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-गोपाल शुक्ल:
आसमान में कितने तारे? इंसान अब तक आसमान की गहराई में कितनी दूर तक झांक चुका है? आसमान काला ही क्यों दिखाई देता है? क्या सारे तारे असल में इतने ही छोटे हैं या फिर बहुत बड़े? आकाशगंगा क्या होती है? ब्लैकहोल क्या काला होता है? सारे ग्रह सूरज का ही चक्कर क्यों लगाते हैं? ये सारे सवाल पढ़ने के बाद हो सकता है कि आपके जेहन में ये ख्याल आए कि क्या बच्चों जैसे सवाल हैं? लेकिन बच्चों के इन्हीं सवालों में विज्ञान और खासतौर पर अंतरिक्ष विज्ञान का रहस्य छुपा हुआ है।
आकाश की गहराई में छुपे रहस्य
आसमान सचमुच एक तिलस्मी दुनिया है। इससे ज्यादा बड़ा जादू और किसी भी चीज में नहीं है। आकाश की गहराई में इतने रहस्य छुपे हुए हैं कि एक बार सवालों का सिलसिला शुरू होता है तो फिर थमने का नाम ही नहीं लेता। लेकिन जब ये सवाल बच्चों के मन में पैदा होते हैं तब तो उसका जवाब देना किसी के भी बस की बात नहीं।
ये सच है कि आसमान में बिखरे तारे और तारों की ये बारात हर किसी को अपनी तरफ खींच लेती है। खासतौर पर जब भी कोई बच्चा आसमान में टिमटिमाते तारों को देखता है तो उसके मन में ये जिज्ञासा जागती है कि आखिर ये तारें क्या हैं? कैसे बनते हैं? क्या वाकई आसमान के तारे इतने ही छोटे होते हैं या फिर ये बहुत बड़े होते हैं? बच्चों के मन में उठते सवालों के जवाब देने वाला अक्सर उन्हें कोई मिल नहीं पाता।
एक अफसर के दायित्व ने बढ़ा दिया मान सम्मान
इत्तेफाक से अगर ऐसे में कोई पढ़ा लिखा समझदार सरकारी अधिकारी सामने आकर बच्चों के मन की इन्हीं पहेलियों को सुलझाने का बीड़ा उठाए तो उसे आप क्या कहेंगे? यकीन जानिए इस पहल को देखकर हर किसी के दिल में उस अफसर के लिए एक मान एक सम्मान का ही भाव जागेगा। क्योंकि वो अपना दायित्व निभाता दिखाई पड़ेगा। और दायित्व निभाने वाले अक्सर हर किसी को अच्छे ही लगते हैं।
गांव में स्पेस साइंस की अलख जगाती IAS अधिकारी
तो चलिए एक ऐसे ही सरकारी अफसर से आपका तार्रुफ करवाते हैं जिसकी एक छोटी पहल ने पूरे हिन्दुस्तान में ऐसी अलख जगाई है जिसकी रोशनी अब तक देश के कई हिस्सों तक जा पहुँची है। तो हमारे साथ एक छोटी सी यात्रा पर चलिए। ज्यादा दूर नहीं बस हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के एक गांव तक ही चलने की देरी है। उसके बाद तो ऐसा जादू जागेगा कि वहां से लौटने का मन शायद ही किसी का करे। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले का ये छोटा सा गांव आने वाले दिनों में पूरे देश में एक बड़ा मॉडल बनकर सामने आकर खड़ा हो सकता है।

बिलासपुर जिले के उस गांव में अनूठी पहल के जरिए देहाती इलाके के बच्चों को स्पेस साइंस, रोबोटिक्स, और थ्री डी प्रिंटिंग जैसे बेहद आधुनिक टैक्नोलॉजी वाले विषयों से जोड़ने का काम बड़े जोर शोर से किया जा रहा है। जानकर हैरान भी हो सकते हैं कि इस मुहिम की सूत्रधार हैं बिलासपुर जिले की एडिशनल डिप्टी कमिश्नर यानी ADC महोदय और 2018 बैच की IAS अधिकारी, डॉ. निधि पटेल।
तो डॉक्टर निधि पटेल ने आखिर ऐसा क्या कर दिया जिसकी वजह से सोशल मीडिया से लेकर तमाम ब्लॉग और पोस्ट में उनके नाम का गुणगान किया जा रहा है। असल में डॉक्टर निधि पटेल ने अपने इलाके के प्रति अपने दायित्व को सबसे अच्छी तरह से समझा और वहां के बच्चों को वो सहूलियत मुहैया करवाने का बीड़ा उठाया।
तो क्या किया डॉक्टर निधि पटेल ने?
हिमाचल के बिलासपुर जिले के गुमारविन के एक सरकारी स्कूल में बीते साल यानी साल 2024 में एक स्पेस लैब की शुरूआत हुई है। ये स्पेस लैब इस राज्य की पहली लैब है। इसी लैब में सबसे पहले स्कूली बच्चों को टेलीस्कोप के जरिए आसमान के तारे दिखाए गए, बच्चों ने टेलीस्कोप से जब चांद देखा तो वो बहुत बड़ा और बहुत करीब भी नज़र आया। बच्चों ने आकाश की गहराई में मिल्कीवे आकाशगंगा दिखाई गईं। ये सारी चीजें ऐसी थीं जिन्हें देखकर स्कूल के बच्चों के मन में इन्हें और देखने और उनके बारे में और बातें जानने की रुचि और जिज्ञासा पैदा हो गई। बस एक तरह से मुहिम का मकसद यहीं से हल होना शुरू हो गया।
अब इस लैब में टेलीस्कोप के साथ साथ ड्रोन, थ्री डी प्रिंटर, चंद्रयान -3, प्रज्ञान रोवर, मंगलयान और पीएसएलवी लॉन्च व्हीकल के मॉडल रखे गए जिन्हें देखने के लिए सिर्फ उसी स्कूल के ही बच्चे नहीं बल्कि गांव के दूसरे स्कूलों के बच्चे भी खिंचे चले आ रहे हैं।
गांव के स्कूल में इसरो की स्पेस लैब
इस स्पेस लैब के जरिए स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे पहली बार अंतरिक्ष विज्ञान को इतने करीब से देख कर उसे समझने की कोशिश कर रहे हैं। बच्चों को रोबोटिक्स बहुत पसंद आ रहा है जबकि 3डी प्रिंटिंग और सैटेलाइट एप्लिकेशन जैसे विषयों के बारे में भी बच्चे बढ़ चढ़कर जानकारी लेने के लिए इकट्ठा हो रहे हैं।
इसी स्पेस लैब में नियमित रुप से आने वाले 12 वीं के एक छात्र शौर्य का कहना है कि यहां रोबोटिक्स, टेलीस्कोप और रोशनी को देखकर उसका पीछा करने वाले रोबोट जैसे आधुनिक उपकरणों के बारे में न सिर्फ समझा बल्कि उसके बारे में अब और भी ज्यादा चीजों को सीख रहे हैं। शौर्य कहते हैं कि इस लैब में उसने जो कुछ देखा और सीखा उसकी वजह से अब वो एयरोनॉटिकल इंजीनियर बनने का सपना देखने लगा है। उसने खुद यहां के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों से ऑब्स्टेकल अवॉयडिंग रोबोट बनाने में सफलता हासिल की है।
ऐसे हुई डॉक्टर निधि पटेल के मिशन की शुरुआत
एक मीडिया पोर्टल से बात करते हुए डॉक्टर निधि पटेल ने इस मुहिम के बारे में बड़े ही विस्तार से बताया। उनका कहना है कि इस अनोखी पहल के तहत बच्चों को अंतरिक्ष विज्ञान और उनके कौतुहल से भरे सवालों को जवाब देने के लिए ही इस मिशन की शुरुआत की गई है। इस मुहिम के पीछे जो मकसद है वो और भी ज्यादा अनूठा और शानदार है। दरअसल अक्सर ये देखा जाता है कि गांव में पढ़ने वाले बच्चों में साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स जैसे विषयों को लेकर जागरूकता भी कम होती है और बच्चों अक्सर इन विषयों से दूर भागने की कोशिश करते हैं। मगर देश में अंतरिक्ष विज्ञान पर काम करने वाले इसरो (ISRO) ने एक मिशन डिजाइन किया जिसका मकसद था कि भारत में दूर दराज इलाकों और गांव कस्बों में रहने वाले बच्चों को इस मुहिम का हिस्सा बनाया जाए।

इसरो के वैज्ञानिकों का मानना है कि गांव और कस्बों में रहने वाले बच्चों में अगर एक बार ऐसे किसी विषय के प्रति रुचि जाग जाती है तो फिर वो अपनी पूरी लगन और मेहनत से इस विषय में कई बार बड़ी बड़ी खोज और बड़े बड़े आविष्कार करने की धुन में लग जाते हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान के लिए बेहद जरूरी है। इसरो के इसी मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए डॉक्टर निधि पटेल ने सबसे पहले ही जिले के एक ऐसे गांव को चुना जहां बच्चों में इन विषयों को लेकर बहुत उत्सुकता भी थी और वो हर बात को अपने सवाल के तराजू में तौलने को तैयार रहते थे। इसका सबसे बड़ा फायदा यही लग रहा है कि बच्चों में अपनी शिक्षा को लेकर उनके भीतर प्रेरणा भी पैदा होगी।
बच्चों की आंखों ने देखने शुरु किए आसमान के सपने
ये सब देखकर डॉक्टर निधि का आधा सपना तो सच हो गया। वो खुद कहती हैं कि मैने अपने मंजिल का आधा रास्ता तय कर लिया है। क्योंकि इन सारी चीजों ने वो असर दिखाया कि बच्चे अब अपनी तरफ से स्पेस साइंस को समझने की धुन में लगे हैं। उद्देश्य भी तो यही था कि बच्चों में इन विषयों को लेकर रुचि पैदा हो। लैब के जरिए बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने का सबसे बड़ा मकसद तो पूरा हो गया। जबकि आलम ये हो गया है कि इस लैब में आने वाले ज्यादातर बच्चे अब स्पेस साइंस और इसी तकनीकी में कुछ नया करने का सपना अपनी आंखों में बसाने लगे हैं।
बदलने लगा जिले के स्कूलों में पढ़ाई का रिवाज
इस लैब की वजह से जिले के ज्यादातर स्कूलों में पढ़ाई लिखाई का रिवाज ही बदलने लगा है। जिले के डिप्टी डॉयरेक्टर ऑफ हायर एजुकेशन जोगिंदर राव के मुताबिक यहां हर महीने बैग फ्री डे मनाया जाता है। उसी रोज बच्चों को लैब लेकर जाया जाता है। उन्हें इस अनोखी दुनिया में जाने के बाद दीन दुनिया की कोई खबर नहीं रहती। यहां जाते ही बच्चे उपकरणों और रोबोट की दुनिया में ही खो जाते हैं। उनके भीतर हर चीज के खुद ही तैयार करने की ललक पैदा हो जाती है।
जोगिंदर राव के मुताबिक इस जिले से अब तक 900 से ज्यादा बच्चों को लैब में आने का मौका मिल चुका है। जबकि जुलाई से अब तक करीब दस ऐसे हुनरमंद बच्चे हैं जो अमहदाबाद की इसरो की स्पेस एप्लिकेशन सेंटर यानी SAC का दौरा कर चुके हैं। उन बच्चों को और भी वैज्ञानिकों और साइंटिस्टों के साथ बात चीत करने और अपने मन के सवालों के जवाब जानने का एक बेहतरीन मौका मिला। बच्चों ने न सिर्फ वैज्ञानिकों से बात की बल्कि उनके अनुभव सुने और इसरो की प्रयोगशालाओं में जाकर वहां हो रहे रिसर्च को अपनी आंखों से देखा भी और बहुत कुछ समझा भी।
गगनयान मिशन की कामयाबी से बन गई बात
डॉक्टर निधि पटेल का कहना है कि वैज्ञानिकों के साथ सीधी बात कराने का मकसद यही था कि बच्चों के भीतर ये बात भी बैठ जाए कि अपने सपनों को सच बनाने के लिए वाकई कितनी मेहनत और कितनी पढ़ाई जरूरी है।
बच्चों ने जब इसरो के वैज्ञानिकों से गगनयान मिशन पर बात की और साइंटिस्टों ने इस यान के बारे में बच्चों को बताया तो सारा माहौल ही बदल गया। क्योंकि उस बातचीत के बाद हरेक बच्चे की आंख में एक स्पेस साइंटिस्ट बनने का सपना पलने लगा।
खुद डॉक्टर निधि पटेल का निजी तजुर्बा कहता है कि इसरो का दौरा बच्चों के लिए एक टॉनिक साबित हुआ। बच्चों में साइंस को पढ़ने और समझने की ललक और बढ़ गई। अब डॉक्टर निधि पटेल बताती हैं कि बच्चों में जागी इस जानकारी को जानने की ज्वाला के बाद जिला प्रशासन भी पूरी तरह से एक्टिव मोड में आ गया है। खुलासा यही है कि कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी यानी CSR के जरिए जिला प्रशासन फंडिंग करने वाला है ताकि बच्चों के लिए कुछ और स्पेस लैब बनाने की इस योजना को और आगे बढ़ाया जा सके।

डॉ. निधि खुद मानती हैं कि बच्चों में हुनर और कौशल की कोई कमी नहीं होती, ऐसे में बच्चों की पढ़ाई को सिर्फ एक डिग्री तक बांधना बिलकुल सही नहीं है। बच्चों को पेंटिंग, डांसिंग, सिविल सर्विस या विज्ञान जैसे अलग-अलग क्षेत्रों में खुद को आजमाने, परखने और उसी में अपना करियर चुनने का पूरा मौका मिलना चाहिए।
ये सीख है बड़े काम की
डॉक्टर निधि ने कहा कि यही हमारा दायित्व है कि हम बच्चों को सही दिशा दें और उन्हें अपनी पसंद अपनी चाहत और अपने सपनों को पहचानने का पूरा पूरा मौका दें। सचमुच डॉक्टर निधि पटेल की इस पहल ने ग्रामीण हिमाचल में न सिर्फ बच्चों के भीतर पढ़ाई का जज्बा बढ़ाया बल्कि उनके लिए नई संभावनाओँ का आसमान दिखा दिया।
जिले की एडिश्नल डिप्टी कमिश्नर डॉक्टर निधि पटेल का इसरो के इस स्पेस कार्यक्रम से जुड़ना भी अपने आप में एक जबरदस्त किस्सा है।
हिमाचल में ऐसे शुरू हुआ अंतरिक्ष शिक्षा का नया अध्याय
2018 बैच की आईएएस अधिकारी डॉ. निधि, को अपने जिले में स्पेस एजुकेशन लाने का ख्याल उस वक्त आया जब उन्होंने किसी और राज्य में चल रहे ऐसे ही एक प्रयास YUVIKA programme के बारे में पढ़ा। इसे पढ़ते ही डॉक्टर निधि के दिमाग में एक घंटी बजी और उन्होंने सोचा कि अगर ये कार्यक्रम देश के किसी भी हिस्से में हो सकता है तो फिर ये हिमाचल प्रदेश के उस जिले में क्यों नही शुरू हो सकता जहां वो तैनात हैं। बस इसी धुन में डॉक्टर निधि ने इसरो के युविका प्रोग्राम के बारे में और पता लगाया। उन्हें मालूम पड़ा कि इस कार्यक्रम के तहत उन छात्रों को चुना जाता है जो युवा विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं और देश के भविष्य के निर्माता बनने की उनमें ललक है। डॉक्टर निधि को इस कार्यक्रम के बारे में ये भी पता चला कि इसरो इस कार्यक्रम के तहत बच्चों को स्पेस टेक्नोलॉजी, विज्ञान, और उसके उपयोग की बुनियादी जानकारी देता है।
चंद्रयान 3 की कामयाबी से जमीन पर उतरा आइडिया
कहते हैं न कोशिश करने वालों की हार नहीं होती, और जो सच्चे दिल से कोशिश करता है तो उसकी मदद खुद भगवान भी करने लगता है। ठीक इसी तर्ज पर उस दौर में हिन्दुस्तान के हर गली हर मोहल्ले में चंद्रयान -3 की जबरदस्त चर्चा चल रही थी। इत्तेफाक से उसी समय एक फिल्म भी बनी थी मिशन मंगल। बस स्पेस लैब गांव में बनाने का आइडिया उसी समय सामने आया। चंद्रयान -3 मिशन की कामयाबी ने एक तरह से इस आइडिया को जमीन पर उतारने में बहुत मदद की। वही जज्बा इस मिशन की शुरुआत का सबसे बड़ा जरिया भी बना।

बच्चों के हुनर को ‘स्पेस’ देना सबका दायित्व
हिमाचल के एक छोटे से गांव के बच्चों को साइंस का अथाह आसमान दिखाने वाली डॉक्टर निधि की एक ही बात से उनके दायित्व बोध का अंदाजा लगाया जा सकता है, जब वो कहती हैं कि बच्चों के भीतर की संभावनाओँ और हुनर को नापने वाला कोई उपकरण साइंस नहीं बना सका है। लिहाजा बच्चों को इस बात की पूरी आजादी होनी चाहिए कि वो खुद खोजें, खुद ही समझें और इस बात का पता लगाएं कि असल में उनके भीतर क्या छुपा है। क्या वो पेंटर बनना चाहते हैं, क्या वो एक्टिंग करना चाहते हैं। डांस में अपना करियर बनाना चाहते हैं या फिर सिविल सर्विसेस में जाना उनका सपना हो सकता है या इन सबसे हटकर साइंस की गहराई को समझना चाहते हैं। माता पिता और सरकार के साथ साथ हम सबका दायित्व है कि हम उन्हें आगे बढ़ने के लिए नए नए रास्तों के रुबरू करवाएं, उन्हें उनके विकल्पों से परिचित करवाएं लेकिन तय उन्हें ही करने दें कि वो असल में जाना किधर चाहते हैं।