#एक्सक्लूसिव

मुंबई की अनुष्का से सीखा जा सकता है ‘सीक्रेट सेंटा’ बनने का नुस्खा, क्रिसमस की रात मासूम चेहरों पर बिखेरती हैं सच्ची ‘मुस्कान’

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– गोपाल शुक्ल:

इन दिनों एक नया चलन फैशन में है, और काफी हद तक सही भी है। फैशन ये है कि क्रिसमस के मौके पर एक सीक्रेट सेंटा आता है, किसी अपने के चेहरे पर एक बेधड़क मुस्कान बिखेर कर चला जाता है। क्योंकि वो सीक्रेट सेंटा कुछ ऐसा दे जाता है जिसे देखकर मन गदगद हो जाता है। वो तोहफा, वो नजराना किसने दिया, इसके बारे में बहुत कम होता है कि कोई जान सके। पिछले कुछ सालों में ये चलन बहुत तेजी से बढ़ा है। खासतौर पर दफ्तरों और स्कूलों में इसे किसी रिवाज की तरह मनाने की परंपरा चल निकली है।

मायूस चेहरे पर मुस्कान बिखेरने की मुहिम

ये एक अच्छा चलन है, जो साल में भले ही एक बार होता है और सेंटा के नाम पर होता है, मगर किसी के मायूस चेहरे पर मुस्कान बिखेरने के लिए एक अच्छी और शानदार कोशिश कही जा सकती है। मुंबई में एक ऐसी सीक्रेट सेंटा है जिसने असल जिंदगी में कई मासूम और मायूस चेहरे पर मुस्कान बिखेरने की मुहिम छेड़ रखी है। हर साल क्रिसमस के मौके पर वह गरीब और बेसहारा बच्चों की सेंटा क्लॉज बन जाती हैं और उन्हें ऐसे तोहफे देती हैं जो न सिर्फ उनके चेहरे पर मुस्कान बिखेर देते हैं बल्कि उनकी जिंदगी की अंधेरी राह में किसी चिराग की तरह रोशनी बिखरेने की कोशिश करते हैं।

कश्मकश के बीच आ गया क्रिसमस का त्योहार

असल उनके इस मिशन की शुरुआत भी बड़े ही अनोखे अंदाज में हुई। असल में उनके घर पर कई ऐसी चीजें पड़ी हुई थीं जो अब वह अपने काम में नहीं ले रही थीं। खासतौर पर कुछ खिलौने, खेल के सामान, कुछ कपड़े और कुछ कहानियों की किताबें। अब वो सारी चीजें उनके किसी काम की नहीं थी या उन चीजों से जी भर चुका था। लिहाजा वो उन्हें घर से निकाला चाहती थीं। जिस वक्त वो इस कशमकश से जूझ रही थीं, तभी क्रिसमस का त्योहार आया। सेंटा क्लॉज की कहानी उन्होंने भी पढ़ रखी थी। लिहाजा उन्होंने सोचा कि क्यों न इन तमाम सामानों को उन बच्चों को दे दिया जाए, जिनके लिए वो काम के भी हो सकते हैं और वो ऐसे खिलौने फिलहाल खरीदने की हालत में भी नहीं हैं।

रातों रात बच्चों के पास पहुँचे ‘गिफ्ट’इसी कशमकश में जूझते हुए उनका ख्याल उन बच्चों की तरफ गया जो या तो फुटपाथ पर रहते थे या फिर अनाथालय में। जिनके लिए ऐसी चीजें किसी लग्जरी से कम नहीं थी। लिहाजा उन्होंने अपने बच्चे के खिलौने, पुरानी कहानी की किताबें, कुछ पुराने मगर अच्छी हालत वाले कपड़े और खेल के सामान को इकट्ठा किया। फिर अलग-अलग गिफ्ट पैकेट तैयार किए। इसके बाद रात के वक्त उन तोहफों के साथ निकलीं और जितने भी बच्चे फुटपाथ पर सो रहे थे उनके पास जाकर एक एक गिफ्ट पैकेट रख दिया।

बच्चों के चेहरे पर बिखरी मुस्कान

सबसे दिलचस्प ये था कि उन बच्चों के चेहरे की मुस्कान को देखने के लिए वो रात भर उन्हीं रास्तों पर चक्कर लगाती रहीं। सुबह जब बच्चे उठे और उन्हें अपने पास एक गिफ्ट पैक रखा मिला तो उनकी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन जब उस पैकेट को बच्चों ने खोला तो उनके चेहरे पर बिखरी मुस्कान वाकई देखने वाली थी।

एक बार की खुशी ने दिखा दिया जिंदगी का मकसद

ये सब देखकर उन्हें बेहिसाब खुशी मिली। बस फिर क्या था उन्हें अब इस पल को अगली दफा निहारने के लिए एक टास्क मिल चुका था। उन्होंने तय किया कि अबकी बार वो कुछ और ज्यादा सामान इकट्ठा करेंगे और ज्यादा बच्चों को ये तोहफा देंगे।

आइडिया जो काम कर गया

असल में जिस दौरान वो कशमकश के दौर से गुजर रही थीं तभी उनको एक और आइडिया आया। कि जिस तरह उन्होंने अपने बच्चों के उन खिलौनों, किताबों, कपड़ों और खेल के सामानों को गिफ्ट बनाकर बांटा है जो वाकई उनके लिए किसी काम के नहीं थे। तो ऐसे न जाने कितने ही लोग होंगे जिनके पास ऐसी बहुत सा सामान हो सकता है जो उनके पास फालतू है। जिससे वो छुटकारा पाना चाहते हैं, लेकिन किसी मोह की वजह से वो अपने से दूर नहीं कर पा रहे । तब उन्होंने एक मुहिम चलाई। अपनी सोसाइटी के साथ साथ आस पास की सोसाइटी और इलाके में रहने वाले लोगों तक ये बात पहुँचाई कि जिन लोगों के पास ऐसा सामान घर में पड़ा है जिसकी कंडीशन काफी बेहतर है, लेकिन अब वो उनके किसी काम का नहीं। यानी जिन चीजों को अब वो लोग इस्तेमाल नहीं करते वो अगर दान कर दें तो मुमकिन है कि उनके लिए जो चीज किसी काम की नहीं है वो किसी जरूरतमंद के काम आ जाए।

शेयर ऐट डोर स्टेप (SADS) की शुरुआत

हम यहां जिसकी बात कर रहे हैं उनका नाम अनुष्का जैन है। 28 साल की अनुष्का पेशे से इंजीनियर हैं। साल 2018 से उन्होंने शेयर ऐट डोर स्टेप की शुरुआत की और अपनी जिंदगी को दूसरों की खुशियों से जोड़ने का एक अनोखा और नायाब मिशन शुरू किया। क्या अजीब इत्तेफाक था कि अनुष्का को एक ऐसे ही दंपत्ति भी मिले जो अपने बच्चों के पुराने पड़ चुके खिलौनों और उसकी कहानियों की किताबें भी ऐसे ही किसी को देना चाहते थे। तभी उनके दरवाजे पर शेयर ऐट डोर स्टेप की पिकअप वैन पहुँच गई।

जब सीक्रेट सेंटा के तोहफों से बिखरती है असली मुस्कान

इसके बाद अनुष्का ने एक वैन बुक करवाई और शेयर ऐट डोर स्टेप (SADS) नाम से एक मुहिम चला दी। अनुष्का ने लोगों को प्रोत्साहित किया कि वो इस अनोखे मिशन से जुड़ने के इस खास मौके को हाथ से जाने न दें और जो कुछ भी सामान दे सकते हैं, जरूर दें। क्योंकि वो नहीं जानते कि उनके लिए घर में पड़ी चीज असल में किसी की जिंदगी को बदल भी सकती है। पति पत्नी ने लोगों को इस बात का भरोसा दिलाया कि उनका दान किया हुआ ये सामान जरूरतमंद गरीब और अनाथालय में पल रहे बच्चों तक ही पहुंचाया जाएगा। देखते ही देखते उनकी यह मुहिम रंग लाई और अब उन्हें मुंबई भर में सीक्रेट सेंटा के नाम से ही जाना जाता है। अनुष्का अब ये मिशन अपने 22 वॉलेंटियर के साथ मिलकर करती हैं। 10-15 अनाथालयों का दौरा करती हैं, वहां खेल का सामान, कपड़े, स्टेशनरी और मिठाइयां चॉकलेट, वगैराह लेकर जाती हैं और अनाथालय के मैनेजरों को चुपके से दे आती हैं। बच्चों को ये नहीं बताया जाता है कि ये कौन दे गया लेकिन इस सीक्रेट सेंटा के तोहफे बच्चों के चेहरों पर जब मुस्कान बिखेरते हैं तो उन्हें कैमरे में कैद करके अनुष्का को दिखा जरूर दिया जाता है।

लोगों को प्रोत्साहित करने का अलग ही अंदाज है

मजे की बात ये है कि अनुष्का अब पत्र पत्रिकाओं और ब्लॉग में अपने लेख के जरिए भी लोगों को प्रोत्साहित करती हैं। वह लिखती हैं कि अपने घर को पहले सही ढंग से सजाएं और संवारें। जो भी सामान ऐसा लगता है कि उस सामान को यूं ही न फेंके, बल्कि हम उस सामान के लिए अगला और सही ठिकाना तलाश लेंगे। आप बस इतना करें कि इस लेख के साथ दिए गए लिंक के माध्यम से पिकअप वैन बुक कर लें। सचमुच आपका दिया गया वो कीमती दान वास्तव में किसी की जिंदगी की रोशन भी कर सकता है। अनुष्का ने अपने लेख में ये साफ लिख दिया कि ऐसे दान का लाभार्थी कोई भी हो सकता है, वो कोई बच्चा हो सकता है, कोई कैंसर से पीड़ित या एचआईवी से जूझता हुआ मरीज, आश्रय घरों में कोई महिला शरणार्थी से साथ साथ वंचित समुदाय का कोई ऐसा जिसका जीवन आज की इस तरक्की पसंद जिंदगी से बहुत दूर है।

बचपन से मिली सीख अब काम आ रही है

अनुष्का ने ये भी साफ कर दिया कि ऐसी मुस्कान बिखेरने का बीज उनके बचपन में ही पड़ गया था, जब उनके जन्मदिन पर वह अपनी मां के साथ बच्चों को मिठाइयां और नाश्ता देने के लिए निकलती थीं। अनुष्का का कहना है कि उन दिनों उनकी मां किसी NGO को चुन लेती थीं। घर से मिठाइयां और नाश्ता लेकर वे किसी अनाथालय में जाते थे और वहां बच्चों के साथ अपना जन्मदिन मनाते थे। अनुष्का कहती हैं कि उन्हें हर साल अपने जन्म दिन का इंतजार रहता था। और जब वो बड़ी हुईं तो उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि ये परोपकार किसी कैलेंडर की किसी एक तारीख का मोहताज तो नहीं हो सकता।

अब इस विचार का दायरा और पैमाना दोनों बढ़ गए

अनुष्का बहुत शालीनता से ये बात कहती हैं कि उनके विचार का दायरा और पैमाना अब बहुत बढ़ गया है। भारत के 12 शहरों में करीब 135 गैर सरकारी संगठन कहीं न कहीं इस मुहिम का हिस्सा बन चुके हैं। अनुष्का कहती हैं कि इस मुहिम में लाभार्थियों की असली गिनती मौजूदा आंकड़ों से कहीं ज्यादा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ बड़े गैर सरकारी संगठन भी अब इस मामले में उनका साथ देने लगे हैं।

अनुष्का कहती हैं, ” क्रिसमस सिर्फ तोहफे बांटने का दिन भर नहीं है, सचमुच ये वो दिन है, जब आप किसी के चेहरे पर मुस्कान बिखेरकर असली पुण्य कमाते हो। सचमुच क्रिसमस खुशियों को भी बांटने का दिन है।

पसंद की चीज से दूर होना वाकई चुनौती है

अनुष्का का एक लेख कहता है कि किसी के लिए भी अपने सामान से मुंह मोड़ना या उसे छोड़ना हमेशा खट्ठा मीटा अनुभव होता है। मैं इस बात से सहमत भी हूं। क्योंकि जब भी आप अपनी पसंद की किसी चीज़ को अपने से दूर करने का फैसला करते हैं तो हमेशा ही आपके भीतर की आवाज आपको रोकती भी है। मन कचोटता है फिर चाहे वह कोई कपड़ा हो जो अब आपको फिट नहीं आ रहा या फिर बचपन की कहानियों की किताबें, या कोई पुराना फर्नीचर। ये भी सच है कि आपका कीमती सामान जो अब आपके लिए ज्यादा कीमती नहीं रह गया, किसी और के दिन को रोशन कर सकता है। ये लेकिन ऐसी कोशिशें सचमुच आपको फैसला न लेने पाने के दलदल से बाहर निकालने में भी मदद करता है।

मुंबई का सीक्रेट सेंटा सिखाता है हमारा दायित्व

सचमुच मुंबई की इस सीक्रेट सेंटा यानी अनुष्का की कहानी इस बात का सबूत भी है कि अगर कोई इंसान सचमुच छोटी सी कोशिश करे और अपनी जिंदगी के दायित्व को समझे तो कई जिंदगियां रोशन हो सकती हैं। न जाने कितने चेहरे मुस्कान से दमक सकते हैं। अनुष्का न सिर्फ जरूरतमंदों की मदद कर रही हैं बल्कि उनकी कहानी एक और सीख देती है। किसी को मुस्कुराहट देने के लिए बहुद ज्यादा धन या संसाधन की जरूरत नहीं है, बस मन में इच्छा होनी चाहिए और कोशिश करने का जज्बा। अनुष्का की ये कहानी जान लेने के बाद अब सचमुच आपकी बारी है, बन जाइये किसी के सीक्रेट सेंटा।

Author

  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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