाएं। नसबंदी, टीकाकरण और शेल्टर होम जैसी मुहिम को रफ्तार देकर न केवल आवारा कुत्तों के जीवन में सुधार किया जाए, बल्कि इंसानों की सुरक्षा को भी सुनिश्चित इंसानों का दायित्व है। समस्या का समाधान सह-अस्तित्व के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए, जहां मानव और जानवर दोनों ही सुरक्षित और सम्मानित जीवन जी सकें। ये हम सबका दायित्व है।

Author

  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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