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– गोपाल शुक्ल:
Happy India Navy Day 2024 Wishes- भारत की तीनों सेनाएं थल, वायु और जल सेना देश की सुरक्षा में सदैव तत्पर है। …
दिल दिया है, जान भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए …
न झुकने दिया तिरंगे को, न युद्ध कभी ये हारे हैं,
देश की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा में दिन-रात तत्पर रहने वाले भारतीय नौसैनिकों को नौसेना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आपका साहस, समर्पण और शौर्य हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत है। राष्ट्र की सुरक्षा में आपकी भूमिका अमूल्य है, और इस पर हर भारतीय को गर्व है।
हौसले और जज्बातों से लबरेज ये पंक्तियां तो चंद बानगी भर हैं जो इस वक्त सोशल मीडिया के जरिए हम तक पहुंच रही हैं। सोशल मीडिया एक्स आज इस तरह की पोस्ट से भरा हुआ है। भारतीय नौ सेना के जांबाजों को देशभर से तमाम लोग बधाई और शुभकामनाओं के संदेश भेज रहे हैं। 4 दिसंबर भारतीय नौ सेना के लिए किसी भी और दिन के मुकाबले सबसे अहम और शायद बड़ा दिन है। देश की समुद्री सीमाओं की हिफाजत करने के लिए भारतीय नौसेना की वीरता, समर्पण और उसकी अहमियत को सलाम करने के लिए ही ये दिन मनाया जाता है।
नौसेना का सम्मान हर भारतीय का दायित्व
नौसेना दिवस भारतीय नौसेना की शक्ति, साहस और राष्ट्र के प्रति समर्पण का प्रतीक है। भारतीय नौसेना की इस अहम भूमिका को सम्मानित करना सचमुच हर नागरिक का दायित्व भी है।
नौ सेना का सफर
भारतीय नौसेना 1612 में अस्तित्व में आई, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने रायल इंडियन नेवी नाम से नौसेना बनाई। व्यापारिक जहाजों की सुरक्षा के उद्देश्य से ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक नौसैनिक दल का गठन किया। 1685 में नौसेना का नामकरण “बंबई मेरीन” के तौर पर हुआ, जो 1830 ई. तक चला। 8 सितंबर 1934 ई. को भारतीय विधान परिषद् ने भारतीय नौसेना अनुशासन अधिनियम पारित किया और रॉयल इंडियन नेवी के तौर पर इसको नई पहचान मिली। लेकिन आजादी के बाद 1950 में भारतीय नौसेना के तौर पर पुनर्गठित किया गया। यानी जब देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ और 26 जनवरी 1950 को नौसेना का पुनर्गठन किया गया। तो फिर नौ सेना दिवस 4 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है?
नौसेना दिवस का पूरा सच
तो इसका जवाब है कि इस दिन भारतीय नौ सेना ने वो कमाल किया था जिसकी मिसाल आज पूरी दुनिया देते हुए नहीं थकती। जांबाजी की उस वीरगाथा को हर साल याद करने के लिए मई 1972 में भारतीय नौ सेना के सीनियर अधिकारियों के एक सम्मेलन में 4 दिसंबर को भारतीय नौ सेना दिवस मनाने का फैसला किया गया था। और बस तभी से हर साल 4 दिसंबर को भारतीय नौसेना दिवस मनाकर नौसेना के जज्बे और जांबाजी के किस्सों को पूरा देश याद करता है।
जब बदल गया था एशिया का भूगोल
अब सवाल उठता है कि आखिर भारत ने ऐसा क्या किया, जिसकी वजह से ये भारतीय नौ सेना के लिए उसके वजूद का सबसे अहम दिन बन गया? तो इस बात को समझने के लिए हम वक्त को थोड़ा पीछे लेकर चलते हैं।

बात साल 1971 के दिसंबर महीने की है। भारत और पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ी हुई थी। ज्यादातर लड़ाई जमीन और आसमान से ही लड़ी जा रही थी। अब का बांग्लादेश तब पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। वहां दोनों देशों की सेनाएं आपस में भिड़ी हुई थीं। भीषण संग्राम चल रहा था। हम सब जानते हैं कि महज 13 दिनों तक चले इस युद्ध के बाद एशिया का सारा भूगोल ही बदल गया था। पूर्वी पाकिस्तान का नाम दुनिया के नक्शे से मिट चुका था और बांग्लादेश नाम से एक नया देश दुनिया के नक्शे में अपनी जगह बना चुका था।
सात दिनों तक धधकती रही कराची पोर्ट पर आग
युद्ध शुरू होने के अगले ही दिन भारतीय नौसेना ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया कि पाकिस्तान की पूरी कमर ही टूट गई। पूरा का पूरा कराची बंदरगाह तबाह हो गया। बर्बादी का जो मंजर यहां नज़र आया उसे देखकर न जाने कितने मुल्कों की रूह कांप गई। यह हमला इतना तेज और इतना जबरदस्त था कि पाकिस्तानी सेना जब तक कुछ हरकत करने लायक हो पाती तब तक तो उसका काफी कुछ समंदर के गहरे पानी में या तो डूब गया था या फिर बंदरगाह पर लगी आग में पूरी तरह जलकर राख हो गया था। कराची पोर्ट पर बने ऑयल डिपो में लगी आग सात दिन तक लगातार धधकती रही। चाहकर भी पाकिस्तान वह आग नहीं बुझा सका।
पाकिस्तान की शामत आ गई
असल में युद्ध के दौरान पाकिस्तान की वायु सेना ने भारतीय हवाई अड्डों को निशाना बनाया और उन पर हमला कर दिया। जबकि यह युद्ध के नियम के विरुद्ध होता है कि कोई भी सेना नागरिक इस्तेमाल में होने वाले प्रतिष्ठानों या ठिकानों को निशाना बनाए, लेकिन पाकिस्तान ने इस नियम को ताक पर रखकर भारतीय हवाई अड्डों को निशाना बना लिया था। पाकिस्तान की इस हरकत ने समंदर के गहरे नीले पानी में सोते हुए शेर को झकझोरकर जगा दिया था। उसके बात तो जैसे पाकिस्तान की शामत ही आ गई।
ऑपरेशन ट्राइडेंट की शुरुआत
भारतीय नौसेना ने करारा जवाब देने के इरादे से 4 और 5 दिसंबर की रात हमले की योजना बनाई और “ऑपरेशन ट्राइडेंट” की रूपरेखा तैयार की। इस हमले का नेतृत्व नौसेना प्रमुख एडमिरल एसएम नंदा ने किया था। हमलावर टीम का नेतृत्व कर रहे थे कमांडर बबरू भान यादव। भारतीय नौसेना ने बहुत ही तेजी से कराची बंदरगाह पर हमले की योजना तैयार की। जो ताना-बाना एडमिरल नंदा ने बुना उसमें इस बात की गुंजाइश थी कि नौसेना अपनी सीमा पार भी कर सकती थी।
इंदिरा गांधी ने एडमिरल को दी ऐसे झंडी
तब एडमिरल नंदा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की। उनसे पूछा कि अगर इस प्रस्तावित हमले में अपनी सीमा से बाहर जाने पर कोई दिक्कत तो नहीं होगी? मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से कहा जाता है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका सीधा जवाब हां या ना में नही दिया था। बल्कि वो एडमिरल नंदा से बोलीं- यदि हम हद में रहें तो युद्ध की नौबत ही क्यों आए? इतना सुनते ही एडमिरल नंदा को जवाब मिल चुका था। वे लौटे और अपनी योजना को अमल में लाने का निर्देश कमांडर बबरू भान और जवानों को दे दिय।

पाकिस्तान ने पार की हद
टास्क की जिम्मेदारी 25वीं स्क्वॉर्डन कमांडर बबरू भान यादव को दी गई थी। 4 दिसंबर, 1971 को नौसेना ने कराची में पाकिस्तान नौसेना हेडक्वार्टर पर पहला हमला किया था। एम्यूनिशन सप्लाई शिप समेत कई जहाज नेस्तनाबूद कर दिए गए थे।, लेकिन बड़ी तबाही तब शुरू हुई जब गोलाबारी ने पाकिस्तान के ऑयल टैंकर को तबाह कर दिया।
समंदर पर लिखी पाकिस्तान की तबाही की कहानी
भारतीय नौसैनिक बेड़े को कराची से 250 किलोमीटर की दूरी पर रोका गया और शाम होने तक 150 किमी और पास चले जाने का आदेश दिया गया। हमला करने के बाद सुबह होने से पहले तेजी से बेड़े को 150 किमी. वापस आ जाने को कहा गया, ताकि बेड़ा पाकिस्तानी की पहुंच से दूर हो जाए। हमला भी रूस की ओसा मिसाइल बोट से किया किया। ऑपरेशन ट्राइडेंट के तहत पहले हमला निपट, निर्घट और वीर मिसाइल बोट्स ने किया। सभी बोट्स चार-चार मिसाइलों से लैस थीं। बबरू भान यादव खुद निपट बोट पर मौजूद थे। पहले पीएनएस खैबर, उसके बाद पीएनएस चैलेंजर और पीएनएस मुहाफिज को मिसाइल से बर्बाद कर पानी में डुबो दिया। इस हमले के बाद पाक नेवी सतर्क हो गई। उसने दिन-रात कराची पोर्ट के चारों तरफ छोटे विमानों से निगरानी रखनी शुरू कर दी।
60 KM दूर तक दिखी कराची की आग
कराची तेल डिपो में लगी आग की लपटों को 60 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता था। ऑपरेशन खत्म होते ही भारतीय नौसैनिक अधिकारी विजय जेरथ ने संदेश भेजा, ‘फॉर पीजन्स हैप्पी इन द नेस्ट. रीज्वाइनिंग।’ इस पर उनको जवाब मिला, ‘एफ 15 से विनाश के लिए: इससे अच्छी दिवाली हमने आज तक नहीं देखी।’ कराची के तेल डिपो में लगी आग को सात दिनों और सात रातों तक नहीं बुझाया जा सका।
ऑपरेशन में भारत को भी लगी चोट
रात को मिसाइलों से हुआ यह हमला पाकिस्तान पर इतना भारी पड़ा कि पीएनएस मुफ़ाहिज, पीएनएस खैबर, पीएनएस चैलेंजर जैसे पोत तबाह हो गए। हालांकि इस ऑपरेशन में भारत को भी खासी चोट लगी थी जब भारतीय नौसेना का आईएनएस खुकरी भी पानी में डूब गया था। इसमें 18 अधिकारियों समेत करीब 176 नौसैनिक सवार थे।
नौसेना दिवस का कार्यक्रम
नौसेना दिवस के मौके पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस दौरान नौसेना के युद्धपोतों की क्षमताओं का प्रदर्शन, सेमिनार, परेड और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। ओडिशा के पुरी तट के पास ब्लू फ्लैग बीच पर इस बार नौसेना ने अपनी ताकत का प्रदर्शन का आयोजन किया जिसमें मुख्य अतिथि तीनों सेनाओं की चीफ कमांडर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू बनीं। ये दूसरा मौका है जब नौसेना इस बड़े आयोजन को कर रही है। इससे पहले पिछली बार महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में कार्यक्रम हुआ था. वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीफ गेस्ट थे।
कब हुई भारतीय नौसेना की स्थापना?
भारतीय नौसेना दिवस न केवल भारतीय नौसेना की उपलब्धियों को सम्मानित करता है, बल्कि देशवासियों को अपनी सेना के प्रति गर्व महसूस करने का भी अवसर प्रदान करता है। यह दिन हमें समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता और नौसेना की भूमिका को समझने का मौका देता है।
नौसेना दिवस पर आयोजन
नौसेना दिवस के मौके पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस दौरान नौसेना के युद्धपोतों की क्षमताओं का प्रदर्शन, सेमिनार, परेड और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से जनता को नौसेना की ताकत और तकनीकी प्रगति से अवगत कराया जाता है।