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– विकास मिश्र:
एक महीना सब कुछ भूलकर सिर्फ भगवत्नाम जप का। एक महीना मां गंगा, यमुना और सरस्वती की पवित्र त्रिवेणी के आंचल में समर्पण का। एक महीना दीन-दुनिया से अलग होकर आत्मा और परमात्मा के संवाद का। एक महीना प्रयागराज के पावन त्रिवेणी तट पर कल्पवास का। आस्था और साधना का अद्भुत संगम है प्रयागराज का कल्पवास। संगम नगरी प्रयागराज में हर वर्ष दुनिया का सबसे बड़ा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक माघ मेला लगता है। इस महामेले में सबसे अद्भुत आयोजन है कल्पवास का। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु प्रयागराज के गंगा-यमुना तट पर माघ महीने में महीने भर का कल्पवास करते हैं। हजारों वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है। यूं तो हर कल्पवास विशेष होता है, लेकिन इस बार यह कल्पवास बहुत ही अद्भुत है, क्योंकि इस बार प्रयागराज में महाकुंभ लग रहा है। महाकुम्भ में प्रयागराज में कल्पवास का फल और उसका महत्व और भी बढ़ जाता है। आइए जानते हैं कि क्या कल्पवास, क्या है इसकी धार्मिक महिमा, क्या इसका फल और क्या है इस कल्पवास की विशेषता।
कल्पवास की धार्मिक महिमा
हिंदू धर्मग्रंथों में प्रयागराज में कल्पवास की दिव्य महिमा बताई गई है। स्कंद पुराण के प्रयाग माहात्म्य खंड में कल्पवास की महिमा का बखान करते हुए लिखा गया है-
माघं मासं प्रयागे तु निवासं यः करोति वै।
स याति परमं स्थानं विष्णोः सायुज्यमाप्नुयात्।
अर्थात जो व्यक्ति माघ मास में प्रयाग में जो व्यक्ति निवास करता है, वह विष्णु लोक को प्राप्त करता है। यही नहीं। प्रयागराज में निवास और वहां तप-स्नान-दान की महिमा महाभारत के वनपर्व में भी मिलती है। महाभारत में कहा गया है कि प्रयागराज में साधना और कल्पवास से हजार अश्वमेध यज्ञ का पुण्य मिलता है। गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में भी कल्पवास की महिमा का वर्णन किया है। पद्म पुराण में संगम, प्रयागराज और कल्पवास की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि माघ मास में संगम पर स्नान और तपस्या से करोड़ों पापों का नाश हो जाता है।
माघे निमग्ना: सलिले सुसीतले।
विमुक्तपापा: त्रिदिवं प्रयान्ति।
भारतीय धार्मिक आख्यानों में कल्पवास का वर्णन करते हुए कहा गया है कि कल्पवास आत्मशुद्धि, मोक्ष और मानसिक शांति का मार्ग प्रशस्त करता है। कल्पवास का अर्थ भी यही है माघ महीने में पूरे महीने संगम तट पर तप, साधना और आत्मशुद्धि की जाए। भक्त यहां कठोर नियमों का पालन करते हुए अपना जीवन भगवान के चरणों में समर्पित करते हैं। माघ मास की द्वादशी तिथि पर उपवास और भगवान माधव की पूजा करने से राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। महाभारत में आई कथा के अनुसार माघ मास में जो तपस्वियों को तिल का दान करता है, उसे कभी नरक के दर्शन नहीं करने पड़ते। पुराणों में कहा गया है कि देवता भी मनुष्य का दुर्लभ जन्म लेकर प्रयाग में कल्पवास करते हैं। महाभारत में ऐसा ही एक प्रसंग आया है, जिसमें मार्कंडेय जी ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा- प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है, जो कोई एक महीना, इंद्रियों को वश में करके यहां पर स्नान, ध्यान और कल्पवास करता है, उसके लिए स्वर्ग में स्थान सुरक्षित हो जाता है।
क्या होती है एक कल्पवासी की दिनचर्या
प्रयागराज महाकुम्भ की तैयारियां अब अंतिम चरण में है। उत्तर प्रदेश सरकार ने गंगा-यमुना किनारे के महाकुंभ नगर नाम का नया जिला ही बना दिया है। इस जिले में 4 तहसील, 25 सेक्टर, 56 थाने और 133 पुलिस चौकियां बनाई गई हैं। अभी से ही गंगा-यमुना तट पर तंबू तनने लगे हैं। लाखों की संख्या में तंबुओं में श्रद्धालु महीने भर तक रहकर कल्पवास करेंगे। वेदों में चार युगों- सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग का वर्णन है। इन कालों के कुल वर्षों को कल्प कहा जाता है। प्रयागराज में माघ माह में एक महीने का वास कल्पवास का रूप माना जाता है। कल्पवास एक कठिन साधना है। एक कल्पवासी के लिए कुछ अहम नियम हैं, जिनका ख्याल उन्हें रखना होता है। पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास के नियमों के बारे में बताया है। इसके अनुसार कल्पवास करने वाले को 21 नियमों का पालन करना होता है। 21 नियमों की सूची ये रही-
1- सत्य बोलना
2- अहिंसा का पालन करना
3- इंद्रियों पर नियंत्रण
4- सभी प्राणियों पर दयाभाव
5- ब्रह्मचर्य का पालन
6- व्यसनों का त्याग
7- ब्रह्म मुहूर्त में जागना
8- नित्य तीन बार पवित्र नदी में स्नान
9- त्रिकाल संध्या
10- पितरों का पिण्डदान
11- दान
12- अन्तर्मुखी जप
13- सत्संग
14- संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना
15- किसी की भी निंदा न करना
16- साधु सन्यासियों की सेवा
17- जप और संकीर्तन
18- एक समय भोजन
19- भूमि शयन
20- अग्नि सेवन न कराना
21- देव पूजन।
इन सभी नियमों में सबसे अधिक महत्व ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान का माना गया है।
एकता और समरसता का साक्षी कल्पवास
दुनिया भर के समाज में ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, शोषक-शोषित का वर्गीकरण है, लेकिन प्रयागराज के माघ मेले या महाकुम्भ मेले में कल्पवास सामाजिक समरसता और समानता का अनुपम उदाहरण है। यहां समाज के सभी वर्गों के लोग एक ही तरह के टेंट में वास करते हैं। बिना किसी भेदभाव के रहते हैं। सभी का एक ही उद्देश्य रहता है-आध्यात्मिक सुख, आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति। कल्पवास केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवन को सादगी, संयम और आत्मअनुशासन से जोड़ने का एक माध्यम है। संगम के तट पर बिताए गए ये पवित्र दिन श्रद्धालुओं के जीवन में एक नई ऊर्जा और प्रेरणा का संचार करते हैं। कल्पवास, वास्तव में, आध्यात्मिक साधना और आस्था का एक अद्भुत संगम है। माघ मेले में ऐसे दृश्य अद्भुत होते हैं, जब सुबह कल्पवासी गंगा या संगम स्नान के लिए निकलते हैं। पूरा संगम तट श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहता है। भक्त स्नान करके मंत्रों का जप करते हुए अपने बाड़े में लौटते हैं। कड़ाके की ठंड भी उनकी आस्था को डिगा नहीं पाती। भयानक ठंड में अपने टेंट या झोपड़ी में रहकर श्रद्धालु ईश्वर से तादात्म्य स्थापित करते हैं।
महाकुंभ में प्रयागराज कल्पवास का महत्व
ऐसी मान्यता है कि माघ मास में प्रयागराज में संगम तट पर ब्रह्मा, विष्णु, और महादेव भ्रमण करते हैं। प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार तीर्थों का समागम होता है। प्रयागराज के माघ मेले में देश के जाने माने साधु-संतों और नागा साधुओं का जमावड़ा होता है। कहीं रामलीला होती है तो कहीं रासलीला होती है, कहीं श्रीमद्भागवत की कथा होती है तो कहीं महात्माओं के प्रवचन होते हैं। एक महीने तक यह धार्मिकता का एक नया संसार बन जाता है। प्रयाग तो वैसे भी प्राचीनकाल से ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है। कल्पवास के पूरे माह श्रद्धालु साधु-संतों के प्रवचन और भजन सुनते हैं। खाली समय में प्रभु का ध्यान करते हैं, भजन करते हैं, मंत्रों का जप करते हैं। महाकुंभ में तीन बातों का विशेष महत्व है- स्नान, ध्यान और दान। ऐतिहासिक संदर्भों की बात करें तो महाराज हर्षवर्धन कुंभ में पवित्र संगम तट पर अपनी सभाएं करते थे। महाराज तमाम संपत्ति और धन का दान करते थे। यहां तक कि अपने तन पर पहने हुए वस्त्रों का भी दान कर देते थे। ऐसी मान्यता है कि महाकुंभ में कल्पवास करने वाले की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। उसे जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। महाभारत में यहां तक कहा गया है कि माघ मास में प्रयागराज में कल्पवास करने से सौ साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या का पुण्य मिल जाता है। कल्पवास का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे अंत:करण और शरीर दोनों का कायाकल्प हो जाता है। कल्पवास के पहले दिन श्रद्धालु तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजन करते हैं। कल्पवासी अपने टेंट या झोपड़ी के बाहर जौ के बीजों का रोपते हैं। कल्पवास के बाद जौ के पौधे को कल्पवासी अपने साथ घर ले जाते हैं, जबकि तुलसी को मां गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है।
महाकुम्भ में कब से कब तक है कल्पवास
प्रश्न यह है कि आखिर प्रयागराज में कल्पवास कब से कब तक होता है। श्रीरामचरितमानस में महाकवि तुसलीदास लिखते हैं-
माघ मकर गत रवि जब होई।
तीरथ-पतिहि आव सब कोई।
ऐहि प्रकार भरि माघ नहाही।
पुनि सब निज-निज आश्रम जाहीं।
यानी माघ महीने में जब भगवान सूर्य मकर राशि पर आते हैं तो तीर्थराज प्रयाग के संगम तट पर कल्पवास का आरंभ हो जाता है। प्रयागराज में अब तो कल्पवास सभी वय के लोग करते हैं, लेकिन धर्मशास्त्रों की मानें तो कल्पवास वानप्रस्थियों के लिए सबसे उपयुक्त है। धर्मशास्त्रों में चार आश्रमों का वर्णन है। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। सबके लिए 25-25 साल का वक्त तय है। परंपरा के अनुसार जो लोग अपनी उम्र के 50 साल पूरे कर चुके हैं, उन्हें कल्पवास करना चाहिए। पहले गृहस्थ आश्रम तक 50 साल की उम्र बिता चुके लोग वन गमन कर जाते थे। तभी उसे वानप्रस्थ कहा जाता था। लेकिन प्रयागराज में ईश्वर के प्रति आसक्ति के साथ एक ही दिनचर्या का पालन करते हुए महीने भर का समय बिताने को कल्पवास कहा गया। पौष मास की ग्यारहवीं तिथि से लेकर माघ मास की बारहवीं तिथि तक की अवधि को कल्पवास के लिए उचित समय माना जाता है। कुछ लोग मकर संक्रांति से भी कल्पवास का आरंभ करते हैं। वर्ष 2025 में पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ 13 जनवरी को महाकुंभ मेला शुरू हो जाएगा और इसी दिन से कल्पवास भी शुरू हो जाएगा. कल्पवास पूरे एक माह चलेगा। जबकि महाकुंभ मेला जो 13 जनवरी पौष पुर्णिमा से शुरू होकर 26 फरवरी महाशिवरात्रि तक चलेगा।

देश के पहले राष्ट्रपति भी थे कल्पवासी
कल्पवास तो हर भारतीय का सपना होता है। 1954 में प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन हुआ था। इस मेले में भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अकबर के किले में कल्पवास किया था। कल्पवास के लिए उनकी सुरक्षा के लिए किले की छत पर कैंप लगाया गया था। इस स्थान को प्रेसिडेंट व्यू कहा जाता है। बड़े बड़े साधु महात्मा भी यहां कल्पवास करते हैं। दुनिया भर के लिए रहस्यमय रहे देवरहा बाबा भी प्रयागराज संगम तट पर हर वर्ष कल्पवास करते थे। देवरहा बाबा मचान पर रहते थे। उनका एक पांव मचान से नीचे लटका रहता था, जिसे छूकर लोग आशीर्वाद लेते थे। हिंदू धर्म सम्राट कहे जाने वाले महासंत करपात्री जी महाराज भी प्रयागराज में एक महीने तक कल्पवास करते थे।
क्या है कल्प और क्या है इसकी अवधि?
भगवान ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं। वैज्ञानिक गणना करें तो पृथ्यी का 4 अरब 32 करोड़ साल का होता है एक कल्प। ऐसी मान्यता है कि इतने वर्षों का संपूर्ण पुण्य केवल माघ मास में प्रयागराज में वास करने पर मिल जाता है। इसी नाते इसे कल्पवास कहा जाता है। कहते हैं कि माघ मास में प्रयागराज में कल्पवास करने के लिए देवता भी तरसते हैं कि काश उन्हें मानव के रूप में जन्म मिला होता और वह भी कल्पवास कर लेते। कल्पवास भारतीय धार्मिक परंपरा है, लेकिन विज्ञान ने भी इसकी छानबीन की है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तक में कल्पवास पर रिसर्च हो चुका है। रिसर्च के नतीजों में पाया गया कि प्रयागराज संगम तट पर कल्पवास करने के दौरान जिस तरह श्रद्धालु सात्विक जीवन व्यतीत करता है, उसका उसके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शारीरिक और मानसिक रूप से भी वह मजबूत हो जाता है।
तय होते हैं कल्पवासियों के अपने-अपने पंडे
प्रयागराज में लंबे समय तक श्रद्धालु पूस की झोपड़ी बनाकर रहते थे। झोपड़ी की व्यवस्था उनके खानदानी पंडा लोग करते थे, जिसके बदले श्रद्धालुओं को कुछ शुल्क चुकाना होता था, फिर पंडा बाबा को दक्षिणा देनी होती थी। सभी श्रद्धालुओं के पंडे तय होते हैं। ये पंडे खानदानी रूप से तय होते हैं और पीढ़ियों से परिवार के लिए प्रयागराज में झोपड़ी या टेंट की व्यवस्था भी कर देते हैं। अब गंगा तट पर झोपड़ियां बहुत कम दिखाई देती हैं, उनकी जगह टेंटों ने ले ली है । पंडे मेले से पहले ही आरक्षित जमीन पर टेंट लगवा देते हैं, अब इन टेंटों में काफी सुविधाएं भी होती हैं। श्रद्धालु इन टेंटों में महीने भर रहते हैं, उनके जाने के बाद पंडे इन टेंटों को उखाड़कर सुरक्षित कर लेते हैं, ताकि ये अगले साल भी काम आ सके। प्रयागराज में संगम तट पर हजारों पंडों के बाड़े हैं। सबका अलग अलग झंडा है। पंडों के खानदान में बंटवारे के साथ उनके झंडों के रूप भी बदलने लगा। जैसे कि अगर किसी पंडा का झंडा तुमड़ी (सूखी हुई गोल लौकी) थी। उनके बेटों में अगर बंटवारा हुआ तो सबके अलग अलग तुमड़ी के झंडे होंगे। मसलन- एक तुमड़ी का झंडा, दो तुमड़ी का झंडा, तीन तुमड़ी का झंडा। ये पंडे अपने यजमानों के लिए बहुत सचेत होते हैं, किसी भी पंडा का यजमान कोई दूसरा पंडा अपने पाले में नहीं खींच सकता। कल्पवास के दौरान श्रद्धालु जो कुछ भी दान करते हैं, उन पर पंडा ही अपना हक मानते हैं। अगर कल्पवासी उनके अलावा किसी को दान-पुण्य करता है तो पंडे नाराज भी हो जाते हैं।
कल्पवासियों के लिए प्रयागराज संगम तट एक नई दुनिया
माघ महीने में हर साल प्रयागराज का संगम तट एक नई दुनिया की तरह दिखाई देता है। पूरा एक नगर बस गया होता है। पक्की सड़कों की जगह लोहे की चादरें गंगा किनारे की रेत पर बिछ जाती हैं। गंगा के ऊपर पीपे के पुल बांध दिए जाते हैं, ताकि भगवान के भक्तों को आने जाने में सहूलियत रहे। पूरे मेला क्षेत्र में सब्जी, राशन, मिठाई, दूध-दही की दुकानें लगी रहती हैं। श्रद्धालु इन्हीं दुकानदारों से सामान खरीदकर उपभोग करते हैं। माघ मेले में हर तरफ लाउडस्पीकरलगे रहते हैं। सुबह सूर्योदय होने से पहले ही उन पर भजन शुरू हो जाते हैं। कल्पवासी सूर्योदय से पहले ही गंगा स्नान के लिए अपने बाड़े या टेंट से निकलकर बाहर आ जाते हैं। माघ मेले में भक्तों की आवश्यक्ता की सारी चीजें मिल जाती हैं। बड़े स्नान पर्वों पर कल्पवासियों के स्नान की विशेष व्यवस्था की जाती है। कल्पवासियों के स्नान मार्गों पर वाहनों का आवागमन रोक दिया जाता है।
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